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सोमवार, 1 दिसंबर 2025

शुक्रवार, 7 नवंबर 2025

कुटुंब यात्रा


चार्ली चाल कोल्हापुर से जवाहर चौक भोपाल तक का सफर
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सुबह की पहली किरणें अभी बाणगंगा के उस तंग मोहल्ले में पूरी तरह नहीं पहुँची थीं। हवा में नमी थी, और दूर से बहते पानी की हल्की-हल्की आवाज़ आ रही थी। यहाँ का माहौल ऐसा था, मानो समय यहाँ ठहर-सा गया हो। गलियों में मिट्टी और ईंटों के बीच बने छोटे-छोटे घर थे, जो अपने आप में एक कहानी कहते थे। इन्हीं में से एक घर था सुनील का। बाहर से देखने में यह बस चार दीवारों का ढाँचा था, लेकिन भीतर छह जिंदगियाँ साँस ले रही थीं। सुनील का कमरा छोटा था-इतना कि अगर कोई हाथ फैलाए, तो दीवारें छू जाएँ। एक कोने में पुराना स्टोव रखा था, जिसके पास उसकी पत्नी राधा चाय बनाने की तैयारी कर रही थी। पास ही दो बेटियाँ, काजल और रीना, अपनी किताबें लिए बैठी थीं। उनकी आँखों में कुछ बनने की चाह थी, पर हाथ में पेन के साथ-साथ घर की जिम्मेदारियाँ भी थीं। बगल में उनका भाई अजय फटी कॉपी पर कुछ लिखने की कोशिश कर रहा था। कमरे के बीच में सुनील बैठा था, उसकी आँखें लाल थीं, और चेहरा थकान से भरा था।तभी दरवाजे पर हल्की-सी खटखट हुई। राधा ने सिर उठाया और बाहर झाँका। वहाँ खड़े थे शहर के सुप्रसिद्ध लेप्रोस्कोपिक सर्जन डॉ.अभिजीत देशमुख जी- अपनी पूरी टीम के साथ सादे कपड़ों में, चेहरे पर हल्की मुस्कान लिए। उनके हाथ में एक छोटा-सा थैला था। सुनील ने उन्हें देखा, उठकर अभिवादन करने  की कोशिश की, पर उसका शरीर साथ नहीं दे रहा था। “आइए, डॉक्टर साहब,” राधा ने झिझकते हुए कहा और एक टूटी कुर्सी आगे बढ़ाई। डॉ.अभिजीत अंदर आए और कमरे को एक नज़र देखा। उनके मन में कुछ पुरानी यादें कौंध गईं। उन्होंने बच्चों की तरफ देखा-काजल और रीना की किताबें, अजय की फटी कॉपी। फिर सुनील की तरफ मुड़े और धीमे स्वर में बोले, “सुनील भाई, ये बच्चे आपका भविष्य हैं। इनकी आँखों में सपने हैं, और आपके हाथ में इन सपनों को सच करने की ताकत। ”सुनील ने नज़रें झुका लीं। शायद उसे अपनी हालत का अहसास था, पर जवाब देने की हिम्मत नहीं थी। डॉ.अभिजीत ने थैले से तीन मिट्टी की गुल्लकें निकालीं और बच्चों के सामने रख दीं। “ये तुम तीनों के लिए,” उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा। “हर दिन थोड़ा-थोड़ा बचाओ। एक-एक पैसा जोड़ो। ये गुल्लक तुम्हें याद दिलाएगी कि छोटी शुरुआत भी बड़ी मंजिल तक ले जा सकती है। ”काजल ने गुल्लक हाथ में ली और उत्सुकता से पूछा, “सच में, डॉक्टर अंकल? क्या हम पढ़ सकते हैं? हमारे पास तो ज्यादा पैसे नहीं हैं।” डॉ. अभिजीत की आँखों में एक चमक आई। वे कुर्सी पर बैठ गए और बोले, “जब मैं तुम्हारी उम्र का था, मेरे पास भी कुछ नहीं था। एक छोटा सा कमरा, माँ-पिताजी की मेहनत, और मेरी जिद कि मुझे पढ़ना है। मैं रात को लालटेन की रोशनी में किताबें पढ़ता था। कई बार भूखा सोया, पर सपनों को कभी नहीं छोड़ा। आज मैं यहाँ हूँ, क्योंकि मैंने हर छोटे मौके को पकड़ा। तुम भी पकड़ो। पढ़ाई के लिए पैसा नहीं, इरादा चाहिए। ”रीना और अजय उनकी बातें सुनते रहे। उनकी आँखों में एक नई उम्मीद जगी। सुनील ने भी सिर उठाया, शायद उसे अपनी गलती का एहसास हो रहा था। राधा चुपचाप कोने में खड़ी सब सुन रही थी। डॉ. अभिजीत उठे और बच्चों के सिर पर हाथ फेरते हुए बोले, “ये गुल्लक भरना शुरू करो। और सुनील भाई, इन बच्चों का साथ दो। ये आपकी ताकत हैं। ”कमरे से बाहर निकलते वक्त डॉ.अभिजीत ने एक बार पीछे मुड़कर देखा। उन्हें अपना बचपन दिखाई दिया- वही तंग गलियाँ, वही छोटा कमरा। डॉ अभिजीत अपने बचपन को याद करते हुए बताते है कि वह अपने कैरियर के शुरुआती दिनों में कोल्हापुर की जॉकी बिल्डिंग चॉल में रहा करते थे। उन दिनों डॉ अभिजीत के नाना जी कोल्हापुर से तत्कालीन  सांसद थे । चाहते तो माननीय सांसद शंकर राव माने जी इनके लिए क्या नही कर सकते थे लेकिन डॉ अभिजीत के परिवार ने उनसे कोई राजनैतिक हित नही साधा और अपने स्वाभिमान को प्राथमिक रखा आगे डॉक्टर  अभिजीत बताते है कि हमारा पूरा परिवार कोल्हापुर की जॉकी बिल्डिंग चॉल में सालों साल रहा। 
       मन में एक संतोष था कि शायद उनकी बातें इस परिवार के लिए एक नई शुरुआत बनें। सूरज अब ऊपर चढ़ आया था, और बाणगंगा की गलियों में रोशनी फैल रही थी। 
(आगे जारी...)
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गुरुवार, 9 अक्टूबर 2025

