मंच को शत- शत नमन । हर्ष और संतोष का विषय है कि परिचर्चा में सभी मनीषियों के द्वारा अत्यंत महत्वपूर्ण तथ्य प्रस्तुत किए जा रहे हैं परंतु मेरे विचार में साहित्य जीवन के सभी पहेलुओं का विवेचन करता है। साहित्य में एकांगी दृष्टिकोण को स्थान नहीं मिलता क्योंकि तब वह अपने में अधूरा ही रह जाता है । अतः इसमें मानव जीवन की व्यापकता की संस्थापना रहती है, इसके उपझेण से श्रेष्ठ साहित्य की सृष्टि असंभव है और चूँकि साहित्य में जीवन के समस्त पहेलुओं की विवृत्ति होती है और यही सम्बंध सूत्र परिस्थितियों को भी जोड़े रखता है इसलिए परिस्थितियों का प्रभाव भी साहित्य पर पड़े बिना नहीं रह सकता। एक साहित्यकार को जीवन दर्शन की महनीय चेतनाओं को सुंदर कलात्मक और आदर्श ढंग से संवाहित करने के लिए साहित्य की अनेकानेक विधाओं- कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक, निबंध आदि में आत्मसात होना पड़ता है । सत्य, शिव और सुंदर को व्यवस्थित सुसंबद्ध रूप से अभिव्यक्त करना पड़ता है । साहित्य मानव के चेतनामूलक जीवन का अंग है।
अब प्रश्न उठ सकता है कि शाश्वत होते हुए भी इसके स्वरूप में परिवर्तन क्यों आ जाता है। अधिकांशतः हर रचनाकार अपने लिखे को श्रेष्ठ समझकर आत्ममुग्ध होने की स्थिति में क्यों आ जाता है । इसका कारण यह है कि हमारे सामाजिक, नैतिक जीवन में परिवर्तन होते रहते हैं। युग के साथ हमारी आवश्यकताएं बदलती रहतीं हैं और इसके साथ साहित्य में भी विकार आ जाना सहज संभाव्य है। साहित्य जनमानस की चित्तवृत्ति का संचित प्रतिबिम्ब होता है तो जनमानस भी सामाजिक , राजनीतिक, साम्प्रदायिक तथा धार्मिक परिस्थिति के अनुसार बनता है। किसी विशेष समय में लोगों में रुचि विशेष का संचार और पोषण किधर से और किस प्रकार हुआ, यह विचारणीय है। जैसा कि अभी कोरोना काल में अनगिनत रचनाएं सृजित की गईं पर यह श्रेष्ठ साहित्य की श्रेणी में नहीं आ सकता क्योंकि यह एक युगानुकूल सामयिकता की लहर है , साहित्य के शाश्वत सिद्धांतों का समन्वय नहीं है। मेरी समझ में साहित्य की दो प्रमुख कोटियां मानी जा सकतीं हैं - एक चिरंतन साहित्य जिसमें जीवन के चेतनामूलक सिद्धांतों का विवरण हो और जो हर युग के लिए एक समान उपयोगी हो ( इस श्रेणी में हम भक्तिकालीन ग्रंथों को ले सकते हैं ) - दूसरा सामयिक साहित्य जो युग विशेष के लिए हो ।
अब बात है श्रेष्ठ साहित्य की रचना की तो नैसर्गिक क्षमता होना अन्यतम विशिष्टता है जो ईश्वर प्रदत्त है परंतु बिना ज्ञान और प्रयास के केवल इसी के बल पर लेखन में सफलता नहीं प्राप्त होती क्योंकि दो अनन्य शक्तियों ने ही मनुष्य को मनुष्य बनाया है । ये दोनों शक्तियां सृष्टिकारिणी शक्तियां हैं जिन्हें हम ज्ञान और कल्पना कहते हैं। ज्ञान द्वारा हमें प्रकृति और जीवन के तुलनामूलक अध्ययन तथा उसकी व्याख्या की क्षमता प्राप्त होती है और कल्पना हमारी वह शक्ति है जो वस्तु, जगत और प्रकृति के समन्वित विकास में अपनी भावनाओं को आरोपित कराती है। ज्ञान तत्वदर्शी होता है और कल्पना भावावेशिनी । साहित्य का मूल भाव है इसलिए कल्पना उसका अंग है। अतः साहित्य रचना के लिए भाषा को भी लाक्षणिक होना पड़ता है। श्रेष्ठ साहित्य की सृष्टि के लिए साहित्य संस्कार होना परमावश्यक है। प्रत्येक रचनाकार की शैली अलग होती है पर कोई वही बात ऐसी चित्ताकर्षक शैली में कह जाता है कि पाठक अथवा श्रोता भी उसी भावभूमि पर विचरण करने लगते हैं और पाठक को वह रचना अपनी सी लगने लगती है। श्रेष्ठ साहित्य वही है जो जगत के सुंदरतम स्वरूप में सत्य और कल्याण की कामना करे, सामयिक अनुभव खंडों को संयोजित कर नवीन भाव- धरातलों की अभिव्यक्ति करे, आभासों और अंतर्विरोधों का मृगतृष्णात्मक चितेरा साहित्यकार अनुत्तरित प्रश्नों का उत्तर खोजता हुआ असंभवता की परिधियों में गुँथे भ्रमों के मध्य भी जीवंतता की आस्था लिए हो और अंतश्चेतना के प्रखर आक्रोश की अभिव्यंजना करता हो। युगबोध के प्रति निरंतर उन्मुख हो। शिल्पगत सौन्दर्य एक अतिरिक्त वैशिष्ट्य है जो ज्ञानार्जन द्वारा ही संभव है।
वर्तमान के प्रति उत्पन्न कुंठा और हताशा, जीवन मूल्यों की अवनति देख आकुलता की सृष्टि तो करे पर शांति और समरसता के वातावरण के सृजन की बात करे। जनमानस की पीड़ा को गहराई से अनुभव कर उसे शब्द दे और उन शब्दों की गूंज सकल संसृति में प्रतिध्वनित हो, यही रचना की श्रेष्ठता और सफलता है ।
आदरणीया कान्ति शुक्ला जी का लिखा पढ़ना सदैव कुछ सीखने जानने गुनने और नवीन बुनने का अवसर देता है वे निःसन्देह एक विदुषी रचनाकार हैं उनका सानिध्य सदैव हमें समृद्ध करता है उन्हें आदर सहित सादर प्रणाम
जवाब देंहटाएंसचमुच आदणीय। आप की लेखनी अद्भुत है सादर प्रणाम
जवाब देंहटाएंदैनिक जागरण की तरफ से अनेक बधाइयाँ ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार
जवाब देंहटाएंकान्ता दीदी के गीत बहुत सुंदर, आमजन की व्यथा पिरोते हुए, ग्रामीण परिवेश की देशज मिट्टी की गंघ लिए होते हैं।
जवाब देंहटाएंशिल्पगत श्रेष्ठता उनका अन्य गुण है।
उनकी दीर्घकालीन गीत-साधना प्रणम्य है।
बधाई मनोज भाई आपको इस सुन्दर प्रस्तुति पर। निश्चित ही वागर्थ में आप गुणवत्तापूर्ण सामग्री का चयन करते हैं। यह साहित्य की बहुत बड़ी सेवा है।