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बुधवार, 15 सितंबर 2021

राजेन्द्र श्रीवास्तव जी के लोरी गीत




लोरी 

1-
 अब मत रो,चुप हो जा
 बहिना प्यारी, सो जा। 

 मत रो बहना सो जा-
 छोटी बहना , सो जा। 
  
 मम्मी-पापा आओ
 ढेर खिलौने लाओ। 
 गुड़िया को ले आना
 सुन्दर जूता-मोजा। 

  बरखा रानी आजा
  गुड़िया को नहला जा
  रेशम जैसे बालों को
   तू बूँदों से धो जा। 
          ***

2- 
अपनी बिटिया रानी को, लेकर गोद सुलाऊँ
ला ला  ला ला ला लोरी,  बिटिया तुम्हे सुनाऊँ 

गुड़िया हो जापानी तुम
बिटिया मेरी स्यानी तुम
जल्दी-से सो जाती हो, जब-जब तुम्हे सुलाऊँ 

चंदा सुंदर और भला
सोने वह चुपचाप चला
तुम भी अब चुप हो जाओ, झूला तुम्हे झुलाऊँ। 

दादा भैया भी सोया
ना मचला ना ही रोया
तुम पलकों को बंद करो, मैं निंदिया को बुलाऊँ। 
             ***

3- 
मेरे भैया मेरे भैया जल्दी-से सो जाओ
मेरे राजा भैया तुम, सपनों में खो जाओ

सपने में फिर आएगी, 
 सबसे सुंदर लाल परी
पर्वत कभी दिखाएगी,
 और कभी नदिया गहरी
चाँद-सितारों से भी तुम, भैया मिलकर आओ।

सपने में फिर आएगा, 
राजा जी का घोड़ा
बहुत तेज दौड़ेगा वह,
पानी पीकर थोड़ा
करना खूब सवारी तुम, उसको चने खिलाओ। 
                   ****. राजेन्द्र श्रीवास्तव

बुधवार, 8 सितंबर 2021

विनय त्रिपाठी जी के दो लोरी गीत प्रस्तुति : वागर्थ ब्लॉग


विनय त्रिपाठी जी
के दो लोरी नवगीत

__________

राजा मुन्ना, आजा मुन्ना 
मीठी निदिया सो जा रे
परियों के सपनों में सुंदर
मेरे प्यारे खो जा रे

ताजी-ताजी खीर बनी है
कुड्डन-कुड्डन तूँ खा ले
अठवाई संग धरी पंजीरी
थोड़ा बड़ा सा मुँह बा ले

मेरी गोदी आजा बेटा!
घाव हृदय के धो जा रे
किलकारी मनहारी से प्रिय!
बीज कला का बो जा रे



बुँदेली लोरी (प्रभाती) शब्दार्थ सहित-
-------------------

उठ बेटा! भई भोर
चिरेरू टेर रए
उठ बेटा! नई भोर
कि तारे हेर रए

ध्रुव जी कै रए
उठ जा बेटा!
तोए देखवे अब लौ ठैरे
देख जुँदइया!
सोऊ टेरै
आसमान में डारें डेरे

नौनी फुलवारी के फुलवा
तोरे देखे सें फूलत हैं
उन फूलन-डारन पै भौंरा
तोरे जगवे सें झूलत हैं

देख पुरबिया कैसी बै रई
आज लगे
हर दिन सें नई- नई

बछिया कुंदके हाँ ललचत है
बुला-बुला तोए बमकत है

उठ बेटा! भोर गई
चिरेरू टेर रए
उठ बेटा! भोर नई
कि तारे हेर रए

- विनय त्रिपाठी,३०/०८/२०२१

---------
प्रयुक्त बुंदेली शब्दों के अर्थ-
चिरेरू-पक्षी, टेरना-बुलाना, हेरना-देखना, ध्रुव-ध्रव तारा, कै- कह, तोए-तुझे, अब लौ-अभी तक, ठैरे-रुके, जुँदइया-चंद्रमा, सोऊ-वह भी, डारें डेरे-उपस्थित हैं, नौनी-सुंदर, फुलवा-पुष्प, तोरे-तुम्हारे, जगवे-जागने, पुरबिया-पूर्व से चलने वाली पवन, बै रई-चल रही, कुंदके हाँ-उछलने के लिए, बमकत है-कूँदती है।

प्रतिमाअखिलेश जी के लोरी गीत

ब्लॉग वागर्थ में आज प्रस्तुत हैं प्रतिमआखिलेश जी के चुनिन्दा लोरीगीत 
प्रस्तुति
ब्लॉग
वागर्थ
_____


