गीत
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वर दो माते !
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हमें अमरता नहीं चाहिए
सिर्फ अभय का
वर दो माते !
सारे जग पर कृपा तुम्हारी
लेकिन क्योंकर
वंचित हम हैं।
दुख-दर्दों की खड़ी पहाड़ी
चढ़ते-चढ़ते
हम बेदम हैं।
अपने दोनों चरण हमारे
नत मस्तक पर
धर दो माते !
हम प्यादे हैं हमको तो बस
पीछे राजा
के चलना है।
नियति हमारी है ही ऐसी
उनके हाथों
से छलना है।
गद्दारों से मेरी धरती
को तुम खाली
कर दो माते
राष्ट्रभक्त बन चढ़ा मुखौटे
इधर-उधर जो
घूम रहे हैं।
लूट सम्पदा वे भारत की
चरण तुम्हारे
चूम रहे हैं।
सारे धूर्तों मक्कारों को
बुलडोजर का
डर दो माते
कौन असहमति को सुनता है
पूछ भला इन
महराजों से।
ओरी चिड़िया 'लोकतंत्र' की
सावधान रह
इन बाजों से।
आसमान में इनके उड़ते
पंखों को तुम
थर दो माते
मनोज जैन
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