सच भिखमंगा झूठ महाजन :रघुवीर शर्मा
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वागर्थ की अनूठी प्रस्तुतियाँ चर्चा के केंद्र में इसलिए हैं कि हम यहाँ स्तरीय और चयनित सामग्री पूरे मनोयोग से बिना किसी पूर्वाग्रह के प्रस्तुत करते हैं।
हमनें कुछ समकालीन कविता के कवियों के नवगीत भी यहाँ पहले पहल पाठकों के सम्मुख रखे,जिन पर अनेक पाठकों का ध्यान गया।हमारा उद्देश्य नवगीत को केंद्र में रखकर उन अछूते सन्दर्भो पर बात करना हैं
जिन सन्दर्भों को या तो छोड़ दिया गया है या जिनकी गुटबंदी के चलते चर्चा ही नहीं की गयी।हम नवगीत में हो रहे नित नवीन नूतन और नए प्रयोगों के पक्षधर हैं,और ऐसे नवगीतों को खोजकर पाठकों के समक्ष आगे भी लाएंगे।छन्दों की व्यवस्था समझने और समझाने का काम छन्द शास्त्रियों के सुपुर्द करते हुए हम नए प्रयोगों में डूब कर उनका आनन्द लेना चाहते हैं।
नवगीत के विकास क्रम पर गौर करें तो नवगीत का उद्गम छन्द को तोड़कर ही हुआ है।इसलिए हमें उन नवगीतों को यहाँ रखने में कोई परहेज नहीं है जिनमें छन्द की व्यवस्था के अटपटे(विचित्र किंतु नये) प्रयोग देखने को मिलते हैं।नवगीत लय आश्रित छन्द है बस कोशिश होनी चाहिए कि छंद की लय न टूटे।प्रस्तुत हैं कवि रघुवीर शर्मा जी के चयनित सात नवगीत मध्य प्रदेश के एक छोटे से गाँव धारुखेड़ी जिला खंडवा के कवि रघुवीर शर्मा जी का कथ्य उन सैकड़ों रचनाकारों से श्रेष्ठ है,जो छन्द और चिकनी भाषा के निकष पर भले ही सौ फीसदी खरे हों पर कथ्य उनकी रचनाओं में ढूँढें से भी नहीं मिलता।इस मामले में शर्मा जी के गीत बड़े सलीके से युगीन यथार्थ को व्यक्त करते हैं,खास तौर से तब वह कबीर के बिल्कुल निकट खड़े दिखाई देते हैं,जब वह कहते हैं।
साधो ,
यह जग महाबली का
नए नए आदर सम्बोधन
सीखो नया सलीका
सच भिखमंगा झूठ महाजन
धारदार कथ्य के अच्छे नवगीतों के लिए शर्मा जी को बधाइयाँ साथ ही चलते चलते एक बात और
नवगीत में रससिक्त भाषा और सुगठित छन्द योजना की अपेक्षा कथ्य ज्यादा प्रभाव छोड़ता है।
पढ़ते हैं कवि रघुवीर शर्मा जी के छह नवगीत
प्रस्तुति
समूह वागर्थ आभार सम्पादन मण्डल जिन्होंने इन नवगीतों को यहाँ प्रस्तुत करने की इजाजत प्रदान कीइन नवगीतों पर आप चर्चार्थ सादर आमंत्रित हैं।
प्रस्तुत हैं कवि रघुवीर शर्मा जी के छह नवगीत
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चारों ओर कुहासा है
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१
चारों ओर कुहासा है
जाने क्या मौसम की मर्जी
देता रहा दिलासा है
दूर क्षितिज पर आँख लगाए
कैसे मन कोई बहलाए
अब तक कोई छवि कब उभरी
केवल धूल धुआँ सा है
अँधियारे ने पाँव पसारे
लुप्त हुए सब संग-सहारे
सूरज भी बदली में छुप कर
लगता कुछ बदला सा है
चारों ओर कुहासा है
२
साधौ, यह जग महाबली का
नए-नए आदर,सम्बोधन
सीखो नया सलीका
सच भिखमंगा
झूठ महाजन
वही रहनुमा
वहीं राहजन
साबुत कैसे बच पाएगा
हीरा इस गठरी का
न्याय धर्म सब
उसके पीछे
चलते हैं बस
आँखें मींचे
हम कठपुतली और समय है
तागा, उस उंगली का
साधौ, यह जग महाबली का
3
नम आँखों से
देख रहे हैं
हम अपना आकाश.
