बुधवार, 28 दिसंबर 2022

एक समीक्षा सत्येन्द्र कुमार रघुवंशी

मनोज जी के नवगीत पढ़कर मन में तृप्ति का भाव जगा। साथ ही एक अपूर्व पाठकीय आनन्द भी मिला। छन्द जिसे लापरवाह या अ-मौलिक कविगण तुकबन्दी, मुलम्मागीरी, भौंडी गायकी आदि के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं, ऐसे लोगों के निशाने पर कई दशकों से है जो छन्दोबद्धता को जीवन की बढ़ती हुई जटिलताओं, ऊहापोहों और सूक्ष्मतम द्वन्द्वों के प्रस्तुतीकरण में बाधा मान रहे हैं। मनोज जी जैसे सर्जक जो हर शब्द और हर बिम्ब की खोज में समय लगाते हैं और खानापूरी करने वाली तुकों और जगह भरने वाली बतकही से संतुष्ट नहीं होते, छन्द के प्रयोग का औचित्य अपने नवगीतों से ठहराने का साहस रखते हैं। उनके पास कहन की नवीनता भी है, अभिव्यक्ति की सामान्यता से बचकर निकलने का धैर्य भी है। समाज उनके विचारों के गलियारों में लैम्पपोस्ट की तरह अपनी मौजूदगी बिखेरता है। ज़िन्दगी जिसके अर्थ और सौन्दर्य का अनुसन्धान सृजन का प्राप्य माना जाता है, उनके नज़दीक गौरैया की तरह बेहद आत्मीय अंदाज़ में आती है।
    मनोज जी के नवगीतों पर मैं अलग-अलग टिप्पणी नहीं कर रहा हूँ। सुधीजन उनके बारे में अपने विचार पहले ही व्यक्त कर चुके हैं।
    मेरा मानना है कि अच्छी कविता हर स्थिति में अच्छी कविता होती है। उसका वैशिष्ट्य, उसकी तरलता, उसकी धार पाठकों को उनकी सहृदयता और संवेदना के मुताबिक़ पृथक्-पृथक् ढंग से छूती है। यह महत्वपूर्ण नहीं है कि वह किस तरह के शिल्प में है यानी छन्द में है या मुक्त अंदाज़ में किसी बड़ी जीवन-स्थिति को रच रही है।
    भाषा कई बार गहरे मक़सद रचती है। वह सिर्फ़ कहती नहीं, पूछती भी है, बताती भी है, टोकती भी है, घूरती भी है, वक़्त ज़रूरत आगाह भी करती है, हमारी सुस्तियों और जम्हाइयों का मज़ाक भी बनाती है, कभी-कभी हमारी किसी नासमझी के लिए हमें धिक्कारती भी है, कायरतापूर्ण समझौते करने की हमारी आदत में दख़ल भी देती है।
    साहित्य हमें अपने दैनन्दिन विचारों से बाहर निकालकर उन अभिव्यक्तियों के मैदान में ले जाता है जिसकी दूब की एक-एक पत्ती रचनाकार ने सँवारी होती है। यह यात्रा कितनी ही छोटी हो, कई अर्थों में नायाब होती है। हम नये तजुर्बों से रूबरू होते हैं, दुनिया के तमाम अनदेखे-अनसोचे संघर्षों को समझते हैं, जीवन की ऊष्मा को अपने अन्तर्जगत में कुछ इस तरह महसूस करते हैं जैसे हमारा कुछ छूटा हुआ हमारे पास उस रचनाकार की पंक्तियों  के माध्यम से वापस आ रहा हो।
    मनोज जी के सातों नवगीत हमें कुछ विशिष्ट अनुभूतियां देते हैं जिसके लिए वह बधाई के पात्र हैं।
    वह स्वस्थ, प्रसन्न, सक्रिय और इसी तरह कवितामय रहें, उनके जन्मदिन के अवसर पर मेरी यह शुभकामना है।
सत्येन्द्र कुमार रघुवंशी


सोमवार, 26 दिसंबर 2022

महेश अनघ पर विशेष प्रस्तुति साभार संवेदनात्मक आलोक

संचालन समिति
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कवि की एक तस्वीर

 संवेदनात्मक आलोक समिति की प्रस्तुति-
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              विशेषांक पर एक दृष्टि-
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                 【अंक- 108】
विरासत से-
"लोक को मौलिक प्रस्तुत करते हैं महेश अनघ"
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                                - मनोज जैन 'मधुर'
भारत की आजादी के ठीक एक माह बाद, मध्य प्रदेश के गुना अंतर्गत राजा की ऊमरी गाँव में जन्में महेश अनघ ने अपने जीवनकाल में साहित्य की अनेक विधाओं में साधिकार लिखा। अपने समय की चर्चित पत्र-पत्रिकाओं में अच्छा खासा स्पेस कव्हर करने वाले अनघ को पहचान उनके नवगीतों से मिली। आप अपनी ही ईजाद की हुई शैली के अनूठे कवि हैं। आपके नवगीतों की कहन शैली अलग है जिसकी तुलना किसी अन्य नवगीत कवि से नहीं कि जा सकती है। महेश अनघ के नवगीतों में लोक जीवन यथार्थ रूप में परत-दर-परत खुलता चलता है। अनघ के काव्य की भाषा में विचलनपरक प्रयोग, प्रतीकों की मौलिकता और प्रयोगों की नवीनता हर कहीं रेखांकित होती है।
 
         देवेन्द्र शर्मा इन्द्र स्वयं महेश अनघ के नवगीतों के मुरीद थे। अनघ की नवगीत कृति 'झनन झकास' पढ़कर उनके रचनाकर्म पर जो अभिमत इन्द्र ने दिया था वह गौर करने योग्य है। यथा-"भाषा और संस्कृति की जैसी मौलिक और प्रामाणिक सुगंध अनघ के नवगीतों में है, वह हम सबके लिए विस्मयकारी ही नहीं, ईरषेय भी है। भाषा की ऐसी बे-सलीका सादगी और वक्रतापूर्ण अभिव्यंजना मुझे उनके अतिरिक्त महाकवि सूर में ही मिल सकी। ऐसे गीत तभी लिखे जा सकते हैं, जब उसका भाव वहन करने के लिए गीतकार के पास पानीदार तीर चढ़ी भाषा के शब्द और मुहावरे हों। तभी गीत, कविता की कविता बन पाता है। जीवन के लिए अपेक्षित ज्ञान को समाप्त करके एक गहरी और संश्लिष्ट अभिव्यक्ति देने पर ही ऐसे गीत सिरजे जाते हैं।" निःसन्देह जब देवेन्द्र शर्मा इन्द्र अनघ की तुलना महाकवि सूर से करते हैं तो यह मानने में संकोच कैसा कि अनघ के नवगीत जमीन से जुडे रहकर बड़े फलक पर जाकर बात करते हैं।

     महेश अनघ के नवगीत हिन्दी नवगीत-कविता के माथे पर मंगल तिलक हैं। आपके नवगीतों में सांस्कृतिक परिवेश है, जनधर्मिता है, पृथ्वी और पर्यावरणीय को सुमंगलकारी बनाने की दृष्टि है, युगबोध की चिंताएंँ हैं, सामाजिक सरोकार हैं। बाबजूद इसके महेश अनघ ने अपने आपको किसी वाद से नहीं जोड़ा जो विषय उनके कवि के संज्ञान में आया उसे पूरी तरह जिया और फिर लिखा है। यही कारण है कि समवेत स्वरों में चाहे गीतकार हों या समालोचक हों उनके कृतित्व को मुक्त कंठ से सराहते हैं। अपनी टिप्पणी में वीरेन्द्र आस्तिक लिखते हैं- "महेश अनघ के शब्दों में झनकार भी है और झनकार की आभा भी। झनक, टनक और बनक की विविधा से उनके नवगीत उद्भूत हैं जिनकी बोली-भाषा शहदीय है।"

        पिछले कुछ वर्षों से इधर सोशल मीडिया पर नवगीत कविता के सन्दर्भ में अलग-अलग विमर्श देखने-सुनने का भी सुअवसर मिला है, जिनमें एक दो विमर्श तो नवगीत पर ही केन्द्रित थे। पर, मैं आश्चर्य चकित था कि उन सन्दर्भो में महेश अनघ जैसे प्रथम पांक्तेय नवगीत कवि का कहीं कोई उल्लेख नहीं है। ऐसी स्थिति में 'संवेदनात्मक आलोक' विश्व नवगीत साहित्य विचार मंच अपनी महत्वाकांक्षी योजना 'नवगीत जन अभियान' के अंतर्गत नवगीत की उपेक्षित कलमों को जन-जन तक पहुंँचाने का बीड़ा उठाया है। जो काबिले तारीफ है।

