नवगीत- संग्रह की समीक्षा अर्थात ऐसी अनोखी प्रस्तुति जिससे कि पाठक उन्हें पढ़ने के लिए लालायित हो उठें! और ऐसा हो भी क्यों न ! जब कोई भवन निर्माता संभावित खरीदारों को भवनों की उत्कृष्टता दिखाना चाहता है, तो वह अपने सबसे सुंदर और आकर्षक मॉडल प्रस्तुत करता है, जिससे आगंतुक भवन को न केवल खरीदने के लिए प्रेरित हो उठते हैं, बल्कि सर्वत्र उनकी चर्चा भी होती है। एक समीक्षक के तौर पर मैंने आदरणीय श्री विजय कुमार सिंह” जी के काव्य संग्रह “बीन जाते हुए दिन की” में छपे समस्त 80 नवगीतों को नई कविता और गीत -रस से सराबोर पाया है। अतः, मैं इन सभी रचनाओं की समीक्षा बिना किसी भेदभाव के, उसी क्रम में प्रस्तुत कर रहा हूँ, जैसे वे पुस्तक में सुसज्जित हैं:
1. पहला नवगीत है :”घात पलती है” । नवगीत का सन्देश है कि सपनों में सब कुछ सुंदर लगता है, लेकिन जागने पर वास्तविकता कठोर और ठगने वाली होती है। इसके बिंब और प्रतीक जीवन की कठिनाइयों को गहराई से उजागर करते हैं।
2. “कह गई कितनी बात” नवगीत में विदाई के क्षणों का वर्णन है। यह नवगीत एक सजीव चित्रण है उन भावनाओं का, जो विदाई के समय हमारे मन में उमड़ती हैं।
3. नवगीत "चकवा सोता है" जीवन के विभिन्न पहलुओं को गहराई से दर्शाता है। इस नवगीत में जीवन के संघर्ष, बदलाव, और प्रकृति की चक्रीय प्रकृति को खूबसूरती से उजागर किया गया है।
4. “कुछ नहीं लिखा” नवगीत जीवन की कठिनाइयों, लेखन की निरर्थकता और सृजनात्मक संघर्ष, उम्मीद, और नई शुरुआत की भावना को चित्रित करता है।
5. नवगीत "रहे ठहरे" में ग्रामीण जीवन के चित्रण के साथ ही परंपराओं, रीति-रिवाजों और भावनात्मक संबंधों को बहुत ही गहरे और प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया गया है। प्रत्येक छन्द में जीवन की एक सजीव तस्वीर खींची गई है, जो पाठक के मन को छू जाती है।
6. "दो नैनों का जल" नवगीत में कवि ने प्राकृतिक परिवर्तनों के साथ मानव मन के भावनात्मक उतार-चढ़ाव को प्रस्तुत किया है। कवि ने बारीकी से प्राकृतिक चित्रण का उपयोग कर, मानवीय भावनाओं को प्रकट करने में उत्कृष्टता दिखाई है।
7. "पिता" नवगीत पिता के जीवन और उनके त्याग, प्रेम और समर्पण को गहनता से व्यक्त करता है और यह दिखाता है कि कैसे एक पिता अपने परिवार और समाज के लिए अपनी जिम्मेदारियों को निभाता है। इस नवगीत को पढ़कर पाठक न केवल पिता के महत्व को समझता है, बल्कि उनके प्रति सम्मान और प्रेम भी महसूस करता है।
8. "कुछ क्षण रुको, जियो" नवगीत एक सुंदर और गहन संदेश देता है कि हमें अपनी व्यस्त जीवनशैली से कुछ समय निकालकर ठहरना चाहिए और जीवन के छोटे-छोटे पलों का आनंद लेना चाहिए।
9. "छाहों छला गया" नवगीत जीवन की जटिलताओं, धोखे और संघर्षों को प्रकट करता है। इस नवगीत को पढ़कर पाठक जीवन के उन पहलुओं पर विचार कर सकता है, जिन्हें वह अक्सर अनदेखा कर देता है।
10. "हाथ फेरती है" नवगीत जीवन के अनुभवों और उनकी सांस्कृतिक विविधता को उजागर करता है, जो पाठक को जीवन की सच्चाई और उसकी चुनौतियों की याद दिलाता है।
