रविवार, 17 अगस्त 2025

कृति चर्चा शेफालिका श्रीवास्तव जी

पुस्तक समीक्षा

पुस्तक-     'बच्चे होते फूल से'
लेखक-     श्री मनोज जैन 'मधुर'
पृष्ठ संख्या-104 
मूल्य -       रु.200/- 
प्रकाशक-  विचार प्रकाशन ग्वालियर 
प्रथम संस्करण- 2025
आई.एस.बी.एन -        
978-81-975632
समीक्षक - शेफालिका श्रीवास्तव 


बाल साहित्य अर्थात् वह साहित्य जो बालकों के मानसिक स्तर को ध्यान में रखते हुए लिखा गया हो ,बालकों को मनोरंजन के साथ सार्थक प्रेरणा व सीख भी प्रदान करता हो, उन्‍हें आज के जीवन की सच्‍चाइयों से परिचित कराता हो । आज के बालक कल के भारत के नागरिक हैं ।वे जैसा पढ़ेगें उसी के अनुरुप उनका चरित्र निर्माण होगा।अतः बाल साहित्य का उद्देश्य बच्चों का मनोरंजन करना, उन्हें शिक्षित करना, अच्छे संस्कार डालकर उनके भावी संसार की नींव मजबूत करना है तथा उन्हें दुनिया के बारे में जानकारी देना , जागरूक बनाना है।
मनोज जैन “मधुर“ जी की पुस्तक ‘ बच्चे होते फूल से ‘ कुछ इसी तरह के उद्देश्य को समेटे हुए है । एकल परिवार, सोशल मीडिया, माता पिता दोनों का नौकरी करना  कुछ  ऐसे कारण हैं जिनकी वजह से बच्चों का बचपना कहीं खो रहा है। ऐसे में अभिभावकों को उचित बाल साहित्य उपलब्ध कराना चाहिए जिसके द्वारा बच्चों के समय का सदुपयोग हो व वे भारतीय संस्कृति, संस्कार, अपने आसपास के परिवेश से परिचित हों । 
इस दृष्टि से मनोज जैन जी की कविताएँ अपना अलग महत्व रखती हैं ।आपके नवीन बाल कविता संग्रह ‘काग़ज़ के फूल’ में, बाल जगत को आनंदित करती रचनाओं के साथ, बच्चों के लिए लोरी , प्रभाती, पहेली , बोधकथा का कविता रूप , इत्यादि विशेष रचनाएँ भी संग्रहित हैं ।पुस्तक की कविताएँ पढ़ कर महसूस हुआ कि आपको बाल मनोविज्ञान का पूरा ज्ञान व अनुभव है । आपके मन में आपका बचपन अभी जीवंत है। इसलिए बच्चे के मन की भावनाओं को समझते हुए आपने ये बाल कविताएँ रचीं हैं । 
प्रायः बाल साहित्यकार, बाल कविता का सृजन, बच्चों को देखते हुए या स्वयं अपना बचपन याद करते हुए या अपने अनुभवों व स्मृति के आधार पर करते हैं । मनोज जैन जी ने भी इसी को आधार मान कर बाल जगत के लिए अपनी प्रथम पुस्तक ‘ काग़ज़ के फूल ‘ में कविता को सुंदर रुप दिया है । 
वरिष्ठ गीतकार मनोज जैन 'मधुर' जी स्थापित गीतकार हैं, आपके पहले दो पुस्तकें आ चुकी हैं,, लेकिन बाल साहित्य में आपने पदार्पण “ बच्चे होते फूल से" बाल कविता संग्रह से ही किया है । इस संग्रह में आपकी फूल सदृश कोमल कुल जमा तिरयालिस कविताओं का गुलदस्ता सजा है । सभी कविताएँ अपने आप में विशेष हैं, अलग-अलग खुश्बू ये आप्लावित हैं । 
मनोज जी के काव्य संग्रह में कल्पना शक्ति को विस्तार देती हुई , रिश्तों को जीवंतता प्रदान करती , नैतिक मूल्यों को सिखाती,राष्ट्रीय प्रेम , पशु पक्षियों के प्रति प्रेम करने की शिक्षा देती हुई रचनाओं का संकलन है , जो विविध रंगों से सजी हुई हैं व विभिन्न वय के बच्चों के लिए लिखी गईं हैं । आपकी पुस्तक को पढ़ते समय पाठक भी अपने बचपन में पहुँच जाते हैं,यही पुस्तक की सफलता है । 
प्रथम रचना ही बालकों की जिज्ञासु प्रवृति को बढ़ावा देती हुई पाँच बाल पहेलियाँ हैं ।ये पहेलियों बच्चों के लिये ज्ञानवर्धक तो हैं ही, साथ ही बच्चों की तार्किक बुद्धि को तराशने का भी काम करतीं हैं । भारत, भोपाल, इंद्रधनुष, तिरंगा व नदी पर आधारित ये पहेलियाँ बच्चों के लिए रोचक जानकारी उपलब्ध कराती हैं । 
प्रतिनिधि रचना “ बच्चे होते फूल से” में बच्चों का वर्णन किया है, उनमें संस्कार को रोपित कर , भारत में फिर से गाँधी नेहरू की कल्पना की है । इतिहास बच्चों तक पहुँचाने का प्रयास है । 

रंग बिरंगी फुलवारी यह 
महके नव परिवेश मे 
गाँधी, नेहरू नित्य जन्म लें 
अपने भारत देश में 
जुड़े रहें संस्कारों से 
कटे न अपने मूल से 
बच्चे होते फूल से 

‘मातादीन’ ,’गिनती ‘ व ‘मोकलवाडा’ जैसी कविताएँ रोचक है व छोटे बच्चों को गिनती सिखाने के साथ-साथ जीवन की गूढ़ बातें भी बताती हैं जैसे - 

बात पते की मुन्ने सुन 
जो सीखा है उसको गुन
बोल मेरे मुन्ने 
एक दो तीन
नहीं किसी के 
हक को छीन 

ऐसे ही “उत्तर देना सच्चे “  “बैठ उड़न खटोले में” व “पानी है अनमोल “ कविताएँ प्रकृति व पर्यावरण के प्रति सचेत करती हैं , प्रकृति का महत्व समझाती व पशु-पक्षीसे प्रेम करना सिखाती प्रतीत होती हैं । 
पानी सच में अनमोल है , इसे संरक्षित रखने की शिक्षा देती सुंदर रचना । 

बूँद बूँद अनमोल व्यर्थ में 
पानी नहीं बहाना ।  
छत पर रखना एक सकोरा
भरना उसमें पानी ।
सुनो गौर से प्यारे बच्चों 
यह सीख सयानी । 

जानवरों पर आधारित कविताएँ बच्चे सामान्यतः पसंद करते हैं । संग्रह में संकलित जानवरों की कविताओं, जैसे 
‘चंट चतुर चालाक लोमड़ी,’ ‘प्यारी दोस्त गिलहरी’, ‘मेरा नाम जिराफ’, ‘मैं हूँ बिल्ली चतुर सयानी’ इत्यादि रचनाओं के द्वारा लेखक बच्चों को जानवरों से परिचित करवाने व दोस्त बनाने में सफल है । जैसे -  ‘ मेरा नाम जिराफ़ है ‘, कविता में 

दस फ़ीट लंबी और खड़ी 
मेरी गर्दन ख़ूब बड़ी 
पूरे दिन में शायद ही
सोता हूँ में एक घड़ी ।।

बोध कथा को कविता रूप में लिखना एक नया प्रयोग किया है आपने । बच्चों को लय-ताल से युक्त कविता के ज़रिए कुछ बताना या समझाना सरल होता है, आपने इन कविताओं के ज़रिए बच्चों में नैतिक मूल्यों को विकसित करने का प्रयास किया है । 
भाग एक में आपने आपस में एक दूसरे का ख़याल रखने व आपस में सहयोग करने की शिक्षा दी है -

बोला हमने फल खाए है 
साथ इसी के खेले 
यही हमारा धर्म पेड़ को 
छोड़े नहीं अकेले। 
प्रण के लिए प्राण दे देंगे 
पीछे नहीं मुड़ेंगे 
साथ जलेंगे इसी पेड़ के 
पर हम नहीं उड़ेंगे । 

बोधकथा के भाग दो में संकल्प शक्ति को तवज्जो दी है -
झुकती है संकल्प शक्ति के 
सम्मुख दुनिया सारी
वह होते आदर्श जिन्होंने 
हिम्मत कभी नहीं हारी । 

रिश्तों को महत्व देती कविता ‘प्यारी माँ,’
‘मम्मी-मम्मी सुम्मी आई,’ ‘बड़ी बुआ’ इत्यादि रचनाओं बहुत सुंदर बन पड़ी है । 

घर आईं हैं बड़ी बुआ 
आज बनेगा मालपुआ 

इस पूरी कविता में बुआ का इतना सुंदर वर्णन है कि लगता है बुआ जी सामने खड़ी है । 
ऐसे ही लगे ‘नाचने अपने नाना’ व पलकों पर बिठाओ पापा’ में घर के बुजुर्गों, नाना नानी , दादा-दादी की महत्व दर्शाया है , उनके प्रति प्यार, सम्मान की भावना को पनपाने का अद्भुत प्रयास है । आज जब घर में बच्चों के पास अभिभावकों के लिए समय नहीं है, ऐसे में पोते-पोति के मन में बुजुर्गों के प्रति आदर भाव जगाना आवश्यक प्रतीत होता है । इस तरह की रचनाओं के द्वारा बच्चों के मन में उत्तम संस्कार रोपित किए जाने की दिशा मे यह एक सराहनीय कदम है । 

कब आयेंगे दादा- दादी 
हमको ये समझाओ पापा 
हमसे नहीं छिपाओ कुछ भी 
सच्ची बात बताओ पापा । 

दादू है पर्याय खुशी के
दादी अपनी रानी है । 
हम बच्चों को उनसे मिलती 
हरदम सीख सयानी है । 

यह पूरी रचना में दादा-दादी पर केंद्रित है , मन को छू लेने वाले भाव हैं । 

इसी प्रकार ‘पॉली क्लिनिक’ ‘चूहों के सरदार’, ‘मेट्रो पकड़ी चिड़ियाघर की’ ‘नौ सौ चूहे खा कर’, ‘चूहों के सरदार ने’ , ऐसी कुछ कविताएँ जानवरों को आधार मान कर लिखी गई हैं , जिन्हें बच्चे अवश्य पसंद करेंगे । 
प्रायः बच्चों की प्रत्येक पुस्तक में बाल मेले पर कविता होती ही है , लेकिन मनोज जी ने ‘दिल्ली पुस्तक मेला’ पर कविता लिखी है । हमें ऐसा लगा की यह रचना हम जैसे पाठकों के लिए है , बच्चों के लिए नहीं है । इसमें आपने लेखक, पाठक,प्रकाशक , भ्रष्टाचार इन सब पर बात की है। हालाँकि ये बात सही है कि लेखक ज़्यादा है , पाठक नहीं मिल रहे हैं , साहित्य के क्षेत्र में भ्रष्टाचार भी व्याप्त है , लेकिन इन सब बातों के लिए यह वर्ग अभी छोटा है व इनसे अनभिज्ञ भी है ।
धर्म निरपेक्षता का पाठ पढ़ाती व ईश्वर में विश्वास जगाती ‘ईश वंदना’ बहुत बढ़िया रचना है । अंतिम पंक्ति में बच्चे के मन का कौतूहल दर्शाया है । 

राम तुम्हीं, रहमान तुम्हीं हो , 
बुद्ध वीर भगवान तुम्हीं हो । 
ब्रह्मा विष्णु महेश तुम्हीं हो
सबके शेष अशेष तुम्हीं हो 
अखिल विश्व के पालक हो 
क्या हम जैसे ही, 
बालक हो ..! 