       विश्व नवगीत समूह 'संवेदनात्मक आलोक' का बहुप्रतीक्षित अंक आपके समक्ष प्रस्तुत होते देख प्रसन्नता का अनुभव कर रहा हूँ। महेश अनघ के पांच नवगीत संग्रहों में से चयनित दस नवगीत जो आपके समक्ष पठन-पाठन के लिए स्क्रीन पर उपलब्ध हैं उसके पीछे पटल प्रमुख रामकिशोर दाहिया और उनकी टीम की नवगीत के प्रति आस्था समर्पण भाव का नतीजा है।  महेश अनघ जैसे विलक्षण नवगीत कवि पर सार संक्षेप लिखने का सुअवसर प्रदान करने के लिए 'संवेदनात्मक आलोक' का हृदय से आभार एवं धन्यवाद करता हूंँ। यहां महेश अनघ की कुछ पंक्तियां उद्धृत हैं- "घर खंगालकर/अगर मिला होता तो/सुख लिखते/जिनके पास नहीं हो/उनको अपने दुख लिखते/खास खबर गीली थी/उसको जस की तस धर दी।" ज्यादा कुछ न कहते हुए आइए महेश अनघ के नवगीतों से अंतरंग जुड़ने का दायित्व संभालते हैं। 
                                •••
निवास : 106, विट्ठल नगर, गुफामन्दिर रोड,
     भोपाल- 462 030 [मध्य प्रदेश]
     सम्पर्क मोबाइल : 93013 37806
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|| संक्षिप्त जीवन परिचय ||
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मूल नाम- महेश प्रसाद श्रीवास्तव।
साहित्य लेखन में- महेश 'अनघ'।
जन्मतिथि- 14 सितम्बर, 1947 ई. मध्य प्रदेश
के एक गाँव गुना अंतर्गत 'राजा की ऊमरी' में।

शिक्षा- एम.ए.संस्कृत [स्वर्ण पदक] साहित्य रत्न।
सेवाएं- भारतीय लेखा परीक्षा से सेवानिवृत्त।
माता एवं पिता- नारायणी देवी श्रीवास्तव, प्रेमनारायण श्रीवास्तव।

पत्नी- डॉ.प्रमिला श्रीवास्तव। पुत्री- शैफाली एवं शैली श्रीवास्तव। पुत्र- डॉ.शिरीष श्रीवास्तव।

प्रकाशित कृतियां- 'घर का पता' (ग़ज़ल संग्रह) 'महुअर की प्यास' (उपन्यास) 'झनन झकास' (गीत-नवगीत संग्रह) 'जोग लिखी' एवं 'शेष कुशल' (कहानी संग्रह) 'फिर मांडी रांगोली' एवं 'गीतों के गुरिया' (गीत-नवगीत संग्रह) 'प्रसाद काव्य' एवं बिन्दु विलास' (खंड काव्य) 'धूप के चँदोवे' (ललित निबंध संग्रह) 'अब ये माधुरी' (खंड काव्य) सन् 2022 में 'रस पर काई -सी चतुराई' (गीत-नवगीत संग्रह) दो गजल संग्रह जिसमें 'घर का पता' का पुनर्प्रकाशन तथा 'अब यही पता है' गजल संग्रह प्रकाशित हैं। यंत्रस्थ कृतियाँ- ग़ज़ल, गीत, कहानी एवं व्यंग्य संग्रह।

अन्य प्रकाशन- 1972 से देश की स्तरीय पत्र-पत्रिकाओं में यथा- धर्मयुग, सारिका, वागर्थ, वीणा, समांतर आदि में सतत लेखन। 

सम्पर्क- डा.प्रमिला श्रीवास्तव, व्यंजना, डी-12, बी गार्डन होम्स अल्कापुरी, ग्वालियर- 474 001 [म.प्र.] चलभाष- 98268 76778
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【1】
|| दलदली ज्वार-भाटे ||
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सब थे आदमजाद
नून भाजी ईंधन आटे
किसने इस
बस्ती में आकर 
सींग पूँछ बाँटे।

नीम तले चौपालों पर
खुर के निशान क्यों हैं?
बुझे हुए
चूल्हे अलाव
जलते  मकान क्यों हैं?
रोती हुई अजान आरती
हँसते सन्नाटे।

बाशिन्दे उकडू बैठे 
डर पसरा है घर में
झाड़ लिया तो भी
खतरा चुभता है
बिस्तर में
तम्बू में काटी रातें
मरघट में दिन काटे।

औजारों में जंग लगी
हथियार हुए पैने
सबने कहा
अशुभ को न्यौता
दिया नहीं मैंने
फिर क्यों हैं?
अगिया बैतालों के चेले-चांटे।

हे रजधानी हम पर
अब के बरस
तरस खाना
झंडे बैनर लेकर
इस बस्ती में
मत आना
और नहीं सह पाएंँगे
दलदली ज्वार-भाटे।
           •••

            - महेश अनघ
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【2】
|| भोगा हुआ लिखें ||
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जैसे रिसते हुए
घाव पर
कलफ लगी वरदी 
ऐसे कुशल क्षेम
लिखकर 
चिट्ठी जारी कर दी।

सम्बोधन में प्रिय
लिखते ही 
कलम काँपती है
यह बेजान चीज
भीतर का
मरम भाँपती है
पूज्य लिखा
श्रद्धेय लिखा
इस तरह माँग भर दी।

घर खँगाल कर
अगर मिला होता तो
सुख लिखते
जिनके पास नहीं हों
उनको अपने
दुख लिखते
खास खबर गीली थी
उसको जस की तस धर दी।

इस छल को जमीर
समझेगा
गाली दे लेगा
भोगा हुआ लिखें
तो कागज
कैसे झेलेगा !
लिखना था अंगार
लिखा केसर चंदन हरदी।

शुभ-शुभ लिखा
तिलस्मी किस्से-सा
इसको पढ़ियो 
मरे हुए अक्षर
कहते हैं
लम्बी उमर जियो
ऊपर पता लिखा
लापता जिन्दगी भीतर दी।
               •••

            - महेश अनघ
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【3】
|| अस्थि - पंजर ||
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कौन है? संवेदना!
कह दो अभी घर में नहीं हूँ।

कारखाने में बदन है
और मन बाजार में
साथ चलती ही नहीं
अनुभूतियाँ व्यापार में
क्यों जगाती चेतना
मैं आज बिस्तर में नहीं हूँ।

यह जिसे व्यक्तित्व कहते हो
महज सामान है
फर्म है परिवार
सारी जिन्दगी दूकान है
स्वयं को है बेचना
इस वक्त अवसर में नहीं हूँ।

फिर कभी आना
कि जब यह हाट उठ जाए मेरी
आदमी हो जाऊँगा
जब साख लुट जाए मेरी
प्यार से फिर देखना
मैं अस्थि - पंजर में नहीं हूँ।
             •••

               - महेश अनघ
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【4】
|| यही करेंगे पोते ||
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राजी राजी या नाराजी 
 राज करेंगे राजा जी।

जब से होश सम्हाला हमने
इतना ही संदेश मिला है
मंदिर मस्जिद बैसाखी हैं 
सबका मालिक लाल किला है
      चाहे छाती जोड़ें चाहे
     लाठी भांँजें बामन-काजी
     राज करेंगे राजा जी।

चाहे जिस पर मुहर लगा दें
इतनी है हमको आजादी 
उनको वोट मिलेंगे दो सौ
पौने दो सौ की आबादी  
    टका सेर मिलते मतदाता
    महँगी गाजर मूली भाजी 
   राज करेंगे राजा जी।

वे बोलेंगे सूरज निकला
हम बोलेंगे हाँजी-हाँजी 
उनकी छड़ी चूमते रहना
हम चिड़ियाघर के चिम्पांजी
     पानीदार अगर रहना हो
     दिल्ली से निकलें गंगा जी
     राज करेंगे राजा जी ।

राजा जी का राज अचल हो
व्रत रखते हम दस दिन प्यासे
दस दिन अनशन दस दिन फाँके
बाकी ग्यारह दिन उपासे 
      यही करेंगे पोते अपने
      करते रहे यही दादा जी
      राज करेंगे राजा जी ।
                 ••• 

                 - महेश अनघ
-------------------------------------------------------------
【5】
|| अधूरापन ||
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सब खुशियाँ हो गईं मुखातिब
अब गम को गाने का मन है
जाने किन भावों को भरने
मेरे   पास   अधूरापन   है।

कसमें पहरे पर बैठाकर
सब अपने हो गए पराए
वे बंधन अब कहाँ मिलेंगे
जिनसे जीवन खुल-खुल जाए
सुलझी हुई नजर से देखा
हर चहरे पर ही उलझन है।

जाने कब मेरा पूरा घर
काजर का गोदाम हुआ है
प्यारा पाहुँन कहाँ बिठायें
हर कमरे में एक कुआँ है
मण्डप उनके पास नहीं है
जिनके पास खुला आँगन है।

बाहर आग बरसती रहती
भीतर-भीतर पानी-पानी
खिड़की पर बैठा मन पाँखी
बातें करता है रूमानी
अधरों की मानें तो फागुन
आँखों की मानें सावन है।

बोलें तो स्वर से स्वर लड़ते
अक्षर से अक्षर टकराते
इसीलिए हम दर्पण से भी
अपनी पीर नहीं कह पाते
सच को गंगा घाट दिया है
सपनों का लालन-पालन है।
               •••

                - महेश अनघ
--------------------------------------------------------【6】
|| डिगरी बांँध कलाई ||
---------------------------

मुख पर लगे डिठौना छूटे
रेख उभरकर आई।
चल दुनिया से जूझ अकेला
डिगरी बाँध कलाई।

माँ ने पुण्य कलेऊ बाँधा
राई  नौन उतारे।
बाबा ने छूकर दिखलाए
जर्जर घर - ओसारे।
बहनों ने मन्नत में माँगी
सोनपरी भौजाई।

पहले पंच पटेल मिलेंगे
दस मुख बीस भुजाएँ।
पेड़ों पर लटकी होंगी
अगिया बेताल कथाएँ।
बाढ़ी नदिया पार करेगा
सात बहिन का भाई।