11. "शगुन बाँचती है" नवगीत ग्रामीण जीवन, संघर्ष, पारिवारिक मूल्य, और आशा को बहुत ही सुंदर और गहन रूप से प्रस्तुत करता है।
12. "एक एक से बढ़कर" नवगीत आधुनिक राजनीति और समाज की विसंगतियों को बहुत ही प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करता है: एक फोन पर खुल जाते हैं, निर्णय वाले घर।
- एक फोन कॉल पर ही निर्णय लेने वाले घर (प्रभावशाली लोगों के घर) खुल जाते हैं, यानी फैसले व्यक्तिगत संपर्कों और प्रभाव के आधार पर लिए जाते हैं, न कि वास्तविक जरूरतों के आधार पर।
13. "धुल गया था आसमाँ" एक प्रेम नवगीत है जो प्रकृति की सुंदरता और व्यक्तिगत भावनाओं को बयान करता है। यह उन अद्वितीय अनुभवों को व्यक्त करता है जो हमारे जीवन में आते हैं और हमें संसार की सुंदरता को महसूस कराते हैं।
14. "तकते रह गए हम" समाजिक और व्यक्तिगत संदेहों को उजागर करता है और जीवन के संघर्षों, असफलताओं और आत्मनिरीक्षण का भावनात्मक वर्णन करता है। "तकते रह गए हम" नवगीत आत्मनिरीक्षण और आत्मसमझ की कमी और सामाजिक अनुभवों को व्यक्त करने में माहिर है।
15. "वंशी की धुन टेरे" परिवारी बंधनों और पितृवत प्रेम के महत्व को बयान करता है । यह नवगीत स्मृतियों, संवेदनाओं, और रिश्तों की गहराई को बहुत ही संवेदनशील और प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करता है ।
16. "सुनो बंधु !" एक आवाज़ है जो जीवन के रंगों और भावनाओं को बहुत ही संवेदनशील और आध्यात्मिक ढंग से करता है।
17. नवगीत "मन कहता है" में प्राकृतिक तत्वों जैसे बारिश, नदी, धूप-छाँह, और तरबूजों के बीजों से रस की फूट का उपयोग किया गया है जो हर व्यक्ति के जीवन के विभिन्न पहलुओं को दर्शाते हैं। यह नवगीत अत्यंत व्यापक है और अनुभवों को सांगतता से जोड़ती है। इसकी अर्थगत शैली इसे एक प्रेरणादायक पढ़ने का अनुभव बनाती है।
18. "धीरे-धीरे सरके" में कवि नींद, सपने, और भावनाओं के संग्राम को एक अनुभवस्थल मानते हैं। नवगीत में समय के साथ चलने और जीवन के मार्ग में आने वाली चुनौतियों को व्यक्त किया गया है।
19. नवगीत "किर्चियों में धूप" में धूप के चित्र के माध्यम से जीवन की चमक, उसके बदलते रूप और समय की प्रभावशीलता को दर्शाया गया है। एक टूटे हुए शीशे की किर्चियों में धूप अंदर तक चमक रही है। बिखरी हुई किर्चियों में भी एक चमक, एक आशा का संचार हो रहा है।
टूट कर बिथरा गया शीशा। किर्चियों में धूप अंदर तक चमकती है।।
20. "मन करता है" प्रतिष्ठा और अपनापन, सच्चाई और निरपराधिता को व्यक्त करता है।
21. नवगीत "होता वह नेक" मेघ, रस्ते का सोंधापन, और बँसवट में खगकुल के माध्यम से जीवन में उस नेकी की तलाश करता है नवगीत के माध्यम से जीवन की जटिलताओं और संघर्षों के बीच सकारात्मकता और स्वीकार्यता का संदेश दिया गया है।
22. “तकली कात रही” में प्रश्नों के उत्तर, चेहरे के भीतर छिपे चेहरों को पढ़ने की कोशिश, आंतरिक और बाहरी संघर्ष, आर्थिक कठिनाइयों, और नए विचारों की शुरुआत को प्रस्तुत किया गया है। कवि ने शब्दों और भावनाओं के धागों को खूबसूरती से बुनकर एक संवेदनशील और प्रेरणादायक रचना प्रस्तुत की है।