1
बदली रानी

उमड़-घुमड़ कर खूब बरसना' बरसाना पानी पानी,
पहले सो जाने दो मेरी, गुड़िया को बदली रानी।

रिमझिम बूँदे बरसेंगी तो झूम-झूम वो नाचेगी,
रुनझुन-रुनझुन उसकी पायलिया, छूम छनन-छन बाजेगी।

उड़ जाएगी नींद नयन से तूने बात जो न मानी।
पहले सो जाने दो मेरी गुड़िया को बदली रानी।

जिसको सुन कर सो जाए वो, हो जाये सपनो में गुम,
बदली रानी अभी सुनाओ गीत ज़रा सा मद्धम तुम।

करना नही शरारत कुछ भी, और न करना मनमानी।
पहले सो जाने दो मेरी गुड़िया को बदली रानी।


2. 
बुंदेलखंडी लोरी


अरी सो गओ सबरो गाँव री।

पुरा-परौसन सो गओ पूरो सो गई नदिया -नाव री।
टुकुर-टुकुर जो तकै ललनवा मारे पलना पाँव री।
                 अरी सो गओ सबरो गाँव री।

बैलन की घण्टी गरे बाजे,बदरा गरज-गरज के गावै,
कौनऊ बारी के बेर झरावे,नौनी नीकी नींद भगावे।

सुअना टेरे अलख जगावै,कहाँ नींद को ठाँव री।
                 अरी सो गओ सबरो गाँव री।

मोरे ललना तुमखौ पाई ,तुम्हे देख जिये तुम्हरी माई
पढा लिखा के ठांडो करिहै, करियो लल्ला खूब कमाई।

भरी दुफैरी हम पा जाई,तुम सी ठंडी छाँव री।
                  अरी सो गओ सबरो गाँव री।


3

तकिया झालरदार

लाल पलंग पर लाल चदरिया तकिया झालरदार, 
जिसपर अब सोएगा मेरा नन्हा राजकुमार।

सोजा-सोजा रे कुमार तुझ पर मैं जाऊँ बलिहार ।

सपनों में आएगी निंदिया लेकर नए खिलौने, 
खूब खिलाये बात बनाए ज़रा न देगी रोने।

बिठा पीठ पर ले जाएगी सात समंदर पार।
तुझसे खूब करेगी प्यार सोजा-सोजा राजकुमार।


ज़रा मूंद ले अखियाँ लल्ला जल्दी-जल्दी सोजा,
मेरे राजाबेटा झटपट सुख सपनों में खोजा।

छोड़ ठुनकना वहाँ मिलेंगी चीज़ें कई हज़ार।
कैसी ठंडी चले बयार तेरा बिस्तर रहा पुकार।

सोजा-सोजा राजकुमार....।

4
चिरैया सोजा


छोटी सी चिरैया सोजा छोटी सी चिरैया।
गा-गाकर सुलाए तुझे दीदी और भैया।

चाचा की चकोरी लाडो मामा की है मुनिया, 
भैया और बहन की है तू  तो सारी दुनिया।

दिन भर तू नचाए हमे, घर में ता-ता थैया ।
छोटी सी चिरैया सोजा छोटी सी चिरैया।

दादाजी का चश्मा है तू दादी की घड़ी है,
नाना का सहारा तू ही नानी की छड़ी है।

अटपट-अटपट बोले हा-हा घर भर की गवैया।
छोटी सी चिरैया सोजा छोटी सी चिरैया।

5
 पलना में बाँधो झूमर।


पलना में बाँधो झूमर फुँदना और डोरी।
कहाँ हिरानी निदिया आज तुरतई दौरी।


सुंदर सलोनो सो रहो लल्ला,
ए मोड़ा-मोड़ी कुई करियो ने हल्ला।
उठ जेहे रो-रो ढ़ेर लगाहे,
एसो  नटखट पकरै है पल्ला।

गा -गा सुनाऊँ मैं लोरी, ले  बलैयाँ तोरी।
कहाँ हिरानी निदिया आजा तुरतई दौरी।

ढीठ उतारूँ डिठौना लगाऊँ,
सुन किलकारी बेझई रिझाऊँ।
झूमे दौरे खेले ललनवा
तुलसी चौरा अरघ चढ़ाऊँ।

तोरी ये बहियाँ गोरी,बने लाठी मोरी।
कहाँ हिरानी निदिया आजा तुरतई दौरी।

पलना में बाँधो झूमर फुँदना और डोरी।
कहाँ हिरानी निदिया आजा तुरताई दौरी।

6
निबुआ महक उठो आजा री


हरी-हरी बिरछा की डारी पे डारो, झूला मुनियाँ रानी,
अमरैया पे बैठी गावै न आवै निदिया रानी।

