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मुँह में राम बगल में छुरियां लेकर चलते लोग : कान्ति शुक्ला' उर्मि जी के 6 नवगीत
सोशल मीडिया के साथ साथ दीदी कान्ति शुक्ला जी इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट दोनों जगह समान रूप से सक्रिय हैं आपका लेखन बहुआयामी है।आप ख्यात समीक्षक के साथ ही आप प्रख्यात लेखिका मैत्रेयी पुष्पा जी की सहेली भी हैं। जहाँ तक मैंने दीदी कान्ति शुक्ला जी के वारे में जाना और पढ़ा है; आपका सृजन मूलतः
सनातन छन्दों की पारम्परिक शैली के इर्द गिर्द घूमता है पर प्रस्तुत गीतों में शैली गत भिन्नता है गीतों में नवता है और यह गीत शैली के आधार पर पारम्परिक ना होकर नवगीत हैं।
प्रस्तुत हैं पहले-पहल कान्ति शुक्ला 'उर्मि' जी के वागर्थ पटल और वागर्थ ब्लॉग में नवगीत
प्रस्तुति
वागर्थ
सम्पादक मण्डल
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1---
बेमौसम ही बरस रहे हैं
बौराये बादल ।
ईश्वर जाने कौन ताल से
भरी नीर- छागल ।
भींग रहे हैं छानी-छप्पर
भींगे फसल खड़ी ।
दुखियारे द्वारे पर फिर से
विपदा असल पड़ी ।
चिंता के मारे हरिया के
सब निकले कस- बल ।
भींगी कथरी ओढ़ अनोखे
काँप रहा थर-थर ।
ऐंठीं आँते आस लगाए
मिले भात जी भर ।
ओसारे की सीली भीतें
आज हुईं बेकल ।
कुछ नारों की खाद सहेजी
कुछ बोए वादे ।
गति की इति कैसे समझेंगे
जो सीधे-सादे ।
कुदरत की काली करतूतें
कर देंगी पागल ।
उसनींदी मुनियां की आँखें
चूल्हा ताक रहीं ।
गुड़ की काली चाय बने कब
गुप चुप झाँक रहीं ।
दुस्साहस कर आखिर माँ का
थाम लिया आँचल ।
2---
कैसे बताएं व्यथा
ह्रदय चीर के ।
पहने हैं काया पर
वसन पीर के ।
कांटों के कानन में
खिलते हैं फूल ।
दाता की रहमत या
कुदरत की भूल।
नफरत की आँधी में
पलता है प्यार-
मस्तक पर चढ़ने लगी
राहों की धूल ।
मूल्यांकन लांक्षित हैं
नयन-नीर के ।
लोग नहीं सुनते
अपनी आलोचना ।
आत्ममुग्ध मन की
मोहित है व्यंजना।
कुटिल हुई युगनीति
थोथे समीकरण-
श्वासों की वल्गा को
जकड़े है वंचना।
विध्वंसक बोल
मैना और कीर के ।
भाव, छंद-अंगों से
आधे या पौने ।
शिखरों को छूने के
लालायित बौने।
छल-बल के तरकश में
शर हैं अनूठे-
रससिक्त गीतों के
घायल मृगछौने ।
ऊष्ण ताप झोंके
मलयज समीर के।
3---
पीत वर्ण सरसों के मुख पर,
गहन उदासी है ।
नीला अलसी- फूल ऐंठ कर ,
हुआ प्रवासी है ।
दलित पलाशों को वसंत ने,
दिया खूब अनुदान ।
नंदन कानन उपवन सारे ,
उच्च वर्ग हैरान ।
भेदभाव यह समझ न आया,
तिकड़म खासी है ।
आभाहीन मंजरी सूखी,
कोयल की सुन हूक ।
जीर्ण शीर्ण है पीली फतुही ,
हुरियारे हैं मूक ।
