शनिवार, 4 सितंबर 2021

मधु शुक्ला जी का एक बाल गीत प्रस्तुति वागर्थ

बाल गीत 

माँ मुझको भाती गौरैया। 
पास न पर , आती गौरैया। 

कभी अलगनी, कभी झरोखे 
खिड़की कभी बरोठे में  
कभी फुदकती फिरती आँगन 
 उड़ जाती  झट चौके में 
 बड़े  सबेरे  आती  घर में 
मुझे जगा जाती गौरैया ।

देख रहा हूँ कई दिनों से 
तिनका- दुनका जमा रही है 
फोटो के पीछे छुप- छुप कर 
एक घोंसला बना रही है 
मैं भी हाथ बटाना चाहूँ 
ची -ची चिल्लाती गौरैया। 

देखो कितना सुन्दर सा घर 
इसके लिए बनाया मैंने 
दाना- पानी औ' छोटा सा 
झूला एक सजाया मैंने 
पर जाने क्यों इसे देखते 
से ही कतरायी गौरैया। 

क्यों मुझसे इतना चिढ़ती है 
रूठी सी हरदम रहती है
मन करता इसके  संग खेलूँ 
पर ये दूर- दूर रहती है 
पल में छूमंतर  हो जाती 
हाथ नहीं आती गौरैया। 

सोच रही है माँ,  मन ही मन  
उत्तर में,   आखिर क्या बोले? 
'छोटू' की भोली बातों में 
बिहस रही बस होले- होले 
बचपन की कोमल सुधियों सी 
मन को  दुलराती  गौरैया। 

मधु शुक्ला, भोपाल।

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