अनामिका सिंह के चार नवगीत
प्रस्तुति
~।।वागर्थ।।~
एक
साथी तुमको प्यार
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तेरे आने से मन महका
महक हुआ गुलज़ार
साथी तुझको प्यार
जुड़े डोर बिन,मन जा पहुँचे
मीलों नंगे पैर
चुभे न कोई काँटा-वांटा
रोज़ मनाऊँ ख़ैर
रेशम सा यह नाता चाहे
नाज़ुक साज-संभार
साथी तुझको प्यार ।
संवादों के पल ले आये
हमको बहुत क़रीब
अब अमीर हैं ,बने रहें
कुछ ऐसी हो तरकीब ।
और अमीरी पर दिन -दूना
आता रहे निखार
साथी तुझको प्यार ।
सरलमना है नेह हमारा
सीधी हर तक़रीर ,
इन तक़रीरों संग खिंचनी है
लम्बी प्रेम लकीर ।
नेह-छोह के और अधिक हों
ऊँचे ये मे’यार ।
साथी तुझको प्यार ।
दो
तुम बिन यह मन रहे अनमना
छाई रहे उदासी
जल बिन मीन पियासी ।
दो नयनों में
बिना तुम्हारे
आ धमका चौमासा ।
रेज़ा - रेज़ा
मन घुलता
ज्यों पानी घुले बताशा ।
ढीली कर दी
अनुपस्थिति ने
तबियत अच्छी-खासी ।
जोड़ हथेली
दुख भर लाया
प्रेम साथ कुछ अपने ,
खुले नयन से
देखे थे जो
चुए पलक से सपने ।
पक्की थी
चाहत की सीवन
बेजा रोज़ उकासी ।
भादों आँखें,
जेठ हुआ मन
आस अमावस ठहरी
कहाँ लिखाऊँ
प्रेम मुकदमा
जाऊँ कौन कचहरी ।
काँच नगरिया हम ,
बैठे तुम
दूर कोस चौरासी ।
जल बिन मीन पियासी ।
तीन
मन हारिल ने उम्मीदों के
कितने दीप जलाये ,
मनमीत नहीं आये ।
पावस बीता बिना तुम्हारे ,
आशाओं का काजल पारे
नयन नेह का सूद भर रहे ,
उलट हृदय पर अश्रु झर रहे ।
पश्मीने सी छुअन तुम्हारी ,
अब तक जेहन में है तारी ।
रुक -रुक कटें अलोनी रातें ,
सुधियाँ सूत विगत का कातें।
मेरे प्यारे बिना तुम्हारे
जीवन कुम्हलाये ,
मनमीत नहीं आये ।
तुलसी चौरे तले अँधेरा ,
बँजारों सा दिल का डेरा ।
रीते -बीते फागुन पावस ,
जीवन पर ठहरी है मावस ।
मुझ पर मोहक मंतर मारे ,
मुमकिन उनके नहीं उतारे ।
पल में रत्ती पल में माशा ,
धड़कन दिल की करे तमाशा।
श्वास -श्वास रुक -रुक रूदाली
शोक गीत गाये ,
मनमीत नहीं आये ।
उगे सूर्य फिर भी अँधियारा ,
गुमसुम अँगनाई ओसारा ।
कटखन्नी हर चाँद कला है ,
जुन्हाई में हृदय जला है ।
अरमानों पर झरी ओस है ,
यही प्रेम का पारितोष है ।
रही अबाँची नेहिल पाती ,
उस पर गिरे अश्रु ओलाती ।
सिर्फ़ चाह थी अमिट रहे , वो
लिपि धुलती जाये ,
मनमीत नहीं आये ।
चार
फागुन का गुन
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फागुन का गुन
सिर चढ़ बोले
रिलमिल रंग चढ़ा।
ऐसे रंग में रँगना जोगी
कभी नहीं छूटे ।
नेहिल थाप न टूटे,बेशक
जीवन लय टूटे ।
मन का प्रेम
बरोठा हो बस
तेरे रंग मढ़ा।
रिलमिल रंग चढ़ा ।
इस फागुन से उस फागुन तक
हों छापे गहरे ।
रंग चढ़ाना ऐसा जोगी
जनम-जनम ठहरे ।
शोख रंग में रंग वफा का
थोड़ा और बढ़ा ।
रिलमिल रंग चढ़ा ।
किस्सागो लें नाम हमारा
रँगरेजा सुन ले ।
मीत-जुलाहे एक चदरिया
झीनी-सी बुन ले ।
ओर - छोर हो
जिसके,तेरा-मेरा
नाम कढ़ा।
रिलमिल रंग चढ़ा ।
- अनामिका सिंह
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