नीचे से ऊपर तक खोटा सिक्का खनक रहा:
डॉ रविशंकर पाण्डेय
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उत्तर प्रदेश सिविल सेवा के सदस्य से सेवा निवृत्त डॉ रविशंकर पाण्डेय जी के नवगीतों में प्रतिरोध के प्रबल मुखर स्वरों को स्पस्ट सुना जा सकता नवगीतों में वह अपनी संवेदना को,समकालीन यथार्थ के, ताने-बाने से,आम आदमी के पक्ष में,बड़े सलीके से बुनते हैं।जन पक्षधरता,इनके नवगीतों की अन्यतम विशेषताओं में से एक है।
पढ़ते है अपने समय के प्रखर प्रतिभा सम्पन्न और सामयिक सरोकारों के बेहतरीन नवगीत कवि डॉ रविशंकर पाण्डेय जी को।
प्रस्तुति
मनोज जैन
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संविधान रक्खा
सालों से सौ-सौ तालों में,
हम मक्खी में उलझ गये
मकड़ी के जालों में
तेरा मेरा नहीं
दर्द यह
कई पीढ़ियों का,
चौपड़ का वह खेल
आज है
साँप-सीढ़ियों का,
भटक रहे हम
भूल-भुलैया
गड़बड़झालों में
छल के आगे
चल न सकी कुछ,
तीर कमानों की
एकलव्य के
कटे अँगूठे
कटी जबानों की
द्रौणाचार्य फँसे हैं
अब भी इन्हीं सवालों में
शीशे का
यह महल देखकर
माथा ठनक रहा
नीचे से ऊपर तक
खोटा
सिक्का खनक रहा
है महज रोशनी का धोखा
यह नीम उजालों में
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