सँकरे द्वार बदन छीलेंगे
सिर पर  धूप  तपेगी।
संस्कार में बँधी आत्मा
जय जनतंत्र जपेगी।
मरुथल में पानी खोजेगा
लेकर दियासलाई।

करिया पर्वत को चीरेगा
नागलोक जीतेगा।
रोजगार-मणि की तलाश में
अमरत  घट  रीतेगा।
शेष रहा तो घर लौटेगा
  बूढ़ा   हातिमताई।
            •••

          - महेश अनघ
--------------------------------------------------【7】
|| अपनी भूल ||
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बहुत भरोसा रहता है
प्रतिकूल पर
अमराई से ऊबी चिड़िया
रहने लगी बबूल पर।

ज्यादा नरम लचीली रस्सी
बाँध नहीं पाती
चौपाए को हरे लॉन पर
नींद नहीं आती
माँ से बिछुड़े बच्चे का
मन आया मिट्टी धूल पर।

जो किस्से पनपे खँडहर में 
जंगल झाड़ी में
सात समन्दर पार गए हैं
भर-भर गाड़ी में
ढाई आखर कब निर्भर है
कॉलिज या स्कूल पर।

वैसे भी दाएंँ की मालिश
बायाँ करता है
हर कोई अपनी बिरादरी
से ही डरता है
भौंरे कलियों पर रीझे हैं
तितली रीझी फूल पर।

जिजीविषा का झंझट से
कुछ  गहरा  नाता  है
सुख जीवन निचोड़ता है
दुख उमर बढ़ाता है
अब आलोचक पछतायेगा
शायद अपनी भूल पर।
           •••

               - महेश अनघ
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【8】
|| अंधकार का तन ||
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आओ कचरे के पहाड़ में
अपना - अपना मन ढूंँढ़े।

ऊपर सम्बन्धों  की उतरन
नीचे दलदल है
यही हमारी चरनोई है
यही अस्तबल है
भीड़भाड़ में धकापेल में
दुबकी हुई छुअन ढूंँढ़े।

आओ कच्ची खनक तलाशें
धुर सन्नाटे में
वैभव में सुन्दरता 
नमक तलाशें आटे में
मुम्बई के दलाल पथ में से
मँगनी का कंगन ढूंँढ़े।

खोजें चलो गुलबिया पाती
अंधी  आँधी  में
फुलबतिया का किस्सा खोजें
सोना - चाँदी  में
उत्सव ढूंँढ़े अस्पताल में
मरघट में जीवन ढूंँढ़े।

इन्हीं वर्जनाओं में होगी
दमित कामना भी
झर-झर आँसू में ही होगी
हर - हर गंगा भी
अंधकार का तन टटोलकर
रूठी हुई किरन ढूंँढ़े।
            •••

               - महेश अनघ
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【9】
|| आँखों का जल ||
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खरहा बोला-भैया हिरना 
   जंगल कहाँ गया।

जब से फील बजीरे आजम
     राजा नाहर हैं
 पेड़ों के घर में घुन है
   दावानल  बाहर  है
पुरखे जो कर गए वसीयत
   बादल  कहाँ गया।

माना मोटू हैं, पर!
क्या ये इतना खाते हैं
   चंदे में पूरी-पूरी
  ऋतुएँ ले जाते हैं
धरती माता खोज रही है
  आँचल कहाँ गया।

अर्जी क्या करना
हाकिम बैठे पगुरायेंगे
   हमको तुमको
छुटभैये दरबारी खायेंगे
  उनका दौरा हुआ
हमारा दल बल कहाँ गया।

आज गले मिल लो दादा
कल हुकुम बजाना है
  आका की थाली में
अपना शीश चढ़ाना है
फिर मत कहना, अपनी
आँखों का जल कहाँ गया।
                 •••

            - महेश अनघ
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【10】
|| लड़की ||
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एक समर झेला लड़की ने
खिलखिल करने से
मुस्काने तक
तेरह से अठ्ठारह आने तक।

भली बाप की छाती
उज्ज्वल भैया का माथा
खिड़की से
बाहर अनजाना
धुँधला चेहरा था
धरती को कुचला लड़की ने
छत जाकर बाल सुखाने तक।

चंदा-सूरज फूल-पात
काढ़े  रूमालों  में
शहजादे को नाच नचाया
रोज ख्यालों में 
खुद को खूब छला लड़की ने
देह सजाने और छुपाने तक।

घर में दिया जलाकर
गुमसुम बैठी सूने में
डरती है नम आँखों से
उजियारा छूने में
सीखी ललित कला लड़की ने
गीले ईंधन को सुलगाने तक।

बिजली के तारों पर बैठी
चिड़िया भली लगी
वह, छिपकली टिटहरी
तीनों आधी रात जगी
सबका किया भला लड़की ने
सपनों की डोली उठ जाने तक।
                    •••

              - महेश अनघ
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गुरुवार, 15 दिसंबर 2022

एक नवगीत

कीर्तिशेष महेश अनघ जी का एक नवगीत


राजी राजी या नाराजी 
राज करेंगे राजा जी ।

जब से होश सम्हाला हमने
इतना ही संदेश मिला है।
मंदिर मसजिद बैसाखी हैं 
सबका मालिक लाल किला है।
        चाहे छाती जोड़ें चाहे
         लाठी भांजें बामन-काजी।
          राज करेंगे राजा जी।
चाहे जिस पर मुहर लगा दें
इतनी है हमको आजादी ।
उनको वोट मिलेंगे दो सौ
पौने दो सौ की आबादी । 
        टका सेर मिलते मतदाता
         महँगी गाजर मूली भाजी ।
          राज करेंगे राजा जी ।
वे बोलेंगे सूरज निकला
हम बोलेंगे हाँजी-हाँजी ।
उनकी छड़ी चूमते रहना
हम चिड़ियाघर के चिम्पांजी।
         पानीदार अगर रहना हो
          दिल्ली से निकलें गंगाजी।
           राज करेंगे राजा जी ।
राजा जी का राज अचल हो
ब्रत रखते हम दस दिन प्यासे।
दस दिन अनशन दस दिन फाके
बाकी ग्यारह दिन उपासे ।
         यही करेंगे पोते अपने
          करते रहे यही दादा जी।
          राज करेंगे राजा जी ।

सोमवार, 12 दिसंबर 2022

आलेख: आभासी दुनिया में नवगीत लेखक राजा अवस्थी

राजा अवस्थी, कटनी

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              आभासी दुनिया में नवगीत
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                        हमारी परम्परा में साहित्य विद्या के दो रूप चले आ रहे हैं। एक तो कहत-सुनत अर्थात् वाचिक परम्परा का और दूसरा लिखत-पढ़त का अर्थात् पाठ परम्परा का। कालांतर में इस परम्परा में देखना भी जुड़ा किन्तु प्रकारान्तर से यह भी उक्त दोनों परम्परा रूपों में समाहित होता है। क्योंकि नाटकीय रूपान्तर भी कहे-सुने या लिखे-पढ़े का ही होता है। दूसरी कई-कई बातों के समान बीसवीं सदी में साहित्य विद्या के रूपों, सुविधाओं आदि में भी क्रांतिकारी बदलाव हुए हैं। इन्टरनेट, कम्प्यूटर और मोबाइल के आविष्कार ने साहित्य विद्या में एक आभासी दुनिया को बड़ी जगह दी है, जो अब तक एक परम्परा की तरह स्थापित हो गई है कहें, तो अतिशयोक्ति नहीं कहा जा सकता।

                    साहित्य की परम्पराओं से प्राप्त कुछ - कुछ कथ्य का आभासीय रूपान्तर बीसवीं सदी में ही आरम्भ हो चुका था और इसने चलचित्रों के रूप में समाज में अपना खूब प्रभाव दिखाया। इसी आभासीकरण को कम्प्यूटर, मोबाइल और इन्टरनेट के आते ही पंख लग गये। इन्टरनेट की दुनिया में सर्च इंजन के आविष्कार और क्लाउड ने साहित्य की आभासी दुनिया के लिए उसकी उपयोगिता व सुलभता दोनों में असीमित वृद्धि कर दी। इसके साथ ही समूचे लिखे-छपे साहित्य व अन्य प्रकार के उपलब्ध ज्ञान के आभासी रूप में परिवर्तन-संरक्षण की होड़ लग गई। या कहें कि धुआँधार कोशिश शुरू हो गई। आज इस आभासी दुनिया में अरबों पृष्ठ का साहित्य उपलब्ध है। महत्वपूर्ण यह है कि साहित्य के इस आभासी रूप को प्रिंटर के माध्यम से उसके स्थूल रूप यानी छपे हुए रूप में भी तत्काल प्राप्त किया जा सकता है। इस बात का एक अर्थ यह भी है कि यह आभासी संसार हमारे चाहने से स्थूल रूप में भी आ सकता है। इस तरह यह एक सीमा के भीतर आभासी से कुछ अधिक है।

