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मंगलवार, 26 अगस्त 2025

ब्लर्ब / फ्लैप मनोज जैन

प्रस्तुति
ब्लॉग वागर्थ 


मनोज जैन "मधुर" द्वारा अब तक लिखे सभी अभिमतों की ' एक विनम्र अभिनव' प्रस्तुति !

"अभिमत"
_________

हमनें संख्याबल में सैकड़ों भूमिकाएं ब्लर्ब या फ्लैप नहीं लिखे पर जिन पर लिखे वह निसंदेह लाखों में एक हैं।
प्रस्तुत पोस्ट का हर चेहरा अपने आप में चर्चित है इस तथ्य से आप सब भली भाँति परिचित हैं।
मनोज जैन

1

बोधि प्रकाशन का एक पोस्टर 



 चर्चित नवगीत संग्रह


कवयित्री
अनामिका सिंह (शिकोहाबाद) उत्तर प्रदेश


कृति  "बहुरे लोक के दिन"

न बहुरे लोक के दिन कृति में ब्लर्ब 


                         2


दिखते नहीं निशान दोहा संग्रह


कवयित्री
गरिमा सक्सेना (बैंगलोर) कर्नाटका

सिर्फ लिफ़ाफे कर रहे
_________________

             अपने उद्भव से लेकर विकास तक और विकास से लेकर अब तक दोहा छंद अपनी अनूठी विशेषताओं के कारण काव्य- जगत में सदैव लोकप्रिय तथा सर्जकों और पाठकों में समादृत रहा है । दोहा छंद ने जीवन के विविध पक्षों और विसंगतियों को उद्घाटित करने में अपनी महती भूमिका का निर्वहन किया है ।      
            अनेक रचनाकारों ने इस विधा को समय- समय पर अपनी लेखनी से समृद्ध किया है। इसी कड़ी में एक नाम गरिमा सक्सेना का और जुड़ने जा रहा है।
यह कहते हुये अत्यंत हर्ष का अनुभव कर रहा हूँ कि युवा कवयित्री गरिमा सक्सेना ने बहुत कम समय में दोहे को साध लिया है, सध जाने के उपरान्त साधक को न तो मात्राएँ गिनने की जरूरत होती है और न ही कथ्य शिल्प के जमावट के संकट का सामना करने की आवश्यकता रहती है । सार संक्षेप में कहें तो दोहे लिखे नहीं जाते बल्कि सिद्ध कवि की कलम‌ से दोहे स्वत: महुए के समान टपकते हैं।
           प्रस्तुत दोहा-संग्रह के विभिन्न खंडों से गुजरते हुए यह निर्विवाद रूप से कहा जा सकता है कि संग्रह के सभी दोहे कथ्य और शिल्प के निकष पर पूरी तरह खरे उतरते हैं । दोहों से तादात्म्य स्थापित करते हुए हमें अपनी समृद्ध परम्परा की झलक दोहों में यत्र-तत्र बिखरी मिलती है, तो वहीं दूसरी ओर भविष्य के गर्त में छिपे अनेक गूढ़ संकेत स्पष्ट दिखायी देते हैं।                           संग्रह के दोहों से गुजरते हुये कहीं हमें कबीर, रहीम याद आते हैं तो कहीं बिहारी, अर्थात् कथ्य की विविधता तथा संदेशप्रदता, भाषा और शिल्प की कसावट इन दोहों में दृष्टव्य है ; प्रकारान्तर से कहें तो इस संग्रह के दोहों से कवयित्री के कविकर्म-कौशल  का पता चलता है ।
कथन को सिद्ध करने के लिये दृष्टव्य है युगीन सन्दर्भ में कवियत्री का सुंदर बिम्बात्मक दोहे -
"फिसली जाती हाथ से, अब सांसों की रेत।
उम्मीदों के हो गये, बंजर सारे खेत।।"

                     यहाँ दोहे के मूल में छिपी संवेदना अत्यंत प्रशंसनीय है, संदेशप्रद है,सराहनीय है। इन दोहों में विषय की विविधता तो है ही साथ ही दृष्टि सम्पन्नता भी, जिसकी खुले मन से सराहना होनी ही चाहिये और यही गुण गरिमा सक्सेना को दूसरों से अलगाता है। वे अपने काव्य में युगीन संदर्भों एवं विसंगतियों को बड़े सलीके से उकेरती हैं। देखें उनका एक दोहा-

दिल से दिल का हो मिलन, 
कहाँ रही यह चाह।
सिर्फ लिफ़ाफे कर रहे , 
रिश्तों का निर्वाह।।

आशा है यह संग्रह रिश्तों में अपनेपन की ऊष्मा भरकर दिलों को जोड़ने में सफलता प्राप्त करेगा 
शुभकामनाओं सहित

-मनोज जैन
भोपाल

          

फ्लैप 

3


कृति "रिश्ते मन से मन के 

                 संतोष तिवारी
           (खण्डवा) मध्य प्रदेश



पुस्तक पर अभिमत 

4


बुन्देली कृति


फ्लैप भाग 1


फ्लैप भाग 2

ऐश्वर्य का सुख भोगते कवि 

        राज गोस्वामी (दतिया) मध्यप्रदेश


उगते सूर्य की एक झलकी 


5


 नवगीत कृति
बोलेंगे अब आखर 


राजस्थानी पगड़ी में कवि 

डॉ. मुकेश अनुरागी ( शिवपुरी ) म.प्र.

अभिमत
________

आधुनिक सन्दर्भ में आँचलिक स्पर्श के नवगीत
_______________________________

     युवा नवगीतकार मुकेश अनुरागी जी की रचना धर्मिता से मेरा अपना आकर्षण अनेक कारणों से है उनमें से जिस एक कारण को सर्वोपरि रखना चाहूँगा वह है उनका सनातनी छन्दों से अनुराग !  मुकेश अनुरागी जी ने अपनी काव्य यात्रा का विधिवत आरम्भ पारम्परिक छन्दों के अभ्यास से किया और अब वह पारम्परिक छंदों को साधते- साधते नवगीत की मुख्यधारा तक आ पहुँचे हैं। अनुरागी जी अपने नवगीतों में लोक जीवन से जुड़े टटके स्वस्फूर्त  बिंब रचने में सिद्धहस्त हैं। उनके नवगीतों की एक और अन्यतम विशेषता जो मेरे देखने में आई वह यह है कि अनुरागी जी आधुनिक संदर्भ में आंचलिक शब्दावली और लोक- लय का बखूबी प्रयोग करने में तत्पर दिखते हैं ।
              निःसन्देह अनुरागी जी अपने रचनात्मक स्तर पर पूरी तरह सजग और नवता के आग्रही हैं यही कारण है कि उनके नवगीत संग्रह  ' बोलेंगे अब आखर" के नवगीतों में रचनात्मक स्तर की बुनावट और बनावट की गठन शैली में अन्तरलय और बहिर्लय का सङ्गुम्फन विषय वस्तु के अनुरूप देखने का सुअवसर मिला।
           अपने समय की शुष्क संवेदना को कवि ने बहुत कम शब्दों में बड़ी सजगता से अन्तरलय दी है ;-द्रष्टव्य है उनके एक नवगीत की चंद पंक्तियाँ
है वाचाल समय / 
ज़िंदगी / 
ठहरी सी/
गगन छू रहीं ऊँची मंजिल/
बदले पर हालात नहीं।
चार रूम में चार जने हैं/
आपस में पर बात नहीं। 
काजू संग गिलास/
भर रहे/
साँसें गहरी सी/