मनोज जैन का एक गीत

मैं हूँ #आलोचक #प्रगतिशील 
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मैं हूँ अपने में स्वयंपूर्ण,
मैं हूँ आलोचक प्रगतिशील।

                 ईसा-मूसा का दीवाना,
            करता हूँ वार सनातन पर।
            गुण गाता हूँ नित ओशो के,
           मैं लिखता नही पुरातन पर।

वैदिक चिंतन के माथे में,
ठोका करता हूँ रोज कील।

        परिधान पहनता भारत के,
        भारत की बात नहीं करता।
        मैं अपने तर्क वितर्कों में,
        कबिरा को लाकर मन हरता।

हो परम्परा की चिड़िया तो,
बन जाता हूँ विकराल-चील।
 
        गीतों की बात करूँगा क्यों,
        इनमें नवता का नाम नही।
        हूँ अधुनातन मैं ज्ञानी हूँ,
        जड़ता का कुछ भी काम नही।

बश चलता तो आदर्शों को,
मैं कब का होता गया लील।

        पावन वेदों के सम्मुख में,
        मैं महावीर को ले आया।
        निष्पक्ष बताने मैं खुद को
        गौतम का राग सुना आया।

अन्तर्विरोध के धागे को,
रह रह कर देता रहा ढील।
     
       मनोज जैन

रविवार, 28 सितंबर 2025

एक तस्वीर

गुरुवार, 11 सितंबर 2025

समीक्षा

चर्चित कवयित्री हेमलता दाधीच जी उदयपुर राजस्थान से आती हैं आप सुप्रसिद्ध बाल साहित्यकार हैं। 
      आपने मेरी हाल ही में प्रकाशित पुस्तक 
#बच्चे_होते_फूल_से की समीक्षा की है जो पाठकों से सम्मुख जस की तस प्रस्तुत है।
हेमलता जी का कृतज्ञ मन से आत्मीय आभार
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#बच्चे_होते_फूल_से


