शुक्रवार, 25 मार्च 2022

डाॅ.परशुराम शुक्ल विरही जी के जन्म दिन पर विशेष : आलेख अरुण अपेक्षित जी प्रस्तुति वागर्थ

 डाॅ.परशुराम शुक्ल विरही - आज जिनका 94 वां जन्म दिन है





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परमपिता परमेश्वर से उनके उत्तम स्वास्थ्य की कामना है।

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परमश्रद्धेय डाॅ.परशुराम शुक्ल विरहीजी ंशिवपुरी नगर के ही नहीं अपितु पूरे प्रदेश और देश के लिये एक बड़े और प्रतिष्ठित साहित्यिक हस्ताक्षर है। उनकी रचनाधर्मिता स्तुत्य है और उनकी रचनाधर्मिता के अनेक आयाम है। लेखन के क्षेत्र में वे एक संवेदनशील-कवि, प्रतिष्ठित-लेखक, सटीक और सहज-अनुवादक, खोजी-इतिहासकार तथा सच्चे और अच्छे-समालोचक हैं। वे अपने लेखन की प्रत्येक विधा में निपुर्ण और अनुकरणीय हैं। डाॅ. विरही एक सक्षम लेखक तो हैं ही एक सक्षम और आदर्श आचार्य भी रहे हैं। उनकी प्रबुद्धता और ज्ञान उनके लेखन में ही नहीं उनके व्याख्यानों, वक्तव्यों और व्यक्तित्व में भी झलकती है। वे एक अच्छे वक्ता और मंच-संचालक हैं इसके साथ ही उनके व्यक्तित्व का एक रूप समाज-सेवी का भी है। वे एक सर्मित समाज-सेवी रहे हैं। लायन्स क्लब शिवपुरी के सक्रिय सदस्य और पदाधिकारी के रूप में आपके माध्यम से अनेक सामाजिक-कार्य सम्पन्न हुये हैं। विनम्रता उनके व्यक्तित्व का सबसे आकर्षक पक्ष है। सरलता और सहजता की प्रतिमूर्ति आदरणीय डाॅ.विरही मेरे गुरु हैं-यह कहते हुये मुझे अत्यंत गर्व और गौरव का अनुभव होता है। मेरी जैसे अनेक पाषाणों को तराश कर उन्होंने सुंदर प्रतिमा के रूप प्रदान कियाा है। 25 मार्च 2022 को अर्थाथ आज वे अपने जीवन के 93 वर्ष पूर्ण कर 94 वर्ष में चरण रख रहे हैं। हम डाॅ.विरहीजी को उनके जन्म दिवस पर शतायु होने की कामना उस परम-पिता से करते हैं साथ ही उन्हें निरोगी तथा स्वस्थ्य रखने की प्रार्थना भी करते हैं। विगत दो वर्ष से मेरी उनसे प्रत्यक्ष भेंट नहीं हुई है। दो वर्ष पूर्व भी डाॅ.विरहीजी को हम सब शिवपुरी नगर के रचनाकारों ने परोक्ष रूप से ही डिजिटल माध्यम से जन्मदिन की बधाई दी थी। दो वर्ष से लगातार यह विवशता बनी हुई है। मेरी विवशता तो यह भी है कि मैं शिवपुरी के स्थान पर इंदौर में हूं। 

  डाॅ.परशुराम शुक्ल विरहीजी ने हिन्दी साहित्य को अपनी लेखनी से आपने 35 से अधिक ग्रंथ प्रदान किए हैं। इसके साथ ही रेडियो तथा दूरदर्शन पर भी आपका प्रसारण अनेक बार हुआ है। अनेक साहित्यिक संस्थाओं के वे पदाधिकारी संरक्षक, मार्गदर्शक, परामर्शदाता और अध्यक्ष रहे हैं। सन 1962 से वे लगातार शिवपुरी में निवासरत हैं। वे मूलतः उ.प्र.के तालबेहट ललितपुर के निवासी हैं। फिर भी परिचय के क्रम में यह बताना आवश्यक हो जाता है कि आ.विरहीजी का जन्म 25 मार्च 1929 (फाल्गुन पूर्णिमा विक्रम संवंत 1995) को तालबेंहट ललितपुर में हुआ था। आपके पिता नागपुर में रेलवे में नोकरी किया करते थे। जब आप मात्र तीन माह के थे तभी वे अपनी मां के साथ तालबेहट से नागपुर चले गए थे। जब आप मात्र दो साल के तभी आपकी मां का स्वर्गवास हो गया। पिता अपनी पत्नी की फूल (अस्थियों) विर्सजन के लिए नागपुर से रामटेक गए तो फिर वहां से कभी लोटे ही नहीं। पता नहीं उन्होंने अपनी पत्नी के फूल (अस्थियों) के साथ स्वंय जल समाधि ले ली अथवा संयासी हो गये, पर इसके उपरांत उन्हें कभी खोजा ना जा सका। पिता के खो जाने के उपरांत उनकी बड़ी मौसी श्रीमती पंखी पटेरिया जो नागपुर में ही निवास करती थी तथा उनके पति अर्थाथ विरहीजी के मौसाजी जो रेलवे में उनके पिता के सहकर्मी थे, उन्हें अपने पास ले आए और अपने पास रख लिया। कुछ समय उपरांत विरहीजी की नानी श्रीमती पारवती शुक्ला उनको आपने पास तालवेंहट ले आयीं और आपका पालन-पोषण अपने पुत्र की तरह करने लगीं। विरहीजी की नानी खेती-बाड़ी का काम करवाती थी। उनका अपना कोई पुत्र न था, इस लिये उन्होंने शिशु परशुराम को बाकायदा गोद लेकर अपना पुत्र बना लिया।

डाॅ.विरहीजी ने जब मिडिल पास कर लिया तब आगे की शिक्षा के लिये आपको एक बार पुनः नागपुर भेज दिया गया पर ग्राम तालबेहट में नानी अकेली थी वे बालक विरहीजी के प्रति बहुत चिंतत रहती थी -इस लिये उनकी यह ममता एक बार फिर विरहीजी को नागपुर से तालवेंहट खींच लाई। इसके बाद आपकी आगे की शिक्षा अपनी छोटी मौसी श्रीमती रामकुंवर पाठक के पास ललितपुर में हुई और यहां रह कर आपने हाई-स्कूल की परीक्षा पास अच्छी श्रेणी के साथ कर ली। 

डाॅ.विरही सन 1945 से ही कवितायें लिखने लगे थे। आपको स्थानीय स्तर पर एक कविता प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार भी दिया गया। 16 वर्ष की आयू में आपका विवाह सौ.आं.कस्तूरीजी से कर दिया गया। आगे की शिक्षा के लिए 1948 में आप कानपुर आ गये। यहां आपने दयानंद सरस्वती महाविद्यालय में प्रवेश लिया। शिक्षा के व्यय निकालने के लिए नोकरी भी की। पारिवारिक जिम्मेदारियों ने एक बार फिर आपको ललितपुर आने के लिए विवश कर दिया शिक्षा को स्वाध्यायी छात्र के रूप में पूरा करते हुए आपने बीमा ऐजेंट, राशनिंग-क्लर्क, इंसपेक्टर तथा अध्यापक की नोकरी भी की और जब प्राइवेट एम.ए.हो गया तो पी.एच.डी.के लिए तैयारी प्रारम्भ कर दी। ‘‘आधुनिका हिन्दी काव्य में यर्थाथवाद‘‘ विषय पर 1962 में आपको डाॅक्ट्रेट की उपाधि प्राप्त हो गई। इसी साल आपको शिवपुरी महा विद्यालय में प्राध्यापक की नोकरी मिली। इसके बाद आप शिवपुरी के और शिवपुरी आपकी हो गई। यहीं से सेवा-निवृत होने के उपरांत आप अपने परिवार पुत्र श्रीअनुपम शुक्ल, पुत्रवधु श्रीमती ममता, पौत्र निशांत, नीहार, पौत्री हर्शुल के साथ आनंद पूर्वक रह रहे हैं। 

डाॅ.विरहीजी की कृतियों की चर्चा की जाये तो अभी तक प्रकाशित उनके 32 ग्रंथों में 22 मौलिक, 03 अनुदित, 07 सम्पादित हैं। इनके अलावा 11 ग्रंथ ऐसे भी हैं जिनमें वे सहयोगी रचनाकार के रूप में सहभागी रहे हैं। रेडियो और दूरदर्शन से भी आपका प्रसारण होता रहता है। सन 2009 में श्री बालस्वरूप राही के द्वारा निर्मित और सम्पादित 26 समकालीन कवियों की कवि-माला का क्रमषः प्रसारण दूरदर्शन के भारती-चैनल के द्वारा किया गया था। इस धारावाहिक का नाम ‘‘गूंजते स्वर‘‘ था। विरहीजी के द्वारा लिखे गये अथवा अंग्रेजी से अनुवादित किये गये प्रमुख-ग्रंथ इस प्रकार हैं-1.अनथके प्राण 2. आधुनिक हिन्दी काव्य में यर्थाथवाद 3.आधुनिक कवियों का जीवन दर्शन 4.ओ दृष्टा मन 5. आदमी का डर 6.अन्तर्यात्रा, 7.अमर होते स्वर, 8.अपने हिस्से का उजाला 9.जिंदा शहीद, 10.बुंदेलखंड की संस्कृति 11.बुंदेली लोकगीत और लोक संस्कृति 12.फ्रायड के साथ 13.अपना अपना सच 14.तात्या टोपे बुंदेलखंड में 15.संस्कृति के दूत 16.लोक संस्कृति: अवधारणा और तत्व 17.नवजागरण और साहित्य 18.गौतम बुद्ध का बुनियादी चिंतन 19.दोहे से बोली गजल 20.तुलसीदास का चिंतन 21.लोक रंजनी 22.फ्रांटामारा-अनुवाद 23.द प्रोफेट-अनुवाद 24.संत बेनेदिक्त-अनुवाद। 