23. “भाग रहे हैं लोग” समाज की वर्तमान स्थिति, आंतरिक संघर्ष, निरुद्देश्य जीवन यात्रा, निष्फल प्रयास, और बढ़ती हिंसा का वर्णन किया गया है: आग लगी है घर के भीतर, ताप रहे हैं लोग। एक नपुंसक क्रोध उग रहा, जाग रहे हैं लोग।।
24. नवगीत “सदी सो रही” में जीवन की निराशाओं, कठिनाइयों, और दुखों को प्रतीकों और बिंबों का उपयोग कर प्रस्तुत किया गया है। जीवन के सफर में शाम का होना, ख्वाहिशों का अधूरा रहना, धूप और प्यास की मंजिल का छूट जाना, थके पांव और निराशा जैसे बिंबों का उपयोग प्रभावशाली उपयोग हुआ है।
25. “दिन हुए हैं आज फिर” में नाविकों के गीत और आशा के पंछियों के माध्यम से जीवन की सुंदरता और उम्मीद को संजोने का आह्वान किया गया है।
26. “कटा कगारों सा” प्रेम, संघर्ष, और जीवन के अनुभवों का गहरा चित्रण करता है। नवगीत में तीव्र नदी की जलधारा के स्पर्श से मन का उलझना, चुप्पी में अनहद संगीत, शापित यक्ष की सिद्धेश्वर की पीठ के दर्शन, नदी धार में मछुआरों का डोलना, और भटकी लय में सितारों का बजना - यह सब जीवन की विभिन्न स्थितियों और अनुभवों को दर्शाते हैं।
27. “करवट-करवट डर” में विभिन्न प्रकार के डर को अनुभव, व्यक्तिगत स्थितियों, समाजिक प्रतिबंधों, और परंपराओं के माध्यम से प्रस्तुत किया है। घर के पुरुष सदस्यों के दूर होने के कारण, घर की स्त्रियाँ और बच्चे में डर, बिजली की कड़क, साँप का दिखना, और तूफानी रात के बीच संघर्ष और भय को कवि ने जीवंत रूप में प्रस्तुत किया है।
28. "अपने हैं विश्वास बड़े" नवगीत में कवि ने आत्म-विश्वास और साहस को प्रमुखता देते हुए, आत्म-निर्भरता, और समाज की वास्तविकताओं को बेहद संवेदनशीलता और गहराई से चित्रित किया है। नवगीत में जीवन के संघर्षों और धोखे की वास्तविकता को प्रभावशाली तरीके से प्रस्तुत किया गया है, और इस कठिन समय में आत्म-विश्वास और आत्म-निर्भरता बनाए रखने का संदेश दिया गया है।
29. “मेघ तुम बरसो” नवगीत में कवि ने वर्षा को एक प्रतीक के रूप में उपयोग किया है और उसकी तुलना संगीत, सुगंधित फूलों, और सुंदर पलों से की है, जो जीवन में ताजगी और आनंद भरते हैं। बादलों से प्रार्थना की है कि वे प्रेम और शांति की बारिश करें।
30. “टोले भर के मीता” में कवि ने जीवन की जटिलताओं और सामाजिक परिस्थितियों को गहराई से चित्रित किया है। समय की निर्दयिता और निर्गुणता को उजागर करते हुए कवि ने जीवन की नीरसता को प्रस्तुत किया है। भूख, नींद की कमी, और जवान होती बिटिया की ताजगी जैसे प्रतीकों के माध्यम से जीवन की विभिन्न अवस्थाओं और उनके प्रभाव को दर्शाया गया है: "परिचय सबका पूछ रहे हैं, टोले भर के मीता।।"- "परिचय सबका पूछ रहे हैं" का मतलब है कि लोग एक दूसरे का परिचय पूछ रहे हैं। "टोले भर के मीता" का अर्थ है कि ये सारे परिचय टोले (गांव या समुदाय) के मित्रों के हैं।
31. “नेह गीत गायें” में कवि का संदेश है कि कठिनाइयों के बीच भी, हमें कुछ पल निकालकर आनंद और प्रेम के गीत गाने चाहिए। जीवन के अंकगणित को सुलझाते हुए, कवि यह भी बताते हैं कि हमें अपनी परेशानियों के बीच भी कुछ समय निकालकर आत्मीयता और प्रेम के क्षणों का आनंद लेना चाहिए।
