सोमवार, 31 अक्तूबर 2022

"पोटली भर आस" पर समीक्षक गोविन्द सेन जी के विचार प्रस्तुति : वागर्थ ब्लॉग

समीक्षा 

पोटली भर आस की प्यास को पुख्ता बनाते नवगीत

 गोविन्द सेन


फैलने भी दीजिए अब 
एक टुकड़ा धूप का l 
उक्त पंक्ति में धूप के एक टुकड़े के फैलने की कामना की गई है l धूप तिमिर का संहार करती है l धूप में ही आशा का संचार होता है l जो तिमिर के साथ हैं उनका पतन तय है-‘जो तिमिर के साथ हैं / उनका पतन है / तय समझ l’ नवगीत रागात्मकता के साथ समकालीन विसंगतियों, विडम्बनाओं और विद्रूपताओं की छांदिक, तरल और लयात्मक अभिव्यक्ति है l नवगीत में नए बिम्बों, प्रतीकों, नवीन उपमानों और भावों की तीव्रता का आग्रह होता है l 
‘पोटली भर आस’ बहुमुखी प्रतिभा के धनी आशीष दशोत्तर का नवगीत संग्रह है l आशीष व्यंग्य, कहानी, कविता, ग़ज़ल, साक्षात्कार आदि गद्य-पद्य की कई विधाओं में साधिकार लिखते रहे हैं l अपनी गजलों और गीतों का सस्वर पाठ भी प्रभावी ढंग से करते  हैं l 
नवगीत संग्रह के शीर्षक ‘पोटली भर आस’ से ही ध्वनित होता है कि इन नवगीतों का स्वर आशावादी और रचनात्मक है l आशीष नवगीत के सभी आग्रहों का बखूबी निर्वाह करते हैं l इनमें जीवन की कटु स्थितियों के साथ-साथ प्रणय की रेशमी अभिव्यक्तियाँ भी हैं l आशीष यथास्थान समाज और राजनीति की गिरावट, चौतरफा व्याप्त दोगलेपन पर बेबाकी से निशाना साधते हैं l 
आज राजनीति में जितनी गिरावट और धोखाधड़ी है, उतनी कहीं नहीं है l आजादी के सत्तर साल के बाद भी जनता का जीवन नरक बना हुआ है l  रोजी-रोटी का सवाल मुँह बाए खड़ा है l राजनीति का अपराधीकरण बढ़ता ही जा रहा है l नफरत के विषैले बीज बोए जा रहे हैं l दावे और वादे बड़े-बड़े किन्तु नीयत खोटी l क़ातिलों पर कानून की रक्षा का दायित्व है l  आशीष यथास्थान पाखंडों का पर्दाफाश करते हैं l कुछ सुन्दर अभिव्यक्तियाँ देखिए –
‘दावे बड़े-बड़े, दलीलें छोटी सी/ नीयत रहती उसकी खोटी-खोटी सी/ कानूनों की रक्षा करता/ कातिल है l’
‘बरगलाने का तो है उसमें हुनर, खोट का खाता खुला रखा मगर / कह रहा स्वयं को / खुद खरा l’
‘असतो मा सद्गमय लिखा दरवाजे पर / और झूठ का तुमने तो सत्कार किया l’
आम आदमी को कुछ प्रलोभन देकर समझा दिया जाता है l वह झूठ को सच समझने के लिए विवश है l उसके पास महज विश्वास है l उसे हर बार ठगा और बरगलाया जाता है l हर बार उसे उजली भोर का प्रलोभन दिया जाता है, लेकिन उजली भोर आज तक नहीं आयी है -
‘कुछ प्रलोभन दे के समझाया गया, मुस्कुराता फोटो खिंचवाया गया l उसको भी इस बात का / अहसास है l’ 
‘रात से लड़ती रही परछाइयाँ / भर न पाई किन्तु अंधी खाइयाँ / भोर उजली आजतक आयी नहीं l’  
चारों तरफ नफ़रत फैलायी जा रही है l बड़ों की छाया छोटों पर पड़ना लाज़िमी है l अब बचपन भी मासूम और निष्कलुष नहीं रह गया है-
‘चाँद-तारे अब बचपनों को लुभाते हैं नहीं / माँ की लोरी में भी चंदा अब आते नहीं / अब खिलौना तक हुआ है / तीर या बन्दूक का l’
लोगों को अलग-अलग करने की कोशिशें की गईं l अच्छी बात है कि नफरत की आंधी के बावजूद जग में प्यार नहीं घटा है l लोग अलग-अलग न हो सके – 
‘कितनी ही सीमाएँ बांधी / खूब चली नफरत की आंधी / प्यार नहीं घट पाया जग में / हो न पाए मगर/ अलग हम l’ 
इन नवगीतों में जन-जन का दर्द, व्यथा, छोटे-छोटे सुख-दुख, अभाव, आहें, नसीहतें, प्रेरणाएँ, प्रार्थनाएँ, आह्वान, जिजीविषा और निवेदन हैं l ये नवगीत जन-जीवन के विविध रंगों में आपादमस्तक रँगे हुए हैं l  
आशीष नए युग से अनजान भोली प्रिया को आगाह करते हैं –‘इस नए युग के नए अंदाज से अनजान हो, तुम सयाने दौर को समझी नहीं, नादान हो l तुम बहुत भोली समझोगी / नहीं बिलकुल प्रिया l’ 
आशीष के पास नवगीत के लिए उपयुक्त शब्दों की टकसाल है l वे किसी शब्द से परहेज नहीं करते हैं l शब्द भले ही उर्दू या अंग्रेजी का हो, उसे आवश्यकता के अनुरूप नवगीतों की प्रांजल हिंदी में टांक लेते हैं l एक नवगीत ‘अधूरा सा कुछ’ में आशीष ने ‘वन क्लिक’ ‘आप्शन’ और ‘स्क्रीन’ जैसे अंग्रेजी शब्दों को भी कुशलता से पिरो लिया है l इस तरह नवगीतों के लिए वे एक नया मुहावरा गढ़ते हैं l नए प्रतिमान स्थापित करते हैं l घिसे हुए प्रतिमानों को विदा करते हैं l 
‘इंक प्रकाशन’ से प्रकाशित इस किताब का सादा स्वरूप लुभाता है । आशीष को गीत से आशीष मिला है l उनके लिए किसी छंद का बनना तावीज मिलने की तरह है – 
‘शब्दों के धागों में अर्थों के मोती, होते-होते एक पूर्ण पंक्ति होती / छंद बना कोई / जैसे तावीज मिला l’
मुझे पूरा विश्वास है ‘पोटली भर आस’ पाठकों को एक नई उजास और आस्वाद से भर देगी l  इस पोटली को जरूर खोलें, यह आपको निराश नहीं करेगी l 
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 *किताब :* पोटली भर आस (नवगीत संग्रह)
नवगीतकार : आशीष दशोत्तर 
प्रकाशक : इंक पब्लिकेशन, प्रयागराज 
मूल्य : 200 रुपए
पृष्ठ : 120 
**
 समीक्षक : गोविन्द सेन 
193 राधारमण कॉलोनी, मनावर-454446, ( धार ) म.प्र.
मोब. 9893010439