इस रचना को पढ़ कर हम अपने बचपन में पहुँच गये , हमारी शिक्षिका ने एक कविता जो पूरी कक्षा के बच्चों को रटवाई थी वो याद आ गई- 

हे ईश्वर तू कैसा होगा! 
लड्डू जैसा गोल होगा,
या पेड़े सा चपटा होगा! 
हे ईश्वर तू कैसा होगा.,! 

इसी तरह हमारी धरोहर, हमारे त्योहार पर भी आपकी कलम बखूबी चली है - “ होली “ रचना में-

भेद भाव को 
मारे गोली 
हैप्पी होली 
हैप्पी होली

बच्चों को स्वास्थ्य के प्रति सचेत करती कविता हैं -‘मोबाइल से दूरी’ व ‘दो गज दूरी बहुत जरूरी ’ । ‘मोबाइल से दूरी’ कविता समय के परिप्रेक्ष्य में बहुत ही बेहतरीन रचना है ।मोबाइल से दूरी बनाना चाहिए , यह बच्चों की समझाना थोड़ा मुश्किल है ।क्योंकि वर्तमान में मोबाइल जीवन का अहम हिस्सा बन चुका है फिर भी बच्चों को जागरूक करना हमारा कर्तव्य है ।इस दृष्टि से बहुत अच्छी सीख देती रचना है । 
 । इस तरह करीब-करीब हर विषय को समेटते हुए आपने रचनाएं लिखी है । 

‘ प्यारी माँ ‘ रचना में छोटे बच्चे के मुँह से आभार जैसे भारी शब्द कहलवाए हैं , जो कि सामान्यत: मुमकिन नहीं है । कहीं कहीं टंकन त्रुटि है व कुछ शब्द बच्चों के हिसाब से कठिन हैं । जिन्हें याद रखना या उच्चारण करना मुश्किल हो सकता है । 
कुछ कविताओं में लाइक , रील , इंस्टाग्राम, सेल्फी इत्यादि का उल्लेख बच्चों को वर्तमान से जोड़ता हैं। जैसे - 

आठ सेल्फी दस तस्वीरें
चला सालभर नाटक । 
एवं 
मैं हूँ बिल्ली चतुर सयानी 
डी पी में लगती हूँ रानी।
रील बना  मैंने जोडी 
अभी इंस्टाग्राम पर छोड़ी 
लाइक बिना है जग सूना 
केअर करो जी 
जल्दी जल्दी शेयर करो जी । 

 कुल मिलाकर यह पुस्तक कविता रूपी सुंदर फूलों का गुलदस्ता है । इसमें हर उम्र के बच्चों के लिए कविताएँ हैं । इन कविताओं में अंग्रेज़ी के कुछ  शब्दों का प्रयोग है ,पर हमारे विचार से ये ऐसे शब्द हैं , जिन्हें हिन्दी भाषा ने अपने आप में आत्मसात् कर लिया है , जैसे - फीवर , लीवर , थर्मामीटर आदि । 
पुस्तक के कवर पृष्ठ की बात करें तो बहुत आकर्षक नहीं है । रंग संयोजन व मुखपृष्ठ पर बना चित्र बच्चों को आकर्षित करने वाला नहीं लगा , लेकिन ये लेखक की अपनी पसंद है ।
बच्चों व अभिभावकों में लोकप्रिय यह कविताएँ कुल मिला बाल साहित्य में एक नया मुकाम हासिल करेंगी । इसमें कोई संदेह नहीं कि, मनोज कुमार जी ने पहली पुस्तक के साथ धमाकेदार पदार्पण किया है । आप बहुत अच्छे, स्थापित गीतकार हैं, शीघ्र ही बच्चों के लिए तुकांत, लयबद्ध कविताओं के दूसरे संग्रह से बाल जगत को लाभान्वित करेंगे । आपको भविष्य के लिए बहुत-बहुत शुभकामनाएँ व बधाई । 
शेफालिका श्रीवास्तव 
HIG- 657 , अरविंद विहार 
बागमुगलिया , भोपाल

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