             बच्चे सच में फूल जैसे ही होते हैं। बाल रचनाओं की बहुत ही सुंदर पुस्तक मुझे मिली। मनोज जैन जी को बहुत बधाई। यह आपकी पहली बाल रचनाओं की पुस्तक है। इससे पहले आपकी दो गीतों की पुस्तक आ चुकी हैं। पुस्तक में बाल रचनाओं के साथ पाँच पहेलियाँ और पाँच लोरी गीत भी हैं। वरिष्ठ साहित्यकारों की शुभकामनाओं एवं समीक्षा ने पुस्तक के आगमन पर मानो शब्दों की पुष्पवर्षा कर दी हो।
          बच्चों का मन बहुत कोमल होता है और उस पर हर गतिविधि का गहरा असर पड़ता है। अतः उन्हें प्यार से रखना चाहिए। आज के भागदौड़ के माहौल में बच्चे इससे वंचित हो रहे हैं। यह सुंदर संदेश देती पहली रचना, जो कि पुस्तक का शीर्षक भी है — "बच्चे होते फूल से"।
             सबका मंगल, हरियाली एवं जीवों की सेवा का संदेश देती हैं चतुर लोमड़ी,
मातादीन, गिनती गीत, प्यारी माँ, जादूगर, गिलहरी। ये रचनाएँ मनोरंजन, शिक्षा एवं कर्तव्य बोध कराती हैं। पुस्तक मेला, प्यारा भारत, ईश वंदना, देश हमारा जैसी बाल कविताएँ गुनगुनाते हुए बच्चों में देशभक्ति की भावना जगाती हैं। 
     सुबह की सैर,विटामिन डी, मोबाइल से दूरी, होली जैसी रचनाएँ बच्चों में अच्छी आदतों के साथ साथ हमारे पर्वों की भी जानकारी देती हैं।दाने लाल अनार के, मोमलवाड़ा, पानी अनमोल, पलकों पर बैठाओ पापा, बड़ी बुआ, लगे नाचने नाना — ये रचनाएँ बच्चों को अपने रिश्तों के प्रति सिखाती हैं और फलों के प्रति दृष्टि बदलती हैं। वहीं, मम्मी सुम्मी, जिराफ, बिल्ली की रचनाएँ भी बच्चों को लुभाने वाली हैं।
    इस पुस्तक में कुल जमा 41 रचनाएँ हैं। प्रत्येक रचना मार्मिक, संदेशपरक एवं मनोरंजन से ओत-प्रोत है। जहाँ तक मुझे लगा, इसमें पहेलियों एवं लोरी गीतों की गुंजाइश नहीं थी। बच्चों की पुस्तक की पृष्ठ संख्या अधिकतम 60-72 तक रहनी चाहिए, पृष्ठ संख्या अधिक हो गई है।
  प्रत्येक रचना के साथ चित्र होते तो पुस्तक में चार चाँद लग जाते। कवर पेज सुंदर है। मूल्य: 200 रुपये — बाल साहित्य के हिसाब से उचित है। आपकी पहली बाल रचनाओं की पहली पुस्तक का बाल साहित्य जगत में पुनः स्वागत है। आपकी अगली पुस्तक जल्द पढ़ने को मिलेगी, इन्हीं शुभकामनाओं के साथ।

समीक्षक:
हेमलता दाधीच
दिनांक: 11.09.2025


परिचय

श्रीमती हेमलता दाधीच   
अध्यक्षा - सृजन ,समन्वय, भारती उदयपुर मण्डल,राजस्थान
जन्म - 4 फरवरी,डीकेन (म.प्र.)
शिक्षा  - एम.ए.एम.लिब.  पी.एच.डी.रनिंग
   