                      इस आभासी दुनिया का वास्तविक संसार असीमित है। इसकी व्यापकता व पहुँच भी इस विराट संसार में असीमित है। इस संसार में भिन्न-भिन्न तरह के असीमित ज्ञान के साथ साहित्य की सभी विधाओं में किया जाने वाला सृजन भी काफी मिलता है और इसमें लगातार वृद्धि होती जा रही है। इस आभासी दुनिया के साहित्य संसार में नवगीत - कविता ने भी अच्छी खासी जगह पर अपना आधिपत्य जमा रखा है। नवगीत - कविता की यह दुनिया लगातार बढ़ती-फैलती जा रही है। यहाँ नवगीत - कविता के रचनाकार कवियों - लेखकों को न सिर्फ शेष दुनिया तक पहुँचने का अवसर मिला है, बल्कि काव्य - प्रेमी पाठकों को भी वास्तविक कविता के आस्वादन का अवसर सुलभ हुआ है। छपी हुई सामग्री का मूल्य आम पाठक की पहुँच से बाहर होने और पुस्तकों की अनुपलब्धता से जो पाठक साहित्य का आस्वाद नहीं ले पाते थे, उन्हें इस आभासी दुनिया ने सभी तरह का साहित्य बहुत सरलता से सुलभ करा दिया है। नवगीत कविता तक भी पाठकों की पहुँच आसान हुई है और बढ़ी है।

                    नवगीत कविता को आभासी दुनिया में उपलब्ध कराने के लिए फेसबुक, वाट्सएप, ब्लाॅग, आर्कुट, यूट्यूब आदि पर, जहाँ व्यक्तिगत साहित्य प्रस्तुत करने का काम हुआ है, वहीं समूची नवगीत कविता परम्परा में उपलब्ध साहित्य को आभासी संसार में सुलभ कराने के लिए कुछ साहित्यकार सक्रिय हैं। उनका यह कार्य उल्लेखनीय व रेखांकित करने योग्य है। आज इनके ही सद्प्रयासों से नवगीत - कविता का विपुल साहित्य अन्तर्जाल पर उपलब्ध है। आभासीय संसार में नवगीत - कविता - संसार की निरन्तर वृद्धि कुछ विशिष्ट नामित मंचों के माध्यम से की जा रही है। ये सभी मंच यूट्यूब, ब्लॉग, ई - पत्रिका, वेब-पत्रिका, वेबसाइट, फेसबुक, फेसबुक समूह, वाट्सएप समूह आदि के रूप में कार्य कर रहे हैं।

                    बीसवीं सदी के अंतिम कुछ दशकों में अन्तर्जाल के प्रति समझ और ज्ञान के प्रसार की गति बढ़ी। तब भी यह ज्ञान एक सीमित दायरे के लोगों तक ही था। हिन्दी - फोन्ट की बड़ी समस्या थी। आज की तरह मंच उपलब्ध नहीं थे। जियोसिटीज पर ही कुछ इस तरह का काम होता था। आई सी क्यू एक ही चैट प्लेटफार्म था। एम एस आफिस हिन्दी और यूनीकोड भी बहुत बाद में आये। इन्टरनेट की गति भी बहुत कम हुआ करती थी, तो यहाँ उपलब्ध साहित्य - संसार भी सीमित ही था, किन्तु अन्तर्जाल के प्रति समझ और सुविधाएँ बढ़ने के साथ कुछ साहित्यक, पत्रकार इस आभासी दुनिया में सक्रिय हुए। इन साहित्यकारों, पत्रकारों में नवगीत - कविता के लिए समर्पित कवयित्री, अभिव्यक्ति कला केंद्र, लखनऊ की संचालक पूर्णिमा वर्मन का नाम प्रारम्भ के कुछ लोगों में भी प्रथमतः लिया जा सकता है। इनके बहुत बाद में बहुत लोग जैसे ललित श्रीवास्तव, डाॅ अनिल जनविजय, डाॅ अवनीश सिंह, रवि रतलामी, डाॅ जगदीश व्योम, आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल', राजा अवस्थी, मनोज जैन मधुर, रामकिशोर दाहिया, डाॅ रामसनेही लाल शर्मा 'यायावर', आदि सक्रिय हुए।

                    आभासी संसार में लगातार अपनी उपस्थिति को व्यापक और गहन बनाते जा रहे नवगीत की बात करें तो, जो सबसे पहला नाम दृष्टि में आता है, वह है पूर्णिमा वर्मन का। संस्कृत साहित्य में परास्नातक, पत्रकार, कवि व साहित्य के लिए ही कंप्यूटर का डिप्लोमा प्राप्त करने वाली पूर्णिमा वर्मन जी की यात्रा अंतरजाल पर नवगीत की ही यात्रा है। अंतर्जाल पर नवगीत की यात्रा और पूर्णिमा वर्मन की यात्रा, इन दोनों को अलग करके नहीं देखा जा सकता। पूर्णिमा वर्मन जी की यात्रा के बारे में जानते हुए एक तरह से हम अंतर्जाल के विकास की यात्रा भी जान पाते हैं। नवगीत की दुनिया और अन्तर्जाल पर दृश्यमान विराट साहित्यिक संसार में पूर्णिमा वर्मन जी की पहचान अभिव्यक्ति-अनुभूति की संपादक और एक साहित्यकार-पत्रकार के रूप में है। पूर्णिमा वर्मन जी की यह पत्रिका अभिव्यक्ति-अनुभूति विदेशों के लगभग 140 ऐसे विश्वविद्यालयों के संदर्भ अध्ययन की सूची में है, जहाँ हिंदी पढ़ाई जाती है। विदेशों के विश्वविद्यालयों में अभिव्यक्ति-अनुभूति के बारे में पढ़ाया जाता है। 

                    सन 1995,जब वेब पर हिंदी को कोई सहयोग नहीं था  तब से पूर्णिमा वर्मन अंतरजाल पर सक्रिय हैं। हिंदी को अंतर्जाल पर सहयोग 2004 से मिलना संभव हुआ, जब एमएस ऑफिस हिंदी जारी किया गया। हिंदी विकिपीडिया भी 2003 में शुरू हुआ। यूंँ चिट्ठाकारिता का जन्म तो 1994 के आसपास हुआ, किंतु ब्लॉगर 1999 में आया। यूनिकोड भी 2003 में आया। पूर्णिमा वर्मन जी की चर्चा और आभासी दुनिया में नवगीत की चर्चा करते हुए इन सब बातों की चर्चा जरूरी है  ताकि अंतर्जाल पर उनके साहित्यिक अवदान को, उनके इस रास्ते की मुश्किलों और सुविधाओं की न्यूनता के सापेक्ष भी समझा जा सके।