गलियों के गालों पर गड्ढ़े ,
सघन निकासी है ।
कोयल जलावतन कर डाली,
कौओं का है शोर ।
चंपा जुही लुटीं कचनारें ,
पतझड़ भारी जोर ।
वृक्ष नहीं सरसें आंगन में ,
छाँव धुँआसी है।
आज आदमी स्वंय ततैया ,
जैसा लगता पीत ।
जहरीले छत्ते आच्छादित ,
खुद से है भयभीत ।
विष की खेती नयी सदी में,
नदिया प्यासी है।
4---
चकित चपल से भागे फिरते,
गीतों के मृगछौने चंचल।
शब्दों का सम्मोहन कुंठित ।
भावों की उत्कंठा विचलित ।
अस्थिर मन में उथल पुथल सी-
आशा लगती है आशंकित।
कैसे नव दिनमान उगा लें ,
हो विश्वासों का घट मंगल ।
किसने छीन लिये उजियारे ।
बिछा दिये पथ में अँधियारे ।
श्रम के मस्तक पर बो डाले-
किसने कितने हैं अंगारे ।
खेतों के सीने पर पनपे ,
कंक्रीट विषपायी जंगल।
मृगतृष्णा सा सारा जीवन ।
जनम मरण का नाजुक बंधन ।
शून्य समाहित कस्तूरी सम-
मुग्ध विमोहित भीगे से मन ।
दुर्गम राह अजानी मंजिल ,
हर पग दाँव लगाते दंगल ।
5----
अब दीनों के नाथ बहुत हैं
गली गली चौबारों तक ।
छुटभइए से बड़े बड़े तक
तुरही से नक्कारों तक।
मुँह में राम बगल में छुरियां
लेकर चलते लोग ।
केर- बेर के संग अनोखे
या मणिकांचन योग ।
नायक तीखे सायक लेकर
पहुँच गए दरबारों तक।
अपनी मर्जी अपनी ढ़पली
अपना अपना राग ।
धारण किया भेष हंसा का
हैं पर काले काग ।
चिकने घड़े फ़जीहत से अब
लानत और दुत्कारों तक ।
मिमयाती बकरी सी जनता
दो पाटों के बीच ।
मात और शह के बाजीगर
रहे टांग हैं खींच ।
कोरे वादे आश्वासन से
बदले हैं उपकारों तक ।
6---
आशा के नभ में छाए हैं,
बादल घने -घने ।
काट रहे हैं चक्कर जैसे,
हम कोल्हू के बैल ।
फिर फिर लौट वहीं पर आते,
निश्चित अपनी गैल ।
नियति यही है माना लेकिन -
रहते तने- तने ।
भूखे पेट बहाया हमने,
खून पसीना है।
खर-पतवार, खाद, बीजों ने,
सुख को छीना है।
हल की फाल, कुदाली थामे-
माटी हाथ सने ।
किसको कितना भाग मिलेगा,
थोड़े आटे में ।
घरनी की है भूख तपस्वी,
रहती घाटे में ।
लगीं गिद्ध सीं आँखें सबकी-
खाते नहीं बने ।
हरित छंद खेतों पर लिखकर,
हुलसे बहुत फिरे।
जब अवसर हिस्से का आया,
छल से रहे घिरे।
कर्जा, कुर्की , ब्याह-बरातें-
उत्सव यही मने ।
सूखे हाड़ बैल भैंसों के,
दुर्बल गाय-बछोरू ।
छेद पोलका- साड़ी के सब,
ढांक रही है जोरू ।
बरखा आती देख डरे हैं,
छप्पर बिना छने।
परिचय
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नाम- कान्ति शुक्ला
उपनाम- 'उर्मि'
माता - स्व.श्रीमती चन्द्रावलि दुबे
पिता-स्व. श्री शीतल प्रसाद दुबे
पति - श्री महेश चन्द्र शुक्ला
जन्मतिथि- 5- 7- 1945
जन्मस्थान- मोठ ( झाँसी )
पैतृक निवास - झाँसी ( उ. प्र.)