लेखकीय परिचय
विधा-कहानी ,कविता,गीत,
नाटक एकांकी,बालसाहित्य ,जीवनी, लघुकथा ,समीक्षा,आलेख,संस्मरण, यात्रावृतांत,पत्र लेखन,आदी।
पुस्तकें:- लाडली दादोसा री, कथावां 2007 (राजस्थानी भा. सा. एवं सं. अकादमी)
परी की सीख 2007(रा.सा.अ.)
टीकू चार आँखां रो 2012 (राज.भा.सा.अ.)
भारत को नमन 2015 बाल रचना 
जीवन है रंगमंच 2022 (राज.सा.अ.)
लंच बाँक्स बाल नाटक 2023(बाल सा.अ.)
चाँद री बातां बाल कथावां(2025)

पत्र पत्रिकाओं ,संकलन एवं न्यूज पेपर में निरंतर प्रकाशन ।
प्रसारण- जयपुर दूरदर्शन पर हिन्दी एवं मरूधरा राज. में काव्य पाठ।
आकाशवाणी उदयपुर से कहानी कविताओं का प्रसारण।
पुरुस्कार, सम्मान
राजस्थानी भाषा गरिमा सम्मान 2006, कला शृंखला मंच ,उदयपुर।
विशेष प्रोत्साहन पुरुस्कार 2013 आकोला, चित्तौड़गढ़।
स्वतंत्रता सेनानी, श्रीऔंकारलाल शास्त्री स्मृति पुरुस्कार 2015 सलिला संस्था , सलुम्बर 
मधुकर बाल सहित्य सम्मान 2016  दतिया (म.प्रदेश)
अमृता प्रीतम सम्मान 2020(विश्व लेखिका मंच मुम्बई)
राजस्थली सम्मान 2021 (राजस्थली संस्था डूंगरगढ़ बीकानेर) 
बाल साहित्य सम्मान 2023 (नेहरु बाल साहित्य अ. जयपुर) बाल साहित्य मानद उपा
श्रीमती तारा पाण्डेय बाल साहित्यकार सम्मान 2024 (बाल सा.अं.संस्था भोपाल)
बाल साहित्य मानद उपाधि 2025 
(साहित्य मंडल नाथद्वारा)
सम्बद्धता-युगधारा संस्था,
राजस्थली संस्था आजीवन सदस्यता
पता:-47नाईयों की तलाई,
 सतीसाधना मंदिर,उदयपुर (राज.)पिन कोड़ 313001
 
मो.7357415790 
email hd. hemlata71@gmail.com

मंगलवार, 26 अगस्त 2025

ब्लर्ब / फ्लैप मनोज जैन

प्रस्तुति
ब्लॉग वागर्थ 


मनोज जैन "मधुर" द्वारा अब तक लिखे सभी अभिमतों की ' एक विनम्र अभिनव' प्रस्तुति !

"अभिमत"
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हमनें संख्याबल में सैकड़ों भूमिकाएं ब्लर्ब या फ्लैप नहीं लिखे पर जिन पर लिखे वह निसंदेह लाखों में एक हैं।
प्रस्तुत पोस्ट का हर चेहरा अपने आप में चर्चित है इस तथ्य से आप सब भली भाँति परिचित हैं।
मनोज जैन

1

बोधि प्रकाशन का एक पोस्टर 



 चर्चित नवगीत संग्रह


कवयित्री
अनामिका सिंह (शिकोहाबाद) उत्तर प्रदेश


कृति  "बहुरे लोक के दिन"

