रविवार, 3 अगस्त 2025

कृति चर्चा समीक्षा सुनीता यादव जी

कृति चर्चा में आज "बच्चे होते फूल से" का मूल्यांकन समीक्षक Sunita Yadav जी 
कृतिकार मनोज जैन 

निराला सृजन पीठ के पुस्तक लोकार्पण और पाठ कार्यक्रम में सुनीता यादव जी ने कृति की समीक्षा में जिस सूक्ष्मता, गहराई और संतुलन का समावेश है, वह अत्यंत सराहनीय है। 
    उन्होंने न केवल कृति के विषय-वस्तु को गहनता से समझा है, बल्कि उसकी आत्मा को भी शब्दों में बड़ी सहजता से बाँधा है। उनके विश्लेषण में भाषा की शुद्धता, दृष्टि- कोण की स्पष्टता और आलोचना की विनम्रता,तीनों का सुंदर संतुलन देखने को मिलता है।  
         सुनीता यादव जी की यह प्रस्तुति पाठकों को कृति की ओर आकृष्ट करने वाली है और रचनाकार यानि स्वयं मेरे के श्रम को सार्थकता प्रदान करती है।

       बड़े आदर के साथ उनके द्वारा की गई समीक्षा पाठकों के लिए साभार प्रस्तुत है।
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सारतत्व
कृति - बच्चे होते फूल से
कृतिकार - श्री मनोज जैन 'मधुर'
प्रकाशक - विचार प्रकाशन (ग्वालियर)
2007
समर्पण
बाल कल्याण एवं बाल साहित्य शोध केन्द्र भोपाल।

कहते हैं न कि - "सरल लिखना कठिन है, सरल दिखना व होना और कठिन, पर कठिन लिखना आसान होता है। बाल साहित्य लेखन कठिन से सरल की ओर लिखना है।

बाल साहित्य तीन आयामों पर लिखा जाता है, एक यह कि रचनाकार स्वयं बालक बनकर बच्चों की बातें लिखते हैं, जिसे परकाया प्रवेश कहते हैं।

दूसरा, जब रचनाकार अपनी बाल्यावस्था का वर्णन लिखता है, तो संस्मरण के रूप में बाल साहित्य लिखता है। तीसरा है - किसी अन्य का बचपन अपनी भाषा में लिखना।

वास्तव में बाल साहित्य बचपन का प्रतिरूप ही है, जीवन की सबसे मीठी व सरल अवस्था। बच्चा हर काल में बच्चा रहा है और रहेगा। बचपन को चाहिए उसका अपना स्वर, अपना भावबोध, अपनी उत्फुल्ल चंचल अनुभूतियाँ, अपना वास्तविक और काल्पनिक विराट संसार। बाल साहित्य की रचनाएँ एक जीवंत बच्चा हैं, जो कभी चुलबुला, कभी हठीला, कभी प्रश्नातुर तो कभी जिज्ञासु दिखाई देता है। हर बार स्थना में एक अलग रंग, एक अलग छवि।

वरिष्ठ गीतकार मनोज जैन 'मधुर' जी की कृति "बच्चे होते फूल से" मधुरिम सुबास लिए बाल साहित्य में प्रतिष्ठित होने जा रही है। तिरतालीस फूलों का यह गुलदस्ता अनेक रंगों के फूलों से सजा है। पाँच बाल पहेलियों व प्रतिनिधि रचना "बच्चे होते फूल से" उड़कर भीनी-भीनी खुशबू, मतादीन, गिनती गीत, प्यारी माँ, पाँच लोरी गीत, पलकों पर बैठाओ पापा, बूझ रहा हूँ एक पहेली से बाल मनोभाव लेकर बोलूँ मीठी वाणी तक पहुँचते हुए शुद्ध बाल कविताएँ रहती हैं। पहेलियों में भारत, भोपाल, इंद्रधनुष व तिरंगा पर गीतात्मक प्रश्न हैं, जो बच्चों में रोचकता व जिज्ञासा बढ़ाते हैं। मतादीन व गिनती गीत, अंक ज्ञान करवाने के उत्कृष्ट उदाहरण हैं।

बोल मेरे मुन्ना एक दो तीन, नहीं किसी के हक को छीन लोरी गीत में ना रे निन ना रो ना न ना का प्रयोग लय को साधने का अनूठा प्रयोग है।

आज बचपन एकाकी और पुस्तकों के बोझ से लदा-लदा लगता है। परिवार में बच्चों की संख्या कम होने से माता-पिता के साथ बच्चों के बीच दादा-दादी व मामा, बुआ, नाना-नानी, मौसी, चाचा, चाची का साथ होना भी अतिआवश्यक है। इसी बानगी की कुछ रचनाएँ मनोज जी के इस बाल संग्रह में हैं। पलकों पर बैठाओ पापा में एक बच्चा दादा-दादी का सान्निध्य पाने की मनुहार कर रहा है। बहन और भाई के बीच मम्मी मम्मी। सुम्मी आई जैसी रचना गहन प्रेम व प्रगाढ़ आत्मीयता की प्रतीक है, जहाँ सकोरे में पानी, पक्षियों को दाना खाते हुए देख नाना नाचने लगते हैं, वहीं जब घर में बड़ी बुआ आती है तो मालपुआ बनता है।