कार्य स्थल - मध्य प्रदेश भोपाल
शिक्षा - एम.ए. ( हिन्दी साहित्य और राजनीति विज्ञान ) एल.एल.बी., पत्रकारिता डिप्लोमा, डी.सी.ए., आयुर्वेद कोर्स, संगीत डिप्लोमा, आदि विविध कोर्स ।
लेखन विधा - कविता, ग़ज़ल, गीत, मुक्तक, कहानी, नाटक, लेख , समालोचना।
प्रकाशन एवं प्रसारण -
'बेवफा वक्त में एहसास' ( ग़ज़ल संग्रह ) , 'मुनमुन चिड़िया', 'कान्हा वन' , 'सपन मासूम नैनों के ' ( बाल कविता संग्रह ) , ' 'कल्पना के उग आए पंख' ( हिन्दी ग़ज़ल संग्रह ) अनुरक्त और विरक्त कहानी संग्रह,
अनेक ( 20 से अधिक ) साझा संकलनों में रचनाओं का प्रकाशन, देश केअनेक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन ।. 5 पुस्तकें प्रकाशनाधीन ।
संपादन - 'गीतिका है मनोरम सभी के लिए' । ' मुक्तक मंथन'
अनेक प्रख्यात विद्वानों की पुस्तकों पर समीक्षात्मक लेखन ।
सन 1972 से निरंतर आकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रों से - काव्य पाठ , नाटक लेखन , कहानी, रेडियो रूपांतरण ( कामायनी महाकाव्य का नाट्य रूपांतरण जो प्रसाद जी के जन्म शताब्दी वर्ष पर भारत के समस्त केन्द्रों से एक साथ रिले हुआ ), समसामयिक विषयों पर वार्ताएं, चिंतन आदि का प्रसारण, दूरदर्शन से काव्य पाठ ।
सम्मान - रंजन कलश शिव सम्मान, युवा उत्कर्ष साहित्य भूषण सम्मान, गोपालराम गहमरी सारस्वत सम्मान, गीतिका श्री सम्मान, मुक्तक रत्न सम्मान, नव रतन सम्मान, लोक भूषण सम्मान, सामयिक परिवेश पटना प्रेम खन्ना सम्मान, काव्य सुधा सम्मान, मुक्तक लोक सारस्वत सम्मान ,गीतिका श्री सम्मान, गीतिका शिखर सम्मान, मुक्तक लोक मुक्तक गौरव , मुक्तक रत्न, मुक्तक भूषण सम्मान, युवा उत्कर्ष साहित्य भूषण सम्मान, उत्तराखंड खटीमा का दोहा शिरोमणि सम्मान, गोपालराम गहमरी शिखर सम्मान, दृष्टि साहित्य सम्मान , युवा उत्कर्ष हिन्दी रत्न सम्मान , सुभद्राकुमारी चौहान सम्मान । सत्य की मशाल पत्रिका का साहित्य शिरोमणि सम्मान। म. प्र. लेखिका संघ का साहित्य सेवी सम्मान । त्रिवेणी राष्ट्र भाषा गौरव सम्मान । बाल कल्याण एवं बाल साहित्य शोध केन्द्र का श्रीमती चंद्रकांता लूनावत बाल साहित्यकार सम्मान साहित्य मंच सीहोर का मसिजीवी सम्मान । युवा उत्कर्ष हिन्दी साहित्य सेवी सम्मान।
सम्प्रति ( विशेष ) - सचिव 'करवट कला परिषद' भोपाल , प्रधान संपादिका 'साहित्य सरोज' त्रैमासिक साहित्यक पत्रिका, एडमिन मुक्तक लोक साहित्यांगन, एडमिन सूचना और साहित्य समूह, बेबसाइट प्रभारी लेखिका संघ म. प्र. ।
सदस्य - लेखिका संघ मध्यप्रदेश, कला मंदिर आदि साहित्यिक संस्थाएं ।
पता -
एम.आई. जी .-35
डी सेक्टर
अयोध्या नगर भोपाल
भोपाल ( म. प्र . )