मुकेश अनुरागी जी का कवि मन आन्तरिक संवेदनों की पड़ताल गहरे उतरकर करता है। इन्हीं क्षणों में वह जो कुछ भी महसूस करते हैं या यों कहें कि उनकी अन्तर्दष्टि उन सारे विषयों को सम्यक भाव से अपने काव्य का विषय बनाती चली जाती है।
रोजमर्रा की तमाम घटनाओं को उनका कविमन धारदार कथ्य में बाँधकर नूतन अभिव्यक्ति प्रदान करता है।
द्रष्टव्य है आभासी दुनिया पर रचे एक नवगीत के एक अन्तरे का अंश 
    "दूध मलाई वही खा रहे/
जिनने पांव पखारे/
खोई है पहचान स्वयं की/
पकड़े कई सहारे/
आभासी दुनिया में अपनी/
नहीं कभी बनती/
किसमें हिम्मत बांधेगा अब/
कौन गले घंटी/"
              उक्त अंश कवि की केवल रचना प्रक्रिया के आस्वाद का ही पता नहीं देता बल्कि तरल सरल संवेदनशीलता की खुलकर गवाही भी देता है। संग्रह के गीतों से गुजरते हुए मेरा ध्यान उनके एक नवगीत पर जाकर बार-बार अटका जिस गीत में उन्होंने "क्षमा" शब्द का बड़ा सार्थक प्रयोग किया है। अनुरागी जी का कवि मित्रों के गुण और दोष समान रूप से स्वीकार करता है वहीं दूसरी ओर गुणों से अनुराग तो करता वहीं, अवगुणों को बार बार इग्नोर ! 
प्रस्तुत है उनके एक गीत का अंश
"चाहा है यदि मन से तुमने   क्षमा दान सौ बार करो। 
माना कोई भी जीवन में सर्वगुणी संपन्न नहीं है। 
उर का सागर नेहसिक्त है
अंतर प्रेम विपन्न नहीं है
 कुछ ऐसा भी कर लो मित्रों
 अंतस प्रेमागार करो। 
 माना कोई भी जीवन में
 सर्वगुणी संपन्न नहीं है।         
 उर का सागर नेहसिक्त है
 अंतर प्रेम विपन्न नहीं है।
अपनाया है मन से तुमने
तो मन से व्यवहार करो।"

मैत्री के सन्दर्भ में
अनुरागी जी की सन्दर्भित 
पंक्तियाँ सम्बन्धों के अटूट सेतु का निर्माण करती हैं।

 विषय वैविध्य के चलते संग्रह के नवगीत भावुक मन पर अपना स्थाई प्रभाव छोड़ते हैं। यद्यपि उनका कवि सजग है लय को लेकर भी !  फिर भी उनका अंतर्मन जल्द ही लय पर पूरी तरह विजय  भी हासिल करेगा ऐसा विश्वास है । 
ख्यात नवगीतकार कीर्तिशेष विद्यानन्दन राजीव जी के परम शिष्य अग्रज अनुरागी जी के नवगीत विधा पर प्रयास और निरन्तरता उनके चिंतन के नये गवाक्ष खोलेंगे।मुकेश जी को उनके नवीनतम नवगीत संग्रह  'बोलेंगे अब आखर ' के प्रकाशन की शुभकामनाएं । आशा है साहित्य जगत में इस नवीनतम कृति का भरपूर स्वागत होगा।

             मनोज जैन
             106,विट्ठल नगर 
             गुफा मन्दिर रोड भोपाल
             462030


      हमारा एक और ब्लॉग हरसिंगार 

5


कृति के विमोचन के अवसर का एक चित्र 

    स्व. विनोद नयन (सागर) मध्यप्रदेश

अभिमत
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अग्रज विनोद कुमार नयन जी नैसर्गिक प्रतिभा संपन्न सफल साहित्यकार, यथार्थवादी कवि एवं समाज सेवक हैं। नयन जी से हुयी पहली भेंट के बाद सोचता रहा की श्री विनोद जी ने अपना उपनाम नयन ही क्यों चुना ? 
एक दिन अनायास उत्तर भी मन मस्तिष्क में कौंधा ! नयन यानी "आँख" मतलब पारदर्शिता, हमारी आँखें  जैसा है वैसा ही देखती है और यह बात अक्षरशः नयन जी के व्यक्तित्व पर भी लागू होती है।
               अर्थात नयन जी के व्यक्तित्व में पारदर्शिता कूट-कूट कर भरी है। वह जैसे  दिखते हैं ,वैसे ही हैं। वे जो कहते हैं, वही करते हैं, जो देखते हैं ,वही लिखते हैं नयन जी मुखोटे नहीं लगाते, बल्कि समाज के चेहरे पर लगे मुखोटों को हटाने का कार्य करते हैं। नयन जी के कवि ने साहित्य के माध्यम से मुखोटे हटाने का काम बखूबी किया है। संभवतः "कछू तो दुनिया खौं दे जाओ" श्री नयन जी की बुंदेली आध्यात्मिक भजनों पर आधारित दूसरी कृति है। इसके पूर्व उनकी "बेटियां हमारी शान" नाम से पुस्तक प्रकाशित हो चुकी है। जिसकी पाठकों खूब प्रशंसा की है।
प्रस्तुत संग्रह में कुल जमा 164 भजन हैं, जिसे कवि नयन जी ने संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज को समर्पित किया है,भजनों में श्री ने आध्यात्मिक दार्शनिक  सामाजिक  वर्गों में विभाजित कर जीवन के भोगे हुए यथार्थ का वर्णन किया है। भजनों की अनूठी शैली व्यक्ति परिवार समाज धर्म आदि के विभिन्न पहलुओं को छू ती हुई सीधे मन जगह बनाती है। भजन के पदों में अभिव्यक्त सत्य जीवन से गुजरने वाली घटनाओं का चित्रण करता है।

इसे स्वीकार करें या ना करें
श्री नयन जी की इसी कहन का कमाल उन्हें कबीर के समकक्ष भले ही ना खड़ा होने दें परंतु पर वह कबीर की परंपरा के अंतिम छोर पर अपने होने का एहसास अवश्य दिलाते हैं।
समय पर दृष्टिपात करें तो जैन साहित्य में भजनों की अपनी एक सुदीर्घ परंपरा रही है ।
       विविध विषयों पर जैन विद्वानों ने भजनों के माध्यम से आध्यात्मिक गंगा में सरोवर कराया है। भजन सर्जक की सर्जना की प्रक्रिया में चारों ओर आनंद ही आनंद होता है। "श्रोता" "पाठक" "प्रकाशक" और कवि के इस अनूठे चतुष्कोण के केंद्र में आनंद से परमानंद तक जोड़ने के इस प्रयास को मैं श्री विनोद नयन जी को उनकी इस अनूठी कृति "कछु तो दुनिया खौं दे जाओ" के लिए प्रणाम सहित ढेर सारी बधाइयां देता हूं।         आशा है, श्री नयन जी के इस प्रयास को, पंडित प्रवर दौलतराम धानत भागचंद मुन्ना लाल जी जैसे जैन कवि परंपरा को समृद्ध करने वाले इन आध्यात्मिक रसिको  की तरह याद किया जाता रहेगा इन्हीं शुभकामनाओं सहित 

मनोज जैन 
मधुर भोपाल

संतुलन की पराकाष्टा का एक सजीव चित्र

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बाल किलकारी

मृदुभाषी सन्त ह्रदय कवि 

संत कुमार मालवीय (भोपाल ) मध्यप्रदेश

अभिमत
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अभिमत की एक छवि


      खिले फूल का अनुपम सौंदर्य

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नवगीत कृति


आत्म विश्वास की मोहक मुद्रा में युवा कवि

      राहुल शिवाय, बेगूसराय (बिहार)

अभिमत का एक अंश


पुस्तक के बैक का एक पृष्ठ का अंश


प्रस्तुति
ब्लॉग वागर्थ


परिचय
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मनोज जैन

जन्म २५ दिसंबर १९७५ को शिवपुरी मध्य प्रदेश में।
शिक्षा- अँग्रेजी साहित्य में स्नातकोत्तर
प्रकाशित कृतियाँ-
(1) 'एक बूँद हम' 2011 नवगीत संग्रह
(2) 'धूप भरकर मुठ्ठियों में' 2021 नवगीत संग्रह
पत्र-पत्रिकाओं आकाशवाणी व दूरदर्शन पर रचनाएँ प्रकाशित प्रसारित। निर्मल शुक्ल द्वारा संपादित "नवगीत नई दस्तकें" तथा वीरेन्द्र आस्तिक द्वारा संपादित "धार पर हम (दो)" में सहित लगभग सभी शोध संकलनों नवगीत संकलित
पुरस्कार सम्मान-
मध्यप्रदेश के महामहिम राज्यपाल द्वारा सार्वजनिक नागरिक सम्मान 2009 म.प्र.लेखक संघ का रामपूजन मिलक नवोदित गीतकार सम्मान 'प्रथम' 2010 अ.भा.भाषा साहित्य सम्मेलन का सहित्यप्रेमी सम्मान-2010, साहित्य सागर का राष्ट्रीय नटवर गीतकार सम्मान- 2011
राष्ट्रधर्म पत्रिका लखनऊ का राष्ट्रधर्म गौरव सम्मान 2013
अभिनव कला परिषद का अभिनव शब्द शिल्पी सम्मान -2017
संप्रति-
सीगल लैब इंडिया प्रा. लि. में एरिया सेल्स मैनेजर
सोशल मीडिया पर चर्चित
समूह वागर्थ के प्रमुख संचालक
@ मनोज जैन "मधुर"
106 विट्ठलनगर गुफामन्दिर रोड 
भोपाल
462030

मोबाइल
93013780


रविवार, 24 अगस्त 2025

समीक्षा मुकेश तिरपुड़े

फूलों जैसे सुकोमल , प्रेरक और मर्मस्पर्शी बाल गीतों का खूबसूरत गुलदस्ता - बच्चे होते फूल से !