32. “क्या तोलें” में कवि ने जीवन की जटिलताओं और बदलती परिस्थितियों को प्रस्तुत किया है। दुनिया की मान्यताएँ और विश्वास बदल रहे हैं। "क्या तोलें" का मतलब है कि अब यह निर्णय करना कठिन है कि किस पर विश्वास करें और किस पर नहीं।
33. नवगीत "एक अक्षरधाम" जीवन की गहराई, शांति, और आत्मिकता की खोज को दर्शाता है। कवि भ्रमित करने वाली कहानियों और दुखभरी व्यथाओं से दूर रहना चाहता है और सच्चाई, स्पष्टता, और शांति की ओर अग्रसर होना चाहता है: "धूप में परछाइयों की, कथा मत दो। फूल घाटी में सपन की, व्यथा मत दो।"
34. नवगीत "मुनिया सो गई" के माध्यम से कवि अपनी आत्मा की अंतर्दृष्टि को व्यक्त करता है और जीवन के विभिन्न पहलुओं को आत्मा के अद्वितीय दृष्टिकोण से देखता है । यह नवगीत अंतर्निहित शांति, स्वीकृति और स्वयं को समझने की अनुभूति को व्यक्त करता है।
35. “एक नदी भीतर बहती है” नवगीत में दिखा है कि जीवन के अंदर गहरी भावनाएँ और विचार हैं, जबकि बाहरी दुनिया में हमारी क्रियाएँ और प्रतिक्रियाएँ हैं। नदी और लहर का प्रयोग जीवन के आंतरिक और बाहरी प्रवाह को दर्शाने के लिए किया गया है।
36. "वो गुजरे पल” नवगीत अतीत की यादों और बीते हुए पलों को संजोने की एक सुंदर अभिव्यक्ति है। नवगीत हमें यह सिखाता है कि अतीत की यादों को संजोना और उन्हें समय-समय पर याद करना कितना महत्वपूर्ण होता है।
37. “बाहर आनाकानी है” नवगीत वसंत के आगमन और उससे उत्पन्न होने वाले उत्सव, आनंद और प्रेम की भावनाओं का एक मनमोहक चित्रण है।
38. “यहीं कहीं बस लें” नवगीत में कवि ने अपने मन को गाँव में बसने और वहाँ की सुंदरता का आनंद लेने का सुझाव दिया है। नवगीत में ग्रामीण जीवन की सरलता, पुरानी कहानियों और पौराणिक कथाओं का जिक्र है, जो गाँव की समृद्ध धरोहर को उजागर करता है।
39. “यह वसंत बरजोर” नवगीत वसंत ऋतु के आगमन और वसंत की हवा, गौरैया, बौर, और पत्तियों का जिक्र कर उसकी मधुरता का बहुत ही खूबसूरती से चित्रण करता है। कवि ने वसंत की छवियों को इतनी खूबसूरती से उकेरा है कि पाठक को ऐसा महसूस होता है जैसे वह स्वयं वसंत के माहौल में जी रहा हो।
40. “तुम न आए” नवगीत प्रिय की अनुपस्थिति में उसके प्रति गहरे प्रेम और उसकी यादों को बहुत ही मार्मिक तरीके से प्रस्तुत करता है जिससे पाठक को भी उस दर्द और प्रेम का अनुभव होता है। कवि ने वसंत ऋतु, संगीत, शुभ अवसरों और यादों के माध्यम से प्रिय की अनुपस्थिति का दुःख व्यक्त किया है।
41. “बर्फ सरीखे गलें” नवगीत में जीवन की कठिनाइयों और संघर्षों को स्वीकार करने और पुनः निर्माण की प्रक्रिया को अपनाने का संदेश दिया है।
42. “आँखें माज रहे” नवगीत परिवार के बुजुर्ग (बाबा) के जीवन और उनके अनुभवों को बहुत ही संवेदनशील और प्रतीकात्मक तरीके से प्रस्तुत करता है जिससे पाठक को भी बाबा के जीवन और उनके विचारों का अनुभव होता है। कवि ने बाबा के दैनिक जीवन, उनकी आदतों, परिवार के साथ उनके रिश्ते और उनके विचारों को बहुत ही प्रभावी तरीके से उकेरा है।