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गोविन्द सेन  
जन्म: 15 अगस्त,1959
शिक्षा: एम.ए.(हिंदी, अंग्रेजी)
प्रकाशन: प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित।
कृतियाँ:          
1. चुप्पियाँ चुभती हैं (ग़ज़ल संग्रह) 1988  
2. अकड़ूभुट्टा (निमाड़ी हाइकु संग्रह) 2002  
3. नकटी नाक (निमाड़ी हाइकु संग्रह) 2010 
4. नवसाक्षरों के लिए 5 पुस्तिकाएँ-तम्बाकू बाई नशापुर में, बूझो तो जाने, निमाड़ी लोककथाएँ, आधी तेरी आधी मेरी, बहू की सीख 
5. बिना पते का प्रशंसा पत्र (व्यंग्य संग्रह) 2012  
6.  खोलो मन के द्वार (दोहा संग्रह) 2014  
7. सफ़ेद कीड़े (कहानी संग्रह) 2017
8.  दसवी के भोंगाबाबा(कहानी संग्रह) 2019  
9. देखा सा मंज़र (ग़ज़ल संग्रह) 2022
पुरस्कार : ‘स्वदेश’ कहानी प्रतियोगिता-1992 में कहानी ‘बरकत’ को प्रथम पुरस्कार 
सम्मान: आंचलिक साहित्यकार सम्मान-2005-06, झलक निगम साहित्य सम्मान-2012, शब्द प्रवाह सम्मान-2013, गणगौर सम्मान-2014, संत कालूजी महाराज सम्मान-2016, शांति-गया स्मृति साहित्य सम्मान-2019 
संपर्कः  193 राधारमण कॉलोनी, मनावर, जिला-धार (म.प्र.) पिन-454446 
ईमेल: govindsen2011@gmail.com
मोबाः   09893010439