जब भी कोई बाल गीत पढ़ता हूं बरबस ही मुझे बचपन के दिन याद आने लगते हैं कि जब एकाधिक चिकने चमचमाते पन्नों और खूबसूरत तस्वीरों वाली महत्वपूर्ण बाल पत्रिकाएं ही बच्चों के मनोरंजन का सबसे बड़ा स्त्रोत हुआ करती थीं। नंदन, चंदा मामा, चकमक, देवपुत्र, बालहंस, बाल भारती, लोटपोट आदि कुछ ऐसी महत्वपूर्ण बाल पत्रिकाएं थीं जिन्हें पढ़कर मैंने और मेरी पीढ़ी के बच्चों ने खूबसूरत, मर्मस्पर्शी बाल गीतों व प्रेरक कहानियों का खूब आनंद उठाया ।
समकालीन हिंदी नवगीत के सुप्रसिद्ध गीतकार सहज सरल व्यक्तित्व के धनी, मृदुभाषी, गीत कंठ श्री मनोज जैन मधुर जी की सन 2025 में विचार प्रकाशन ग्वालियर मध्यप्रदेश से प्रकाशित चर्चित बाल गीत संग्रह बच्चे होते फूल से इस समय मेरे पास उपलब्ध है, जिसमें एक से बढ़कर एक रोचक, प्रेरक बाल गीत प्रकाशित हैं।

कुल 104 पेज के इस महत्वपूर्ण शानदार बाल गीत संग्रह में कुल 43 बाल गीत प्रकाशित हैं जो अपनी विविधता से बरबस ध्यानाकर्षित कर रहे हैं। इन महत्वपूर्ण बहुत रोचक प्रेरणादायक बाल गीतों में सहज सरल शब्दों का बढ़िया प्रभावी प्रयोग करते हुए गीतकार ने बहुत उल्लेखनीय बाल गीतों का सृजन किया है। गीतकार श्री मनोज जैन मधुर जी का यह महत्वपूर्ण कार्य निसंदेह सराहनीय और प्रशंसनीय है।

बाल गीतों की भाषा सहज, सरल और रोचक होनी चाहिए जिसे बच्चे सरलता से आत्मसात करते हुए सहज भाव से आनंद को प्राप्त कर सकें।  इस महत्वपूर्ण बाल गीत संग्रह में प्रकाशित बाल गीतों में राष्ट्र प्रेम, परिवार, संस्कार, संस्कृति, नैतिक शिक्षा जैसे विषयों को बहुत अच्छी तरह समाहित किया गया है ।

जैसे आज के बच्चों के लिए मोबाइल एक समस्या बनता जा रहा है। इससे बच्चे कैसे व कितनी दूरी बनाएं इसको रेखांकित करती हुई एक बहुत महत्वपूर्ण बहुत प्रेरक कविता है -

बात हमारी पूरी हो / मोबाइल से दूरी हो / साध्य नहीं यह साधन है/ ना ही यह नारायण है / क्या है इसमें ऐसा जी / जो इतना मन भावन है  !

देखें इसको जी भरकर/जब जब बहुत जरुरी हो !
यह भी एक महामारी/मजबूरी या लाचारी / चस्का बुरा इसे छोड़ो/समझा समझा मां हारी !
सजा दिलाए इसको जो / ऐसी कोई जूरी हो !

बच्चों की कल्पना शक्ति को बढ़ाने वाले विलक्षण अद्भुत गीत बच्चे बहुत पसंद करते हैं क्योंकि ऐसे रोचक बाल गीतों को पढ़ते हुए उनकी कल्पना शक्ति का विस्तार होता है । इसीलिए बच्चों की पुस्तक में अधिकाधिक खूबसूरत चटक रंगों में चित्रों को प्रकाशित किया जाता है ताकि बच्चे गीत में प्रयुक्त शब्दों को चित्रों के माध्यम से मूर्त रूप में देख सकें। महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने कहा था कि यदि आप बच्चों को अधिक संवेदनशील और बुद्धिमान बनाना चाहते हैं तो उन्हें प्रेरणादाई बाल गीत, महत्वपूर्ण मर्मस्पर्शी कहानियां व परी कहानियां पढ़ाइए !

इस महत्वपूर्ण और शानदार बाल गीत संग्रह में एक बहुत रोचक बाल गीत है जिसका शीर्षक है - जादूगर ! यह गीत बच्चों को एक नई रोचक खूबसूरत अद्भुत और शानदार दुनिया की सैर कराने के लिए पर्याप्त है जिसमें चार नेवले , आठ कबूतर, बारह मुर्गे, सोलह चूहे, बीस पोपट , चौबीस ऊंट, अट्ठाईस बकरे, बत्तीस गिलहरी , छत्तीस घोड़े, और चालीस खच्चर हैं !
स्वाभाविक है कि इतने सारे छोटे बड़े तरह तरह के पशु पक्षियों की दुनिया की सैर बच्चों के लिए एक अद्भुत अकल्पनीय दुनिया के दरवाजे खोलता है। इस तरह की कविता बच्चों की कल्पना शक्ति को तर्क पूर्ण ढंग से बढ़ाती है। 

 इस रोचक बाल गीत में एक जादूगर बहुत सारे पशु पक्षियों को साथ लेकर आया है और बच्चों को जादू दिखा रहा है । गीतकार श्री मनोज जैन जी ने बहुत ही रोचक शैली में यह एक विलक्षण बाल गीत लिखा है जो बरबस ध्यानाकर्षित कर रहा है ।
इसी तरह एक दूसरे महत्वपूर्ण बाल गीत का शीर्षक है - अल्मोड़ा। इसे पढ़कर ऐसे बच्चे जो कसौली व अल्मोड़ा के बारे में जानते हैं कि यह दोनों उत्तर प्रदेश के प्राकृतिक खूबसूरती से भरपूर महत्वपूर्ण जिले हैं वे खुशियों से भर उठेंगे कि उनका प्यारा घोड़ा उन्हें बहुत दूर की सैर कराता है जो इन महत्वपूर्ण जगहों ( जिलों) के बारे में नहीं जानते वह बच्चे जरुर ही पुछेंगे कि कसौली और अल्मोड़ा का क्या मतलब है? कसौली और अल्मोड़ा शब्दों का क्या अर्थ है क्या मतलब होता है ? 

बाल गीतों में हास्य रस आवश्यक तत्व है इससे बच्चों की कल्पना शक्ति का तो विस्तार होता ही है साथ ही विचित्र रुप से घटने वाली घटनाओं के बारे में सोच सोच कर वे बार बार खुशियों से भरते हैं इस तरह के बाल गीतों के लिए उनकी रुचि स्वाभाविक रूप से बढ़ जाती है ।

बच्चे होते फूल से बाल गीत संग्रह में गीतकार श्री मनोज जैन जी ने हास्य रस से भरपूर बढ़िया बाल गीतों की रचना की है जिनमें से एक मेट्रो पकड़ी चिड़ियाघर की मुझे बहुत अच्छी लगी जिसे यहां उद्धृत करने से मैं स्वयं को रोक नहीं पा रहा हूं -

