आठ,नवगीत
नवगीत---1
,गीत में ???होना चाहिए
गीत में क्या चाहते हो तुम,
सुनाऊंगा, सुनो,ताली,बजाओ॰॰॰
दर्द से छीने हुए कुछ कहकहे हैं।
टेंटुआ दाबे ,,पुराने अजदहे हैं ।।
भूख है, माला नहीं पर,गुन-
-गुनाऊंगा ,सुनो, ताली बजाओ॰॰॰१
गाँव सब जंगल हुए, परधान,भिड़हा ।
आमजन बचता हुआ लाचार खरहा ।।
हो चुके आशीष ही धृतराष्ट्र
गाऊँगा ,सुनो, ताली बजाओ॰॰२
इस सियासी ढोर ने हर फसल खाई ।
जाम सीलिंग फैन ने अर्थी झुलाई ।।
बाप पागल हो नचे डिस्को,
बताऊंगा, सुनो, ताली बजाओ॰॰३
नवगीत--2
शीर्षक--
रामधनी की दुल्हन काटे चढ़े क्वाँर की धान!
बरसाती जमुना सी , जूडा पूरा खोले है ।
फसल काटती फ़सल फसल से जादा डोले है ।।
हिरनी सहमे मेड़ पर खड़ा ताक रहा शैतान ॰॰1
धान नहीं वो खून पसीना नुनने आई है ।
बिटिया का गौना,अम्मा की यही दवाई है ।।
नहीं मिले मजदूर अकेले जुटी लगाये जान॰॰२
कोंछे से ही पोंछ पसीना,बिजना कर लेती ।
छांह हमारी दुश्मन हमको कहाँ छांह देती ।।
हंसे पीठ पर दबा पेट है कितना बेईमान ॰3
बूढ़ा बाल रंगे भौजी कहकर खीसें बाये ।
सरके बिस्तर की बातों के नश्तर सरकाये ।।
रतीराम को दूर भेज मंगवाए बीड़ी पान ॰4
नवगीत--3
शीर्षक-कितना है मजबूर किसान ॰॰॰॰
राजनीति ये खाजनीति अपनी खुजलाओ तुम।
ऊंट सी बढ़ी बिटिया खातिर घर बतलाओ तुम।।
बेबस बाप न देख सकी मर गई किया कल्यान॰1
फसल बचे घर की फसलें कब तक दांव लगाये ।
माँ है धरती!फट जाये!!आसमान गिर जाये!!!
रात चिलम पी,यूँ बर्राया,सुबह निकल गये प्रान॰
मर महुआ के टपके धरती कहाँ फटा करती ।
दो कांधे,छै आंसू,और मिली घर की परती ।।
कफन वही चिथड़ा था जिसमें खांसखांस दीजान ।
नवगीत 4
पवन बासन्ती---
पवन बासन्ती अगर तुम हो ?
सुनो, हवा का विष हरो॰॰
गाँव का प्रह्लाद खुद लोफड़ हुआ है।
वो बुआ बिल्ली का खुद लोमड़ हुआ है।।
रात भर बस्ती जली,होली कहाँ ?
करो ,कुछ तो करो॰॰॰१
फागुनी थिरकन हवा की तोड़ दी ?
तितलियों की आंख किसने फोड़ दी??
सूर वारिस शाह के पद गा रहे ?
कि भव बाधा हरो॰॰२
स्वप्न खेलें रँग ,हकीकत स्याह है ।
पेट में होरी, अधर पर आह है ।।
भूख उसको चौधरी घर ले गई !!
जियो, गर तो मरो !!॰॰॰३
नवगीत-5
वोट दो,चाहे मरो सब, बात इतनी जान लो,
भाइयों बहनों!!!
है अघोरी भूख मेरी बिलबिला सकती नहीं ॰॰॰॰॰
आग बखरी में लगी आँगन बुलउवा चल रहा है।
नाचती लंगड़ी बुआ को देख नउआ जल रहा है।।
चौधरी पगड़ी संभाले,टुन्न होकर, कह रहा है,,
भाइयों बहनों!!!
आग,तो चौपाल का छप्पर जला सकती नहीं ॰1
भेड़िये हैं, मेमनों को ,कर रहे हैं आज सानी।
लोमड़ी को कम न समझो,भेड़ियों की खास नानी
गाँव भर शमशान करकेगिद्ध हंस कर कह रहा है
भाइयों बहनों!!!
मुकुट को ये जन-चितायें,कुछ हिला सकती नहीं॰
गेरुए, नीले,हरे सौ सांप गर्दन कस रहे हैं।
ये,करोना,एक से हैं,लाश गिन गिन हंस रहे हैं।।
लाशखोरी कुर्सियों के पांव चाटें और कहते,
भाइयों बहनों!!!
नीति क्या?यदि आपदाअवसर दिला सकती नहीं
नवगीत--6
अब देखना!!!!
फिर बघर्रे ने बकरियों को सुलहनामा दिया,,
अब देखना!!
घर गृहस्थी, हार खेती,में, चकरघिन्नी हुई।
इस करोना में मिटा सिन्दूर मरघिन्नी हुई।।
फिर बिलौटे ने बया को मुफ्त बैनामा किया,
अब देखना!!
शौक फिर से बेंच छाँकड़ ,एक बोतल ले गई।
बेबसी फिर भूख के घर स्वयं आंचल दे गई।।
घुंघरुओं को मुकुट ने, रनिवास का झामा दिया,
अब देखना!!