निबुआ महक उठो आजा री,महुआ महक उठो आजा री।
अरी अँखियन में आजा री, निदिया अँखियन में आजा रीsssss।

ऊँघन लगी फसल खेतन की, बगियन की तरकारी।
गैया बच्छा सो गए सबरे, और लरकी लरका री।

कैंथा महक उठो आजा री,मुनगा महक उठो आजा री।
अरी अँखियन में आजा री निदिया अँखियन में आजा री।

हरी-हरी बिरछा की डारी पे डारो झूला मुनियाँ रानी।
अमरैया पे बैठी गावे न आवे निदिया रानी।
सतुआ महक उठो आजा री,गन्ना महक उठो आजा री।

7
मैया झूला झुलावै

काहे न आनि सुवावै निदरिया काहे न आनि सुवावै।
सोवे सलोनो मूँदे पलकें, मैया झूला झूलावे।
             ..   निदरिया काहे न आनि सुवावै।

सुग्गा मैना कहैं कहानी,चिडिय़ा  गीत सुनावै।
खूब खुआऊँ रबरी मलाई,जो तू अँखियन आवै।
                  निदरिया काहे न आनि सुवावै।


बेला मोगरा से मालनियाँ सुंदर पलना सजावै
कह सुनार से आजहि दे दऊंँ पैजनियाँ गढवावै।
     .          निदरिया काहे.......

झुनझुना बाजनो झूम पवनियाँ झुन-झुन ऐसो बजावै,
अरे कन्हैया तोरी मैया मीठी लोरी गावै।
                निदरिया काहे न आनि सुवावै।

प्रतिमा अखिलेश
_____________


परिचय
_____
नाम--  प्रतिमाअखिलेश
पति--  अखिलेश सिंह श्रीवास्तव
जन्म---   6 मई
सम्प्रति--- उपाध्यक्ष वोल्गा वेलफेयर ऑर्गनाइजेशन
शिक्षा-- एम. कॉम.
विधा--  कविता गीत बाल साहित्य
प्रकाशन--- 

तुम हो तो (काव्य संग्रह)
सुंदर एक अयोध्या नगरी
रंग मंच के नन्हे तारे(बाल नाटक)
महारानी मन्दोदरी(कथा काव्य)
 4 साझा संग्रह,
रुद्रदेहा (पति के साथ साझा उपन्यास)

सम्मान--- 
साज सारंग अलंकरण जबलपुर
स्व बालशौरि रेड्डी सम्मान उज्जैन
ओम साहित्य सम्मान गाडरवारा
सुश्री चन्द्रवतीराघव भोपाल
काव्य कुमुद ग्वालियर
 कादम्बरी सम्मान जबलपुर
तुलसी सम्मान बालाघाट मित्र सम्मान झांसी
 साहित्य सौरभ सुल्तानपुर
 पाथेय सम्मान जबलपुर
राष्ट्रीय चेतना गौरव छपारा
सुभद्रा कुमारी मंच सिवनी
भागलपुर से विद्यावाचस्पति उपाधि।

संपर्क    दादू मोहल्ला  संजयवार्ड सिवनी
9407814975

शनिवार, 4 सितंबर 2021

दीपक पंडित जी का एक लोरी नवगीत

लोरी गीत





चंदा मेरे चंदा सो जा,
तुझको नींद सुला दूँ रे।
सपनों की प्यारी दुनिया में,
आ तुझको पहुँचा दूँ रे।

नींद सुहानी तुझको आये
भले रात भर मैं जागूँ 
तेरी नन्ही सी दुनिया में
चाँद सितारे मैं टाँकूँ 
मैं अपनी निश्छल ममता का,
अमरित तुझे पिला दूँ रे।

तेरी इन चंचल आँखों से
नींद भला क्यों रूठी है
सपनों की रंगीली दुनिया
काहे पीछे छूटी है
आ तुझको मैं लोरी गाकर,
सपनों से मिलवा दूँ रे।

जब तक तुझको नींद न आये
मैं कैसे सो सकती हूँ
तेरी सब खुशियों से बेसुध
मैं कैसे हो सकती हूँ
तेरे आगे मैं दुनिया की,
सब ख़ुशियाँ ठुकरा दूँ रे।

चंदा मेरे चंदा सो जा,
तुझको नींद सुला दूँ रे।
सपनों की प्यारी दुनिया में,
आ तुझको पहुँचा दूँ रे।

