चर्चा में आज राहुल शिवाय
सन्दर्भ:- आँच में प्रकाशित नवगीत
मनोज जैन
|||||||||||||||
तकरीबन एक दशक पूर्व की यदि बात करें तो,नवगीत के क्षेत्र में युवतम और युवा रचनाकारों का लगभग टोटा जैसा ही रहा है,मुझे यह कहने में भी संकोच नहीं कि उन दिनों,दिया लेकर ढूंढने से भी गीत और नवगीत के युवा सृजनकार मिलते नहीं थे,भोपाल के विख्यात गीतकार डॉ रामवल्लभ आचार्य जो कि लेखक संघ के वर्तमान अध्यक्ष भी हैं,मेरे इस कथन से सहमत होंगे क्योंकि गीत की नवोदित प्रतिभाओं को ढूँढने में लेखक संघ को आज भी अच्छी खासी मशक्कत करनी पड़ती है,कारण लेखक संघ प्रतिवर्ष प्रादेशिक स्तर पर गीत की उन प्रतिभाओं को जिन्होंने अपनी प्रतिभा के बूते प्रदेश और देश में गीत का झंडा फहराया हो,ऐसी प्रतिभाओं को यह संघ अपने स्तर पर 'रामपूजन मलिक नवोदित गीतकार सम्मान' देता है आया है।इससे पहले की बात करें तो,दशक यानी आज से पूरे दस वर्ष पहले प्रेसमेन के साहित्य सम्पादक जानेमाने गीतकार मयंक श्रीवास्तव जी ने एक पूरा अंक युवाओं पर केन्द्रित किया था,कहते हैं कि देश भर के वरिष्ठ गीतकारों से युवा और युवतम गीतकारों की गहन पड़ताल करने के बावजूद भी वे उस अंक में दर्जन भर नवगीतकारों को भी एक मंच पर नहीं ला सके थे।
इसका आशय यह कतई नहीं कि उस समय या कालखंड में कोई गीत नहीं लिख रहा था गीत अवश्य लिखे जा रहे थे पर गीतकारों की दिशा और दशा में भटकाव बहुत था, क्रमिक रूप से यह भटकाव आज भी जारी है। तकरीबन निन्यानवें फीसदी लिखने वाले मंच के व्यामोह में,ता उम्र कुमार विश्वास बनने के फेर में (यह जाने बिना कि कुमार विश्वास तो एक ही हो सकता है और वह जगह तो पहले से ही भरी हुई है)पड़े रहते हैं।
नवगीत के युवा नामों के उल्लेख के क्रम में कीर्तिशेष देवेंद्र शर्मा इन्द्र जी की गाड़ी का अंतिम स्टेशन,आखिरी साँस तक,इलाहाबाद ही रहा।
यदि वह आज होते तो,यह देख कर प्रसन्नता से भर जाते कि जिस ट्रेन को उन्होंने,इलाहाबाद में लम्बे हाल्ट के लिए छोड़ा था,अब वह वहाँ से चल पड़ी है,साथ ही उसमें अनेक युवा और युवतम नवगीतकार उसमें सवार हैं,और नवगीत के सृजन संसार की यात्रा का आनन्द ले रहे हैं।
इधर नवगीत के संवर्द्धन में पिछले पाँच सालों में अनेक नाम तेजी से उभरकर आये है इन नामों के सम्बन्ध में एक बात और जोड़ता चलूँ कि यह नाम किसी सम्पादक या घराने की क्षत्र-छाया में नहीं पले बढ़े, बल्कि इन्होंने अपना मुकाम अपनी प्रतिभा के बूते बनाया है।आज ऐसे ही कुछ नामों में से एक नाम का चयन कर,रचनाकार की रचनाधर्मिता पर बात करने के लिए चुना है,वह हैं युवा नवगीत कवि राहुल शिवाय जी।
अंगिका कला सँस्कृति से जुड़े राहुल शिवाय,बाबा नागार्जुन की तरह घुमन्तू प्रवृत्ति के हैं,और बेगूसराय,बिहार से हैं,बेगूसराय,जिसका सम्बन्ध राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर जी से जुड़ता है,पतित पावनी गंगा के कछारों किनारों में पले बड़े राहुल शिवाय को,उनके अनेक फेसबुक के मित्र,उन्हें छोटे यायावर के नाम से भी पुकारते हैं।
मुझे भी राहुल शिवाय को इस नाम से पुकारना अच्छा लगता है।अल्पवय में उनके परिचय का फलक भी विराट है,लेखन की बात करें तो छोटे यायावर का आधिकारिक दखल लगभग सभी प्रचलित विधाओं में हैं।
कुछ दिनों पहले डॉ. भावना जी की वेब पत्रिका आँच के जून,2020 के अंक में विशिष्ट गीतकार कॉलम में मेरी नजर राहुल शिवाय जी,के गीतों पर पड़ी,गीतों से गुजरते हुए,मुझे गीतों में नवता और शिल्प पर उनकी पकड़ ने बेहद प्रभावित किया।
नितान्त मौलिक अभिव्यक्ति,सटीक व्यंजना,करंट टॉपिक्स को लेकर रचे नवगीतों में ताजगी देखते ही बनती है।प्रस्तुत गीतों को पढ़कर बरबस ही देवेंद्र शर्मा इन्द्र जी,योगेंद्र दत्त शर्मा जी,नचिकेता जी जैसे प्रख्यात नवगीतकार याद आते हैं।एक सजग रचनाकार,समय की आँख में आँख डालकर तभी बात कर सकता है,जब वह अपने समय पर पैनी नज़र रखता हो इस कसौटी पर राहुल की यह पंक्तियां कितनी खरी उतरती हैं।कबीर की उलट बांसियों की याद दिलाता यह गीत कितना मोहक बन पड़ा है पंक्तियाँ देखें:-
बेच रहा /जंगल अब/
शावक की खाल/
माँ अपने लालों को/
रख तू सम्हाल/
नयी नयी विज्ञप्ति/
नये नये रूप/
छाया तक बेच रही/अब तीखी धूप
फांस रहा जीवन को/
यह अंतरजाल
पहला गीत "बाजारी अजगर"में बिम्ब के रूप में प्रयुक्त 'अंतरजाल''सामंती शक्तियों का सबसे सशक्त टूल है,
जिसने समूचे विश्व को अपने चंगुल में बुरी तरह जकड़ लिया है,हमारा सुख चैन,नींद,आराम सब कुछ इसकी गिरफ्त में है।पूरा गीत अनेक कोणों से नए अर्थ खोलता है।
राहुल शिवाय की इन प्रस्तुतियों में एक गीत और हैं जिसमे इतवार शब्द आता है। इतवार को लेकर पहले भी यश मालवीय से लेकर चित्रांश बाघमारे तक अनेक रचनाकारों ने बहुत से गीत रचे हैं,पर इस गीत में समय और उसके सम्यक उपयोग को लेकर जो मार्मिक संवेदन है वह छोटे यायावर को अन्य गीतकारों से अलग करता है।उनकी एक पंक्ति है जिसमें गहरा व्यंग्य भी है और हिदायत भी
और अधिक हम/
विकसित होना /
चाह रहे हैं/
छोटे यायावर को लीक पर चलना नहीं भाता
रूटीन से हटकर अपनी नयी जमीन सृजित करने वाले नवाचारी नवगीतकार राहुल शिवाय जी को अच्छे और ध्यानाकर्षक सर्जन के लिए हार्दिक बधाई।
पढ़ते हैं राहुल शिवाय के कुछ गीत
(1) बाज़ारी अजगर
बेच रहा
जंगल अब
शावक की खाल
माँ अपने
लालों को
रख तू सम्भाल
नयी-नयी विज्ञप्ति
नये-नये रूप
छाया तक बेच रही
अब तीखी धूप
फाँस रहा
जीवन को
यह अंतरजाल
खेत, हाट निगल गये
निगल गया गाँव
बरगद भी खोज रहा
गमले में ठाँव
बाज़ारी
अजगर का
रूप है विशाल
चन्दन-सा महक रहा
काग़ज़ का फूल
कृत्रिमता झोंक रही
आँखों में धूल
जान रहे
फिर भी हैं
मौन हर सवाल।
(2) हम सब का इतवार
एक चाय के
इंतज़ार में
बैठा है अख़बार
खोज रही हैं
कलियाँ कब से
प्यारा-सा स्पर्श
कैरी के पत्ते
रचने को
व्याकुल स्वाद-विमर्श
धीमे-धीमे
बीत रहा है
हम सब का इतवार
खिड़की के
पर्दाें से तय थी
आज तुम्हारी बात
मिलने को
आतुर है छत पर
तुमसे नवल प्रभात
ताक रही हैं
पंथ तुम्हारा
आँगन, छत, दीवार
इस घर के
कोने-कोने में
पाया तुमने मित्र
पर मेरी इन
आँखों में भी
जीवित एक चरित्र
मेरी छुट्टी
का भी तुमपर
थोड़ा है अधिकार।
(3)हम मिट्टी के शेर
हमने सत्ताएँ
बदली हैं
हम कब बदले?
बख्तियार
मन का नालंदा
रोज़ जलाता है
फूट डालकर
हमपर कोई
राज चलाता है
सदियों से कुछ
बात नहीं
आई है पल्ले
वैशाली के
वैभव पर
इतराने वाले
दुनिया को
गण का शासन
समझाने वाले
एक तरह से
गिरे निरंतर
पर कब सँभले?
पाटलिपुत्र
घनानंदों को
पाल रही है
अपनी कायरता में
ख़ुद को
ढाल रही है
हम मिट्टी के शेर
सिर्फ़ मिट्टी
ही निकले।
(4)गमलों में जंगल
गमलों में
जंगल को बोना
चाह रहे हैं
महानगर ने
फिर से अपना
पाँव बढ़ाया
नया ट्रेंड,
बाज़ारों में
लकड़ी का आया
और अधिक
कुछ विकसित होना
चाह रहे हैं
खेत जी रहे
वर्षों से
सूखे की चिंता
तापमान
भी आगे रोज़
पहाड़ा गिनता
और चैन से
हम सब सोना
चाह रहे हैं
आसमान से
सुबह-सुबह की
चहक छीनकर
हम मिट्टी से
उसकी सौंधी
महक छीनकर
कुदरत के दिल में
इक कोना
चाह रहे हैं।
टिप्पणी
मनोज जैन
106 बिट्ठल नगर
गुफा मंदिर रोड
लालघाटी भोपाल
462030
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें