शनिवार, 24 जुलाई 2021

प्रस्तुत हैं ब्रज श्रीवास्तव जी की समकालीन कविताएँ

1.

ये सब



मुझे एक बच्चे ने
अपनी तोतली बातों से बताया
कैसे जीता जाता है दिलों को
वाणी से.
एक राह चलते गांव वाले ने 
राम राम कहकर बताया
कैसे माहौल की चुप्पी को चीरकर
संवाद शुरू किया जाता है अजनबी के साथ भी

बेटी ने भी बताया
कि जिस काम को करने का कोई औचित्य न हो
और बार बार करने का मन हो
नशा उसी को कहते हैं

बताया एक सहकर्मी ने बस खामोश रहकर
कि गुस्सा करने से काम नहीं होते
तो दूसरे ने केवल हाँ करके सिखाया
सहमत होने का जादू

मुझे बादलों ने बताया कुछ
कुछ पौधों ने भी बताया
एक रूमाल और एक जोड़ी 
चप्पल ने बताया निष्ठा निभाने का अर्थ.

यहाँ तक कि
एक बिछड़े दोस्त ने पूछा हाल 

बताया कैसे शुरू की जा सकती है
दोस्ती अरसे बाद.

*ये सब मेरे गुरू हैं*

*ब्रज श्रीवास्तव*


2.


कौनसा तत्व कम हो गया है
दुनिया के शरीर में
बढ़ गया है कौनसा बिटामिन

कोई चिकित्सक नहीं है कि जांचे
करे शल्य चिकित्सा
दुनिया के दिमाग में हो गए अल्सर की
वह फलक रहा है
जिससे नींद नहीं आ रही है
सांसों को

इस बदन को मानसिक रोग है या
शारीरिक
भूगोल क्योंकर गमगीन है
क्या इसमें पानी कम हो गया है
या हवा ही जा रही है मुंह और नाक से दूषित
पृथ्वी को बुखार है
कोई नापे इसका तापमान
और रखे आहिस्ते से सर पर पानी की पट्टी

हांफ रहे हैं खड़े खड़े सारे पहाड़
समुंदर दौड़ रहे हैं अपनी ही परिधि में
नदियों में सुस्ती भरी है
किनारे बुजुर्गों की तरह थके हैं
कोई जाए सुनाए उन्हें संगीत
योग कराए कोई रेगिस्तान को

दुनिया इस समय बीमार है
अनेक बेटों की
माँ की तरह गुमसुम है
अपने ही ख़यालों में
कोई जाए 
उसे हंसाए 
अनेक चिकित्सकों और अनेक इंसानों को
सुनाई दे रही होगी
दुनिया के बुदबुदाने की आवाज़
अगर वे ह्दय के कानों से सुनते होंगें



ब्रज श्रीवास्तव


3


खराबियां भी कविताओं में आ जातीं हैं
ताकि सनद रहे
खराब लोगों की चालाकियां
इस तरह आतीं हैं 
कविताओं में
जैसे कोई राक्षसी आती हो
सतर्क करती हो 
एक बदसूरत से खूबसीरत लोगों को

ध्यान से सुनता हुआ 
इन कविताओं को
एक शख्स 
पहचाना नहीं जाता

एक वक्त ओह ऐसा 
आता है
कि वह अपनी ख़राबी के साथ
प्रकट होता है दिलोदिमाग में

ओह उसे नहीं आना चाहिए था
एक इल्जाम के घेरे में
कविता में खलनायक होकर
उसे नहीं आना चाहिए था.


ब्रज श्रीवास्तव

4.




*बचकर रहना*


क्रूरताएं करते हुए
जो नहीं पिघलते  कभी 
अपने गिरोह के साथ
पहुंच भी जाते  हैं अगली पीढ़ियों तक
उनसे बचकर रहना 

पहचान लेना ठीक से  उन्हें
जो मासूमों को मार डालते हैं
और उफ़ भी नहीं करते 


ऐसे ही होते हैं
देह के गिद्ध
उनको परे रखना
हर रिश्ते से

बस सत्ता चाहिए होती है
जिन्हें 
छल, कपट और हठ के सहारे
प्रेम जिनके दिल में रत्ती भर भी नहीं
उनसे दूर रहना


अब तो 
सावधान रहना उनसे भी
जिनको रूपये की इतनी हवस 
होती है कि वे  जीवन को तरसते मरीज़ 
की दवा चुराकर
किसी और  को बेच देते हैं



*ब्रज श्रीवास्तव*

5.


कामना.


अगर अगले जन्म में फल बनाने
का विकल्प हो तो
मुझे आम बनाना
मैं अपने माता पिता की एक टहनी पर
बढ़कर धीरे धीरे
इतराऊंगा अपनी माँग पर.
अगर विधा बनने का विकल्प हो
तो मुझे कविता बना देना

अगर पक्षी बनूं तो गौरेया 
अगर पशु बनूं तो
हिरन
अगर फूल और पत्थर के विकल्प
में से कोई एक चुनना हो
तो अगले बार
फिर से फूल मत बनाना मुझे
कुचल को बहुत भोग चुका हूँ


पत्थर बना देना मुझे
जो होगा सो होगा
देखा जाएगा
सह तो पाऊंगा
हर तरह की मार
काम तो आऊंगा
लोगों के
हर मकाम पर.