न बहुरे लोक के दिन कृति में ब्लर्ब 


                         2


दिखते नहीं निशान दोहा संग्रह


कवयित्री
गरिमा सक्सेना (बैंगलोर) कर्नाटका

सिर्फ लिफ़ाफे कर रहे
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             अपने उद्भव से लेकर विकास तक और विकास से लेकर अब तक दोहा छंद अपनी अनूठी विशेषताओं के कारण काव्य- जगत में सदैव लोकप्रिय तथा सर्जकों और पाठकों में समादृत रहा है । दोहा छंद ने जीवन के विविध पक्षों और विसंगतियों को उद्घाटित करने में अपनी महती भूमिका का निर्वहन किया है ।      
            अनेक रचनाकारों ने इस विधा को समय- समय पर अपनी लेखनी से समृद्ध किया है। इसी कड़ी में एक नाम गरिमा सक्सेना का और जुड़ने जा रहा है।
यह कहते हुये अत्यंत हर्ष का अनुभव कर रहा हूँ कि युवा कवयित्री गरिमा सक्सेना ने बहुत कम समय में दोहे को साध लिया है, सध जाने के उपरान्त साधक को न तो मात्राएँ गिनने की जरूरत होती है और न ही कथ्य शिल्प के जमावट के संकट का सामना करने की आवश्यकता रहती है । सार संक्षेप में कहें तो दोहे लिखे नहीं जाते बल्कि सिद्ध कवि की कलम‌ से दोहे स्वत: महुए के समान टपकते हैं।
           प्रस्तुत दोहा-संग्रह के विभिन्न खंडों से गुजरते हुए यह निर्विवाद रूप से कहा जा सकता है कि संग्रह के सभी दोहे कथ्य और शिल्प के निकष पर पूरी तरह खरे उतरते हैं । दोहों से तादात्म्य स्थापित करते हुए हमें अपनी समृद्ध परम्परा की झलक दोहों में यत्र-तत्र बिखरी मिलती है, तो वहीं दूसरी ओर भविष्य के गर्त में छिपे अनेक गूढ़ संकेत स्पष्ट दिखायी देते हैं।                           संग्रह के दोहों से गुजरते हुये कहीं हमें कबीर, रहीम याद आते हैं तो कहीं बिहारी, अर्थात् कथ्य की विविधता तथा संदेशप्रदता, भाषा और शिल्प की कसावट इन दोहों में दृष्टव्य है ; प्रकारान्तर से कहें तो इस संग्रह के दोहों से कवयित्री के कविकर्म-कौशल  का पता चलता है ।
कथन को सिद्ध करने के लिये दृष्टव्य है युगीन सन्दर्भ में कवियत्री का सुंदर बिम्बात्मक दोहे -
"फिसली जाती हाथ से, अब सांसों की रेत।
उम्मीदों के हो गये, बंजर सारे खेत।।"

                     यहाँ दोहे के मूल में छिपी संवेदना अत्यंत प्रशंसनीय है, संदेशप्रद है,सराहनीय है। इन दोहों में विषय की विविधता तो है ही साथ ही दृष्टि सम्पन्नता भी, जिसकी खुले मन से सराहना होनी ही चाहिये और यही गुण गरिमा सक्सेना को दूसरों से अलगाता है। वे अपने काव्य में युगीन संदर्भों एवं विसंगतियों को बड़े सलीके से उकेरती हैं। देखें उनका एक दोहा-

दिल से दिल का हो मिलन, 
कहाँ रही यह चाह।
सिर्फ लिफ़ाफे कर रहे , 
रिश्तों का निर्वाह।।

आशा है यह संग्रह रिश्तों में अपनेपन की ऊष्मा भरकर दिलों को जोड़ने में सफलता प्राप्त करेगा 
शुभकामनाओं सहित

-मनोज जैन
भोपाल

          

फ्लैप 

3


कृति "रिश्ते मन से मन के 

                 संतोष तिवारी
           (खण्डवा) मध्य प्रदेश



पुस्तक पर अभिमत 

4


बुन्देली कृति


फ्लैप भाग 1


फ्लैप भाग 2

ऐश्वर्य का सुख भोगते कवि 

        राज गोस्वामी (दतिया) मध्यप्रदेश


उगते सूर्य की एक झलकी 


5


 नवगीत कृति
बोलेंगे अब आखर 


राजस्थानी पगड़ी में कवि 

डॉ. मुकेश अनुरागी ( शिवपुरी ) म.प्र.