पिन -462041
मोबाइल - 09993047726
7009558717
आज पटल पर नवगीत धारा में सक्रिय बहिन कान्तिशुक्ला जी के नवगीतों की रसमय रसधार प्रवाहमान है जिसमें लोकधर्मी सौंदर्य बोध है, ग्राम्य जीवन की छटा बिखेरते छानी छप्पर हैं तो दुखियारे द्वारे की विपदा और चिंता के मारे हरिया के निकलते कसबल की अपनी विवशता एवं छटपटाहट और असहायता की कहानी कह रहे हैं। बहिन उर्मि जी के गीतों में परिलक्षित ग्रामीण परिवेश का चित्रण कथ्यानुकूल भाषा-बिम्ब के कारण मनोनुकूल बन गया है गीत का अंतिम बंध-"उसनींदी मुनिया की आंखें चूल्हा ताक रहीं"और फिर "दुस्साहस कर आखिर मां का दाम लिया आंचल" कहकर घनीभूत पीर का जो अद्भुत बिम्ब खींचा है अन्तस को झकझोरने वाला है। मानवीय संवेदनाओं को अभिव्यक्ति देने में उर्मि जी सक्षम तो हैं ही साथ ही प्रतीकों के माध्यम से संप्रेषणीयता बनाए रखने में सफल भी रहीं हैं। "पहने हैं काया पर वसन पीर के" या "मस्तक पर चढ़ने लगी राहों की धूल" अथवा "विध्वंसक बोल मैना और कीर के" सभी प्रतीक अपनी बात अभिव्यंजित करने में सफल रहे हैं। आधे अधूरे ज्ञान के साथ "शिखरों को छूने के लालायित बौने" कहकर उन नवोदित गीत सृजनधर्मी को चेतावनी दी है कि बिना साधना के साध्य तक पहुंचना संभव नहीं है और जब ऐसी स्थिति में अतिक्रमण कर जोड़ तोड़ कर कुछ किया भी तो परिणाम में रससिक्त गीतों के मृगछौने घायल हो जायेंगे। कवि का सृजनधर्म तो उसकी साधना में निहित है। प्रकतिचित्रण के बहाने से वर्तमान के दलित पिछड़े, अगड़े उच्च वर्ग में बढ़ रहे वैमनस्य को भी रेखांकित करडाला है। राजनैतिक उठापटक को भी वर्ण्यविषय बनाकर गीत की भाषा में समझाने का प्रयास स्तुत्य है। गीतकारा ने अपने शब्दों के सम्मोहन में छंद के रस से सराबोर कर जो गीत का परिपाक परोसा है उसका स्वाद अनूठा है, अद्भुत है और अवर्णनीय है। पंक्तियां दृष्टव्य है-"शून्य समाहित कस्तूरी सम मुग्ध विमोहित भीगे से मन। " अंतिम गीत की आत्मा तो सर्व व्यापक होकर सामाजिक चेतना को जागृत करने में समर्थ है। सामाजिक जीवन में मुंह में राम बगल में छुरी के मुहावरे का प्रयोग अनूठा बन पड़ा है। गीत में समयबोध के साथ मुहावरे का प्रयोग कैसे होता है ये गीत इसके प्रमाणिक उदाहरण हैं। वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य को सटीकता से विश्लेषित कर सरस कहन में कहदेने का अप्रतिम वैशिष्ट्य उर्मि जी का साहित्य को प्रदेय है , बहिन कांति शुक्ला जी की लेखनी अपने सृजन कौशल से मंतव्य तक पहुंचने में कामयाब रही है। साधुवाद। भाई मनोज मधुर जी को हार्दिक धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंडॉ मुकेश अनुरागी शिवपुरी