सत्यनारायण जी के नवगीत
संक्षिप्त जीवन परिचय
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कवि का नाम : सत्यनारायण।
जन्म : 13, सितम्बर, 1935 ई.।
ग्राम- कौलोडिहरी, अंचल सहार, जिला-भोजपुर [बिहार]
शिक्षा : एम.ए.[इतिहास],
प्रकाशित कृतियाँ : 'तुम ना नहीं कर सकते' [कविता संग्रह], 'टूटते जल बिम्ब' [नवगीत संग्रह], 'धरती से जुड़कर' नुक्कड़ कविता [पत्रिका-संपादन], 'सभाध्यक्ष हंँस रहा है' [गीत-कविता संग्रह], 'समय की शिला पर' [संस्मरण], 'प्रजा का कोरस' [काव्य संग्रह] 'नवगीत अर्द्धशती' संपादक- डॉ.शंभुनाथ सिंह, 'धार पर हम' संपादक- वीरेन्द्र आस्तिक, 'समर शेष है' [बिहार आंदोलन से जुड़ी नुक्कड़ कविताएंँ] संपादक- डॉ.रवीन्द्र राजहंस जैसे महत्वपूर्ण समवेत संकलनों में रचनाएंँ संग्रहीत।
अन्यान्य : हिन्दी की प्रायः सभी पत्र-पत्रिकाओं में नवगीत कविताओं का प्रकाशन एवं आकाशवाणी, दूरदर्शन के विभिन्न प्रसारण केन्द्रों से प्रसारण। सन् 1974 के बिहार आंदोलन में सक्रिय भागीदारी एवं जनजागरण हेतु नुक्कड़ों पर काव्य पाठ।
सम्मान एवं पुरस्कार : 'टूटते जल बिम्ब' को सर्वश्रेष्ठ नवगीत संग्रह के लिए बिहार सरकार का 'गोपाल सिंह नेपाली पुरस्कार, बिहार राष्ट्रभाषा परिषद,बिहार का विशिष्ट साहित्य सेवा सम्मान, राज्यपाल डॉ.ए.आर. किदवई द्वारा सम्मानित एवं अनेक साहित्यिक व सामाजिक संस्थाओं द्वारा अभिनंदित।
विशेष : साहित्य अकादमी नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित श्रेष्ठ हिन्दी गीत संचयन में विशिष्ट कवि के रूप में सम्मिलित।
सम्प्रति : आरम्भ में प्राध्यापक, तत्पश्चात बिहार सरकार की सेवा से 1993 में राजकीय अधिकारी पद से सेवानिवृत्त होकर स्वतंत्र लेखन।
सम्पर्क : बी.पी.सिन्हा पथ, डी ब्लॉक, कदम कुआं, पटना- 800-003 [बिहार]
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【1】
रंगीन मुखोटे
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चेहरों पर रंगीन मुखोटे
हाथों में दस्तानें
असली चेहरे
रंँगे हाथ-
कैसे, पकडें, पहचानें ?
वर्ग शत्रु है
कौन यहांँ
वर्ग मित्र है कौन ?
दागदार है
कौन यहांँ पर
सद्चरित्र है कौन ?
संविधान
क्या करे अकेला
संसद ही जब मौन
छुट्टा घूम रहे
सब कोई
मानें या ना मानें
इस बेहद
निर्लज्ज समय में
अंधभक्त हम जिनके
मूछें सबकी
ऐंठी-अकड़ी
हर दाढ़ी में तिनके
ऐसों की
भरमार गिनाएँ
नाम भला किन-किनके ?
वैसे तो
मालूम सभी को
इनके पते-ठिकानें
पीर औलिया हों
अथवा हों
संत और संन्यासी
सबका
अपना-अपना
काबा
अपनी-अपनी काशी
सूरदास प्रभु
सुन लो ऊधो-
कहते साँच न हाँसी
बड़े मजे में
रहे फूल-फल
इनके कल-कारखाने
•••
【2】
मत कहना
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ख़बरदार
‘राजा नंगा है‘...
मत कहना
राजा नंगा है तो है
इससे तुमको क्या
सच को सच
कहने पर
होगी घोर समस्या
सभी सयाने चुप हैं
तुम भी चुप रहना
राजा दिन को
रात कहे तो
रात कहो तुम
राजा को जो भाये
वैसी बात करो तुम
जैसे राखे राजा
वैसे ही रहना
राजा जो बोले
समझो कानून वही है
राजा उल्टी चाल चले
तो वही सही है
इस उल्टी गंगा में
तुम उल्टा बहना
राजा की तुम अगर
खिलाफ़त कभी करोगे
चौराहे पर सरेआम
बेमौत मरोगे
अब तक सहते आये हो
अब भी सहना
•••
【3】
हादसों की फसल
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चलो !
अच्छा हुआ
ऐसे लोग पहचाने गये
आस्तीनों में
सपोले पालकर
और जलती आग में
घी डालकर
देखिये- नरमेध
यों ठाने गये
हादसों की फसल
हरसू बो रहे
और अपने किये पर
खुश हो रहे
व्यर्थ सब शिकवे
गिले, ताने गये
जो अंधेरों की
इबारत लिख गये
उजालों में साफ-
सुथरे दिख गये
रहनुमा इस दौर के
माने गये
•••
【4】
झूठों की बन आई
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साधो!
सचमुच समय विकट है
असी घाट पर
सिमटे-सिकुड़े
तुलसीदास पड़े हैं
बिना लुकाठी
बीच बजारे
दास कबीर खड़े हैं
मीरा का
इकतारा चुप है
सब कुछ उलट-पुलट है
पानीपत हो
या कलिंग हो
अथवा हल्दीघाटी
कुरुक्षेत्र को
धर्म क्षेत्र
कहने की है परिपाटी
चली आ रही
तब से अब तक
यह अजीब संकट है
सच की कसमें
खाने वाले
झूठों की बन आई
दो पाटों के
बीच पड़ी
सांँसें गिनती सच्चाई
यह कैसा
परिदृश्य कि-
लगता जैसे अंत निकट है
•••
【5】
बने रहेंगे
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सपने
आने वाले कल के
टूट-टूट कर
होंगे पूरे
आज भले
अधबने-अधूरे
नाम पते ये
उथल-पुथल के
आएंँगे जब
अपनी जिद पर
रख देंगे सब
उलट-पलट कर
मानेंगे
परिदृश्य बदल के
खत्म न होंगे
बने रहेंगे
कठिन समय में
तने रहेंगे
ये संगी-
साथी मंजिल के
•••
【6】
एक अल्ला मियांँ
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एक तो
मुंँहजोर मौसम
और फिर
अपनी बलाएंँ
क्या करें, कैसे निभाएँ
चल रहे हैं
दीन-दुनिया के
सभी व्यापार ऐसे
छूट है
विनिवेश की-
रिश्ते हुए
बाजार जैसे
और हम
सेंसेक्स
पता क्या! कब चढें
कब लुढ़क जाएंँ ?
देखना था-
जिन्हें सब कुछ
आंँख मूंँदे सो रहे हैं
जो न होने थे
तमाशे, अब
खुले में हो रहे हैं
इस तरह लाचार तो
पहले न थे
हम क्या बताएंँ
हो समाजी
या सियासी
आग हर कोने लगी है
मांँगती-फिरती
पनाहें
यह हमारी जिंदगी है
एक अल्ला मियांँ
कैसे आग
चौतरफा बुझाएँ
•••
【7】
अजीब दृश्य है
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सभाध्यक्ष हंँस रहा
सभासद
कोरस गाते हैं
जय-जयकारों का
अनहद है
जलते जंगल में
कौन विलाप सुनेगा
घर का
इस कोलाहल में
पंजों से मुंँह दबा
हमारी
चीख दबाते हैं
चंदन को
अपने में घेरे
सांँप मचलते हैं
अश्वमेघ के
घोड़े बैठे
झाग उगलते हैं
आप चक्रवर्ती हैं-
राजन!
वे चिल्लाते हैं
अजब दृश्य है
लहरों पर
जालों के घेरे हैं
तड़प रही मछलियांँ
बहुत खुश
आज मछेरे हैं
कौन नदी की सुने
कि जब
यह रिश्ते-नाते हैं
•••
【8】
धूप के हो लें
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अब बहुत
छलने लगी है छाँव
चलो! चलकर धूप के हो लें
थम नहीं पाते
कहीं भी पाँव
मानसूनी इन हवाओं के
हो रहे
पन्ने सभी बदरंग
जिल्द में लिपटी कथाओं के
एक रस वे बोल
औरों के
और कितनी बार हम बोलें
दाबकर पंजे
ढलानों से
उतरता आ रहा सुनसान
फ़ायदा क्या
पत्तियों की चरमराहट पर
लगाकर कान
मुट्ठियों में
फड़फड़ाते दिन
गीत-गंधी पर कहांँ तोलें
•••
【9】
और एक तुम
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आंँसू धोये
सपने हो
जैसे भी हो
तुम अपने हो
काजल के रंग
रंँगे हुये तुम
सूने नभ में
टंँगे हुए तुम
बिन बरसे भी
मेघ घने हो
तट की रेत
तनिक नम करके
पास फेन या
सीपी धरके
लौटी जो, वह
लहर बने हो
मैं झुक गया
धनुष -सा मुड़कर
और एक तुम
मुझसे जुड़कर
तीर सरीखे
नित्य तने हो
•••
【10】
आखर-आखर
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बड़े सगे दिन
नेह पगे दिन
चलकर आये
किरण बावरी
बड़े सकारे
बैठ मुँड़ेरे
सगुन उचारे
आंँगन-आंँगन
धूप बिछाये
उबटन लाये
आखर-आखर
चिट्ठी सोना
पढ़-पढ़ दुहरा-
तिहरा होना
भीतर-भीतर
कुछ अँखुवाये
मन उड़ जाये
अल्हड़ नदिया
पानी-पानी
लहर-लहर में
कथा-कहानी
भँवर-भँवर
भटियाली गाये
पास बुलाये
•••
- सत्यनारायण
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