अभिमत
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आधुनिक सन्दर्भ में आँचलिक स्पर्श के नवगीत
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     युवा नवगीतकार मुकेश अनुरागी जी की रचना धर्मिता से मेरा अपना आकर्षण अनेक कारणों से है उनमें से जिस एक कारण को सर्वोपरि रखना चाहूँगा वह है उनका सनातनी छन्दों से अनुराग !  मुकेश अनुरागी जी ने अपनी काव्य यात्रा का विधिवत आरम्भ पारम्परिक छन्दों के अभ्यास से किया और अब वह पारम्परिक छंदों को साधते- साधते नवगीत की मुख्यधारा तक आ पहुँचे हैं। अनुरागी जी अपने नवगीतों में लोक जीवन से जुड़े टटके स्वस्फूर्त  बिंब रचने में सिद्धहस्त हैं। उनके नवगीतों की एक और अन्यतम विशेषता जो मेरे देखने में आई वह यह है कि अनुरागी जी आधुनिक संदर्भ में आंचलिक शब्दावली और लोक- लय का बखूबी प्रयोग करने में तत्पर दिखते हैं ।
              निःसन्देह अनुरागी जी अपने रचनात्मक स्तर पर पूरी तरह सजग और नवता के आग्रही हैं यही कारण है कि उनके नवगीत संग्रह  ' बोलेंगे अब आखर" के नवगीतों में रचनात्मक स्तर की बुनावट और बनावट की गठन शैली में अन्तरलय और बहिर्लय का सङ्गुम्फन विषय वस्तु के अनुरूप देखने का सुअवसर मिला।
           अपने समय की शुष्क संवेदना को कवि ने बहुत कम शब्दों में बड़ी सजगता से अन्तरलय दी है ;-द्रष्टव्य है उनके एक नवगीत की चंद पंक्तियाँ
है वाचाल समय / 
ज़िंदगी / 
ठहरी सी/
गगन छू रहीं ऊँची मंजिल/
बदले पर हालात नहीं।
चार रूम में चार जने हैं/
आपस में पर बात नहीं। 
काजू संग गिलास/
भर रहे/
साँसें गहरी सी/

मुकेश अनुरागी जी का कवि मन आन्तरिक संवेदनों की पड़ताल गहरे उतरकर करता है। इन्हीं क्षणों में वह जो कुछ भी महसूस करते हैं या यों कहें कि उनकी अन्तर्दष्टि उन सारे विषयों को सम्यक भाव से अपने काव्य का विषय बनाती चली जाती है।
रोजमर्रा की तमाम घटनाओं को उनका कविमन धारदार कथ्य में बाँधकर नूतन अभिव्यक्ति प्रदान करता है।
द्रष्टव्य है आभासी दुनिया पर रचे एक नवगीत के एक अन्तरे का अंश 
    "दूध मलाई वही खा रहे/
जिनने पांव पखारे/
खोई है पहचान स्वयं की/
पकड़े कई सहारे/
आभासी दुनिया में अपनी/
नहीं कभी बनती/
किसमें हिम्मत बांधेगा अब/
कौन गले घंटी/"
              उक्त अंश कवि की केवल रचना प्रक्रिया के आस्वाद का ही पता नहीं देता बल्कि तरल सरल संवेदनशीलता की खुलकर गवाही भी देता है। संग्रह के गीतों से गुजरते हुए मेरा ध्यान उनके एक नवगीत पर जाकर बार-बार अटका जिस गीत में उन्होंने "क्षमा" शब्द का बड़ा सार्थक प्रयोग किया है। अनुरागी जी का कवि मित्रों के गुण और दोष समान रूप से स्वीकार करता है वहीं दूसरी ओर गुणों से अनुराग तो करता वहीं, अवगुणों को बार बार इग्नोर ! 
प्रस्तुत है उनके एक गीत का अंश
"चाहा है यदि मन से तुमने   क्षमा दान सौ बार करो। 
माना कोई भी जीवन में सर्वगुणी संपन्न नहीं है। 
उर का सागर नेहसिक्त है
अंतर प्रेम विपन्न नहीं है
 कुछ ऐसा भी कर लो मित्रों
 अंतस प्रेमागार करो। 
 माना कोई भी जीवन में
 सर्वगुणी संपन्न नहीं है।         
 उर का सागर नेहसिक्त है
 अंतर प्रेम विपन्न नहीं है।
अपनाया है मन से तुमने
तो मन से व्यवहार करो।"