 विरहीजी के सम्पादित ग्रंथों में सन 1857 के क्रांति के पत्र इतिहास के महत्वपूर्ण दस्तावेज हैं। इन पत्रों के संकलन कर उनके अनुवाद के इस प्रयास में तात्कालिक सूचना एवं प्रकाशन अधिकारी और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आनंदसिंह का स्मरण करना आवश्यक प्रतीत होता है। रजत-नीरजना में उ.प्र.के ललितपुर जिले के स्वतंत्रता संग्राम का जीवन परिचय संकलित किया गया है। यात्रायें और संस्मरण, विविधा, गांधी शताब्दी, बुंदेलीवाणी, प्रतिविम्ब उनके द्वारा सम्पादित ग्रंथ हैं। इसके अलावा कम से कम एक दर्जन ऐसे संकलन हैं जिनमें विरहीजी सहयोगी रचनाकार के रूप में प्रकाशित हैं।

 डाॅ.विरहीजी को उनके इस रचनाकर्म के परिणाम स्वरूप देश के अनेक महत्वपूर्ण और प्रतिष्ठित सम्मान तथा पुरस्कार प्राप्त हुये हैं। इनमें-डाॅ.शंकरदयाल शर्मा सृजन सम्मान, त्रिभुवन यादव पुरस्कार, ईसुरी पुरस्कार, डाॅ.संतोष कुमार त्रिवेदी समीक्षा सम्मान, राष्ट्रीय हिन्दी सेवी सहस्त्राब्दी सम्मान, पंकिल आलोचना सम्मान, अखिल भारतीय गौरव सम्मान, रामेन्द्र तिवारी सम्मान, साहित्य मार्तण्ड सम्मान, अखिल भारतीय बुंदेली साहित्य सम्मान, अखिल बुंदेली राव बहादुरसिंह सम्मान, ठाकुर संभरसिंह सम्मान, साहित्य सम्मान, साहित्यकार कल्याण सम्मान, साहित्य वाचस्पति सम्मान, सोम सम्मान, साहित्यार्चन सम्मान, अक्षरआदित्य सम्मान, प्रतिभा सम्मान, टैगोर परिषद पुरस्कार तो प्राप्त हुये ही हैं। इसके अलावा अनेक बार उनका सार्वजनिक नागरिक अभिनंदन किया गया है। 

 डाॅ.विरही की कविताओं में ही नहीं उनके गद्य में भी मौलिक भावाव्यक्ति, विचारों की नवीनता, नवीन शिल्प-विधान, जीवन के प्रति स्वस्थ्य दृष्टिकोण, अनूठे विम्ब-बिधान और प्रतीकात्मकता, जीवन का यर्थाथपरक चित्रण, आदर्शोन्मुखी प्रेरक संदेश, गहन अनुभूति के दर्शन होते हैं। उनकी कविताओं में गद्य की सहजता और सरलता है तो उनकी गद्य में भी काव्य की सरसता और मधुरता है। उनके पास शब्दों का अक्षय और अपार भंडार है जो उनकी भाषा को बड़ा व्यापक फलक प्रदान करता है। बुंदली,सरल हिन्दी, संस्कृतनिष्ठ हिन्दी, उर्दू, बुंदेली और अंग्रेजी ही नहीं कहीं कहीं वे भावों के अनुसार अपनी शब्दावली गढ़ भी लेते हैं। उनका अध्ययन, जीवन का व्यापक अनुभव और गहन संवेदनशीलता उनकी रचनाओं में उभर कर आती हैं। हम उनके लेखन की साधना को सादर प्रणाम करते हैं। एक बार पुनः आदरणीय विरहीजी को जन्मदिन की अनंत शुभकामनायें।

अरुण अपेक्षित

25 मार्च 2022

इंदौर म.प्र.