वागर्थ में आपका स्वागत है!
वागर्थ में आज चर्चा के केंद्र में हैं वरिष्ठ साहित्यकार कवि ईश्वरी यादव जी के चार नवगीत
मूलतः वरिष्ठ साहित्यकार ईश्वरी प्रसाद यादव जी छन्दशास्त्र अध्येयता हैं। यही कारण है की इनके नवगीतों में शिल्प का सौंदर्य देखते बनता है। बात सिर्फ शिल्प की ही नहीं है। ईश्वरी यादव जी के नवगीतों में समकालीन भाषा और सामाजिक सरोकारों का एक सधा हुआ संतुलन है। यही सम्यक संतुलन उनके रचाव की खूबसूरती है।
समूह वागर्थ के संस्थापक और श्रेष्ठ नवगीतकार आदरणीय मनोज जैन मधुर जी ने वागर्थ पटल के माध्यम से उन मौन साधकों के नवगीतों को पाठकों के सामने रखने की कोशिश की है जो सुदूर अपनी मौन साधना में रत हैं जिनके लिए यश और प्रसिद्धि दोनों विशेषणों से कुछ भी लेना देना नही है।
ईश्वरी यादव जी ऐसे ही मौन साधक हैं जिनके रचनाकर्म को हम समूह वागर्थ के चर्चित पटल पर आपकी प्रतिक्रियार्थ जोड़ रहे हैं।
आप इन नवगीतों को मनोयोग से पढ़ें और अपनी प्रतिक्रिया भी दें।
आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियों से समूह को दिशा मिलती है।
मॉडरेटर
संजय सुजय बासल
संपादक
वागर्थ टीम के लिए
बरेली मध्यप्रदेश से
संपर्क,,
9617541519
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एक
,,प्रेमचंद के पात्र,,
प्रेमचंद के पात्र आजकल
वैसे नहीं रहे
वंशीधर को भेंट चढाता
रोज अलोपीदीन
हुए दरोगा जी पैसों के
आगे रीढ़ विहीन
बीत रहे हैं दुरभिसंधि में
जीवन के लमहे
नहीं हिला पाती हल्कू को
पूस -रात की ठंड
बड़का भइया छोटे से भी
अधिक हुआ उद्दंड
अस्पताल के रहते बुधिया
क्योंकर दर्द सहे
हामिद को दादी अम्मा की
नहीं रही परवाह
पहले ही करता है पूरी
चटक चटोरी चाह
क्यों बचपन का गला घोंटकर
बूढ़ी राह गहे
अलगू-जुम्मन लेनदेन में
लगते हैं उस्ताद
कौन सुने बूढ़ी खाला के
आँसू की फरियाद
खलपंचक पंचों से कोई
कैसे व्यथा कहे।
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दो
,,आशा तली गई,,
बिना तेल के
गरम तवे पर
आशा तली गई
आश्वासन के
भोंपू बजने
लगे सबेरे से
पीड़ाएँ तब
निकलीं अपने-
अपने डेरे से
मुँह दिखलाकर
सुविधाओं की
गाड़ी चली गई
सड़क-सड़क पर
चौराहों पर
हुए रोज दंगल
फटे बिचारी
सँकरी गलियों
के रलमल आँचल
कौए-बाजों
के झगड़े में
कोयल छली गई
अवकाशों में
गए उजाले
कैसे दिन आए
अंधकार ने
ओर-छोर तक
काजल फैलाए
अखबारों में
आज छपा फिर
मसली कली गई
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तीन
,,मौसम के तेवर बदले हैं,,
मौसम के तेवर बदले हैं,
बदली उसकी चाल
मुरझाई आँगन की तुलसी
नागफनी खुशहाल
फिसल-फिसल जाती है मुट्ठी
से विकास की रेत
सिर्फ बिजूका की निगरानी
में हैं सारे खेत
सड़कें करतीं नैन मटक्का
पगडंडी बेहाल
पश्चिम के आगे पूरब की
गुम होती पहिचान
भटक रही हैं भूखी गाएँ
श्वानों को जलपान
रखे जा रहे आरक्षण के
नए-नए रूमाल
गलियों चौपालों पर चलते
अब परपंची खेल
सच्चाई पर तनी हुई हैं
चारों ओर गुलेल
ग्राम देवताओं पर भारी
है अगिया बैताल
सोन चिरैया के पाँवों में
बँधे सुनहले तार
पंख और परवाज भले हों
उड़ने को लाचार
आँगन-आँगन दीवारें हैं
चन्दन-चन्दन व्याल
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चार
"प्रश्न पीछा कर रहे जी भर"
प्रश्न पीछा कर रहे जी भर
दुम दबा कर भागते उत्तर
बढ़ रहा अधिकार का रुतबा
फर्ज होते जा रहे छोटे
चल रहे बाजार में अनगिन
रुपहले सिक्के महा खोटे
कुर्सियों पर अजगरी माया
कनखजूरों से भरे दफ्तर
बंदिशों में है बँधा बचपन
और खाली हाथ यौवन के
आश्रमों में दिन गुजरते हैं
अनुभवों से युक्त जीवन के
मूल्य गिरते जा रहे पल छिन
मान्यताएँ हो रहीं जर्जर
श्रम भगीरथ ने किया लेकिन
बाँट ली गंगा कुबेरों ने
लोक सागर में किया कब्जा
तंत्र के शातिर मछेरों ने
शब्द होते जा रहे बेदम
क्योंकि बेतरतीब हैं अक्षर
ईश्वरी प्रसाद यादव
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ईश्वरी प्रसाद यादव जी
जन्म 28 -6-1944
खरौद ,जिला जांजगीर-चांपा ,छत्तीसगढ़ में हुआ था। आपने एमए•(हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी)से की,आपकी
साहित्यिक उपलब्धि - देश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में निबंध, कविता, गीत, गजल आदि प्रकाशित।
प्रकाशित पुस्तकें,,,
मैं कविता हूं ,
ज़रा याद करो कुरबानी,
संकल्पों में धार चाहिए,
आँगन-आँगन हो, नन्दनवन,
हिंदी छंद मंजूषा,
छंदों की लहरों में तैरती सजल,आदि और भी पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है।
प्रसारण-आकाशवाणी रायपुर और बिलासपुर से काव्य रचनाओं का प्रसारण ।
स्कूल शिक्षा विभाग से सन2006 में व्याख्याता पद से सेवा निवृत्त।
सम्प्रति-कृषि एवं स्वतंत्र लेखन
संपर्क- सूत्र
(मो) 9179691201
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