सिर्फ लिफ़ाफे कर रहे
अपने उद्भव से लेकर विकास तक और विकास से लेकर अब तक दोहा छंद अपनी अनूठी विशेषताओं के कारण काव्य- जगत में सदैव लोकप्रिय तथा सर्जकों और पाठकों में समादृत रहा है । दोहा छंद ने जीवन के विविध पक्षों और विसंगतियों को उद्घाटित करने में अपनी महती भूमिका का निर्वहन किया है । अनेक रचनाकारों ने इस विधा को समय- समय पर अपनी लेखनी से समृद्ध किया है। इसी कड़ी में एक नाम गरिमा सक्सेना का और जुड़ने जा रहा है।
यह कहते हुये अत्यंत हर्ष का अनुभव कर रहा हूँ कि युवा कवयित्री गरिमा सक्सेना ने बहुत कम समय में दोहे को साध लिया है, सध जाने के उपरान्त साधक को न तो मात्राएँ गिनने की जरूरत होती है और न ही कथ्य शिल्प के जमावट के संकट का सामना करने की आवश्यकता रहती है । सार संक्षेप में कहें तो दोहे लिखे नहीं जाते बल्कि सिद्ध कवि की कलम से दोहे स्वत: महुए के समान टपकते हैं।
प्रस्तुत दोहा-संग्रह के विभिन्न खंडों से गुजरते हुए यह निर्विवाद रूप से कहा जा सकता है कि संग्रह के सभी दोहे कथ्य और शिल्प के निकष पर पूरी तरह खरे उतरते हैं । दोहों से तादात्म्य स्थापित करते हुए हमें अपनी समृद्ध परम्परा की झलक दोहों में यत्र-तत्र बिखरी मिलती है, तो वहीं दूसरी ओर भविष्य के गर्त में छिपे अनेक गूढ़ संकेत स्पष्ट दिखायी देते हैं। संग्रह के दोहों से गुजरते हुये कहीं हमें कबीर, रहीम याद आते हैं तो कहीं बिहारी, अर्थात् कथ्य की विविधता तथा संदेशप्रदता, भाषा और शिल्प की कसावट इन दोहों में दृष्टव्य है ; प्रकारान्तर से कहें तो इस संग्रह के दोहों से कवयित्री के कविकर्म-कौशल का पता चलता है ।
कथन को सिद्ध करने के लिये दृष्टव्य है युगीन सन्दर्भ में कवियत्री का सुंदर बिम्बात्मक दोहे -
फिसली जाती हाथ से, अब सांसों की रेत।
उम्मीदों के हो गये, बंजर सारे खेत।।
यहाँ दोहे के मूल में छिपी संवेदना अत्यंत प्रशंसनीय है, संदेशप्रद है,सराहनीय है। इन दोहों में विषय की विविधता तो है ही साथ ही दृष्टि सम्पन्नता भी, जिसकी खुले मन से सराहना होनी ही चाहिये और यही गुण गरिमा सक्सेना को दूसरों से अलगाता है । वे अपने काव्य में युगीन संदर्भों एवं विसंगतियों को बड़े सलीके से उकेरती हैं। देखें उनका एक दोहा-
दिल से दिल का हो मिलन, कहाँ रही यह चाह।
सिर्फ लिफ़ाफे कर रहे , रिश्तों का निर्वाह।।
आशा है यह संग्रह रिश्तों में अपनेपन की ऊष्मा भरकर दिलों को जोड़ने में सफलता प्राप्त करेगा
शुभकामनाओं सहित
-मनोज जैन
भोपाल
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें