श्री आशीष दशोत्तर और श्री ब्रजेश सिंह जी की समीक्षाएं पढ़ीं । दोनों ही समीक्षकों द्वारा आपकी पुस्तक "धूप भरकर मुठ्ठियों में" का सूक्ष्म और गहन पठन के बाद लिखी गई हैं । उनके द्वारा जिन-जिन नवगीतों का उल्लेख किया गया है, वे मेरे भी प्रिय नवगीत हैं। आपकी रचनाओं की भाषा और शिल्प इतना सहज है कि इनको पढ़ते-पढ़ते हर पंक्ति के साथ बिम्ब बनता जाता है ।
एक-एक शब्द में गज़ब की तारतम्यता और गेयता है। यदि कविता आमजन की समझ से बाहर रहे तो वो कविता किस काम की । आपके नवगीतों की यह विशेषता है कि वे साधारण व्यक्ति की समझ की परिधि में हैं। जहां तक मैं समझता हूँ , साहित्य का सृजन आम लोगों के लिए ही किया जाता है, न कि साहित्यकारों के लिए । जो साहित्य सिर्फ साहित्यकारों के लिए सृजित होता है, वो ज्यादा दिन टिक नहीं पाता है ।
आपके नवगीतों में वे तत्व भी विद्यमान रहते हैं जो आसानी से स्वीकार्य होते हैं । इनमें शब्द-संयोजन के साथ-साथ लयात्मकता और तीखी व्यंग्यात्मकता भी मौजूद रहती है ।
आप सृजन के साथ नवगीत विधा का परचम उठाए हुए है, ये आपकी प्रतिबद्धता, चिंता और चिंतन को दर्शाता है । आपके ये प्रयास निष्फल नहीं होंगे, मुझे पूरा विश्वास है । शुभकामनाएं ।
सुनील चतुर्वेदी
प्रान्तीय
कोषाध्यक्ष मध्यप्रदेश लेखक संघ
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