43. “रात चले अविराम” नवगीत जीवन की अनिश्चितता, संघर्ष और विवशता को बहुत ही संवेदनशील और प्रतीकात्मक तरीके से प्रस्तुत करता है। पिंजरे में बंद पक्षी और उसकी 'सीताराम' की पुकार स्वतंत्रता की चाह और बंधन की पीड़ा को दर्शाती है।
44. नवगीत "कुछ न भाता है" में कवि ने प्रतीकों का उपयोग करते हुए ठंड के प्रभाव और आर्थिक तंगी को दर्शाया है, जैसे सुई का शरीर में गड़ना, सूरज की असमर्थता ठंड को कम करने में, चिड़ियों की चहचहाहट का खो जाना, और बापू का काँपता चेहरा। यह सब मिलकर ठंड की कठोरता बहुत ही सजीव तरीके से चित्रित करते हैं। हवा चले उन्चास वेगवत, रश्मिरथी बेहाल। चिड़ियों की चहकार खो गई, दांत बजे बेताल।।
तेज हवा 49 के वेग से चल रही है और सूर्य देव (रश्मिरथी) भी बेहाल हैं। यह अत्यधिक ठंड और कठोर मौसम को दर्शाता है।
45. “जाग रहा है सारा गाँव बंधु”।ग्रामीण जीवन की सजीव तस्वीर प्रस्तुत करता है, जिसमें साधारण ग्रामीण गतिविधियों को बहुत ही सुन्दर और संवेदनशील तरीके से व्यक्त किया गया है। कवि ने गाँव के विभिन्न पहलुओं को उकेरते हुए, गाँव की रात की जीवंतता को बारीकी से दर्शाया है। पनघट पर निकले चाँद से लेकर, नदी-नाव, बांसवारी की आवाजों तक, हर चीज में एक सौंदर्य और गहराई है। इस नवगीत में जीवन के संघर्षों, सपनों, थकान और सरलता का संतुलन है, जो हर पाठक के दिल को छू जाता है।
46. “यादों के सपने अनमोल”। नवगीत में कवि ने पुरानी यादों, संघर्षों, और सामाजिक बदलावों को बखूबी प्रस्तुत किया है। 'सुगना मन', 'कमल दल', 'घाव', 'पिंजरा', 'सगुन', 'धूल भरे पाँव', 'नांव', और 'सच का बेगानापन' जैसे शब्द चित्र, पाठक को गहराई से सोचने पर मजबूर करते हैं। नवगीत का सबसे बड़ा आकर्षण उसकी सजीवता और वास्तविकता है। यह पाठक को उसके अपने जीवन की यादों और अनुभवों से जोड़ती है।
47. “हम खुद रीत गए” नवगीत में कवि ने समय के बीतने और रिश्तों को जीने के बाद खुद को खाली और शून्य महसूस करने की बात की है। यह जीवन की नश्वरता और संबंधों के बदलते स्वरूप को दर्शाता है। यह पाठक को सोचने पर मजबूर करता है कि कैसे समय के साथ चीजें बदल जाती हैं, लेकिन यादें और अनुभव हमेशा अमूल्य रहते हैं। यह एक अत्यंत प्रभावशाली और संवेदनशील रचना है, जो जीवन की सुंदरता और संघर्षों को बखूबी चित्रित करता है।
48. “साधों के कूल” सरलता और स्वाभाविकता की ओर लौटने का संदेश देती है, जो आज की आपाधापी भरी जीवनशैली में अत्यंत महत्वपूर्ण है।
49. “मिलते नहीं कबीर” में कवि ने कबीर के व्यक्तित्व और उनके आदर्शों को याद करते हुए आधुनिक समाज की तुलना की है, जहां मूल्यहीनता और अतार्किकता का बोलबाला है। नवगीत “मिलते नहीं कबीर”, कुल मिलाकर समाज की समस्याओं और उनके समाधानों को बखूबी चित्रित करता है।
50. “सभी प्रधान हुए” नवगीत में कवि ने बदलते समय के साथ गांव की स्थिति, लोगों की मानसिकता और ग्रामीण संस्कृति की अस्थिरता को बहुत ही प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया है जहाँ अब केवल पुरानी कथाएँ और कहानियाँ ही बची हैं, जबकि सभी लोग अब प्रधान (मुखिया) बन गए हैं। यह बदलते समय और लोगों के बदलते पद को दर्शाता है।
51. “कमरा खाली है” नवगीत में कवि ने गाँव की पारंपरिकता और शहरीकरण के प्रभाव को दर्शाते हुए वहाँ के लोगों की कठिनाइयों, संघर्षों, और वास्तविकताओं को बेहतरीन तरीके से प्रस्तुत किया है। नवगीत में किसानों की चिंताएँ, ग्रामीणों की आंतरिक पीड़ा, और प्रशासनिक भ्रष्टाचार को बखूबी दर्शाया गया है।
52. “धूप सिरानी ताल”।में कवि ने गाँव की पारंपरिकता, आधुनिकता के प्रभाव, और सामाजिक संबंधों में आ रहे बदलाव को बखूबी प्रस्तुत किया है।
53. “धूप चारी सी” में कवि ने जीवन की कठिनाइयों, संघर्षों, और अस्थिरता को बखूबी प्रस्तुत किया है। "ज़िन्दगी कितनी बेचारी सी। सेज में टूटे बटन सी, धूप चारी सी।।"
54. “औरों के दर्द भी टटोल” में कवि ने अपने व्यक्तिगत सुख-दुख से परे हटकर समाज के प्रति जिम्मेदारियों और परोपकार की भावना को व्यक्त किया है। कवि का संदेश स्पष्ट है: अपने स्वार्थ को त्याग कर, समाज के दर्द और परेशानियों को समझें और उनके समाधान के लिए प्रयासरत रहें।
55. “भूले-बिसरे मित्र” नवगीत पुराने मित्रों और यादों के साथ जुड़ी भावनाओं का गहन और संवेदनशील चित्रण करता है। संदेश स्पष्ट है: पुरानी यादें और मित्र हमेशा हमारे साथ रहते हैं और उनकी भावनाएं हमें जीवन के विभिन्न अनुभवों में सहारा देती हैं।
56. “घूरों के भी दिन बहुरे हैं” नवगीत में कवि ने गहरी समाजिक, राजनीतिक और मानविक समस्याओं को उठाया है।
57. नवगीत “सोने की चिड़िया” एक नई सुबह की सकारात्मकता और ताजगी से शुरू होता है, जो हर रोज़ की एक नई शुरुआत को दर्शाता है।
58. “कितने सपन सजा जाते हो” का समापन एक प्रश्न के साथ होता है, जो पाठक को सोचने पर मजबूर करता है कि कैसे कुछ लोग जीवन की सभी उलझनों को सुलझा लेते हैं। यह नवगीत एक गहरा संदेश देता है कि सकारात्मक दृष्टिकोण से सब कुछ सुलझाया जा सकता है।
59. “बोले सीताराम” में कवि ने बताया कि कैसे दूसरे लोगों की अपेक्षाओं और सपनों ने उसके अपने सपनों और इच्छाओं को दबा दिया है। नवगीत जीवन के संघर्षों और जिजीविषा को भी उजागर करता है, जो हर व्यक्ति के जीवन का अभिन्न हिस्सा है। 'पिंजरे के भीतर हीरामन' के सामान व्यक्ति खुद को बंधन में महसूस करता है और केवल 'सीताराम' कहकर एक आध्यात्मिक शांति और संतोष प्राप्त करता है।
60. “चार कदम चलते” में कवि ने सपनों की नाजुकता और उन्हें साकार करने की इच्छा को व्यक्त किया है। यह एक भावनात्मक इच्छा है कि सपनों को साकार करने में प्रियजन का साथ मिले। "सपने जो आते पलकों में रह-रह कर कँपते। प्रिय मेरे तुम साथ हमारे चार कदम चलते।।"
61. “पुरखों की तकदीर” में कवि ने अपनी पुरानी पीढ़ियों के अनुभवों और संघर्षों को बहुत ही सुंदरता और गहराई से व्यक्त किया है। और पुरखों के अनुभवों और उनसे मिली सीख को अमूल्य बताया गया है। पानी के अक्षर को पढ़कर हम खुद हुए अमीर। अधुनातन में मढ़ी जिंदगी तोड़ रही जंजीर।। 'पानी के अक्षर' का अर्थ उन अनुभवों और सीखों से है जो सरल और गहरे होते हैं। आधुनिक जीवन की परेशानियों और बंधनों को तोड़ते हुए उन्होंने खुद को स्वतंत्र और संपन्न बनाया है।
