शुक्रवार, 23 सितंबर 2022

मनोज जैन का एक नवगीत प्रस्तुति : वागर्थ

एक नवगीत 
उठी भागवत
____________

घात लगा चहुँदिश 
बैठे हैं,
सब आश्वस्त शिकारी

ठाकुर जी को भोग 
लगा, फिर
करुणा का रस बरसा।

वाचक ने पाखंड
उचारा,
नेता ने छल परसा।

अपने हिस्से की 
बढ़-चढ़ कर 
सबने खेली पारी।

म्यूजिक सिस्टम नें
म्यूजिक का 
झटका फिर दे मारा।

डिस्को में तब्दील 
हो गया
चारों तरफ़ नजारा।

चिंता छोड़
गोपियाँ नाची 
जमकर बारी-बारी।

भरी सभा में
 पुण्य-पाप के
 जुमले सबने छोड़े।

भक्ति-भाव के 
रस में डूबे
भगत खड़े कर जोड़े।

चंदे के धन से 
पंडित के
घर की चुकी उधारी।

उठी भागवत,
भक्तजनों ने
मिल जयकारे बोले।

धीरे-धीरे चढ़े
सभी के
फिर से उतरे चोले।

निकल लिए कुछ
इधर-उधर से
कुछ चल दिए कलारी।

मनोज जैन

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें