पिछले कुछ वर्षों में हिन्दी नवगीत कविता की पाँचवीं पीढ़ी में कुछ गीत- कवियों ने हिन्दी के सहृदय पाठकों और साहित्य अध्येताओं का ध्यान अपनी ओर खींचा है, उन्हीं में से एक अत्यंत सजग और संभावनाशील रचनाकार का नाम है- मनोज जैन मधुर। मनोज जैन के व्यक्ति से मेरा परिचय लम्बी समयावधि का नहीं है लेकिन इक्का-दुक्का मुलाकातों में ही उनके भीतर के सहज, सरल और किसी हद तक तरल मनुष्य से जो परिचय हुआ, उसने उनके साफ-शफ़्फ़ाक छवि मन पर अंकित हुई, फिर जयपुर और भोपाल की काव्य-संध्याओं में उनके ललित काव्यपाठ का आस्वाद भी अंकित हो गया। गीत के अतिरिक्त कुछ भी बगैर गाये प्रस्तुत किया जा सकता है, गीत तो गाये जाने के साथ ही सजता है और देर तक मन में बजता है। गीत-कवि के रूप में मनोज जैन मधुर एक चमकदार नाम है। धार पर हम-२, शब्दायन, गीत-वसुधा, नवगीत के नए प्रतिमान, नवगीत: नई दस्तकें, सहयात्री समय के आदि समवेत नवगीत-संकलनों के अतिरिक्त 'एक बूंद हम' शीर्षक से एक स्वतंत्र संग्रह भी प्रकाशित हो चुका है। नया गीत-संग्रह 'मुट्ठियों में धूप' में बावन गीत हैं, संग्रह के गीतों से गुज़रते हुए मनोज जैन मधुर की अद्यतन रचनायात्रा को समझा-परखा जा सकता है। वह एक ऐसे गीत-कवि हैं जो गीत मात्र लिखते ही नहीं, गीतात्मक क्षणों को जीते भी हैं। इसलिए अपनी दैनन्दिन सहज जीवन यात्रा में जिन राजपथों, पगडंडियों, गलियों, चौराहों से होकर गुजरते हैं वहां से अपनी अनुभूतियों में कथ्य सँजो लेते हैं। इसीलिए नवगीत की आदि यात्रा में जीवन की जिस व्यापकता की झलक मिलती है वह मनोज जैन के गीत-जगत में भी है।वह आत्ममुग्धता, आत्मरुदन के नहीं निजता के साथ-साथ पास-पड़ोस की जिजीविषा, संकल्प और संघर्ष के कवि हैं। उन्हें विश्वास है कि रात की कालिमा छँट जाएगी और सुबह का दमकता सूर्य नए दिन को उजाले की चमक से भर देगा । गीत रचना में वह सिद्धि के नहीं साधना के हिमायती हैं।सिद्धि में ठहराव है, साधना में गतिशीलता। गाँव नवगीत कविता के केन्द्र में रहा है। कभी यह लगाव किसी हद तक नास्टैल्जिक रहा लेकिन धीरे धीरे यथार्थ अभिव्यक्ति में शामिल होता गया। मनोज जैन भी गाँवो में आए बदलाव से चिंतित हैं क्योंकि गाँव अपनी अस्मिता खोते जा रहे हैं इसलिए मनोज घर-आँगन से निर्वासित तुलसी को थोड़ी जगह, थोड़ी छाँव देने का आग्रह करते हैं। यही नहीं उनकी चिन्ताओं और सृजनात्मक चिन्तनों में पहाड़ जैसा दिन काटने की सोच शामिल है। लोगों के बीच पीढ़ियों का अन्तराल मतभेद नहीं मनभेद पैदा कर रहा है। रात चुप्पी ओढकर कटती है, दिन सन्नाटा बुनता है। आदमी का व्यवहार सहज की जगह यंत्रवत हो गया है, कवि इनमें बदलाव लाना चाहता है। मनोज जैन मधुर की काव्य यात्रा बिम्बधर्मी तो है बिमबबोझिल नहीं।वे तुलसीदास की तरह अपनी विनम्रता को अभिव्यक्ति देते हुए कहते हैं कि अभी तो छन्द का ककहरा नहीं पढ़ा है, अपनी भाषा का मुहावरा नहीं गढ़ा है लेकिन विश्वास करें यह सब उनका स्वार्जित है। मनोज को पढ़ना अपने आप को पढ़ना है, अपने आसपास के जीवन जगत को पढ़ना है सहज सम्प्रेषणीयता के साथ। किसी युवा कवि से और क्या चाहिए। - माहेश्वर तिवारी, मुरादाबाद। मो०-9456689998
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