62. “गीत गाऊँ” में कवि ने जीवन के संघर्षों और कठिनाइयों को व्यक्त किया है जहाँ एक साधारण व्यक्ति नदिया किनारे अपने संघर्षपूर्ण जीवन के गीत गा रहा है।
63. “अपना-अपना घर” समाज की विडंबनाओं, संघर्षों, और विभाजनों का गहन चित्रण करता है। कवि ने सरल और प्रभावशाली भाषा में समाज की समस्याओं को उजागर किया है। "हीरा-मोती ढूँढ रहे हैं, अपना-अपना घर। कोरे आश्वासन में सबके हाथ उठे हैं।संसद से सड़कों तक चेहरे लिपे-पुते हैं। हरियाली पर बाड़ लगी है, दुहरा-तिहरा डर।।"
64. नवगीत “सन्तों” आधुनिक समाज की विडंबनाओं, भटकाव और अंधी दौड़ को बहुत ही प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करता है, जहाँ हर किसी की अपनी कहानी, दुकान और दिखावा है। भ्रम के रंग-बिरंगे स्वांग में सब व्यस्त हैं।
65. “वे आज नहीं हैं” जीवन के परिवर्तन, खोए हुए क्षणों, और समय के साथ आई अस्थिरता को बहुत ही संवेदनशीलता और गहराई से व्यक्त करता है। कवि ने उन क्षणों को याद किया है जो कभी अपने लगते थे।
66. “चाँदनी” प्रेम, सौंदर्य, और जीवन की विभिन्न अनुभूतियों को बहुत ही सुंदर और गहराई से प्रस्तुत करता है। यह गीत पर्वत पार की प्रीति (प्रेम) को दर्शाता है। जहाँ नदी प्रेम की शुद्धता और पवित्रता को दर्शाती है।
67. “होली के दिन चार” होली के त्योहार के रंग और भावनाओं, प्रेम, उत्साह, और रंगों की बहार के मूड को को बखूबी व्यक्त करता है।
68. नवगीत "माँ की चिठ्ठी" में चिट्ठी के माध्यम से माँ के संदेश और प्रेरणापूर्ण शब्दों का प्रस्तुतिकरण किया गया है, जो बेटे के जीवन में स्थायी रूप से प्रभाव डालते हैं।
69. नवगीत "बीन जाते हुए दिन की" जीवन की अनेक अनुभूतियों को संदर्भित करता है और समय के गुजर जाने की अनुभूति को व्यक्त करता है। यह इस पुस्तक का शीर्षक नवगीत भी है। इसके माध्यम से कवि ने व्यक्तिगत अनुभवों को उभारा है और उन्हें समय के गुजर जाने की अनुभूति के माध्यम से प्रस्तुत किया है।
70. नवगीत "एक गीली छुअन है" में "गीली छुअन" का प्रयोग संजीवनी भावना के रूप में है, जो विभिन्न वस्तुओं और तत्वों के बीच संवाद के माध्यम से प्रकट होता है।
71. “खैराती का यह जीवन” की पहली पंक्ति " खैराती का यह जीवन हमने भी खूब जिया" द्वारा आदर्श जीवन की सराहना की गई है, जो व्यक्ति को अनुभवों के महत्त्व को समझाता है।
72. नवगीत "जाने कहाँ रुके" विचारमय और विरही भावनाओं से भरा है। पहली पंक्ति में, "खालीपन का यह सन्नाटा, जाने कहाँ रुके" द्वारा एकांतता और विचारमय स्थिति का वर्णन है।
73. नवगीत “ज्यादा नहीं-नहीं “ की पहली पंक्ति "समरसता की बहती धारा, कब अतृप्त रही। बस थोड़ी सी हो उत्सुकता ज्यादा नहीं-नहीं।" द्वारा जीवन की समरसता और उत्सुकता के मामले में मध्यम राह को महत्वपूर्ण बताया गया है।