मैत्री के सन्दर्भ में
अनुरागी जी की सन्दर्भित 
पंक्तियाँ सम्बन्धों के अटूट सेतु का निर्माण करती हैं।

 विषय वैविध्य के चलते संग्रह के नवगीत भावुक मन पर अपना स्थाई प्रभाव छोड़ते हैं। यद्यपि उनका कवि सजग है लय को लेकर भी !  फिर भी उनका अंतर्मन जल्द ही लय पर पूरी तरह विजय  भी हासिल करेगा ऐसा विश्वास है । 
ख्यात नवगीतकार कीर्तिशेष विद्यानन्दन राजीव जी के परम शिष्य अग्रज अनुरागी जी के नवगीत विधा पर प्रयास और निरन्तरता उनके चिंतन के नये गवाक्ष खोलेंगे।मुकेश जी को उनके नवीनतम नवगीत संग्रह  'बोलेंगे अब आखर ' के प्रकाशन की शुभकामनाएं । आशा है साहित्य जगत में इस नवीनतम कृति का भरपूर स्वागत होगा।

             मनोज जैन
             106,विट्ठल नगर 
             गुफा मन्दिर रोड भोपाल
             462030


      हमारा एक और ब्लॉग हरसिंगार 

5


कृति के विमोचन के अवसर का एक चित्र 

    स्व. विनोद नयन (सागर) मध्यप्रदेश

अभिमत
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अग्रज विनोद कुमार नयन जी नैसर्गिक प्रतिभा संपन्न सफल साहित्यकार, यथार्थवादी कवि एवं समाज सेवक हैं। नयन जी से हुयी पहली भेंट के बाद सोचता रहा की श्री विनोद जी ने अपना उपनाम नयन ही क्यों चुना ? 
एक दिन अनायास उत्तर भी मन मस्तिष्क में कौंधा ! नयन यानी "आँख" मतलब पारदर्शिता, हमारी आँखें  जैसा है वैसा ही देखती है और यह बात अक्षरशः नयन जी के व्यक्तित्व पर भी लागू होती है।
               अर्थात नयन जी के व्यक्तित्व में पारदर्शिता कूट-कूट कर भरी है। वह जैसे  दिखते हैं ,वैसे ही हैं। वे जो कहते हैं, वही करते हैं, जो देखते हैं ,वही लिखते हैं नयन जी मुखोटे नहीं लगाते, बल्कि समाज के चेहरे पर लगे मुखोटों को हटाने का कार्य करते हैं। नयन जी के कवि ने साहित्य के माध्यम से मुखोटे हटाने का काम बखूबी किया है। संभवतः "कछू तो दुनिया खौं दे जाओ" श्री नयन जी की बुंदेली आध्यात्मिक भजनों पर आधारित दूसरी कृति है। इसके पूर्व उनकी "बेटियां हमारी शान" नाम से पुस्तक प्रकाशित हो चुकी है। जिसकी पाठकों खूब प्रशंसा की है।
प्रस्तुत संग्रह में कुल जमा 164 भजन हैं, जिसे कवि नयन जी ने संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज को समर्पित किया है,भजनों में श्री ने आध्यात्मिक दार्शनिक  सामाजिक  वर्गों में विभाजित कर जीवन के भोगे हुए यथार्थ का वर्णन किया है। भजनों की अनूठी शैली व्यक्ति परिवार समाज धर्म आदि के विभिन्न पहलुओं को छू ती हुई सीधे मन जगह बनाती है। भजन के पदों में अभिव्यक्त सत्य जीवन से गुजरने वाली घटनाओं का चित्रण करता है।