                    पूर्णिमा वर्मन जी के बताए अनुसार अभिव्यक्ति निकालने का विचार 1995 में एक चैट कार्यक्रम में बातचीत करते हुए उठा। यह चैट कार्यक्रम संभवतः जिओसिटी पर आइसीक्यू चैट प्लेटफार्म पर था। उस समय कनाडा के ओकनागन विश्वविद्यालय में कंप्यूटर साइंस के प्रोफेसर डॉ अश्विन गांधी और कुवैत से दीपिका जोशी के सहयोग से अभिव्यक्ति की शुरुआत हुई। यद्यपि यह काम अंतर्जाल पर सुविधाओं की न्यूनता के कारण बहुत मुश्किल  था, किन्तु 1996 में अभिव्यक्ति शुरू हो गई। आरम्भ में इसमें ही कविता, कहानी, रसोई आदि हर तरह की सामग्री होती थी। अभी भी अभिव्यक्ति पर सब कुछ मिलता है। बाद के दिनों में अनुभूति  कविता केन्द्रित हो गई। उन दिनों पूर्णिमा वर्मन यू ए ई के शारजाह शहर में रहती थीं। 15 अगस्त 2000 से अभिव्यक्ति का नियमित प्रकाशन वेब पर आरंभ हो गया। पहले यह मासिक थी फिर पाक्षिक निकलने लगी। 16अप्रैल 2002 तक पाक्षिक निकलने के बाद , एक मई 2002 से नियमित साप्ताहिक प्रकाशित होने लगी। अभिव्यक्ति अनुभूति 2017 से पूर्णिमा वर्मन जी की व्यस्तता के कारण मासिक अंकों के रूप में नियमित निकल रही है। 
                     पहले अभिव्यक्ति-अनुभूति एक साथ थीं और इसमें सभी तरह की सामग्री होती थी। किन्तु, बाद में कविता के लिए अनुभूति नाम से अलग वेब पत्रिका शुरू की गई। अभिव्यक्ति, अनुभूति जुड़वाँ लेकिन एक ही हैं।
                     हमारे समय के साहित्यकारों में जो दो चार लोग अंतर्जाल पर सबसे पहले आए, उनमें भी पूर्णिमा वर्मन पहली हो सकती हैं। बाद के दिनों में अनिल जनविजय, रविशंकर रतलामी, जो स्वयं कंप्यूटर के प्रकांड विद्वान हैं, सक्रिय हुए थे। चिट्ठाकारिता में कंप्यूटर तकनीक के उनके चिट्ठे बहुत मशहूर, ज्ञानवर्धक और सिखाने वाले हैं। इसके साथ ही रवि रतलामी जी की 'रचनाकार' नाम से एक वेबसाइट है, जिस पर कहानी, आलेख, व्यंग्य, बालसाहित्य आदि के साथ नवगीत भी खूब प्रदर्शित हैं। डॉ जगदीश व्योम, डाॅ अवनीश सिंह चौहान आदि कई साहित्यकार अन्तर्जाल पर गंभीरता के साथ सक्रिय थे, लेकिन कंप्यूटर व अंतरजाल की जानकारी न होने से हिंदी का ज्यादातर साहित्यकार इस से बहुत दूर था। इसके फायदे और प्रभाव को भी कम कर के आँका जा रहा था, किंतु इन सबके बीच इन सबसे पहले से सक्रिय पूर्णिमा वर्मन की सोच बहुत स्पष्ट एवं सकारात्मक व यथार्थवादी थी। यह आज प्रमाणित भी हो चुका है। पूर्णिमा जी को उनके इस काम के लिए पहली बार 2003 में हिंदी भवन दिल्ली में कमलेश्वर सहित 500 साहित्यकारों की उपस्थिति में अशोक चक्रधर की अध्यक्षता में सम्मानित किया गया। अशोक चक्रधर ने पूर्णिमा वर्मन पर केंद्रित लगभग 1 घंटे की एक पावर प्वाइंट प्रस्तुति दी थी। कार्यक्रम का नाम था 'वेब की दशा और दिशा- पूर्णिमा वर्मन के बहाने'।
                     आभासी संसार में पूर्णिमा वर्मन की इस यात्रा में नवगीत कितना है? इस पर बात को केंद्रित करना जरूरी है  तो पूर्णिमा वर्मन कहानी, निबंध, मुक्त छंद सभी कुछ लिखती हैं, किन्तु साहित्य जगत में उनकी ख्याति अभिव्यक्ति- अनुभूति की संपादक नवगीत कवयित्री के रूप में ही है। अनुभूति वेब पत्रिका लगभग नवगीत की ही वेब पत्रिका है। इस में कविता की सभी विधाओं को प्रकाशित किया जाता है। अभिव्यक्ति के अब तक लगभग 775 अंक आ चुके हैं। अभिव्यक्ति में भी नवगीत लगातार प्रकाशित किए जा रहे थे, किंतु जब अनुभूति नाम से इससे अलग किया गया, तो पहले अंक में जो गीतकार प्रकाशित हुए, वे थे जीवन यदु और उनका गीत था 'सच', "मैंने अपने होंठ जलाकर जो भी सच है बोल दिया वह/यदि सुनने में कान तुम्हारे जलें तो मेरी क्या गलती है।" अनुभूति के हर अंक में कम से कम एक नवगीत कवि की कुछ नवगीत कविताएँ अवश्य प्रकाशित की जाती हैं। अनुभूति  विशेषांक भी प्रकाशित करती रही है और विशेषांक में कई नवगीत  कवियों को एक साथ प्रकाशित किया जाता है। इस तरह हम कह सकते हैं कि अभिव्यक्ति अनुभूति की 775 अंकों की यात्रा में 775 नवगीत कवि चाहे प्रकाशित न भी हुए हों, किंतु हजारों नवगीत कवितायें, सैकड़ों समीक्षायें, दर्जनों साक्षात्कार अभिव्यक्ति-अनुभूति के द्वारा आभासी दुनिया में सहेजे जा चुके हैं।
                    अपने आलेख के आरंभ में आभासी साहित्यिक दुनिया के स्थूल दुनिया में बदलने की चर्चा भी मैंने की थी। हिंदी साहित्य संसार की पहली वेब पत्रिका अभिव्यक्ति-अनुभूति की संपादक, पत्रकार पूर्णिमा वर्मन ने इसे सच करके भी दिखाया है। प्रथम नवगीत महोत्सव 2011 (जिसकी चर्चा हम आगे करेंगे) में पढ़े गये सभी आलेखों का संग्रह 'नवगीत परिसंवाद' के नाम से और नवगीत की पाठशाला में लिखे गये चयनित नवगीतों का संग्रह 'नवगीत 2011' के नाम से मुद्रित रूप में प्रकाशित जा चुके हैं।
                    हिंदी साहित्य के इतिहास में पहली हिंदी वेब पत्रिका अभिव्यक्ति-अनुभूति, जो नियमित निकलने वाली इकलौती वेब पत्रिका भी है, के बाद कई पत्रिकायें आईं, जिनमें नवगीत कविता और उससे संबंधित सामग्री प्रकाशित होती रही है। इनमें सृजनगाथा, प्रवक्ता, स्वयंप्रभा, गीत पहल, पूर्वाभास, भाषांतर आदि प्रमुख हैं। इनमें भी जो एक बड़ा नाम है, वह अवनीश सिंह चौहान और उनके पूर्वाभास का है। किन्तु, अभिव्यक्ति - अनुभूति के बाद और पूर्वाभास व गीतपहल से पहले आभासी दुनिया में एक बड़ा काम 'कविता कोश' वेबसाइट के रूप में अस्तित्व में आया। इसके संपादक और प्रारम्भकर्ता थे बहुभाषाविद, मस्क्वा विश्वविद्यालय (मास्को - रशिया) में हिन्दी के प्राध्यापक डाॅ अनिल जनविजय। अनिल जनविजय स्वयं अच्छे कवि, अनुवादक और भारतीय कविता के साथ विश्व कविता की भी अच्छी समझ रखने वाले विद्वान हैं। कविता कोश का काम बड़ा और व्यापक दृष्टि के साथ शुरू किया गया था। इसके शुरूआत में जिन लोगों ने मिलकर काम किया उनमें डाॅ जगदीश व्योम, ललित कुमार, डाॅ पूर्णिमा वर्मन, मितुल और दीपक प्रमुख थे। 'कविता कोश' वेबसाइट बनाने का काम आई टी विशेषज्ञ ललित कुमार ने किया। फरवरी 2006 में अनिल जनविजय की मुलाकात ललित कुमार से हुई और जब अनिल जनविजय जी ने ऐसी एक वेबसाइट बनाने का विचार उनसे साझा किया, तो ललित कुमार ने ऐसी वेबसाइट बनाने का वादा किया और वेबसाइट बनाकर दे दी। अगस्त 2006 में सबने मिलकर काम शुरू कर दिया। सबसे पहला पन्ना जो बनाया गया, वह गोस्वामी तुलसीदास कृत रामचरितमानस का था और बालकाण्ड के आरम्भिक पन्नों को जोड़ने से इसकी शुरुआत की गई। आज कविता कोश में सभी तरह की काव्यविधाओं के पुराने से पुराने कवियों के परिचय व कवितायें देखी - पढ़ी जा सकती हैं। इसके साथ ही अधिकाधिक नवगीत कवियों के नवगीत यहाँ उपलब्ध हैं और इसमें पन्ने जोड़ने का काम लगातार चल भी रहा है। इस तरह आभासी दुनिया में नवगीत की चर्चा में 'कविता कोश' और अनिल जनविजय का ऐतिहासिक और दीर्घकालिक महत्व है। अब 'कविता कोश' का अपना एप भी है, जिसके द्वारा कविता कोश को पढ़ा जा सकता है।
                      नवगीत पर लगातार केन्द्रित रहकर काम करने वाले लोगों में डाॅ अवनीश सिंह चौहान और उनके 'पूर्वाभास' का नाम प्रमुखता से उल्लेखनीय है। अवनीश जी अंग्रेजी साहित्य के विद्यार्थी, लेखक, आलोचक और संपादक हैं। अंग्रेजी में भी उनकी दो वे पत्रिकाएं निकल रही हैं बावजूद इसके नवगीत कविता और वेबदुनिया में नवगीत के लिए लगातार काम करने वालों में अनुभूति और पूर्णिमा वर्मन के बाद दूसरा सबसे बड़ा नाम पूर्वाभास और डॉ अवनीश सिंह चौहान का ही है। निसंदेह नवगीत कविता को लोकप्रिय बनाने में डॉ अवनीश सिंह चौहान और पूर्वाभास की बड़ी भूमिका है। सन 2010 में डॉ अवनीश सिंह चौहान ने पांच-छह माह की मेहनत के बाद 'गीत-पहल' वेब पत्रिका प्रकाशित की। इसका लोकार्पण 24 अक्टूबर 2010 को मुरादाबाद में कराया गया। कई कारणों से इसका दूसरा अंक नहीं आ सका। इतना बड़ा अंक देना हमेशा संभव न हो पाना भी इसके स्थगित रखने का शायद एक कारण रहा हो, किंतु गीत-पहल आभासीय दुनिया में नवगीत की उपस्थिति के लिए महत्वपूर्ण इसलिए है, कि पहली बार नवगीत-कविता पर वेब पर एक साथ इतनी अधिक सामग्री प्रदर्शित की गई थी। गीत-पहल में लगभग 60 नवगीत कवियों के नवगीत, 'नये पुराने' (संपादक दिनेश सिंह) के सभी अंकों के संपादकीय लेख, नवगीत कवियों के साक्षात्कार और नवगीत केन्द्रित आलेख वेब पर प्रकाशित किए गये। गीत पहल का यह अंक वेब पोर्टल पर सबसे पुरानी पत्रिका के रूप में अब भी प्रदर्शित है।
                    गीत पहल की शुरुआत करने में आई मुश्किलों और तकनीकी ज्ञान बढ़ने के साथ अवनीश जी 'गीत पहल' के लोकार्पण के पहले ही 'पूर्वाभास' (अनियत कालीन वेब पत्रिका) पर काम शुरू कर चुके थे। पूर्वाभास का पहला अंक 11 अक्टूबर 2010 को अंतर्जाल पर प्रकाशित किया गया। पूर्वाभास के प्रथम अंक में दिनेश सिंह के पाँच नवगीत, परिचय और चित्र प्रकाशित किए गये, तब से अब तक 60 नवगीत कवियों के नवगीत और नवगीत पर लगभग इतने ही आलेख, व साक्षात्कार यहाँ पर प्रकाशित किए जा चुके हैं। डॉ अवनीश सिंह चौहान को उनके इस काम के लिए स्वीकृति और सम्मान भी मिला है। अमेरिका की नामी संस्था 'द थिंग्स क्लब' द्वारा 2012 में 'द बुक ऑफ द ईयर' सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है। यह एक बड़ा पुरस्कार है।
                    वेब पर इस तरह का काम करने का विचार कैसे आया? के सवाल पर डॉ अवनीश बताते हैं, कि दिनेश सिंह के संपादन में निकलने वाली प्रतिष्ठित पत्रिका नये पुराने के कैलाश गौतम पर केंद्रित अंक को निकालते समय अवनीश जी, जो उस समय 'नये पुराने' के संपादन-प्रकाशन में दिनेश सिंह जी का सहयोग कर रहे थे, को भारी आर्थिक मुश्किलों का सामना करना पड़ा। इसी बीच डॉ अवनीश 'खबर इंडिया' नाम के एक बहुत बड़े वेब पोर्टल पर प्रकाशित होने वाले पत्र के साहित्य संपादक बन गए और 2007 में कैलाश गौतम पर केंद्रित यह अंक ई-अंक के रूप में प्रकाशित किया। 'खबर इंडिया' पर भी डॉ अवनीश सिंह चौहान ने नवगीत प्रकाशित किये। संभवतः यहीं से वेब पत्रिका का विचार आया और फिर गीत पहल व पूर्वाभास आदि अस्तित्व में आई।
                    वेब पत्रिका के रूप में 'कविता कोश' से अलग होने के बाद डॉ अनिल जनविजय ने भाषांतर वेब पत्रिका की शुरुआत की, किन्तु इस पर भी आगे बहुत काम नहीं हुआ।
                   आभासी दुनिया में अंतर्जाल पर नवगीत की उपस्थिति इन कुछ वेब पत्रिकाओं के अलावा निजी ब्लॉगों, फेसबुक समूह और व्हाट्सएप समूह के साथ यूट्यूब पर बहुत अधिक मात्रा में है। व्हाट्सएप समूह पर प्रकाशित सामग्री का स्थायित्व और संरक्षण नहीं होने के कारण यहाँ उपस्थित मंच दैनिक चर्चा, आपसी संपर्क और निजी महत्वाकांक्षाओं व कुण्ठाओं की तृप्ति तथा समय बिताऊ शगल जैसा काम हो गया है। तथापि कुछ काम यहाँ भी उल्लेखनीय हुए हैं। उनकी चर्चा होना चाहिए। व्हाट्सएप पर नवगीत पर केंद्रित समूहों में संवेदनात्मक आलोक प्रमुख है। यह समूह 2015 से चल रहा है। इसके संचालक नवगीत कवि रामकिशोर दाहिया हैं। । इस समूह में सप्ताह के निश्चित दिनों में किसी एक नवगीत  कवि के कुछ नवगीत एक टिप्पणी के साथ चर्चार्थ प्रस्तुत किए जाते हैं। समूह में शामिल नवगीत कवि उन नवगीतों पर अपनी टिप्पणी करते हैं। संवेदनात्मक आलोक नाम से इनका एक ब्लॉग व फेसबुक समूह भी है। व्हाट्सएप समूह संवेदनात्मक आलोक की सामग्री को बाद में ब्लॉग और फेसबुक समूह पर भी प्रस्तुत कर दिया जाता है। इस तरह व्हाट्सएप समूह की सीमाओं में यहाँ पर भी उल्लेखनीय काम हो रहा है। संवेदनात्मक आलोक पर इस तरह अब तक 105 नवगीत कवियों को प्रस्तुत किया जा चुका है।
                    व्हाट्सएप पर 'सजल सर्जना' मथुरा नाम से एक समूह का संचालन विद्वान प्राध्यापक डॉ अनिल गहलोत करते हैं। इस समूह में सप्ताह में 1 दिन नवगीत-दिवस होता है। इस दिन का आयोजन और संचालन वरिष्ठ नवगीत कवि- आलोचक-संपादक डॉ. रामसनेही लाल शर्मा 'यायावर' करते हैं। इस दिन पटल पर समूह के सभी नवगीत कवि अपने नवगीत प्रस्तुत करते हैं एवं उन पर चर्चा होती है। गीत-नवगीत परंपरा के महान कृतिकारों का परिचय विरासत में दिया जाता है। आलोचक डॉ रामसनेही लाल शर्मा 'यायावर' जी नवगीत लेखन के संबंध में आए प्रश्नों का समाधान भी करते हैं।
                    व्हाट्सएप पर गीतकार सखियाँ नाम से भी एक समूह संचालित किया जा रहा है। इसमें केवल स्त्री गीतकार और नवगीतकार जुड़ी हुई हैं। यह समूह भी नये-नये प्रयोग करता रहता है। 'किस्सा कोताह', 'साहित्यिक संवाद', 'कलम-दवात' 'अभियान जबलपुर' आदि कई व्हाट्सएप समूह चल रहे हैं, जिन पर नवगीत भी प्रस्तुत किए जाते हैं। किंतु, 'किस्सा-कोताह' को छोड़, दें तो जैसा मैंने कहा, कि चर्चा की संभावना से अधिक स्थायित्व की दृष्टि से इनका कुछ ज्यादा महत्व नहीं है। यद्यपि इन समूहों में कुछ गुरू, कुछ चेले, कुछ मठ और कुछ मठाधीश अवश्य पैदा कर दिए हैं, जो किसी भी विधा में अंततः एक जड़ता को बढ़ाने वाले ही प्रमाणित होते हैं। हुए भी हैं।  
                   किस्सा कोताह का अपना एक अलग महत्व है, क्योंकि किस्सा कोताह समूह में प्राप्त रचनाओं पर चर्चा के बाद इन्हें वरिष्ठ कथाकार, उपन्यासकार ए असफल जी के संपादन में प्रकाशित हो रही त्रैमासिक पत्रिका 'किस्सा कोताह' में प्रकाशित किया जाता है। इस समूह का महत्व इसलिए भी अधिक है, कि 'किस्सा कोताह' व्हाट्सएप समूह के माध्यम से ही 'किस्सा कोताह' पत्रिका अस्तित्व में आई है और समूह के सदस्यों के सहयोग एवं इसके संपादक असफल जी के अथक प्रयास, श्रम व आर्थिक समर्पण के कारण लगातार निकल रही है। 'किस्सा कोताह' देश की श्रेष्ठ स्तरीय और मुख्यधारा की स्थापित पत्रिका है।

