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शनिवार, 14 दिसंबर 2024

एक बाल गीत

 बाल


आया भालू काला
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प्रस्तुति
मनोज जैन 

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एक रोज़ गुमटी पर आकर
बोला  भालू काला
चौरसिया जी पान बना दो
हमें बनारस वाला

इसमें नहीं डालना बिल्कुल
जर्दा और सुपारी
सेवन से हो जाता इसके
अपना तो सर भारी

ऊपर से दस बीस डालना
लाल-लाल-से दाने
कत्था भले लगा दो ज्यादा
दिन भर होंठ रचाने

तेज करो गुलकंद स्वाद में
उम्दा लगे निराला

सुनो बाँध दो चार एक है
मुझे यहीं पर खाना
कुछ भी करना ध्यान रहे पर
चूना नहीं लगाना

इन्तज़ार करता हूँ कहकर
मन ही मन गुर्राया
ठुमक ठुमक कर मन ही मन में
प्यारा गाना गाया

खुश हो जाता टोपी छूकर
कभी पकड़कर माला

देख भयानक भारी भालू
चौरसिया घबराएँ
मन ही मन बजरंगबली को 
और  राम को ध्याएँ

देर हो गई बहुत आज घर
मुझको जल्दी जाना
चौरसिया ने गढ़ा अचानक
मन में एक बहाना

बत्ती गुलकर जैसे-तैसे
भालू जी को टाला।

©मनोज जैन
चित्र साभार गूगल

गुरुवार, 12 दिसंबर 2024

मनोज जैन का एक बालगीत



एक बाल गीत
प्रस्तुति
मनोज जैन 
घर पर बैठक रखी अचानक,
चूहों के सरदार ने।
सुनो साथियो क्या तुमने भी,
ख़बर पढ़ी अख़बार में।।

बिल्ली, तुम सब जिसे जानते,
मोटी है, कजरौटी है।
अभी-अभी जो चारधाम से
तीरथ करके लौटी है।।
    
  बेशक कंठी माला इसने,
  अभी गले में डाली है।
  सुनो गौर से इसकी फ़ितरत,
  नहीं बदलने वाली है।।

तौर तरीके अपनाएगी,
नये हमें यह मारने।
सुनो साथियो क्या तुमने भी, 
ख़बर पढ़ी अख़बार में।

चीं-चीं चिक-चिक कर चूहों ने,
आपस में ही कीं बातें।
बिल्ली से भय खाने वाली,
याद की गईं सब रातें।।

जो जो निर्णय हुए सभा में,
सही सभी ने ठहराया।
छिपकर देख रही बिल्ली का,
सुनकर भेजा गरमाया।।

लिया तभी कुछ ऐसा निर्णय,
उस दुष्टा बदकार ने,
सुनो साथियो क्या तुमने भी, 
ख़बर पढ़ी अख़बार में।

हौले-हौले दबे पाँव फिर,
बैठी गई आँखे मींचे।
औचक कूदी वहाँ,जहाँ थे 
चूहे चार खड़े नीचे।।

थोड़ा ठहरो अभी बताती,
कहकर सबको धमकाया।
कितनी बदली तीरथ करके,
चूहों को यों बतलाया।।

मारा तेज़ झप्पटा उन पर,
बिल्ली लंबरदार ने,
सुनो साथियो क्या तुमने भी, 
ख़बर पढ़ी अख़बार में।

© मनोज जैन
चित्र गूगल से साभार
@everyone @highlight

गुरुवार, 5 दिसंबर 2024

मनोज जैन के बाल गीत प्रस्तुति वागर्थ

मेरी तीन बाल कविताएँ
प्रस्तुति
~।।वागर्थ।।~

एक

जाओ स्वेटर लेकर आओ
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खौं खौं खें खें करते रहते,
फिक्र नहीं है मेरी।
जाओ श्वेटर लेकर आओ,
करो न अब तुम देरी।
भोलू बंदर पड़ा सोच में,
बोल नहीं कुछ पाया।
किंतु रिझाने बंदरिया को,
उसने प्लान बनाया।

कूँद-फाँद कर बंदर पहुँचा,
एक भेड़ के घर में।
बोला बहिना मदद करो कुछ,
दर्द बहुत है सर में।
ठंड कड़ाके की है बाहर,
काँप रहा हूँ थरथर।
थोड़ी ऊन हमें तुम दे दो,
दया करो कुछ हम पर।

सुनकर भेड़ तैश में आई,
बोली प्यारे भाई।
आज जरूरत तुम्हें बहन के,
द्वारे तक ले आई।
बंदर भाई भूल गए क्या,
दया न हमसे माँगो।
माँगे जामुन तब तुम बोले,
चलो यहाँ से भागो।

दो

मेट्रो पकड़ी चिड़ियाघर की
प्रस्तुति
मनोज जैन 
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बढ़ता बजन देखकर अपना,
पड़ी सोच में बिल्ली।
रामदेव का योग सीखने,
मैं जाऊँगी दिल्ली।
      