इसे स्वीकार करें या ना करें
श्री नयन जी की इसी कहन का कमाल उन्हें कबीर के समकक्ष भले ही ना खड़ा होने दें परंतु पर वह कबीर की परंपरा के अंतिम छोर पर अपने होने का एहसास अवश्य दिलाते हैं।
समय पर दृष्टिपात करें तो जैन साहित्य में भजनों की अपनी एक सुदीर्घ परंपरा रही है ।
       विविध विषयों पर जैन विद्वानों ने भजनों के माध्यम से आध्यात्मिक गंगा में सरोवर कराया है। भजन सर्जक की सर्जना की प्रक्रिया में चारों ओर आनंद ही आनंद होता है। "श्रोता" "पाठक" "प्रकाशक" और कवि के इस अनूठे चतुष्कोण के केंद्र में आनंद से परमानंद तक जोड़ने के इस प्रयास को मैं श्री विनोद नयन जी को उनकी इस अनूठी कृति "कछु तो दुनिया खौं दे जाओ" के लिए प्रणाम सहित ढेर सारी बधाइयां देता हूं।         आशा है, श्री नयन जी के इस प्रयास को, पंडित प्रवर दौलतराम धानत भागचंद मुन्ना लाल जी जैसे जैन कवि परंपरा को समृद्ध करने वाले इन आध्यात्मिक रसिको  की तरह याद किया जाता रहेगा इन्हीं शुभकामनाओं सहित 

मनोज जैन 
मधुर भोपाल

संतुलन की पराकाष्टा का एक सजीव चित्र

7


बाल किलकारी

मृदुभाषी सन्त ह्रदय कवि 

संत कुमार मालवीय (भोपाल ) मध्यप्रदेश

अभिमत
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अभिमत की एक छवि


      खिले फूल का अनुपम सौंदर्य

8


नवगीत कृति


आत्म विश्वास की मोहक मुद्रा में युवा कवि

      राहुल शिवाय, बेगूसराय (बिहार)

अभिमत का एक अंश


पुस्तक के बैक का एक पृष्ठ का अंश


प्रस्तुति
ब्लॉग वागर्थ


परिचय
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मनोज जैन

जन्म २५ दिसंबर १९७५ को शिवपुरी मध्य प्रदेश में।
शिक्षा- अँग्रेजी साहित्य में स्नातकोत्तर
प्रकाशित कृतियाँ-
(1) 'एक बूँद हम' 2011 नवगीत संग्रह
(2) 'धूप भरकर मुठ्ठियों में' 2021 नवगीत संग्रह
पत्र-पत्रिकाओं आकाशवाणी व दूरदर्शन पर रचनाएँ प्रकाशित प्रसारित। निर्मल शुक्ल द्वारा संपादित "नवगीत नई दस्तकें" तथा वीरेन्द्र आस्तिक द्वारा संपादित "धार पर हम (दो)" में सहित लगभग सभी शोध संकलनों नवगीत संकलित
पुरस्कार सम्मान-
मध्यप्रदेश के महामहिम राज्यपाल द्वारा सार्वजनिक नागरिक सम्मान 2009 म.प्र.लेखक संघ का रामपूजन मिलक नवोदित गीतकार सम्मान 'प्रथम' 2010 अ.भा.भाषा साहित्य सम्मेलन का सहित्यप्रेमी सम्मान-2010, साहित्य सागर का राष्ट्रीय नटवर गीतकार सम्मान- 2011
राष्ट्रधर्म पत्रिका लखनऊ का राष्ट्रधर्म गौरव सम्मान 2013
अभिनव कला परिषद का अभिनव शब्द शिल्पी सम्मान -2017
संप्रति-
सीगल लैब इंडिया प्रा. लि. में एरिया सेल्स मैनेजर
सोशल मीडिया पर चर्चित
समूह वागर्थ के प्रमुख संचालक
@ मनोज जैन "मधुर"
106 विट्ठलनगर गुफामन्दिर रोड 
भोपाल
462030

मोबाइल
93013780