                    ब्लॉग अन्तर्जाल पर निजी तौर पर संचालित किया जाने वाला अंतरजाल स्थान है। वर्तमान में ब्लॉग पर कई नवगीत कवि-साहित्यकार नवगीत पर निजी रचना कर्म के अतिरिक्त शेष नवगीत कविता संसार पर केंद्रित सामग्री भी प्रकाशित कर रहे हैं। डॉ पूर्णिमा वर्मन के ब्लॉग, नवगीत की पाठशाला',' चोंच में आकाश',' संग्रह और संकलन',' एक आंगन धूप' डॉ जगदीश व्योम के ब्लॉग' नवगीत', 'व्योम के पार', आचार्य संजीव वर्मा सलिल का विश्व वाणी संस्थान का ' दिव्य नर्मदा',राजा अवस्थी के ब्लॉग 'गीतपथ' ,'दृष्टिकोण' व.'राजाअवस्थी'  जयकृष्ण राय तुषार के ब्लॉग' छांदसिक अनुगायन', ' सुनहरी कलम से ' मनोज जैन मधुर का ब्लॉग 'वागर्थ' एवं रामकिशोर दाहिया का ब्लॉग.'संवेदनात्मक आलोक' इसी तरह के ब्लॉग हैं। डॉ पूर्णिमा वर्मन यद्यपि 1995 से ही अंतर्जाल पर सक्रिय हैं और अभिव्यक्ति-अनुभूति के साथ नवगीत कविता के लिए काम कर रही हैं, किंतु ब्लॉग पर वे 2007 में आईं। उसके बाद उन्होंने कई ब्लॉग बनाये। उनके ब्लागों में जहाँ नवगीत कवियों की नवगीत कवितायें, नवगीत  कविता पर आलेख, साक्षात्कार, समीक्षाएं, प्रकाशित होने वाले नवगीत संग्रह व समवेत नवगीत संकलनों की जानकारी है, वहीं उनके विशेष ब्लॉग 'नवगीत की पाठशाला' में उनकी कार्यशाला में प्रस्तुत नवगीत  उन पर हुए विमर्श आलेख आदि प्रदर्शित किए गए हैं, किए जाते हैं। इस तरह यहाँ नवगीत पर केंद्रित हजारों पृष्ठों की सामग्री उपलब्ध है। पूर्णिमा वर्मन जी के सभी ब्लॉगों में इसी तरह की सामग्री है।
                    डाॅ जगदीश व्योम के ब्लॉग 'नवगीत' की शुरुआत 2011 में हुई। 'नवगीत' ब्लॉग में जहाँ लगभग सभी नवगीत कवियों की कुछ-कुछ  नवगीत कवितायें प्रदर्शित की गई है, वहीं अज्ञेय, गिरिजाकुमार माथुर, धर्मवीर भारती, कुंवर नारायण जैसे मुक्त छंद कवियों के नवगीत भी प्रदर्शित किए गए हैं। यद्यपि इन एकाध नवगीतों के बल पर इन्हें नवगीत कवि नहीं माना जाना चाहिए। इसका एक संभावित प्रभाव यह अवश्य हो सकता है, कि चूँकि ये लोग अपने समय और अपने क्षेत्र के बड़े रचनाकार हैं, इसलिए इनका नाम कुछ अच्छे और बड़े नवगीत कवियों से पहले लिया जाने लगे और कालांतर में ये नवगीत कविता के भी पुरखे घोषित कर दिए जाएँ। डाॅ व्योम के ब्लॉग में डाॅ पूर्णिमा वर्मन द्वारा 2011 से लखनऊ में आयोजित होने वाले नवगीत महोत्सव-नवगीत परिसंवाद के 2011 से लेकर 2015 तक के चित्र भी सहेजे गए हैं। कुछ समीक्षायें, कुछ आलेख, कुछ पुस्तकों की जानकारी भी प्रदर्शित है। डाॅ जगदीश व्योम तकनीकी ज्ञान से सम्पन्न नवगीत कवि हैं और अंतर्जाल पर काम करने वाले दूसरे नवगीत  कवियों को भी सहयोग करते हैं। डॉ पूर्णिमा वर्मन को अभिव्यक्ति - अनुभूति के संचालन में कैनेडा के डॉक्टर अश्विन गांधी और कुवैत से दीपिका जोशी सहयोग कर रही थी। वहीं भारत में डॉ अवनीश सिंह चौहान और डॉक्टर जगदीश व्योम ने काफी सहयोग किया है। उल्लेखनीय है कि यह सहयोग रचनात्मक सहयोग है। किसी तरह की आर्थिक सहयोग की बात यहाँ नहीं है। पूर्णिमा वर्मन स्वयं सारा आर्थिक भार उठाती रही हैं। डॉ व्योम ने संवेदनात्मक आलोक व्हाट्सएप समूह, ब्लॉग और संवेदनात्मक आलोक फेसबुक समूह को भी भरपूर सहयोग प्रदान किया है। इस तरह आभासी संसार में इनका काम महत्वपूर्ण है।
                    आचार्य संजीव वर्मा सलिल का 'दिव्य नर्मदा' नाम से ब्लॉग है। इसको अस्तित्व में लाते हुए आचार्य संजीव वर्मा सलिल ने इसे हिंदी तथा अन्य भाषाओं के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक - सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु कहा है। यहाँ कई ऐसे गुमनाम नये नवगीत कवि भी मिल जाते हैं, जो कहीं और नहीं मिलते। इसका कारण यह है कि सलिल जी कार्यशालाओं के माध्यम से भी रचनात्मक रूप से लोगों को तैयार करते रहते हैं। सलिल जी की लिखी लगभग 70 समीक्षायें अंतर्जाल पर उपलब्ध है।
                    अंतर्जाल पर राजा अवस्थी के तीन ब्लॉग 'राजा अवस्थी', 'दृष्टिकोण' एवं 'गीतपथ' संचालित हैं, किन्तु अधिकांश प्रस्तुतियाँ 'गीतपथ' पर ही हैं। इस ब्लॉग की विशेषता यह है, कि यूट्यूब की 'नवगीत धारा' श्रृंखला के वीडियो के साथ नवगीत महोत्सव 2019 की प्रस्तुतियाँ भी यहाँ वीडियो के रूप में प्रदर्शित हैं। डॉ.रामसनेही लाल शर्मा' यायावर' के लगभग 1 घंटे के वक्तव्य के साथ कुछ नवगीत आलेख, समीक्षायें आदि प्रदर्शित की गई है। नवगीत कवि जयकृष्ण राय तुषार के' छांदसिक अनुगायन' और 'सुनहरी कलम से' ब्लॉग 2010 से अंतर्जाल पर संचालित हैं। इन दोनों ब्लॉगों में नवगीत प्रदर्शित हैं। रामकिशोर दाहिया का ब्लॉग 'संवेदनात्मक आलोक' अंतर्जाल पर संचालित है, जहाँ पर उनके वाट्सएप समूह में चर्चार्थ प्रस्तुत नवगीत व टिप्पणियाँ प्रदर्शित की जाती हैं। इस तरह यहाँ पर भी नवगीत पर काफी सामग्री प्रदर्शित है।
                    नवगीत कवि मनोज जैन मधुर ब्लॉग पर 'वागर्थ' का संचालन करते हैं। नवगीन कविता के लिए यह बिल्कुल नया ब्लॉग है। जनवरी 2021 में इसकी शुरुआत हुई। अभी इसे शुरू हुए मात्र कुछ माह ही हुए हैं, किन्तु कम समय में भी 'वागर्थ' पर लगभग 8000 पृष्ठ जोड़े जा चुके हैं। इस मंच पर नवगीत कविता पर केंद्रित आलेख, नवगीत कवितायें और ई-बुक्स को भी जोड़ा गया है। यदि इसी गति से 'वागर्थ' पर पन्ने जोड़े जाते रहे तो भविष्य में यह ब्लॉग नवगीत-कविता एक समृद्ध मंच होगा। ब्लॉग पर जनवरी 2009 से भारतेंदु मिश्र का 'छंद प्रसंग' निरंतर संचालित है। इसमें भी नवगीत केंद्रित सामग्री है। यह सबसे पुराने नवगीत केंद्रित ब्लागों में एक है।
                    वेब पत्रिका, ब्लॉग, यूट्यूब और व्हाट्सएप समूह के साथ फेसबुक पर भी नवगीत कविता की उल्लेखनीय उपस्थिति है। यह उपस्थिति नवगीत व उन पर चर्चा के रूप में है। जहाँ एक और लगभग सभी नवगीत कवि अपनी निजी फेसबुक वॉल पर अपनी नवगीत कवितायें प्रदर्शित करते हैं, वहीं कुछ फेसबुक समूह भी सक्रिय हैं और महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं। फेसबुक पर नवगीत केंद्रित समूहों की एक लंबी सूची है। ये सभी समूह कुछ विशिष्ट उद्देश्यों के साथ एवं गंभीरता से नवगीत कविता के लिए काम करने वाले नवगीत कवियों द्वारा बनाए गए हैं। फेसबुक पर समूह के रूप में जो पहली उपस्थित है, वह डॉ अवनीश सिंह चौहान की 4 अगस्त 2011 को उनके फेसबुक समूह 'गीत नवगीत' के साथ होती है। दूसरा समूह भी उन्होंने ही 9 जुलाई 2012 को 'हिंदी साहित्य' (1.4हजार सदस्य) के नाम से बनाया। अब इन दोनों समूहों पर नवगीत केन्द्रित सामान्य गतिविधियाँ चलती रहती हैं। फेसबुक समूह की संचालक के रूप में डाॅ पूर्णिमा वर्मन की महत्वपूर्ण उपस्थिति 23 दिसंबर 2012 को' नवगीत की पाठशाला' के साथ हुई। इसी नाम से इनका ब्लॉग भी है और इस फेसबुक समूह पर भी उसी तरह की गतिविधियाँ संचालित की जाती है, जैसी 'नवगीत की पाठशाला' ब्लॉग पर की जाती हैं। इनके के बाद एक फेसबुक समूह डॉ जगदीश व्योम ने 31 अगस्त 2013 को 'नवगीत- समूह' के नाम से बनाया। आचार्य संजीव वर्मा सलिल का प्रवेश फेसबुक समूह संसार में उल्लेखनीय कहा जाएगा, क्योंकि 'गीत-नवगीत सलिला' के अलावा भी ये कई नवगीत समूहों का संचालन करते हैं। आचार्य सलिल के मार्गदर्शन में ही 'अभियान जबलपुर' के नाम से एक फेसबुक समूह का संचालन बसंत कुमार शर्मा एवं  मिथिलेश बड़गैंया करते हैं।
                             'कविता कोश' फेसबुक समूह भी 27 दिसंबर 2014 को फेसबुक पर आया। सर्वाधिक सदस्यों वाले इस समूह के लगभग 42000 सदस्य हैं। डॉ जगदीश व्योम ने दो और समूह 25 फरवरी 2015 को 'नवगीत के आसपास' और 3 जून 2015 को 'नवगीत विमर्श' बनाये। 20 दिसंबर 2015 को डॉ राधेश्याम बंधु 'नवगीत चर्चा' के साथ फेसबुक समूह संसार में आते हैं। 30 जनवरी 2016 को रामकिशोर दाहिया ने 'नवगीत वार्ता' एवं 14 फरवरी 2016 को राजा अवस्थी ने 'नवगीत कविता' फेसबुक समूह बनाकर उनका संचालन शुरू किया। रामकिशोर दाहिया ने व्हाट्सएप समूह की सामग्री को फेसबुक पर प्रस्तुत करने के उद्देश्य से 14 मार्च 2016 को संवेदनात्मक आलोक नाम से एक और समूह बनाया। मनोज जैन मधुर ने 11 अक्टूबर 2016 को 'वागर्थ' एवं 7 दिसंबर 2017' अंतरा' फेसबुक समूह बनाया था, किन्तु सक्रिय हुए वे 29 जनवरी 2021 से और अब इसपर वे बहुत महत्वपूर्ण काम कर रहे हैं। सप्ताह में कम से कम 2 दिन दूसरे नवगीत कवियों के 14-15 नवगीत आलोचकीय समझ वाले किसी महत्वपूर्ण नवगीत कवि की विशेष टिप्पणी, जो संक्षिप्त आलेख की तरह होती है, के साथ चर्चार्थ प्रस्तुत किए जाते हैं। इनकी इन प्रस्तुतियों की इन दिनों खूब चर्चा है। वागर्थ के इस मंच पर नवगीतों पर भी उल्लेखनीय चर्चा होती है। यहाँ प्रस्तुत सामग्री को बाद में इनके ब्लॉग 'वागर्थ' पर भी प्रस्तुत कर दिया जाता है। 'वागर्थ' के फेसबुक समूह एवं ब्लॉग के लिए विशेष सलाह एवं मार्गदर्शन बहुभाषाविद, विद्वान अनुवादक कवि डॉ अनिल जनविजय का एवं सहयोग नवगीत कवि अनामिका सिंह का प्राप्त होता है।  30 नवंबर 2019 को आचार्य ओम नीरव जी ने 'नवगीत लोक ', फेसबुक समूह बनाया। इस समूह में नवगीत के स्थूल शिल्प को लेकर चर्चा होती रहती है। ओम नीरव सनातनी छंदों के विद्वान आचार्य हैं और उनका झुकाव उसी और है। उनके द्वारा प्रस्तुत प्रश्नों पर उनका यह झुकाव प्रदर्शित भी होता है। यद्यपि प्रश्न छोड़ने के बाद वह स्वयं अपना मंतव्य कभी नहीं रखते। 3 सितंबर 2020 को डॉ पंकज परिमल ने 'रामकथा प्रसंग नवगीत' नाम से एक समूह बनाया। इस पर उनके ही राम कथा पर आधारित नवगीत  हैं और यह विषय केंद्रित नवगीतों के लिए बनाया गया समूह है। डॉ पंकज परिमल ने ही 6 अक्टूबर 2020 को 'गीतिका- नवगीत' समूह बनाया। नवगीत पर केंद्रित अभी बिल्कुल नया फेसबुक समूह योगेंद्रदत्त शर्मा एवं जगदीश पंकज द्वारा संचालित 'नवगीतम - नवनीतम' है। अब इस तरह कुल 18 फेसबुक समूह हैं, जो नवगीत कविता के प्रदर्शन, चर्चा, विमर्श आदि के लिए कार्य कर रहे हैं। कुछ समूह गंभीरता के साथ सक्रिय होकर कार्य कर रहे हैं।
                    आजकल फेसबुक लाइव का चलन तेजी से बढ़ा है। फेसबुक पर नवगीत कवियों के नवगीत वीडियो के रूप में भी उपलब्ध हैं। कई समूह इस तरह फेसबुक लाइव के कार्यक्रम आयोजित कर रहे हैं। इस तरह के आयोजनों की लम्बी श्रृंखला चलाने वालों में गीत-गोपाल, कला-भारती, अभियान आदि हैं। ये लाइव कार्यक्रम नवगीत केन्द्रित नहीं हैं, किन्तु यहाँ नवगीत भी काफी मात्रा में पढ़े गये हैं।