स्लिम ट्रिम दिखूँ तभी मैं खोलूँ, 
ब्यूटी पार्लर अपना।
सँजो रखा बिल्ली मौसी ने,
एक सलौना सपना।

बैठ गई बंदे भारत में,
पहुँची सुबह सबेरे।
मेट्रो पकड़ी चिड़ियाघर की,
मित्र मिले बहुतेरे।

ताड़ासन में खड़ा हुआ था,
मोटा काला हाथी।
अलग अलग आसन में बैठे,
दिखे हजारों साथी।

एक टाँग पर खड़े हुए थे,
बकुल बने थे योगी।
भगवा पहने शेर महाशय,
बने हुए थे जोगी।

प्राणायाम किया बकरी ने,
सबके मन को भाया।
गोरिल्ला ने लटक डाल पर,
करतब नया दिखाया।

ऊंट कमर को सीधा करने,
कूबड़ के बल लेट।
करबट लेते धीरे-धीरे,
अपना बजन समेटे।

हाथों के बल खड़े हुए थे,
तगड़े बंदर मामा।
कदकाठी से लगते जैसे,
पहलवान हो गामा।

योग शिविर में बिल्ली जैसे 
जाकर बैठी आगे।
बजनी चूहे तभी कूँदकर जान
बचाकर भागे।

तीन

विटामिन डी
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सर्दी के दिन आते हैं।
मन को बहुत लुभाते हैं।
आओ सभी पहाड़ पर,
बोला शेर दहाड़कर।

बंदर बोला आते हैं।
भालू को भी लाते हैं।
बिल्ली से भी कह देना,
हम सब जंगल जाते हैं।

पीछे से बकरी बोली।
भेड़ हमारी हमजोली।
तुम पहुँचो हम आए जी,
जंगल मन को भाए जी।

पहुँचे सब जलपान पर।
शेर डटा चट्टान पर।
पहले थोड़ा गुर्राया,
फिर मीठा गाना गाया।

बोला तुम सब न्यारे हो।
मुझे जान से प्यारे हो।
अभी विटामिन डी लो जी,
खुली धूप में खेलो जी।

©मनोज जैन

बुधवार, 10 जुलाई 2024

राजेन्द्र सिंह जी के बालगीत

राजेन्द्र सिंह जी के बालगीत प्रस्तुति
वागर्थ : ब्लॉग





 गाता सूरज 

घूम के दुनिया आता सूरज
नया  सवेरा   लाता  सूरज
चिड़ियों की चुन चुन चुन से
सबको सदा  जगाता सूरज

लाल  पीला  होता गरमी में
हंसता और  सताता  सूरज
ठंड में सबका साथी बनाकर
मीठी  धूप   चखाता  सूरज 

वर्षा  में   बादल के संग संग
लुकाछिपी  दिखलाता सूरज
रूप  बदलता  खेल दिखाता 
नट नागर  बन  जाता  सूरज 

लप लप करता जलता लेकिन
तम    को   दूर  भगाता  सूरज
कभी ना रुकता कभी ना थमता
श्रम   के   गीत  सुनाता   सूरज 

जगमग जग को करता रहता
उत्सव  रोज   मनाता   सूरज
मां  के  हाथों  की  रोटी   सा 
हमें  बहुत  ही   भाता  सूरज 

।। बादल जी ।।

झूम  झूम  कर  आना  जी 
बादल  जल  बरसाना  जी
प्यासी  धरती  तुम्हे  निहारे
अपनी  प्रीत   निभाना  जी 

ढमक ढमक ढम बजा नगाड़े
बिजली  भी   चमकाना  जी 
आसमान  में  तरह  तरह  के 
लोक  नृत्य   दिखलाना   जी 

सूख   गए   जो  ताल  तलैये
इनमें  जल  भर  जाना   जी 
आग  में  तपते  सूरज  दादा
शीतलता      पहुंचाना    जी 

।। तितली ।।

बाग  बाग में डोल रही है
फूलों से कुछ बोल रही है
जैसे  सुंदर   प्यारी   कोई
दुल्हन घूंघट खोल रही है

रंग     बिरंगी    बदली   है 
तितली है  यह  तितली  है

छम छम नाच दिखाने वाली 
सबके   मन को  भाने वाली 
हरियाली और खुशहाली के
मीठे    गीत   सुनाने   वाली 

लगता  है   कोई   पगली  है
तितली   है   यह  तितली  है 

।। सरगम ।।

चिड़िया बोलीं चुन चुन चुन
कलियां बोलीं सुन सुन सुन
तितली बोलीं गुन गुन गुन 
नदियां बोलीं रून झुन झुन 

मेघा  गरजे  घन  घन घन 
नचे  मयूरा वन  वन  वन
चले पवनियां सन सन सन 
बरसे  पानी  छन  छन छन 

सूरज  दमके  दम  दम दम
चंदा  चमके  चम चम  चम 
छलके चांदनी चम चम चम 
किसने  छेड़ी   यह  सरगम