बढ़ता वजन देखकर अपना / पड़ी सोच में बिल्ली / रामदेव का योग सीखने / मैं जाऊंगी दिल्ली  / स्लिम ट्रिम दिखूं तभी मैं खोलूं / ब्यूटी पार्लर अपना / संजो रखा बिल्ली मौसी ने / एक सलोना सपना / बैठ गई वन्दे भारत में / पहुंची सुबह सबेरे / मेट्रो पकड़ी चिड़ियाघर की /मित्र मिले बहुतेरे/ ताड़ासन में खड़ा हुआ था/ मोटा काला हाथी/ अलग अलग आसन में बैठे / दिखे हजारों साथी ! एक टांग पर खड़े हुए थे / बकुल बने थे योगी / भगवा पहने शेर महाशय / बने हुए थे जोगी ₹/ प्राणायाम किया बकरी ने / सबके मन को भाया / गोरिल्ला ने लटक डाल पर / करतब नया दिखाया / योग शिविर में बिल्ली जैसे/ जाकर बैठी आगे / वजनी चूहे तभी कूदकर/ जान बचाकर भागे ।

इसी तरह हास्य रस से भरे हुए तीन शानदार बाल गीत इस महत्वपूर्ण संग्रह में प्रकाशित हैं जिनमें एक का शीर्षक है-नौ चूहे खाकर, चूना नहीं लगाना, और तीसरा बाल गीत है - 
पाली क्लिनिक !
बच्चों के अधिगम की प्रक्रिया में ऐसे बाल गीत जो नैतिकता से , प्रेरणा से भरे होते हैं वे  सुकोमल मन और स्वभाव वाले बच्चों के अनुभवों को अधिक समृद्ध करते हैं अपने जीवन के लिए अच्छा बुरा सोचने समझने और सीखने की क्षमता ऐसी विचारणीय और मर्मस्पर्शी कविताएं ही विकसित करती हैं जो नैतिकता से, प्रेरणा से भरी हुई होती हैं । बच्चे होते फूल से इस चर्चित बाल गीत संग्रह में गीतकार ने कुछ महत्वपूर्ण प्रेरणादाई गीतों का सृजन किया है जिनमें से एक है बोलूं मीठा वाणी , इसी तरह एक बढ़िया प्रेरक गीत है जिसका शीर्षक है - जाओ स्वेटर लेकर आओ !
           कोयल और कौवे की आपसी बातचीत पर आधारित प्रेरक बालगीत की कुछ पंक्तियां बरबस ध्यानाकर्षित करती हैं जब कौवा कोयल से पुछता है कि तुम्हारी आवाज़ इतनी सुरीली क्यों है? तब कोयल बताती है कि मीठे मीठे आम खाकर मेरी आवाज़ मीठी हुई है। यदि तुम भी सबके साथ अच्छा व्यवहार करो अच्छा मीठा वाणी बोलो तो तुम्हारी आवाज़ भी सुरीली हो जाएगी  बाल गीत की पंक्तियां हैं -

चलो आज से एक नियम लो 
सबसे मीठा बोलो
कुछ कहने से पहले मन में
अपने बचन टटोलो
सीख बांध लो चलो गांठ में
प्यारे कौवे भाई 
हमें देखना इन आंखों से
है सबमे अच्छाई 

सीख सयानी कोयल की सुन
फितरत बदल न पाया
आसमान में उड़कर कौवा 
कांव कांव चिल्लाया ।
बाल गीत बड़ी बुआ में एक बहन अपने भाई के बच्चों से मुखातिब होते हुए खुशियों से भरी हुई है वह बच्चों को प्यार करती है उनके गाल सहलाती है और जीवन के पुराने दिनों की यादें बच्चों के संग बांटती है -

बोली जहां बगीचा है
हमने उसको सींचा है
दिन भर सपने गढ़ते थे
भाई बहन हम पढ़ते थे
आम रसीले खाते थे
मिलकर खुशी मनाते थे

छोटी झील जहां पर है
उसमें रहता था कछुआ
घर आई है बड़ी बुआ
आज बनेगा माल पुआ ।

एक बोध कथा का भावानुवाद करते हुए गीतकार ने दो प्रेरक गीतों की रचना यहां की है दोनों बाल गीत विचारणीय और मर्मस्पर्शी हैं ।इसी तरह सबके मंगल से जीवन में , प्यारी मां, हमारा प्यारा भारत देश , सैर सुबह की , पलकों पर बैठाओ पापा , सैर करो जी , ईश वंदना , बड़ी बुआ 
उपरोक्त शीर्षकों से प्रकाशित सभी बाल गीत निःसंदेह प्रेरक व मर्मस्पर्शी हैं ।

गीतकार श्री मनोज जैन जी ने बाल गीतों की रचना करते हुए तुकबंदियों का अच्छा प्रयोग किया है जिससे सभी गीत रोचक व प्रभावी बन गए हैं ।सभी बाल गीतों में गीतकार ने सहज सरल शब्दों का प्रयोग किया है ताकि बच्चे मूर्त रूप में उन्हें तुरंत जान पहचान जाएं ! विचार प्रकाशन ने पुस्तक का शानदार आवरण बनाया है बाल गीतों की त्रुटि रहित छपाई के लिए विचार प्रकाशन ग्वालियर को बहुत बहुत शुभकामनाएं प्रेषित करता हूं । चर्चित गीतकार श्री मनोज जैन मधुर जी को इन रोचक , प्रेरणादायक, मर्मस्पर्शी बाल गीतों के लिए बहुत बहुत शुभकामनाएं प्रेषित करता हूं।

रविवार, 17 अगस्त 2025

कृति चर्चा शेफालिका श्रीवास्तव जी

पुस्तक समीक्षा

पुस्तक-     'बच्चे होते फूल से'
लेखक-     श्री मनोज जैन 'मधुर'
पृष्ठ संख्या-104 
मूल्य -       रु.200/- 
प्रकाशक-  विचार प्रकाशन ग्वालियर 
प्रथम संस्करण- 2025
आई.एस.बी.एन -        
978-81-975632
समीक्षक - शेफालिका श्रीवास्तव 


बाल साहित्य अर्थात् वह साहित्य जो बालकों के मानसिक स्तर को ध्यान में रखते हुए लिखा गया हो ,बालकों को मनोरंजन के साथ सार्थक प्रेरणा व सीख भी प्रदान करता हो, उन्‍हें आज के जीवन की सच्‍चाइयों से परिचित कराता हो । आज के बालक कल के भारत के नागरिक हैं ।वे जैसा पढ़ेगें उसी के अनुरुप उनका चरित्र निर्माण होगा।अतः बाल साहित्य का उद्देश्य बच्चों का मनोरंजन करना, उन्हें शिक्षित करना, अच्छे संस्कार डालकर उनके भावी संसार की नींव मजबूत करना है तथा उन्हें दुनिया के बारे में जानकारी देना , जागरूक बनाना है।
मनोज जैन “मधुर“ जी की पुस्तक ‘ बच्चे होते फूल से ‘ कुछ इसी तरह के उद्देश्य को समेटे हुए है । एकल परिवार, सोशल मीडिया, माता पिता दोनों का नौकरी करना  कुछ  ऐसे कारण हैं जिनकी वजह से बच्चों का बचपना कहीं खो रहा है। ऐसे में अभिभावकों को उचित बाल साहित्य उपलब्ध कराना चाहिए जिसके द्वारा बच्चों के समय का सदुपयोग हो व वे भारतीय संस्कृति, संस्कार, अपने आसपास के परिवेश से परिचित हों । 
इस दृष्टि से मनोज जैन जी की कविताएँ अपना अलग महत्व रखती हैं ।आपके नवीन बाल कविता संग्रह ‘काग़ज़ के फूल’ में, बाल जगत को आनंदित करती रचनाओं के साथ, बच्चों के लिए लोरी , प्रभाती, पहेली , बोधकथा का कविता रूप , इत्यादि विशेष रचनाएँ भी संग्रहित हैं ।पुस्तक की कविताएँ पढ़ कर महसूस हुआ कि आपको बाल मनोविज्ञान का पूरा ज्ञान व अनुभव है । आपके मन में आपका बचपन अभी जीवंत है। इसलिए बच्चे के मन की भावनाओं को समझते हुए आपने ये बाल कविताएँ रचीं हैं । 
प्रायः बाल साहित्यकार, बाल कविता का सृजन, बच्चों को देखते हुए या स्वयं अपना बचपन याद करते हुए या अपने अनुभवों व स्मृति के आधार पर करते हैं । मनोज जैन जी ने भी इसी को आधार मान कर बाल जगत के लिए अपनी प्रथम पुस्तक ‘ काग़ज़ के फूल ‘ में कविता को सुंदर रुप दिया है । 
वरिष्ठ गीतकार मनोज जैन 'मधुर' जी स्थापित गीतकार हैं, आपके पहले दो पुस्तकें आ चुकी हैं,, लेकिन बाल साहित्य में आपने पदार्पण “ बच्चे होते फूल से" बाल कविता संग्रह से ही किया है । इस संग्रह में आपकी फूल सदृश कोमल कुल जमा तिरयालिस कविताओं का गुलदस्ता सजा है । सभी कविताएँ अपने आप में विशेष हैं, अलग-अलग खुश्बू ये आप्लावित हैं । 
मनोज जी के काव्य संग्रह में कल्पना शक्ति को विस्तार देती हुई , रिश्तों को जीवंतता प्रदान करती , नैतिक मूल्यों को सिखाती,राष्ट्रीय प्रेम , पशु पक्षियों के प्रति प्रेम करने की शिक्षा देती हुई रचनाओं का संकलन है , जो विविध रंगों से सजी हुई हैं व विभिन्न वय के बच्चों के लिए लिखी गईं हैं । आपकी पुस्तक को पढ़ते समय पाठक भी अपने बचपन में पहुँच जाते हैं,यही पुस्तक की सफलता है । 
प्रथम रचना ही बालकों की जिज्ञासु प्रवृति को बढ़ावा देती हुई पाँच बाल पहेलियाँ हैं ।ये पहेलियों बच्चों के लिये ज्ञानवर्धक तो हैं ही, साथ ही बच्चों की तार्किक बुद्धि को तराशने का भी काम करतीं हैं । भारत, भोपाल, इंद्रधनुष, तिरंगा व नदी पर आधारित ये पहेलियाँ बच्चों के लिए रोचक जानकारी उपलब्ध कराती हैं । 
प्रतिनिधि रचना “ बच्चे होते फूल से” में बच्चों का वर्णन किया है, उनमें संस्कार को रोपित कर , भारत में फिर से गाँधी नेहरू की कल्पना की है । इतिहास बच्चों तक पहुँचाने का प्रयास है । 

रंग बिरंगी फुलवारी यह 
महके नव परिवेश मे 
गाँधी, नेहरू नित्य जन्म लें 
अपने भारत देश में 
जुड़े रहें संस्कारों से 
कटे न अपने मूल से 
बच्चे होते फूल से 

‘मातादीन’ ,’गिनती ‘ व ‘मोकलवाडा’ जैसी कविताएँ रोचक है व छोटे बच्चों को गिनती सिखाने के साथ-साथ जीवन की गूढ़ बातें भी बताती हैं जैसे - 

बात पते की मुन्ने सुन 
जो सीखा है उसको गुन
बोल मेरे मुन्ने 
एक दो तीन
नहीं किसी के 
हक को छीन 

ऐसे ही “उत्तर देना सच्चे “  “बैठ उड़न खटोले में” व “पानी है अनमोल “ कविताएँ प्रकृति व पर्यावरण के प्रति सचेत करती हैं , प्रकृति का महत्व समझाती व पशु-पक्षीसे प्रेम करना सिखाती प्रतीत होती हैं । 
पानी सच में अनमोल है , इसे संरक्षित रखने की शिक्षा देती सुंदर रचना । 

बूँद बूँद अनमोल व्यर्थ में 
पानी नहीं बहाना ।  
छत पर रखना एक सकोरा
भरना उसमें पानी ।
सुनो गौर से प्यारे बच्चों 
यह सीख सयानी । 

जानवरों पर आधारित कविताएँ बच्चे सामान्यतः पसंद करते हैं । संग्रह में संकलित जानवरों की कविताओं, जैसे 
‘चंट चतुर चालाक लोमड़ी,’ ‘प्यारी दोस्त गिलहरी’, ‘मेरा नाम जिराफ’, ‘मैं हूँ बिल्ली चतुर सयानी’ इत्यादि रचनाओं के द्वारा लेखक बच्चों को जानवरों से परिचित करवाने व दोस्त बनाने में सफल है । जैसे -  ‘ मेरा नाम जिराफ़ है ‘, कविता में 

दस फ़ीट लंबी और खड़ी 
मेरी गर्दन ख़ूब बड़ी 
पूरे दिन में शायद ही
सोता हूँ में एक घड़ी ।।

बोध कथा को कविता रूप में लिखना एक नया प्रयोग किया है आपने । बच्चों को लय-ताल से युक्त कविता के ज़रिए कुछ बताना या समझाना सरल होता है, आपने इन कविताओं के ज़रिए बच्चों में नैतिक मूल्यों को विकसित करने का प्रयास किया है । 
भाग एक में आपने आपस में एक दूसरे का ख़याल रखने व आपस में सहयोग करने की शिक्षा दी है -

बोला हमने फल खाए है 
साथ इसी के खेले 
यही हमारा धर्म पेड़ को 
छोड़े नहीं अकेले। 
प्रण के लिए प्राण दे देंगे 
पीछे नहीं मुड़ेंगे 
साथ जलेंगे इसी पेड़ के 
पर हम नहीं उड़ेंगे । 

बोधकथा के भाग दो में संकल्प शक्ति को तवज्जो दी है -
झुकती है संकल्प शक्ति के 
सम्मुख दुनिया सारी
वह होते आदर्श जिन्होंने 
हिम्मत कभी नहीं हारी । 

रिश्तों को महत्व देती कविता ‘प्यारी माँ,’
‘मम्मी-मम्मी सुम्मी आई,’ ‘बड़ी बुआ’ इत्यादि रचनाओं बहुत सुंदर बन पड़ी है । 

घर आईं हैं बड़ी बुआ 
आज बनेगा मालपुआ 

इस पूरी कविता में बुआ का इतना सुंदर वर्णन है कि लगता है बुआ जी सामने खड़ी है । 
ऐसे ही लगे ‘नाचने अपने नाना’ व पलकों पर बिठाओ पापा’ में घर के बुजुर्गों, नाना नानी , दादा-दादी की महत्व दर्शाया है , उनके प्रति प्यार, सम्मान की भावना को पनपाने का अद्भुत प्रयास है । आज जब घर में बच्चों के पास अभिभावकों के लिए समय नहीं है, ऐसे में पोते-पोति के मन में बुजुर्गों के प्रति आदर भाव जगाना आवश्यक प्रतीत होता है । इस तरह की रचनाओं के द्वारा बच्चों के मन में उत्तम संस्कार रोपित किए जाने की दिशा मे यह एक सराहनीय कदम है । 

कब आयेंगे दादा- दादी 
हमको ये समझाओ पापा 
हमसे नहीं छिपाओ कुछ भी 
सच्ची बात बताओ पापा । 

दादू है पर्याय खुशी के
दादी अपनी रानी है । 
हम बच्चों को उनसे मिलती 
हरदम सीख सयानी है । 

यह पूरी रचना में दादा-दादी पर केंद्रित है , मन को छू लेने वाले भाव हैं । 

इसी प्रकार ‘पॉली क्लिनिक’ ‘चूहों के सरदार’, ‘मेट्रो पकड़ी चिड़ियाघर की’ ‘नौ सौ चूहे खा कर’, ‘चूहों के सरदार ने’ , ऐसी कुछ कविताएँ जानवरों को आधार मान कर लिखी गई हैं , जिन्हें बच्चे अवश्य पसंद करेंगे । 
प्रायः बच्चों की प्रत्येक पुस्तक में बाल मेले पर कविता होती ही है , लेकिन मनोज जी ने ‘दिल्ली पुस्तक मेला’ पर कविता लिखी है । हमें ऐसा लगा की यह रचना हम जैसे पाठकों के लिए है , बच्चों के लिए नहीं है । इसमें आपने लेखक, पाठक,प्रकाशक , भ्रष्टाचार इन सब पर बात की है। हालाँकि ये बात सही है कि लेखक ज़्यादा है , पाठक नहीं मिल रहे हैं , साहित्य के क्षेत्र में भ्रष्टाचार भी व्याप्त है , लेकिन इन सब बातों के लिए यह वर्ग अभी छोटा है व इनसे अनभिज्ञ भी है ।
धर्म निरपेक्षता का पाठ पढ़ाती व ईश्वर में विश्वास जगाती ‘ईश वंदना’ बहुत बढ़िया रचना है । अंतिम पंक्ति में बच्चे के मन का कौतूहल दर्शाया है । 

राम तुम्हीं, रहमान तुम्हीं हो , 
बुद्ध वीर भगवान तुम्हीं हो । 
ब्रह्मा विष्णु महेश तुम्हीं हो
सबके शेष अशेष तुम्हीं हो 
अखिल विश्व के पालक हो 
क्या हम जैसे ही, 
बालक हो ..! 