लेखनी फिर लोक मन की पीर को दुत्कार कर।
भोगवादी,बजबजाहट,में नचे, अभिसार कर।।
मंच ,पन्नों, ने कमाई को,गज़ब, ड्रामा किया,
अब देखना!!
नवगीत-07
खिन्न ह्रदय की आज बाँसुरी मौन हुई..
आँगन में बेमन शोरों की भीड़ हुई..
संवेदन के अर्घ्य चढाऊँ मैं किसको,
घर की तुलसी नस्ल बदलकर चीड़ हुई..
छुन्नी मुन्नी ओढे चुन्नी ना घूमे,
बैठ बरोठे कोने मोबाइल चूमे..
तडी़ मार,अक्कड़ बक्क्ड़,आइस पाइस,
भूले,छुन्ना,नीली फिल्मों में झूमे..
घर में सम्बन्धों की छत्तें ध्वस्त हुईं,
बस आँगन में दीवारों की भीड़ हुई..१.संवेदन के..
आसों बुढी़ गैया भैया बेक गये.,
तब से अम्मा बहुत दुखी हैं जाने क्यों..
कहती हैं अब बडे़ हो गए सब बच्चे,
पुरखों को,उनकी बातों को माने क्यों..
बूढा़ नीम बहुत रोया सबने देखा,
खूँटे की बछिया,को टीसों हीड़ हुई..२..संवेदन के..
जीवन बाजारू रिश्ते रुजगारी हैं,
चुम्मा चुम्मा वेद रिचा पर भारी हैं..
विश्वासों में तके बघर्रा बैठा है,
आमन्त्रण लाक्षागृह ओढे़ भारी हैं..
प्रगति हुई ऊँची जैसे स्कर्ट हुई है,
बहुत स्वस्थ है दुनिया बस गुम रीढ़ हुई..३
संवेदन के.
----डॉ.अरुण तिवारी "गोपाल"
नवगीत--8
फोन भर दुनिया, हैं, सांसें, जब तलक पेमेण्ट हैं।
हर ओर डेवलपमेंट हैं!!
वेद पीडीएफ खुली,संग अप्सरा का एड था।
ॐके संग,स्क्रीन पर, सेनेटरी का पैड था ।
ज्ञान-भक्ति-प्रेम की ये सोल के काॅन्टेन्ट हैं ,,
तप बहुत अर्जेन्ट हैं!!
पुस्तकें बूढ़ीं,अभागे मन लिये,घूरे गईँ।
सीढ़ियाँ खुद ही उतरकर,वेब-कंगूरे गईँ।।
पुस्तकालय नग्न, कपड़े,ऐप के पेटेण्ट हैं,,
व्यास अब मर्चेंट हैं!!
अब किसी अभिमन्यु को गर्भस्थ पारायण कहाँ।
आज जीवनयुद्ध बीहड़तर हुआ सबको यहाँ।।
आनलाइन अर्जुनों के कृष्ण ही सरवेण्ट हैं,,
मठ हुए कान्वेंट हैं
डाॅ अरुण तिवारी गोपाल
8299455530
aruntiwarigopal@gmail.com
परिचय
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नाम-डाॅ अरुण तिवारी गोपाल
उपनाम-गोपाल
शिक्षा-एम एस सी(भौतिकी), एम ए
( हिन्दी ,संस्कृत ), पी एच डी, नेट,
जन्मदिन-29अगस्त,
1973, ग्राम- कुढ़ावल ,पो -देरापुर,जिला - -कानपुर देहात
व्यवसाय-अध्यापन
कृतियाँ-उत्तरछायावादी काव्य धारा (523पृष्ठ का,शोध ग्रन्थ,2009),पसीजे तुम नहीं क्यों (नवगीत/गीत संग्रह, 2012),तुलसीदास के निराला और मानसमेरु के मंजुल(समीक्षा कृति,2011),साहित्य की असाहित्यिक गतिविधियां(निबंध संग्रह),सुमिरन(चुने हुए छायावादी गीत अद्यतन),द अन्डरलाइन पत्रिका के गीत विशेषांक) का सम्पादन ,विभिन्न राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में नवगीत, गीत, गजलें, लेख, समीक्षा, समालोचना के शताधिक पत्रों में उपस्थिति।
सम्मान/उपाधियां-1-पद्मेश प्राच्य विद्यापीठ,कानपुर द्वारा, 1994,'दुर्गा प्रसाददुबे'पुरुष्कार महामहिम राज्यपाल श्री मोतीलाल वोहरा जी के कर कमलों से।
2-पारथ प्रेम समिति उरई द्वारा,' गीत ऋषि' सम्मान 2003
3-औरैया हिन्दी प्रोत्साहन निधि द्वारा 2009में,
4-मानस संगम कानपुर द्वारा, 2017में
5-'संस्कृति वाचस्पति '-कालिदास अकादमी दिल्ली से, 16-12-17को
6-'प्रमोद तिवारी स्मृति सम्मान'महाकवि सारंग जी की संस्था, दीपांजलि से,4/8/18
7-उन्नाव की शब्दगंगा संस्था द्वारा 'शब्द साधक'सम्मान।
8-विवेक भारती'की मनदोपाधि,2020,गोला,खीरी
प्रभृति संस्थाओं द्वारा अन्य पचासों सम्मान, पर असली सम्मान तो सृजन की प्रेरणा है।
सम्पर्क सूत्र-117/69,तुलसीनगर, काकादेव, कानपुर नगर,208025
aruntiwarigopal@gmail.com