मनोज जैन के दो प्रेम गीत
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एक अहसास ने
प्राण मन को
छुआ ।
प्यार तुमसे
हमें,
प्यार तुमसे हुआ।
हर घड़ी
झाँकता
मन बुलाता तुम्हें।
संग बॉहों के
झूले
झुलाता तुम्हें।
पूर्व के पुण्य से
लग गई
है दुआ।
प्यार
तुमसे हमें
प्यार तुमसे हुआ।
ढाई आखर
के पर्याय
तुम मीत हो।
प्रेम का
पूर्ण संकाय
दिलजीत हो।
तुम परी स्वर्ण-सी
मैं तुम्हारा
सुआ।
देह भर में
नहीं
दृष्टि के पार है।
प्रेम ही तो यहाँ
सृष्टि
आधार है।
खेलता
ही रहूँ धड़कनों का
जुआ।
दो
चम्पई मुस्कान होंठों पर
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धड़कनों में,
आ बसे अब,
हैं दुहाई में ।
आज अपना दिल, किसी के, प्यार नें,
मनुहार से,
हँसकर अभी जीता।
नेह का संसार, बॉहों में समेटे, मंगलम के
गीत कब से
गा रही प्रीता।
कैद में जो सुख
कहाँ है वह
रिहाई में।
चम्पई मुस्कान, होठों पर, खिली
मानों कहीं पर
झर रहे झरने ।
रेशमी अहसास, तन को छू रहा,
मन में समायी,
शून्यता भरने ।
क्या कहें, कब हम इकाई से
स्वतः बदले
दहाई में।
मनोज जैन
106 विठ्ठल नगर गुफा मन्दिर रोड लालघाटी भोपाल 462030
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