                     इन दिनों 'वागर्थ' चर्चा में है और 'नवगीत की पाठशाला' सदैव चर्चा में रहने वाला समूह है। 'कविता कोश' एक विशाल मंच से संबद्ध है, तो उसका अपना महत्व है। नवगीत-विमर्श और नवगीत वार्ता यदा-कदा अच्छा विमर्श आयोजित करते रहते हैं। नवगीतम-नवनीतम अपना स्थान बनाने में लगा है। 'नवगीत-कविता' भी सामान्य गति से चल रहा है।
                      आभासी दुनिया का एक महत्वपूर्ण मंच यूट्यूब भी है। यहाँ पर आज की स्थिति में विश्व साहित्य की सभी विधाओं के गंभीर विवेचन के साथ साहित्यकार, प्राध्यापक, चिंतक उपस्थित हैं। हिंदी भाषा में भी विश्व साहित्य पर यहाँ विपुल सामग्री वीडियो के रूप में उपलब्ध है। नवगीत कविता की उपस्थिति यहाँ नगण्य है, किंतु कुछ-कुछ काम अवश्य हो रहा है। नवगीत कविता को लेकर यूट्यूब पर सक्रिय रहने वाले इकलौते नवगीत कवि राजा अवस्थी हैं। इनके यूट्यूब चैनल नवगीत धारा में "नवगीत धारा" एवं "कविता प्रवाह" श्रृंखला का प्रदर्शन निरंतर किया जा रहा है। "नवगीत धारा" में कई महत्वपूर्ण नवगीत-कवियों पर केंद्रित बड़े-बड़े वीडियो उपलब्ध हैं। इनमें नवगीत कविता पर आलोचनात्मक टिप्पणी एवं परिचय के साथ उनके कुछ नवगीत प्रस्तुत किए जाते हैं। भविष्य में इस मंच पर बहुत कुछ किए जाने की संभावनाएँ एवं जरूरत भी है। यूट्यूब पर व्यक्तिगत रूप से भी कुछ नवगीतकारों के वीडियो उपलब्ध हैं, किंतु नवगीत साहित्य पर केंद्रित यूट्यूब चैनल राजा अवस्थी का 'नवगीत धारा' ही है। यूट्यूब पर 'नवगीत धारा' लिखकर खोज करके यहाँ पहुंचा जा सकता है। प्रत्येक वीडियो पर बड़ी-बड़ी टिप्पणियाँ भी असीमित मात्रा में की जा सकती हैं। इस तरह अंतर्जाल पर उपस्थित आभासी संसार में नवगीत की उपस्थिति बहुत उत्साहित करने वाली है और नवगीत के पाठकों, कवियों व शोधार्थियों, प्राध्यापकों के लिए उपयोगी है। वेब पत्रिका अनुभूति व पूर्वाभास, फेसबुक समूह वागर्थ, यूट्यूब चैनल नवगीत धारा की तरह और बहुत से प्रयासों की बहुत जरूरत है। व्हाट्सएप समूहों को मठाधीशी की प्रवृति से उबर कर काम करना चाहिए और अपने काम को सुरक्षित अवश्य करना चाहिए, क्योंकि व्हाट्सएप पर कुछ सुरक्षित नहीं रह पाता। यह आभासी संसार दिनोंदिन विस्तार पा रहा है। इसी अनुपात में नवगीत कविता भी यहाँ अपना स्थान बना रही है। नवगीत कवि को इस आभासी संसार को समझकर यहाँ अपनी उपस्थिति बढ़ाने के और प्रयत्न करना चाहिए।

