"बाल किलकारी"
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कॉलम में वागर्थ प्रस्तुत करता हैं काव्य मर्मज्ञ ईश्वर दयाल गोस्वामी जी के तीन लोरी नवगीत।
आप भी इस कॉलम के तहत अपने या अपने मित्रों के बालगीत प्रकाशनार्थ भेजें।
प्रस्तुति
वागर्थ
सम्पादक मण्डल
(1)
लोरी नवगीत
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बिटिया !
सो जइए री !
किसने
हरी तेरी निंदिया ?
बाहर सोया,
भीतर सोया ।
चिड़िया सोई,
तीतर सोया ।
ताल,कूप को
सुला-सुला कर
सोई गहरी नदिया ।
चूल्हा सोया,
लकड़ी सोई ।
अंगारों की
आगी सोई ।
सटी हुई
चूल्हे से भूखी
सोई कानी कुतिया ।
गुड्डा सोया,
गुड़िया सोई ।
बँधी सार में
बछिया सोई ।
थके और
सुंदर माथे पर
माँ के,सोई बिंदिया ।
बिटिया !
सो जइए री !
किसने
हरी तेरी निंदिया ?
(2)
लोरी गीत
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सोईए
गोपाल लाल !
पहर चढ़ी रैना ।
पालने की डोर थकी,
काजरे की कोर थकी ।
थक चुका है
शोर सब,
और थकी चैना ।
थक चुकी खटाई सब,
दूध औ' मलाई सब ।
थक चुकीं
जलेबियाँ भी
और थका छैना ।
सोईए
गोपाल लाल !
पहर चढ़ी रैना ।
(3)
लोरी गीत
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नींद मेरे लाल की
जो उड़ी,तो क्यों उड़ी ?
थपकियाँ मचल रहीं,
लोरियाँ सिसक रहीं ।
ख़्वाब की तलाश में
हकीकतें खिसक रहीं ।
आस में निराश की,
आ कड़ी ये क्यों जुड़ी ?
पालने की डोर-सी
आँख क्यों तनी-तनी ?
नींद और रात की
रार क्यों ठनी-ठनी ?
हाथ मेरे आ ख़ुशी
जो छुड़ी,तो क्यों छुड़ी ?
नींद को बना कजर,
आँख में सजाऊँगी ।
डोर खींच रात की,
पालना झुलाऊँगी ।
प्यार की दशा-दिशा
जो मुड़ी,तो क्यों मुड़ी ?
नींद मेरे लाल की
जो उड़ी,तो क्यों उड़ी ?
--- ईश्वर दयाल गोस्वामी
छिरारी (रहली),सागर
मध्यप्रदेश ।
सादर धन्यवाद मनोज जी
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