दीपक पंडित


9179413444
01/09/2021

टिल्लन वर्मा जी के दो लोरी नवगीत प्रस्तुति ब्लॉग : वागर्थ

लोरी नवगीत
__________
टिल्लन वर्मा



सो जा-सो जा राजदुलारे, मेरे  प्यारे  छैया ।
सोजा-सोजा मेरे छौना, मेरे कृष्णकन्हैया ।।

            एक परी उड़ आएगी
            मीठा - मीठा  गायेगी
            सिर पर हाथ फिरायेगी
            नींद तुझे आ जायेगी
तब  मैं  तुझे  उड़ा दूँगी, मेरे लाल रजैया ।

            जिस पल तू सो जायेगा
            सपनों  में  खो जाएगा
            दूध-दही,घी-माखन खा
            खूब  बड़ा  हो जाएगा
फिर तू भी कम्पूटर गिटपिट खूब चलाना भैया ।

            लोरी  तुझे  सुनाती हूँ
            सीने  से  चिपकती  हूँ
            फिर भी सहज तुझे नटखट
            सुला  नहीं  मैं पाती हूँ
बहुत अधिक मत मुझे सता रे, मैं हूँ तेरी मैया ।

~~~~~~~~~~~👏~~~~~~~~~~~


लोरी                                  ■ टिल्लन वर्मा

दिन ढलते ही सभी परिन्दे, 
        अपने-अपने घर को भागे ।

चील-बाज़ सब भाग रहे हैं
       झुण्ड कबूतर के भी भागे
तीतर  के  पीछे  तीतर  हैं
       तीतर  के  हैं  तीतर आगे

सुबह देर तक जो सोते हैं, 
       वो हैं  सचमुच बड़े अभागे ।


जंगल में सन्नाटा पसरा
    सोये  शेर  गुफ़ा  के  अंदर
बन्दर सोये, ढूँढ ठिकाने
   मुँह ढककर सो गए सिकन्दर

लेकिन उल्लू रात-रातभर, 
         जानें किस मतलब से जागे ।


चन्दामामा छत पर उतरे
     अब तो सोजा मेरे छैया
बहुत रात हो गयी लाड़ले
     करे  चिरौरी  तेरी  मैया

सूर्य गया अपनी कक्षा में, 
         उसने तपिश भरे पल त्यागे ।

ईश्वर दयाल गोस्वामी जी के तीन लोरी नवगीत

"बाल किलकारी"  
____________

                       कॉलम में वागर्थ  प्रस्तुत करता हैं काव्य मर्मज्ञ ईश्वर दयाल गोस्वामी जी के तीन लोरी नवगीत।
आप भी इस कॉलम के तहत अपने या अपने मित्रों के बालगीत प्रकाशनार्थ भेजें।

 प्रस्तुति
वागर्थ
सम्पादक मण्डल





(1)

लोरी नवगीत 
----------------

बिटिया !
सो जइए री !
किसने 
हरी तेरी निंदिया ?

बाहर सोया,
भीतर सोया ।
चिड़िया सोई,
तीतर सोया ।
ताल,कूप को 
सुला-सुला कर
सोई गहरी नदिया ।

चूल्हा सोया,
लकड़ी सोई ।
अंगारों की
आगी सोई ।
सटी हुई
चूल्हे से भूखी
सोई कानी कुतिया ।

गुड्डा सोया,
गुड़िया सोई ।
बँधी सार में
बछिया सोई ।
थके और
सुंदर माथे पर
माँ के,सोई बिंदिया ।

बिटिया ! 
सो जइए री ! 
किसने 
हरी तेरी निंदिया ?

(2)

              
 लोरी गीत 
------------

सोईए 
गोपाल लाल !
पहर चढ़ी रैना ।

पालने की डोर थकी,
काजरे की कोर थकी ।
थक चुका है
शोर सब, 
और थकी चैना ।

थक चुकी खटाई सब,
दूध औ' मलाई सब ।
थक चुकीं
जलेबियाँ भी
और थका छैना ।

सोईए
गोपाल लाल !
पहर चढ़ी रैना ।

     (3)
          
लोरी गीत 
-------------

नींद  मेरे  लाल की 
जो उड़ी,तो क्यों उड़ी ?

थपकियाँ  मचल रहीं,
लोरियाँ  सिसक  रहीं ।
ख़्वाब की  तलाश में
हकीकतें खिसक रहीं ।

आस  में  निराश  की,
आ कड़ी ये क्यों जुड़ी ?

पालने  की  डोर-सी
आँख क्यों तनी-तनी ?