 नवगीतकार - आशीष दशोत्तर
12/2, कोमल नगर
रतलाम
मोबाइल -9827084966

परिचय गोविन्द सेन



गोविन्द सेन  
जन्म: 15 अगस्त,1959
शिक्षा: एम.ए.(हिंदी, अंग्रेजी)
प्रकाशन: प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित।
कृतियाँ:          
1. चुप्पियाँ चुभती हैं (ग़ज़ल संग्रह) 1988  
2. अकड़ूभुट्टा (निमाड़ी हाइकु संग्रह) 2002  
3. नकटी नाक (निमाड़ी हाइकु संग्रह) 2010 
4. नवसाक्षरों के लिए 5 पुस्तिकाएँ-तम्बाकू बाई नशापुर में, बूझो तो जाने, निमाड़ी लोककथाएँ, आधी तेरी आधी मेरी, बहू की सीख 
5. बिना पते का प्रशंसा पत्र (व्यंग्य संग्रह) 2012  
6.  खोलो मन के द्वार (दोहा संग्रह) 2014  
7. सफ़ेद कीड़े (कहानी संग्रह) 2017
8.  दसवी के भोंगाबाबा(कहानी संग्रह) 2019  
9. देखा सा मंज़र (ग़ज़ल संग्रह) 2022
पुरस्कार : ‘स्वदेश’ कहानी प्रतियोगिता-1992 में कहानी ‘बरकत’ को प्रथम पुरस्कार 
सम्मान: आंचलिक साहित्यकार सम्मान-2005-06, झलक निगम साहित्य सम्मान-2012, शब्द प्रवाह सम्मान-2013, गणगौर सम्मान-2014, संत कालूजी महाराज सम्मान-2016, शांति-गया स्मृति साहित्य सम्मान-2019 
संपर्कः  193 राधारमण कॉलोनी, मनावर, जिला-धार (म.प्र.) पिन-454446 
ईमेल: govindsen2011@gmail.com
मोबाः   09893010439

गुरुवार, 20 अक्तूबर 2022

एक गीत नेमा माहुले



 नेमा माहुले का एक गीत 
____________________

योग्यता को मिले यश जरूरी नहीं,
श्रेष्ठ हो कर अचर्चित कई लोग हैं ।

कर्मपथ पर बढ़े अनवरत जो चरण,
ख्याति से माँगते वो नहीं है शरण ।
कीर्ति का नाद चाहे निनादित न हो,
नाम अधरों सजे या प्रसादित न हो ।
अर्चना से परे वंचना से परे,
मौन रहकर समर्पित कई लोग हैं ।
श्रेष्ठ हो कर अचर्चित कई लोग हैं ।

शुद्धतम काव्य को रच रहे छंद में,
हैं कला के पुजारी स्व-अनुबंध में ।
लक्ष्य साधे सतत साधनालीन हैं,
बुद्धिदा के तनय ज्ञान तल्लीन हैं
सर्जना बस रही श्वास-दर-श्वास में,
सर्जना में समाहित कई लोग हैं ।
श्रेष्ठ हो कर अचर्चित कई लोग हैं ।

मोहते ही नहीं लब्धि के श्री शिखर,
पद प्रतिष्ठा न मोहित करे लेश भर ।
कामनाएँ न किंचित कि जयकार हो,
निज प्रभा का जगत में सुविस्तार हो ।
चाहना को चरण में सजाए हुए,
तृप्ति से पूर्ण परिचित कई लोग हैं ।
श्रेष्ठ हो कर अचर्चित कई लोग हैं ।