इस रचना को पढ़ कर हम अपने बचपन में पहुँच गये , हमारी शिक्षिका ने एक कविता जो पूरी कक्षा के बच्चों को रटवाई थी वो याद आ गई- 

हे ईश्वर तू कैसा होगा! 
लड्डू जैसा गोल होगा,
या पेड़े सा चपटा होगा! 
हे ईश्वर तू कैसा होगा.,! 

इसी तरह हमारी धरोहर, हमारे त्योहार पर भी आपकी कलम बखूबी चली है - “ होली “ रचना में-

भेद भाव को 
मारे गोली 
हैप्पी होली 
हैप्पी होली

बच्चों को स्वास्थ्य के प्रति सचेत करती कविता हैं -‘मोबाइल से दूरी’ व ‘दो गज दूरी बहुत जरूरी ’ । ‘मोबाइल से दूरी’ कविता समय के परिप्रेक्ष्य में बहुत ही बेहतरीन रचना है ।मोबाइल से दूरी बनाना चाहिए , यह बच्चों की समझाना थोड़ा मुश्किल है ।क्योंकि वर्तमान में मोबाइल जीवन का अहम हिस्सा बन चुका है फिर भी बच्चों को जागरूक करना हमारा कर्तव्य है ।इस दृष्टि से बहुत अच्छी सीख देती रचना है । 
 । इस तरह करीब-करीब हर विषय को समेटते हुए आपने रचनाएं लिखी है । 

‘ प्यारी माँ ‘ रचना में छोटे बच्चे के मुँह से आभार जैसे भारी शब्द कहलवाए हैं , जो कि सामान्यत: मुमकिन नहीं है । कहीं कहीं टंकन त्रुटि है व कुछ शब्द बच्चों के हिसाब से कठिन हैं । जिन्हें याद रखना या उच्चारण करना मुश्किल हो सकता है । 
कुछ कविताओं में लाइक , रील , इंस्टाग्राम, सेल्फी इत्यादि का उल्लेख बच्चों को वर्तमान से जोड़ता हैं। जैसे - 

आठ सेल्फी दस तस्वीरें
चला सालभर नाटक । 
एवं 
मैं हूँ बिल्ली चतुर सयानी 
डी पी में लगती हूँ रानी।
रील बना  मैंने जोडी 
अभी इंस्टाग्राम पर छोड़ी 
लाइक बिना है जग सूना 
केअर करो जी 
जल्दी जल्दी शेयर करो जी । 

 कुल मिलाकर यह पुस्तक कविता रूपी सुंदर फूलों का गुलदस्ता है । इसमें हर उम्र के बच्चों के लिए कविताएँ हैं । इन कविताओं में अंग्रेज़ी के कुछ  शब्दों का प्रयोग है ,पर हमारे विचार से ये ऐसे शब्द हैं , जिन्हें हिन्दी भाषा ने अपने आप में आत्मसात् कर लिया है , जैसे - फीवर , लीवर , थर्मामीटर आदि । 
पुस्तक के कवर पृष्ठ की बात करें तो बहुत आकर्षक नहीं है । रंग संयोजन व मुखपृष्ठ पर बना चित्र बच्चों को आकर्षित करने वाला नहीं लगा , लेकिन ये लेखक की अपनी पसंद है ।
बच्चों व अभिभावकों में लोकप्रिय यह कविताएँ कुल मिला बाल साहित्य में एक नया मुकाम हासिल करेंगी । इसमें कोई संदेह नहीं कि, मनोज कुमार जी ने पहली पुस्तक के साथ धमाकेदार पदार्पण किया है । आप बहुत अच्छे, स्थापित गीतकार हैं, शीघ्र ही बच्चों के लिए तुकांत, लयबद्ध कविताओं के दूसरे संग्रह से बाल जगत को लाभान्वित करेंगे । आपको भविष्य के लिए बहुत-बहुत शुभकामनाएँ व बधाई । 
शेफालिका श्रीवास्तव 
HIG- 657 , अरविंद विहार 
बागमुगलिया , भोपाल

गुरुवार, 14 अगस्त 2025

बुधवार, 13 अगस्त 2025

कृति चर्चा में आज "बच्चे होते फूल से" समीक्षक आ.गोकुल सोनी जी


बच्चे होते फूल से (बालगीत संग्रह)
गीतकार~ श्री मनोज जैन मधुर
प्रकाशक~ विचार प्रकाशन ग्वालियर
पृष्ठ संख्या~ 104
मूल्य~ ₹.200/~

भारत में बाल साहित्य का इतिहास सब देशों से अधिक पुराना है। लगभग 338 ईसा पूर्व आचार्य विष्णु गुप्त ने बाल कहानियों के माध्यम से एक राजा के चार बिगड़ैल, गैर जिम्मेदार और लापरवाह राजकुमारों को जिम्मेदार और भविष्य के लिए अच्छे शासकों के रूप में ढाला। उनके द्वारा लिखे गए पंचतंत्र और हितोपदेश आज भी बाल साहित्य की सर्वश्रेष्ठ कृतियां मानी जाती हैं जिनपर कई सीरियल और फिल्में भी बन चुके हैं। 
     अन्य देशों की बात की जाए तो ऐसे देश जहां बच्चों को बहुत प्यार किया जाता है और बाल साहित्य बहुत जिम्मेदारी से लिखा जाता है तथा लोग लिखना और पढ़ना पसंद करते हैं, उनमें प्रमुखत: यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त राज्य अमेरिका, स्कैंडिनेविया, चीन, स्पेन, और जर्मनी के अलावा, रूस, इटली, पोलैंड, दक्षिण अफ्रीका, फिनलैंड, ब्राजील, बेल्जियम, जापान, कनाडा और दक्षिण कोरिया जैसे देशों का भी नाम लिया जा सकता है। इन देशों में भी बाल साहित्य लोकप्रिय है।
    यूनाइटेड किंगडम में 19वीं सदी में लुईस कैरोल की 'ऐलिस इन वंडरलैंड' और 20वीं सदी में कला और शिल्प आंदोलन के साथ बच्चों की किताबों का एक नया युग शुरू हुआ जबकि स्वीडन, डेनमार्क में अठारहवीं सदी से ही बाल साहित्य प्रकाशित होने लगा था। जे के रोलिंग द्वारा बच्चों के लिए लिखी गई हैरी पॉटर सीरीज ने तो बिक्री के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। इससे बल साहित्य की लोकप्रियता का आकलन सहज ही हो जाता है।
     भारत में बड़े बड़े साहित्यकारों ने भी बाल साहित्य को अनिवार्य मानते हुए अपनी कलम चलाई। मृदुला गर्ग, हरिकृष्ण देवसरे, रामवृक्ष बेनीपुरी, जैनेन्द्र यहां तक कि प्रेमचंद ने भी बच्चों को गुल्ली डंडा कहानी लिखकर बाल साहित्य के महत्व को स्वीकार किया।
     दरअसल बाल साहित्य बच्चों के मन मस्तिष्क में नैतिक सिद्धानों यथा सत्य संभाषण, बड़ों के प्रति आदर, दया, करुणा, ममत्व जैसे सिद्धांतों के बीजारोपण करने का सबसे सशक्त माध्यम है साथ ही यह सात्विक मनोरंजन भी है। 
      गीत विधा और बाल मनोविज्ञान जब एक साथ मिलते हैं तो बहुत सुंदर गेय बाल गीतों का सृजन होता है जो बच्चों की जुबान पर आसानी से चढ़ जाते हैं और जब इतने सुंदर गीत पढ़ने में आते हैं तो बच्चे क्या, बड़े भी अपने आप को गुनगुनाने से नहीं रोक पाते। देश के सुप्रसिद्ध गीतकार मनोज जैन मधुर ऐसे ही प्यारे गीतों का गुलदस्ता "बच्चे होते फूल से" के नाम से लेकर आए हैं जिसमें 43 बाल कविता पुष्प हैं जिनके विभिन्न रंग बड़े सलोने और मोहक हैं। 
     पहेलियां सदैव सभी को लुभाती हैं, खास तौर पर बच्चों को तो बहुत ही प्रिय होती हैं। पहेलियों से पुस्तक का आरंभ बताता है कि मनोज जी बाल मनोविज्ञान के अच्छे ज्ञाता हैं। इन पांच पहेलियों का उद्देश्य क्रमशः भारत, भोपाल, इंद्रधनुष, तिरंगा, और नदी की विशेषताओं से बच्चों का परिचय कराना है। शीर्षक गीत बच्चे होते फूल से भी सुंदर कविता है।

