1
समय कठिन है,
घर बाहर का मौसम बदल रहा।
घर के अंदर संसद जैसा प्रश्नकाल जारी।
बाजारों में सब विज्ञापन का कमाल जारी।
होम लोन का आकर्षक ऋण,
सांसें निगल रहा।
घर में धान सूखता लेकिन धूप फुनगियों पर।
हवा विषैली, कोई अंकुश नहीं चिमनियों पर।
रोज एक वक्तव्य,
हुक्मनामें का निकल रहा।
अंदर भटकन लिए, खोजते उजियारी रातें।
गोदी में सर रख कर कह दें,आँसूं की बातें।
बाहर हिम प्रदेश,
पर अंदर लावा उबल रहा।
2
सत्ता के गंगातट पर इतने सारे पंडे।
अलग सभी की बोली बानी,
अलग अलग झंडे।
निंदा और स्वस्तिवाचन का प्रतिदिन पाठ करें।
मगर रात को बियर बार मे जाकर ठाट करें।
इन तक नहीं पहुँच पाते हैं,रामू या घीसू,
हर पल पहरेदारी करते
गुंडे मुस्टंडे।
खादी के उद्योग चल रहे,इनके बलबूते।
इनके लिए नये निकले हैं,कबूतरी जूते।
शुद्ध अहिंसावादी हैं,
पिस्तौल नही रखते,
गाड़ी में रहते हैं चाकू,
कट्टे औ डंडे।
गमलों की खेती से इनकी आय निराली है।
और किसी ने लगता जैसे कपिला पाली है।
भला आयकर वाले भी,
इसको कैसे समझें?
उनके फार्म हाउस में
गोबर से ज्यादा कंडे।
माला अगर न दो दिन पहनें तो दुबला जायें।
श्रोताओं की भीड़ देख लें,
तो पगला जायें।
रोज राशिफल लिखते रहते,वे सरकारों का,
शकुनी मामा से भी घातक
इनके हथकंडे।
3
चलो कबीरा पोनी कातें।
दीन दुखी के लिए धर्म है,
धनवानों के लिए रुपैया।
बिन चारे के दूध न देती,
कितनी ही भोली हो गइया।
सबद सुनाकर ख्याति मिली पर,
भूखे पेट बितायीं रातें।
खेत,मढ़ैया,रोटी,
कपड़ा,
छूट गया अब काफी पीछे।
धन के पीछे धनकुबेर भी,
दौड़ रहे हैं,आंखें मींचे।
संतोषी ही सदा सुखी है,
ये सब हैं कहने की बातें।
गाते, गाते संत हो गये,
कई भजन,कीर्तन गवैया।
तुम बस निराकार में उलझे,
टूटा करघा,सड़ी मढ़ैया।
आखिर कब तक और सहोगे,
दुनियाँ की घातें, प्रतिघातें।
4
काट दिये थे जो पौधे,
वे हरे मिले।
फूल मगर खिलने से पहले
झरे मिले।
हरे पान सा उन्हें सहेजा।
सिखा, पढ़ा कर रण में भेजा।
पानीपत तक आये,तो सब
डरे मिले।
गंगा में इतना कुछ डाला।
भागीरथी बन गयी नाला।
तरते क्या पुरखे फिर,
सब अधमरे मिले।
बंटी महल में जब खैरातें।
चली लाठियाँ, खायीं लातें।
चुप तो थे सब,पर
गुस्से से भरे मिले।
कथा गाँव में हुई शान से।
हुआ समापन राष्ट्रगान से।
परसादी में ले दे कर,
मुरमुरे मिले।
5
आपदाएँ गौस जैसी निर्दयी हैं,
जिन्दगी मरते हुये
जैसे कन्हैयालाल।
कब गला रेतें अजाने ही
अचानक से।
दिखें टीवी पर कथानक बन
भयानक से।
लोग चिल्लाते रहेंगे,
बाद में बेहाल।
जांच,सख्ती,सजा के
एलान होंगे।
मदद के अखबार में,
एलान होंगे।
फिर निजामत चल पड़ेगी,
ऊँट वाली चाल।
हरगोविन्द ठाकुर
ग्वालियर
यथार्थ से जुड़े हुए, बहुत ही सुंदर, भावप्रवण नवगीत लिखे हैं आदरणीय ठाकुर सर ने👌👌👏👏🙏🙏
जवाब देंहटाएंवर्तमान विसंगतियों को इंगित करते प्रवाहपूर्ण सार्थक गीत...
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