                                     राजा अवस्थी
                           गाटरघाट रोड, आजाद चौक
                          कटनी-483501 (मध्य प्रदेश)
                          मोबा. 9131675401
     Email - raja.awasthi52@gmail.com

गुरुवार, 8 दिसंबर 2022

एक टिप्पणी ईश्वर प्रसाद गोस्वामी

 

कविवर ईश्वर दयाल गोस्वामी जी हिन्दी पट्टी के चर्चित रचनाकार हैं।
आपका लेखन बहुआयामी है। 
एक और जहाँ आपकी कलम खड़ी बोली में नवगीत सृजित करती है तो वहीं दूसरी ओर लोकभाषा बुन्देली में भी समकालीन कथ्य को नए-नए रूपाकारों में बाँधती है।
      हाल ही में "भूरा कुमड़ा" शीर्षक से आपकी छन्दयुक्त विभिन्न रूपाकारों की  पांडुलिपि पर सार संक्षेप में लिखने का संयोग बना। संकलित रचनाओं के मंथन को सार संक्षेप में कहा जाय तो, संकलन की रचनाएँ पाठक मन को बाँधनें  और अर्थ की निष्पत्ति में पूरी तरह सफल प्रतीत होती हैं।
       कविवर ने संकलन का शीषर्क बड़ी सूझबूझ से चुना है। बुन्देली से प्रेम रखने वाले पाठक 'कुमडा' शब्द से भली भाँति परिचित हैं।
     'कुमड़ा' यानि कद्दू,
भूरा यानि सफेद।
यह तो सर्वविदित है ही कि सफेद कद्दू  एक बहुउद्देश्यीय फल है।ठीक उसी प्रकार ईश्वर दयाल गोस्वामी जी की इस कृति में बुंदेली बोली के माधुर्य के साथ-साथ हिंदी के विकास में लोक के रस में रचे बसी  बुंदेली बोली के योगदान के महत्व के रहस्योंद्घाटन की छवियाँ इस कृति में रचनाओं के माध्यम से पढ़ने मिलती हैं। कृति में सम्मिलित  बुंदेली रचनाएँ अपने विविध रूपाकारों में हैं। जैसे, बुंदेली गीत, बुंदेली ग़ज़ल, नई कविता व बुंदेली दोहे इत्यादि सम्मिलित हैं।
     एक प्रबुद्ध पाठक सजग रचनाकार से जो अपेक्षा करता है वह सब इन कविताओं में है।    
      सृजनात्मक स्तर पर लोकधर्मी सृजन की प्रचुरता इस कृति की अन्यतम विशेषताओं में से एक है। 
  मुझे आशा ही नहीं वरन पूर्ण विश्वास है कि कविवर ईश्वर दयाल गोस्वामी जी की इस कृति का साहित्य जगत में भरपूर स्वागत किया जाएगा। उनके शिल्प और कथ्य दोनों को सराहा जाएगा ।
     शुभकामनाओं सहित

मनोज जैन "मधुर"
संचालक
वागर्थ
106, विट्ठल नगर गुफ़ामन्दिर रोड लालघाटी
भोपाल
462030
मोबाइल 
9301337806