बच्चे होते फूल से 
आंख दिखाओ मुरझा जाते 
प्यार करो खिल जाते हैं 
मन के सारे भेद बुलाकर 
आपस में मिल जाते हैं 
मन होता है इनका कोमल 
इन्हें न डांटो भूल से बच्चे होते फूल से

मातादीन कविता दस तक गिनती सिखाती मनोरंजक कविता है जो

एक गांव में घर दो तीन
आकर ठहरे मातादीन
इनने पाले घोड़े चार
घूम लिया पूरा संसार

से आरंभ होकर मनोरंजक तरीके से दस तक पहुंचती है। इसी तरह जादूगर कविता भी चार का पहाड़ा खेल खेल में याद करा देती है। गिलहरी भी बहुत प्यारी कविता है। कविता "दिल्ली पुस्तक मेला" लाक्षणिक शैली में लिखी अदभुत कविता है जिसका प्रत्यक्ष उद्देश्य बच्चों को जानवरों के नामों और गुणों से परिचित कराना है परंतु बड़ी उम्र के साहित्यकार पाठकों को दिल्ली पुस्तक मेले की विषमताओं से परिचित कराना है। गजब का व्यंग्य है यह। लोरी आदि काल से नन्हें बच्चों को सुलाने के लिए माताएं गाती रही हैं। लोरी में अद्भुत मिठास और गेयता होती है। आजकल लोरियां बहुत कम लिखी जा रही हैं, परंतु  मनोज जी ने पांच लोरी गीत लिखकर इस बाल गीत को संपूर्णता प्रदान करने का प्रयास किया है। 

चंदा मामा आ जाना 
परियों को संग में लाना 
तब मुन्ना सो जाएगा 
सपनों में खो जाएगा 
आ जाना भाई आ जाना 
चंदा मामा आ जाना

     वह बाल कविता संग्रह ही क्या जिसमें चूहे बिल्ली पर कविता न हो। प्रत्येक परिवार के सदस्यों की तरह ही होते हैं ये। बच्चों के आमोद प्रमोद के केंद्र।
"चूहों के सरदार ने"  कविता इनपर बहुत मनोरम कविता है।

घर पर मीटिंग रखी अचानक 
चूहों के सरदार ने
सुनो साथियों क्या तुमने भी 
खबर पढ़ी अखबार में 
चाहे हज से लौटे बिल्ली 
या फिर तीरथ धाम से 
कितनी बार नमाज़ पढ़े या 
जुड़ी रहे वह राम से 
माना कंठी माला इसमें 
अभी गले में डाली है 
सुनो गौर से इसकी फितरत 
नहीं बदलने वाली है

कविताओं का सलौनापन देखिए कि कहीं भालू जी पॉली क्लीनिक चला रहे हैं, तो कहीं नौ सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को जा रही है। कहीं जिराफ अपना परिचय खुद दे रहा है, तो कहीं ठंड से थरथर कांपता बंदर स्वेटर बनवाने के लिए भेड़ से ऊन मांग रहा है। चिड़ियाघर के तो ठाठ ही निराले हैं जहां
 
ताड़ासन में खड़ा हुआ है था 
मोटा काला हाथी 
अलग अलग आसन में बैठे 
देख हजारों साथी 
एक टांग पर खड़े हुए थे 
बकुल बने थे योगी 
भगवा पहने शेर महाशय 
बने हुए थे योगी 
प्राणायाम किया बकरी ने 
सबके मन को भाए
गोरिल्ला ने लटक डाल पर 
करतब नए दिखाए 

इस बाल कविता संग्रह में मात्र जानवरों पर ही कविताएं नहीं हैं वरन बच्चों को आत्मीय रिश्तों का महत्व समझाती कविताएं हैं। पापा, दादा, मम्मी, बुआ, नाना आदि के प्रति बच्चों के स्नेह की अभिव्यक्ति हैं ये कविताएं। बोध कथाएं, ईश वंदना, हमारा देश, मोबाइल, पानी अनमोल, होली जैसे कई विषयों को समेटने से संग्रह बहुउद्देशीय बन गया है और ऐसी जानकारियां देता चलता है जो बच्चों के व्यक्तित्व के समग्र विकास हेतु परमावश्यक होती हैं।  
     संग्रह बहुत सुंदर, पठनीय और बच्चों को बेहद पसंद आनेवाला है परंतु पॉलि क्लिनिक, परिश्रावक, अशेष, सर्वस्व, स्वमेव, अखिलविश्व, आराधक, आलोचक जैसे कठिन शब्द छोटे बच्चों की पुस्तकों में लिखने से बचा जा सके तो अच्छा है। 
सुंदर बाल कविता संग्रह हेतु मनोज भाई को हार्दिक बधाई। 

गोकुल सोनी
(कवि, कथाकार, व्यंग्यकार)
भोपाल मो. 7000855409

मंगलवार, 12 अगस्त 2025

समीक्षा : बच्चे होते फूल से प्रभुदयाल श्रीवास्तव


अपने समय के प्रमुख बाल साहित्यकार आदरणीय प्रभु दयाल श्रीवास्तव जी ने बच्चों के लिए मेरे द्वारा लिखी गई मेरी पहली कृति बच्चे होते फूल से की सविस्तार समीक्षा की है जिसे मैं जस की तस अपने पाठकों तक पहुँचा रहा हूँ।
           आभार व्यक्त करता हूँ प्रभु दयाल श्रीवास्तव जी का जिन्होंने अपने व्यस्ततम समय में से अनमोल पलों को चुराकर सँग्रह पढा और पढ़कर मुझे आशीर्वाद भी दिया।
  आप भी पढ़कर देखिएगा।
सादर
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बच्चे होते फूल से 
                                नवगीत और गीतों में महारत हासिल श्री मनोज जैन मधुर जी ने “बच्चे होते फूल से” शीर्षक से लिखा बाल गीतों का संग्रह मुझे प्रेषित किया है, दो शब्द लिखने के लिए। विचार प्रकाशन ग्वालियर से प्रकाशित यह संग्रह ४३ बाल कविताओं से सजा हुआ सुन्दर सा गुलदस्ता है। शुभ कामना सन्देश में साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ विकास दवे ने लिखा है कि लेखन जब बाल मन के स्तर  पर जाकर लिखा जाता है तो बच्चे उसका स्वागत करते हैं।
बाल कल्याण एवं साहित्य शोध केंद्र भोपाल के निदेशक श्री महेश सक्सेना ने लिखा है ”बाल कविता, लोरी, प्रभाती पहेली बोधकथा की इंद्रा धनुषी छटा का संग्रह “बच्चे होते फूल से” बहुत विनम्र निश्छल, आत्मीय, कर्मठ स्वभाव के श्री  मनोज जैन मधुर का व्यक्तित्व मनोज सा ही आकर्षक है और स्वभाव भी उनके उपनाम मधुर जैसा ही है।
          मेरा मत है कि अच्छा बाल साहित्य लिखने के लिए लेखक का मन बच्चों जैसा भोला भाला होना चाहिए। भोले मन की कलम से निसृत भोली कवितायेँ/बाल गीत निश्चित बच्चों के मन में उतरकर उन कविताओं और गीतों का दीवाना बना देंती हैं। डॉ परशुराम शुक्ल,घनश्याम मैथिल के अतिरिक्त अन्य पाँच मनीषियों ने भी संग्रह पर अपना मंतव्य व्यक्त किया है।
                 मनोज जी के साथ विशेष बात यह है कि वे एक सिद्ध हस्त गीतकार हैं और बाल कवितायेँ /बाल गीत मनोज जी की की कलम से झरें तो फिर क्या बात है। मनोरंजन, मौज मस्ती, हो हल्ला धूम-धडाका और बच्चों की बेताज बादशाही अहसास जिसने अपनी बाल कविताओं में शामिल कर लिया समझो वह सफल बाल साहित्य कार हो गया। रचना पढ़ते ही बच्चे का चेहरा खिल उठे ओंठों पर मुस्कान खेलने लगे और वह  कविता गीत अथवा कहानी बार- बार पढने को उत्सुक होने लगे तो फिर क्या कहने। मनोज जी इस पर खरे उतरते दिखाई देते हैं। यह कहीं से भी नहीं लगता कि यह संग्रह उनका पहला बाल कविताओं/गीतों का संग्रह है। छंद लय प्रतिबिम्ब सबमें पूरी पक्की रचनाएँ, बचपन में बार-बार लौटते हुए हर रचना को रचा गया होगा ऐसा प्रतीत होता है। बच्चों के निश्छल स्वभाव और उनकी भोली भाव भंगिमा पर ये पंक्तियाँ कितनी सटीक लगती हैं “आँख दिखाओ मुरझा जाते,प्यार करो खिल जाते हैं। मन के सारे  भेद भुलाकर,आपस  में मिल जाते हैं। मन होता है इनका कोमल,इन्हें न डांटो भूल से। बच्चे होते फूल से। तन मन से कोमल बच्चे फूल सरीखे ही तो होते हैं। यह गीत अपने शीर्षक होने को लेकर कितना प्रसन्न होगा यह तो शीर्षक ही जानता  होगा। पंछियों को पानी पिलाना,चिड़ियों चीटियों को दाना/आटा डालना हमारे संस्कार हैं  और यह बात “सबके मंगल से जीवन में” बड़े सरल सहज ढंग से कही गई है यथा – रोज सकोरों में भरता है ,खट्टर उठकर पानी। और बाँध रखा गट्ठर में अपने ,पूरा एक खजाना ,चींटी को आटा थोडा सा ,है चिड़ियों को दाना |
       पुस्तक पढ़ते हुए मातादीन कविता से दो चार हुआ ,एक से लेकर दस तक की गिनती बड़े मनोरंजक ढंग से परोसी गई है। नर्सरी- प्रवेशिका के बच्चे इसे पढकर मजे से गाने लग जाएँगे, गिनती भी याद हो जाएगी।”गिनती गीत” भी इसी तरह की कविता है। ”जादूगर” कविता में तो चार का पहाडा ही बच्चों को रटा दिया है| उनके  के हाथ में किताब आये तो चार का पहाड़ा एक ही बैठक में याद कर डालें। गिनो कहीं से पूरी होती,थी बत्तीस गिलहरी। घोड़े थे छतीस तुर्क के जिनकी पूंछ सुनहरी |चार का पहाडा, अट्ठे- बत्तीस नामें- छत्तीस को बड़े मनोरंजक तरीके से बच्चों के सामने कवि ने रख दिया है। “दिल्ली पुस्तक मेला” आज के चाटुकार साहित्यकारों का मनो चित्रण है असली नकली पर कवि  का तंज “हंस चुगेगा दाना चुनका  कौआ  मोती खायेगा” मन में गूँजने लगा। पशु पक्षियों का मानवीकरण करके बहुत ही अनोखे और व्यंगात्मक ढंग से पुस्तक मेले का आज के सन्दर्भ में चित्रण किया गया है, बहुत ही मजेदार है।  डेढ़ दिमाग लगाकर बोली,किसको दिल्ली जाना। मिसफिट कोयल इस महफ़िल में,फिट है कौआ काना। हंसराज जी यहीं रहेंगे,भले गिद्ध को ले लो। आलोचक तुम बैठे-बैठे,पुस्तक-पुस्तक खेलो।पुस्तक मेलों में चापलूस नकली लेखकों का बाज़ार ही तो लगता है। लेखक की चिंता वाजिब है। पाँच छोटे-छोटे सुंदर से लोरी गीत भी हैं। ये गीत थोड़े बड़े होते तो अच्छा रहता। आजकल लोरी विधा आँखों से ओझल हो रही है। आज की दादी नानियाँ भी लोरियों से अनजान होती जा रहीं हैं। मोबाईल नामक झुनझुना लोरियों का स्थान ले रहा है |रचनाकारों को लोरियों पर काम करना होगा और शिशुओं -बच्चों की माताओं, दादियों, नानियों तक ये कैसे पहुंचे इस पर भी विचार करना होगा।
         “पलकों पर बैठाओ पापा“ बच्चों द्वारा बड़ों के लिए सीख है। बच्चे अक्सर अपने दादा दादी के लाडले होते हैं। कहते हैं न कि बच्चे मूलधन होते हैं और पोते पोतियाँ ब्याज।और मूलधन से ब्याज को अधिक प्यारा कहा जाता है। लेकिन आज की भाग दौड़ भरी जिन्दगी और नैतिक पतन की ओर जाते समाज में माता पिता अब उनके बच्चों को बोझ लगने लगे हैं और इसकी परिणिति वृद्धाश्रम होने लगी है। 
      बच्चा पापा से कह रहा है-दादू हैं पर्याय ख़ुशी के ,दादी अपनी रानी है। हम बच्चों को उनसे मिलती, हरदम सीख सयानी है। हैं अपने भगवान् उन्हें तुम,पलकों पर बैठाओ पापा।आखिर दादा दादी भगवान ही तो होते हैं और भगवानों की अवहेलना ! “एक बोध कथा का भावानुवाद”संकल्प से सिद्धि का दस्तावेज है।   झुकती है संकल्प शक्ति के,सम्मुख दुनिया सारी। वह होते आदर्श जिन्होंने, हिम्मत कभी न हारी।कविता में तोतों के माध्यम से रचनाकार ने सीख दी है। दृढ़ इच्छा शक्ति हो,परिश्रम किया जाये तो सफलता मिलती ही है। मित्रता में परस्पर व्यवहार ही काम आता है। स्वार्थी होती मित्रता फिर मित्रता नहीं रहती। “जाओ स्वेटर लेकर आओ” कविता भी ऐसी ही है। बन्दर ऊन मांगने भेड़ के यहाँ जाता है लेकिन भेड़ का जबाब -बन्दर भाई भूल गये क्या, दया न हमसे मांगों। मांगे जामुन तब तुम बोले,चलो यहाँ से भागो।एक तरफा दोस्ती का अंजाम ये ही होता है। ”मेट्रो पकड़ी चिड़िया घर की”,”विटामिन डी” भी मनोरंजक कवितायेँ हैं। ”बूझ रहा हूँ एक पहेली में” हाथी के डील-डौल, रंग रूप, स्वभाव इत्यादि बताते हुए अंत में एक खाली स्थान छोडकर पहेली का रूप बना दिया है, ठीक है बच्चे मनोरंजन और ज्ञानार्जन भी हो जायेगा। ”प्यारे बच्चो जागो” में समय का महत्व बताया गया है यथा - भाग रहा समय निरंतर इसकी गति से भागो। मुर्गा बांग लगाकर कहता,उठकर आलस त्यागो। सरल शब्दों में लिखा गया अच्छा बाल गीत। ”यह डलिया है उड़ने वाली” भी एक मजेदार बाल गीत है।  दूर गगन की सैर कराती,दुनिया भर से जुड़ने वाली।  यह डलिया है उड़ने वाली। बच्चों को खूब मजा आएगा इसे पढकर। एक बाल गीत “बैठें उड़न खटोले में” भी मन भावन गीत है। बच्चों को पसंद आएगा मनोरजन तो है ही एक सीख भी छुपी है।” हँसी ठिठोली में जो सुख है,क्या है वह अनबोले में”
सरल शब्दों में बड़ी बात। आज ऐसी रचनाओं की ही आवश्यकता है। “दाने लाल अनार के”अनार के रूप रंग, गुण और उसके उपयोग पर रचा गया सुंदर सा बाल गीत है। बच्चों को बहुत पसंद आएगा। ऐसे बाल गीत बच्चों तक स्कूली पाठ्यक्रम के माध्यम तक पहुंचें तो अच्छा हो। “बाकी सभी रचनाएँ मजेदार बच्चों के मन के अनुरूप हैं मजेदार है और मनोरंजक हैं। 
कई जगह वर्तनी की त्रुटियाँ हैं,अगले  संस्करण में सुधार जा सकता है। बहुत बड़े बाल गीत या बड़ी कवितायेँ बच्चों के लिए बोझिल होने लगते हैं लेकिन ये रचनाएँ मनोरंजक हैं तो निश्चित ही बच्चों को पसंद आएँगी। मनोज जैन मधुर जी को बधाई | 
             प्रभुदयाल श्रीवास्तव   
            १२ शिवम् सुन्दरम नगर छिंदवाडा 
            07 july 2025