                 तृप्ति

सोमवार, 17 अक्तूबर 2022

"मिशन फैट टू फिटनेस" 100 डेज : सुबोध श्रीवास्तव एक परिचयात्मक आलेख -मनोज जैन

"मिशन फैट टू फिटनेस" 100 डेज : सुबोध श्रीवास्तव एक परिचयात्मक आलेख - मनोज जैन

आलेख
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     नर्मदा के कछार में बसा एक छोटा सा गाँव अलीगंज, तहसील बरेली, जिला रायसेन मध्यप्रदेश में आता है। दक्षिण की तरफ सतपुड़ा की सुरम्य पर्वत श्रृंखलाओं में बसी पचमढ़ी यहाँ से लगभग पचास या पचपन किलीमीटर दूरी पर है,जो अपनी नैसर्गिक सुंदरता के लिए विश्वभर में जानी जाती है। 15 किलोमीटर उत्तर दिशा की ओर छींद मन्दिर, जहाँ वर्ष भर श्रद्धालुओं का मेला लगा रहता है। मध्यप्रदेश की जीवन रेखा के कछारों से सटे इस छोटे क़स्बे से मेरा यों तो कोई सीधा सम्बंध नहीं जुड़ता पर हाँ, यहाँ मेरे आत्मीय मित्र सुबोध श्रीवास्तव जी जो, अलीगंज से आते हैं और इन्हीं के साथ तक़रीबन डेढ़ दशक पहले इस छोटे से गाँव आने और यहीं से सटकर गुजरती है।

       इतराती, बलखाती, इठलाती नर्मदा नदी में, स्नान करने और यहाँ की पावन धूलि सर माथे पर लगाने का सुअवसर मुझे मिला है। 
         सुबोध जी से हमारे परिचय के तार तब से जुड़े हैं जब हम दोनों ही अपने करियर की तलाश में यहाँ-वहाँ भटक रहे थे। आज से तक़रीबन 33 वर्ष पहले हमारी पहली भेंट ज्ञानदीप शिक्षा समिति बरखेड़ी भोपाल, द्वारा आयोजित एक साक्षात्कार के दौरान हुयी। 

        तब सुबोध जी अँग्रेजी साहित्य के स्नातकोत्तर की उत्तरार्द्ध और हम पूर्वार्द्ध कक्षा के विद्यार्थी थे। यद्धपि वह मुलाकात क्षणिक थी पर उस पहली भेंट से हमारा परिचय प्रगाढ़ता में कब बदला पता ही नहीं चला। तब से लेकर अब तक हजारों लोगों से सम्पर्क रहा लेकिन जो  आत्मीयता परस्पर हम दोनों में है वह अन्यत्र विरल ही दिखाई देती है। सुबोध जी मेरे आदर्श हैं, हमारे सुख-दुख सब उनके हैं।

         मित्र होने के नाते मैं उनकी अनेक स्वाभाविक प्रवृत्तियों को उनसे कहीं ज़्यादा जानता हूँ।
         अत्यंत संवेदनशील, कुशाग्र बुद्धि के धनी अल्पभाषी, सूक्ष्मावलोकी, दत्तचित्त और सहयोगी स्वभाव जैसे गुण सुबोध जी ने अपने आदर्श पिता से ग्रहण किए साथ ही उन्हीं से उन्होने सैकड़ों की सँख्या में लोकोत्तियाँ जस की तस आत्मसात भी की। 

            जिसका प्रयोग वह भाषाई टूल की तरह अक्सर अपनी बात-चीत में किया करते हैं। जिनके मायने बहुत गहरे होते हैं; और रोज़मर्रा की ज़िंदगी में वह इन लोकोत्तियों और कहाबतों की दार्शनिक गहराइयों को जीते भी हैं। 
        गीता को आदर्श ग्रन्थ और लार्ड कृष्णा को अपना आराध्य मानने वाले हमारे सनातनी मित्र की आरम्भ से ही चातुर्मास में अनन्य श्रद्धा रही है और वह पिछले सत्रह वर्षों से चार महीनों  के इस विशेष काल में अपने लिए हर बार कुछ नया करते आ रहे हैं। 

           इस बार इनके प्रेरणास्रोत रहे मोटिवेशनल स्पीकर विवेक विन्द्रा जी !
   विन्द्रा जी से प्रेरणा लेकर इस वर्ष 10,जुलाई 2022 की अघोषित तिथि से "फैट टू फिटनेस" पूरे सौ दिनों के लिए विशेष अभियान के तहत 16,अक्टूबर 2022 तक  सोशल मीडिया से दूरी रखने वाले सुबोध भाई सोशल मीडिया पर खासे सक्रिय दिखे।        
        इस बीच उन्होंने स्वास्थ्य के प्रति सजगता सम्बन्धी अपने ही बनाये कुछ पुराने कीर्तिमान तोड़े और नए कीर्तिमान रचकर अपने मित्रों सहित समाज को कुछ नया करने के लिए प्रेरित किया है। उनके इस मिशन पर यदि पारिभाषिक दृष्टि डालें तो अमूमन 'फैट' शब्द ही अपने आप में शारीरिक मोटापे की ओर इंगित करता है। वहीं उनके शीर्षक के अर्धवाक्य का दूसरा शब्द है "फिटनेस" फिटनेस के तहत उनका अपडेट कोई क्रांतिकारी डाइट प्लान या वर्क आउट करने की सलाह नहीं देता।       