देख रहे हैं बूँद हीन
बादल की आवाजाही.
शातिर हुई हवाओं की
नित बढ़ती तानाशाही.
खुशगवार मौसम भी बदले
लगते बहुत उदास.
टुकड़े-टुकड़े धूप बाँटते
किरणों के सौदागर.
आश्वासन की जलकुंभी से
सूख रहे हैं पोखर.
उर्वर वसुधा के भी निष्फल
लगते सभी प्रयास.
नम आंखों से देख रहे हैं
हम अपना आकाश.
४
यह मौन बहुत खलता है
आंखों देखी कहना मुश्किल
आँखें मींचे रहना मुश्किल.
अँधियारे के कई पाँव हैं
उजियारे का चलना मुश्किल.
क्षत-विक्षत आहत मन का
यह घाव बहुत दुखता है.
सच से मीलों दूर खड़े हैं
उत्तर से भी प्रश्न बड़े हैं.
बेमानी सब नियम कायदे
खुद से ही हम खूब लड़े हैं.
जीवन के पथरीले पथ पर
शूल बहुत चुभता है.
यह मौन बहुत खलता है.
५
संग पसीने के
बह जाती हैं
कोमल आशाएँ.
फसलों के सँग बोये सपने
फूले-फले नहीं.
श्रम-पोषित खेतों को हरियर
मौसम मिले नहीं.
बाजारों की मनमानी से
गहराती चिंताएँ.
अधिनियमों के घने जाल में
उलझ गया है किसना.
सोच रहा है इस पर उसको
रोना है या हँसना.
दृश्यहीन हैं अंधकार में
सारी ही मंशाएँ.
संग पसीने के बह जाती हैं
कोमल आशाएँ.
६
यादों में खोए रहते हैं
बूढ़े पेड़ पुराने
हरे-भरे थे, खूब लदे थे
फूलों और फलों से
रहे सुरक्षित जड़ से जुड़कर
पतझर के हमलों से.
जाग रहे हैं,अब रातों में
वे दिन रख सिरहाने.
छोड़ टहनियाँ पाखी सारे
उड़ते नील गगन में.
सूनी आंखें राह देखतीं
लौटें, फिर आंगन में.
पश्चिम की आँधी में बिखरे
मौसम सभी सुहाने.
यादों में खोए रहते हैं
बूढ़े पेड़ पुराने.
परिचय
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रघुवीर शर्मा
परिचय..
नाम-- रघुवीर शर्मा
जन्म--06 जून 1956
जन्म स्थान-- धारुखेड़ी (हरसूद) जिला खंडवा मध्य प्रदेश
शिक्षा- एम. ए.(हिंदी) सेवानिवृत्त प्रधानाध्यापक
प्रकाशन- गीत संग्रह “चारों ओर कुहासा है”। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में गीत प्रकाशित। गीत संकलन में गीत संग्रहित।
प्रसारण—आकाशवाणी खण्डवा एवं इंदौर से समय-समय पर रचनाएं प्रसारित
पुरस्कार,सम्मान—" नार्मदीय रत्न” सम्मान “ साहित्य श्री”सम्मान, “अखिल भारतीय अंबिका प्रसाद दिव्य स्मृति प्रतिष्ठा पुरस्कार” (द्वितीय--2019) ,”पद्मश्री पंडित रामनारायण उपाध्याय स्मृति” पुरस्कार.2017
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