ब्रज श्रीवास्तव


6

आदी

मैं पहले नहीं जानता था
धन्यवाद की ध्वनि को
अपने लिए सुनकर 
इत्मीनान में होना



काम करते हुए 
पहले नहीं समझता था
बधाई किस किस काम को करने पर
मिलती है
किस काम को कर लेने से
नहीं मिलती


इतना सीखा 
व्यर्थ गया.

एक  भी  काम नहीं रहा
 निष्काम अब
हर काम 
शुभकामनाओं
धन्यवादों
बधाईयों
और साधुवादों 
के सोपानों में बंध गया है।


मैं हर सीढ़ी पर इनको ग्रहण करने
का आदी सा हो गया हूँ।
मेरे जैसे ही हो गई है शायद
आधी दुनिया


ब्रज श्रीवास्तव

7.


मत करो उसे फ़ोन



जब दिल हो किसी से बात करने का
तो मत करो उसे फ़ोन
एक कविता लिखो

लिखो कि याद आती है तो
क्या गुजरती है दिल पर
लिखो कि इस वक़्त 
तुम्हें और कोई काम नहीं
 याद से ज्यादा ज़रूरी

लिखो कि उसके बात कर लेने भर से तुम कितने हो जाते हो हल्के

लिखो कि मसरूफ़ियत का कोई रिश्ता नहीं बातचीत करने से

और यह भी लिखो कि
बात करने की तीव्र इच्छा को
तुमने  सृजन में बदला
और लिखी एक कविता।


ब्रज श्रीवास्तव.

8.





स्त्रियों ने स्त्रियों का साथ नहीं दिया
शोषण के मुद्दे पर
मजदूरों ने नहीं चुना इकट्ठा होकर 
लड़ना

शोषित लगातार शोषित होते रहे
पर साथ नहीं हुए 
मोर्चे में किसी के विरूद्ध.
सेवकों की ज़ात भी
कुचली जाती रही
स्वामियों द्वारा

एक और प्राणी है दुनिया में
लड़ने वाला झूठ से
कलमकार

वह भी अकेला ही हुआ
शोषितों और स्त्रियों की तरह
किसी  भी कलमकार ने 
उसका नहीं
व्यापारी का साथ दिया
अन्याय का और
स्वारथ का साथ दिया।

ऐसा अक्सर होता रहा
अक्सर अट्टहास करता रहा
आततायी.
अक्सर अकेला खड़ा रहा सच
सदी बदलने तक का भरोसा रखकर.

ब्रज श्रीवास्तव.

10.



जाल कोरोना का
सिमट जाएगा

ब्रज श्रीवास्तव



घट जाएगा, घट जाएगा
तिमिर धरा का घट जाएगा.
1
बस भरोसा रखो
और घर में रहो
ये ही सबसे कहो
कि संभल कर रहो
अकेलेपन  को सहो


मास्क लगा लेने से
दूर रह लेने से
खतरा निश्चित ही फिर
घट जाएगा
घट जाएगा
तिमिर धरा का घट जाएगा.

2
अपने भीतर देखो ज़रा
बैठा है वो ईश है
डर है किस बात का
संग जगदीश है
प्रभु का आशीष है।

अपने सदकर्मों से
उसके आशीषों से
सर महामारी का
कट जाएगा



घट जाएगा
घट जाएगा
तिमिर धरा का घट जाएगा
तिमिर धरा का घट जाएगा


3
सोचो ऐसा अभी
क्या हुआ ये कभी
कि रात के बाद
न आई सुबह कभी
न आया सूरज कभी


ये भी एक रात है
इतनी सी बात है
ये कुहासा क्षणिक है
छंट जाएगा


घट जाएगा
घट जाएगा
तिमिर धरा का घट जाएगा


4.
जिंदगी के सफ़र में
थोड़ा दुख भी रहा
किस किरदार ने 
बोलो  दुख न सहा
आंसू न हो बहा

शाम की आंधी है
हमने आस बांधी है
सफ़र ये भी यूं ही
कट जाएगा

कट जाएगा
कट जाएगा

5.

घायल पथिकों का तुम
एक  सहारा बनो
रात मावस की है
तुम सितारा बनो
तुम किनारा बनो


सब चल रहे धूप में
यात्री के रूप में 
बांटने से ये दुख
बंट जाएगा

घट जाएगा
घट जाएगा.



इस मनुज  ने सदा
पार प्रलय को किया
नहीं बुझने दिया
प्राण का ये दीया

हमने धीरज धरा
हममें साहस भरा
हम यूं ही जिएंगे
तो एक दिन 

जाल कोरोना का
भी सिमट जाएगा

घट जाएगा
घट जाएगा
तिमिर धरा का घट जाएगा



ब्रज श्रीवास्तव






















3.



  


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