नींद  और  रात की
रार  क्यों  ठनी-ठनी ?

हाथ  मेरे  आ ख़ुशी
जो छुड़ी,तो क्यों छुड़ी ?

नींद को बना कजर,
आँख  में  सजाऊँगी ।
डोर खींच रात की,
पालना   झुलाऊँगी ।

प्यार की दशा-दिशा
जो मुड़ी,तो क्यों मुड़ी ?

नींद  मेरे  लाल  की 
जो उड़ी,तो क्यों उड़ी ?

                  --- ईश्वर दयाल गोस्वामी 
                      छिरारी (रहली),सागर
                      मध्यप्रदेश ।

शुक्रवार, 3 सितंबर 2021

विजय बागरी विजय जी का लोरी नवगीत

बाल किलकारी में प्रस्तुत है एक लोरी नवगीत
कवि विजय बागरी विजय जी की कलम से

प्रस्तुति 
वागर्थ

लोरी नवगीत
________

चंदन  का   है  झूला
रेशम  की   है   डोरी।
सो जा  गुड़िया रानी
सुनकर माँ की लोरी।।

लेकर  परी  कहानी।
आजा निंदिया रानी।।
गुड़िया को आकर दे,
सपनों की गुड़धानी।।

झूला   तुम्हें  झुलाते
चंदा   और   चकोरी।
सो जा  गुड़िया रानी
सुनकर माँ की लोरी।।

थपकी दे  सहलाती
गीत प्यार  के गाती।
सपनों की फुलवारी
तुमको पास बुलाती।।

देगी   सुबह  'सुनंदा' 
भरकर  दूध  कटोरी।
सो जा  गुड़िया रानी
सुनकर माँ की लोरी।।

मेरी   गुड़िया  प्यारी
फूलों सी  सुकुमारी।
ममता के आँचल में
लगती   राजकुमारी।।

मेरी    लाडो   न्यारी
कंचन   जैसी   गोरी।
सो जा  गुड़िया रानी
सुनकर माँ की लोरी।।

----विजय बागरी 'विजय'

दो बाल गीत

मेहा मिश्रा 
              के
                  दो बालगीत
    
                          प्रतिभाशालिनी कवयित्री मेहा मिश्रा जी जमशेदपुर से हैं और छंदोबद्ध रचनाओं में खासी पकड़ रखती हैं। वागर्थ मेहा मिश्रा जी का बहुत आभार व्यक्त करता है।


प्रस्तुति
वागर्थ

______

सो जा बिटिया रानी सो जा, सपनों के बुन धागे।
तारे सोए चंदा ऊँघे, क्यों तू प्यारी जागे।।

सोया आँगन, सोई तुलसी, गलियाँ सोईं सारी।
सोया बनिया सोया पंडित, सोया देख भिखारी।
सोया बंदर, सोया भालू , सोया हाय मदारी।
कह दे राजदुलारी तेरी, आएगी कब बारी।
मटरू भौं-भौं करता सोया, जो दिन-दिन भर भागे।।

लोरी के झूले में आ कर, पेंगें ले ले ओ री!
सुंदर-सुंदर सपनों से तू,भर ले आँखें कोरी।
ओ बातूनी बातों से तू, करती मन की चोरी।
आँखों के पत्ते पर ढेले, सपनों के रख छोरी।
नींद भरे रसगुल्ले मैया, देखो गुड़ में पागे।

आ जा पलकों पर मैं रख दूँ, एक कहानी तेरी।
कैसे ठिगना बौना तोड़े, ऊँची-ऊँची बेरी।
कैसे राजकुमारी कहती, यह बेरी है मेरी।
कैसे घबराती थी वह जब, आती रात घनेरी।
जादूगर रहता था कोई, जंगल के बस आगे।।

मेहा मिश्रा
________


खा ले बिटिया,खा ले बिटिया
रबड़ी खीर मलाई।
अम्मा पीछे-पीछे दौड़े
लेकर बाल-मिठाई।।

छज्जे पर अखरोट मजे से,
रोज गिलहरी खाती।
गौरैया गेहूँ की बाली, 
नित्य खेत से लाती।
तू भी खाले बिटिया रानी,
लड्डू पेड़े  लाई।।

रट्टू तोता दिन-भर खाए,
मिर्ची मोटी-मोटी।
कौवा छत पर जा कर खाता,
मक्के की दो रोटी।
तू भी माखन खा ले जैसे,
खाते कृष्ण-कन्हाई।।

गैया चर कर पगुराती है,
बछड़ा खाए भूसा।
तितली ने खिलती कलियों का,
फूलों का रस चूसा।
हलवा-पूड़ी खा ले बिट्टो,
अम्मा ले कर आई।

मेहा मिश्रा
________