घर आई है बड़ी बुआ
आज बनेगा मालपुआ।

बचपन में बच्चों को रिश्तों का ककहरा परिवार में सिखा देने से जब अक्षरों की वर्णमाला तैयार होती है और शब्दों से सम्मान व अपनापन फलीभूत होते हैं, तो सारे वृद्धाश्रम बौने हो जाते हैं। इसीलिए अपनेपन को बचाए रखने के संस्कार देती ये रचनाएँ बाल साहित्य में मील का पत्थर साबित होंगी।

बोली में मिठास, चित्त में देशभक्ति, पर्यावरण संरक्षण हेतु पौधे लगाना, पानी बचाना, अनारदाने का उपयोग, विटामिन-डी और सुबह की सैर सिखाती रचनाएँ बच्चों के मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य के लिए अनूठे शिल्प में गढ़ी गई हैं, इनमें से कुछ तो बच्चों के पाठ्यक्रम में भी होनी ही चाहिए। हमारा प्यारा भारत देश बोधकथा का भावानुवाद अनूठे शिल्प में है, जो बच्चों को किस्सागो की तरह सुनाई जा सकती है। कुछ बच्चे कविता से जल्दी सीखते हैं, कुछ बच्चे कहानी से तो कुछ किस्सागोई से। बस बात रोचकता लिए होनी चाहिए, जो मनोज जी की रचनाओं में है। बच्चों को व्यंग्य से कोई लेना-देना नहीं है, उन्हें तो बस हास्य समझ आता है, जो मेट्रो पकड़ी चिड़ियाघर की रचना में भरपूर है।

जब घर पूरे का पूरा मोबाइल ज़ोन बन जाए, तब एक बाल साहित्यकार को लिखना ही चाहिए मोबाइल से दूरी। बच्चों के ही नहीं, माता-पिता को भी बनानी पड़ेगी।

बच्चे जब कल्पना में विचरते हैं, तब जादूगर और यह डलिया है उड़ने वाली जैसी रचनाएँ ज्ञान चक्षु को परत दर परत खोलती हैं, सिखाती हैं और बच्चों को जिज्ञासु बनाती हैं।

बाल रचना-लेखन में यदि जीव-जन्तु हों और उनका रचनाओं में वर्णन हो, तो बच्चों को पढ़ने में व समझने में सरलता रहती है। कृति की कुछ रचनाओं में बंदर-बंदरिया, जिराफ, हाथी, हिरण, चूहे, कौआ, गिलहरी व बिल्ली भी कुदाछें लेते हैं।

पुस्तक में - बाल साहित्य की रचना शैली का निर्वहन तो हुआ है, पर कुछ जगह व्याकरण छूटा-सा लगता है।

हँसती को हंसती, रंगीला को रंगीला संग संग अनुस्वार में विभेद अस्पष्ट है।

परिश्रावक का शब्द प्रयोग अच्छा है, पर उसी पंक्ति में नीचे थर्मामीटर को तापमापी लिखा जा सकता है।

चूना नहीं लगाना रचना में तम्बाकू, गुटखा का प्रयोग बताना और ग्राहक मनुहार करना, और फिर पान खिलाना फिर टालना न होकर बिना पान मसाला दिए ही टालना था कि पान-मसाला बच्चों के साथ-साथ बड़ों को भी नहीं खाना चाहिए।

दो गज दूरी बहुत जरूरी है - पर चार पंक्ति की यह रचना पूरे दो पृष्ठ पर पसरी है। और हम पर्यावरण व कागज़ बचाने की बात करते हैं।

होली में "बोलो जी मेरे हमजोली", चूनर रंग दूँ रंग दूँ चोली एवं दिल्ली पुस्तक मेला कविता में प्रकाशक, लेखक व आलोचक से बच्चों का क्या लेना-देना - मेला ही घुमाना था, तो झूले व खिलौनों के गीत लिख देते। ये रचनाएँ तो लेखक के व्यंग्य गीत हैं।

पुस्तक के २५ पृष्ठ तक केवल पुरोवाक व शुभकामनाएँ हैं, जो लेखन को प्रोत्साहित तो करती ही हैं, पर अन्य बाल रचनाओं की जगह का अतिक्रमण कर लेती हैं।

नौ सौ चूहे खाकर रचना में बिल्ली का हज यात्रा के बाद बिल्ले का व्यंग्य करना बच्चों में चिढ़ाने व मज़ाक उड़ाने वाली आदतों को बढ़ावा देना जैसा ही है। यह रचना किसी और संदर्भ को लेकर लिखी जा सकती है, जिसमें हज यात्रा को न जोड़ा जाए।

अस्तु, फूल से मुस्काते बच्चों के लिए यह बालगीत संग्रह पठनीय व संग्रहणीय है। आदरणीय मनोज जी को कुछ संशोधन के साथ आगामी बाल कविताओं के प्रकाशन हेतु बहुत-बहुत बधाई, शुभकामनाएँ।

शेष शुभ
पुस्तक पर एक दृष्टि
शिक्षक
श्रीमती सुनीता यादव
रचनाकार
03/08/25

1 टिप्पणी:

  1. आदरणीय मनोज जी आपने समीक्षा हेतु मुझे पुस्तक दी आपकी सहृदयता है और समीक्षा उपरांत उसे सार्वजनिक मंच पर जस का तस प्रस्तुत किया यह आपका बडप्पन है। इस हेतु आपका बहुत बहुत धन्यावाद आभार।
    श्रीमती सुनीता यादव
    एक रचनाकार

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