74. “तुम हमारी साधना हो “ में कवि देवी की प्रार्थना करते हैं कि वे उनकी साधना और प्रयासों में सहायक हों, जो उन्हें जीवन में समृद्धि, शांति और सुख प्राप्त करने में मदद करता है। यह नवगीत संबंधों के महत्व और उनके प्रति समर्पण को उजागर करता है, और साधना और समाधान की प्रक्रिया में एक साझीदारी का आदान-प्रदान करता है।
75. नवगीत "रग-रग फूट पड़ी" समाज में विवशता, स्थितिगत संघर्ष और न्यायाधीनता के मुद्दे पर ध्यान केंद्रित करता है। पहली पंक्ति में "यह कैसा संघर्ष, विवशता रग-रग फूट पड़ी" के द्वारा यह कहा गया है कि समाज में विभिन्न विरोधाभास और संघर्ष हैं, जिनसे लोग विवश और असहमत हो गए हैं। इस नवगीत का समीक्षात्मक अध्ययन समाजिक और नैतिक मुद्दों पर गहरा प्रकाश डालता है, और लोगों को सोचने पर मजबूर करता है कि हमें समाज में न्याय और सहमति की ओर बढ़ना होगा।
76. "ज्यादा नहीं-नहीं" की पहली पंक्ति में "बस थोड़ी सी हो उत्सुकता, ज्यादा नहीं-नहीं।" व्यक्त करता है कि जीवन में ज्यादा कुछ मांगने की बजाय छोटी-छोटी चीजों के लिए संतुष्ट रहना अधिक शांतिपूर्ण और आनंदमय हो सकता है। इस नवगीत की सरलता और भावनाओं की गहराई हमें यहाँ यह शिक्षा देती है कि हमें जीवन में सादगी और छोटी-छोटी खुशियों को महसूस करने की क्षमता बनाए रखनी चाहिए। इसका संदेश विशेष रूप से उस व्यक्ति के लिए है जो जीवन के अभिन्न अनुभवों को स्वीकारने के लिए तत्पर है।
77. नवगीत "दास विनत चरनन में" का शीर्षक स्वयं में एक संकेत है कि यहाँ कवि अपने प्रभु के चरणों में अपना सर्वस्व समर्पित कर रहा है। नवगीत में भक्ति और आध्यात्मिकता के भाव पाठक को आध्यात्मिक उद्धारण और अंतर्मन की शांति का अनुभव कराते हैं। यह नवगीत आत्मिक सुधार की दिशा में मार्गदर्शन करता है।
78. नवगीत "दूबर दूध और भात" में कवि ने दिनचर्या, प्राकृतिक वातावरण और व्यक्तिगत अनुभवों को सुंदरता से व्यक्त किया है: "चोंच माँजती नन्ही चिड़िया दाना दूर रहा।" और "झरे उमर का बूढ़ा बादल चंदा घूर रहा।"
79. “रिश्ते बहुत पिराए “ में रिश्तों की गहराई, व्यक्तिगत संघर्ष और समय के साथ बदलते संदर्भों का सुंदर वर्णन किया गया है। "सोंधी मिट्टी के वे घर फिर, याद बहुत आए।"
80. इस काव्य-संग्रह का अंतिम नवगीत है "भुने हुए संजोग" यह व्यक्त करता है कि जीवन में हमें कभी-कभी वे संवाद और संयोग मिलते हैं जो पहले हमारे हाथ से बच निकल जाते हैं, और हम उन्हें फिर से पकड़ने की कोशिश करते हैं।
अस्तु, एक समीक्षक का धर्म निभाते हुए मैंने प्रत्येक रचना पर गहन चिंतन-मनन किया है और उसकी गहराइयों तक पहुँचने का प्रयास किया है। सम्पूर्ण नवगीत-संग्रह को पठने के बाद ऐसा प्रतीत होता है कि यहाँ कोई रचना श्रेष्ठतम या श्रेष्ठतर नहीं, बल्कि अपने आप में अनूठी और विशेष है। आशा है पाठक इन रचनाओं को पढ़ने के लिए उत्सुक होंगे और इनका पूर्ण आनंद उठाएंगे।
मुझे पूर्ण विश्वास है कि यह नवगीत संग्रह हिन्दी साहित्य की श्री वृद्धि में सहभागी बनेगा और साहित्य जगत में पर्याप्त चर्चित होगा तथा इस अपार प्रतिष्ठा भी मिलेगी
-डॉ. आलोक गुप्ता
०८ जुलाई, २०२४
मुज़फ्फरनगर
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