बाल साहित्य रचना संसार में एक अनूठा प्रयोग...
'बच्चे होते फूल से' श्री मनोज जैन 'मधुर' जी द्वारा रचित हाल ही में प्रकाशित कविता संग्रह को पढ़ कर ऐसा अनुभव हुआ कि बाल साहित्य प्रेमी बच्चों के लिए यह पुस्तक अत्यंत रोचक और अनूठा उपहार है l
मनोज जी एक संवेदनशील एवं सिद्धहस्त कवि हैं ये उनके पिछले दो नवगीत संग्रह ' एक बूंद हम ' और
'धूप भर कर मुट्ठियों में ' को पढ़ कर पाठक वर्ग को समझ आ गया था और अब बच्चों के लिए सुन्दर कविताओं का संसार रच कर उन्होंने आज के बच्चे और आने वाले कल की युवा पीढ़ी के लिए प्रेरक और बाल मनोवैज्ञानिक मनोभावों को शब्द रूप देकर साहित्य को और अधिक समृद्ध किया है l आज इस यांत्रिकी युग में बच्चे अपना सहज भोलापन खोते जा रहे हैं l मोबाइल आदि के कृत्रिम और नाटकीय मनोरंजन में डूब कर वे अपनी निजता के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं जिसका उन्हें तनिक भी एहसास नहीं है इसमे थोड़ा बहुत दोष उनके ioमाता पिता का भी है l बच्चों को पढ़ने के लिए अच्छी सामग्री जुटाना ,उनका सही मार्गदर्शन करना ये साहित्य और समाज दोनों का उत्तरदायित्व है l
इसके लिए मनोज जी का कवि धर्म प्रशंसा का पात्र है l उन्होंने बच्चों के लिए सामयिक विषयों पर रोचक और ज्ञानवर्धक कविताएं रची हैं उस पुस्तक का नाम है ' बच्चे होते फूल से ' l
सभी कविताएं अपने विषय की मौलिकता में परिपूर्ण हैं l
आज बच्चे अपनी संस्कृति और संस्कारों को भूलते जारहे हैं और संस्कारों के इस संक्रमण काल में ऐसी पुस्तक का आना शुभ संकेत और शुभ पहल है l
पाँच पहेलियों के माध्यम से बच्चों को मर्यादा और पर्यावरण संरक्षण का पाठ पढ़ाना बहुत अच्छा प्रयोग है..
' मर्यादा का पाठ पढ़ाया
जहाँ राम ने आकर....
बच्चों अब तो हमें बतादो
कौन हमारा देश है ' ( भारत)
सभी पहेलियां बहुत रोचक ढंग से पूछी गई हैं जो कि मनोरंजक होने के साथ- साथ ज्ञानवर्धक भी हैं l
'मातादीन ' कविता के माध्यम से बच्चों को गिनती सिखाना एक प्रशंसनीय रचना कर्म है..
' एक गाँव में घर 'दो'- 'तीन '
आ कर ठहरे मातादीन l
इनने पाले घोड़े चार
घूम लिया पूरा संसार...'
मनोरंजन के साथ नैतिकता के पाठ के बहाने गिनती और 8पहाड़ों का प्रयोग अद्भुत है एक बानगी......(गिनती गीत)
बात पते की,
मुन्ने सुन l
जो सीखा है,
उसको गुन l
बोल मेरे मुन्ने,
एक दो तीन l
नहीं किसी के,
हक़ को छीन l
बोल मेरे लल्ला,
चार-पाँच-छह l
सुख-दुख अपनी
माँ से कह l......
(जादूगर)
जादूगर आया बस्ती में
अपना,
खेल दिखाने l
भालू -बंदर कुत्ता- बिल्ली ,
'चार' नेवले पाले l
'आठ'-कबूतर,'बारह'-'मुर्गे,
' सोलह '-चूहे काले l......
'प्यारी माँ ' कविता में अपनी माँ के प्रति आदर
और अनुग्रह भाव का मर्म बच्चों को मधुर अनुभूति प्रदान करेगा l
'दिल्ली पुस्तक मेला ' कविता में आज के परिवेश में पुस्तक मेले का महत्व बताना और उसकी प्रासंगिकता को व्यंगात्मक लहजे में (जो कि मनोज जी की खूबी है) प्रस्तुत करना कविता को अधिक मनोरंजक और विशेष बनाता हैl
पुस्तक में मीठे -मीठे लोरी गीत बच्चों के भोले हृदय में प्रेम की मिठास और वात्सल्य जनित संस्कार को सम्मान देने में सक्षम हैं l
'सैर सुबह की','पॉली क्लिनिक ','नौ सौ चूहे खाकर '
'चूना नहीं लगाना ' 'देश हमारा ' आदि सभी कविताएँ बाल मनोविज्ञान से अभिव्यंजित सरल, मनोरंजक और मुहावरों के माध्यम से ज्ञानवर्धन करने वालीं हैं l
बाल गीत संग्रह का शीर्षक ' बच्चे होते फूल से ' मानो कवि के कोमल- सम्वेदनशील हृदय का ही प्रतिबिंब है और उनकी रचनाएं इस शीर्षक को सार्थक करती हैं l
आपका यह बाल गीत संग्रह आज की और आने वाले कल की पीढ़ी के लिए एक अनुपम उपहार है lआशा है साहित्य जगत आपकी इस कृति का स्वागत करेगा और आपके द्वारा रचित इन कविताओं को पढ़ कर बच्चे खिलते रहेंगे और महकते रहेंगे मेरी हार्दिक शुभकामना है l
मधुश्री के.
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