                 
         फिटनेस का अर्थ यहाँ स्लिम ट्रिम दिखना या वेट लॉस जैसे किसी विशेष टर्म में नहीं बंधता सुबोध जी की मानें तो फिटनेस आपकी रोज़मर्रा की ज़िंदगी को प्रभावित करती है जैसे आपका एनर्जी लेवल नींद की क्वालिटी पाचन शक्ति ध्यान और स्फूर्ति के साथ वह सब कुछ जो एक स्वस्थ्य तन मन के लिए बेहद ज़रूरी है। 

        नइसी पावन उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए उन्होने सोशल मीडिया पर अपनी सुबह की सैर के वीडियो अपलोड कर साझा करने आरम्भ किए।   
             रेस्पॉन्स में मिली अपने मित्रों की इमोजियों ने उन्हें वैसे ही मोटिवेट किया जैसे खेल के मैदान में खिलाड़ी को दर्शकों की तालियाँ !  

                 रोज़मर्रा के उनके छोटे-छोटे वीडियोज़ क्लिप शहर की भीड़भाड़ से दूर प्राकृतिक रमणीक स्थलों के होते जिन्हें देख कर अनेक स्वास्थ्य प्रेमी उनसे प्रेरणा लेते और उन स्थलों के बारे में अपनी जिज्ञासाएँ प्रकट करते। 
            फ्रेंड-फॉलोइंग से मिले पॉजिटिव रिस्पॉन्स ने सुबोध जी के इस मिशन में चार चाँद लगा दिए। इस दौरान हुए शारीरिक श्रम से उन्होंने अपने शारीरिक वजन को एक दम नियंत्रण में कर लिया 85 kg से 72 kg तक आने का श्रेय वह अपनीआत्मीय सखी सुप्रसिद्ध स्त्रीरोग विशेषज्ञ डॉ.फाल्गुनी तिवारी जी को देते हैं,जिन्होंने उनकी साधारण सी भोजन की थाली से शर्करा को सिरे से कट ऑफ कर दिया। 

   है ना कमाल की बात ! मीठा खाने वाले की थाली से मीठा उठाकर गायब कर देना।     
             दरअसल यह कमाल डॉ. फाल्गुनी तिवारी जी का कम,पर उनके आपसी तालमेल और सखी भाव का ज्यादा है। वर्ना किसकी मज़ाल जो सुबोधानन्द जी की थाली से उनका मन पसन्द आइटम बाहर कर दे!

        देश के प्रख्यात राजनेता और चर्चित शल्यचिकित्सक डॉ.अभिजीत देशमुख जी सुबोध जी के परम सखा भी हैं और परम आदर्श भी! दोनों की स्ट्रॉन्ग बॉन्डिंग देखते ही बनती है। कहीं न कहीं और किसी न किसी रूप में देशमुख सर की प्रेरणादायक सोच भी सुबोध जी के इस मिशन से जुड़ी रही।

           अपने सखा डॉ. देशमुख जी के सुझाव को सिरमौर मानते हुए सुबोध जी ने अपने यूट्यूब चैनल का नाम सुबोध आनन्द रखा वैसे यदि शाब्दिक विग्रह ना भी किया जाता तो भी नाम परफेक्ट होता "सुबोधानन्द" कहते हैं की जहाँ सुबोध है वहाँ तो परम्परा से आनन्द होगा ही।
                   यक़ीन मानिए चैनल में आपको अनेक रोमांचित और प्रेरणा से भर देने वाले शार्ट वीडियोज़ क्लिप मिलेंगे जिनमें हमारे ज़ुनूनी मित्र की अनेक छवियाँ आपको देखने मिलेंगी।

                            कौतूहल वश कहीं वह बालसुलभ चेष्टाएँ करते दिखे तो कभी पानी की छपाक से ताल मेल मिलाते !
छोटी-छोटी क्लिप्स के स्लो मोशन में सारी हरकतें कैद हैं। वे कभी किसी ग्रोइंग ट्री (खासकर नीम ) पर लटकते तो कभी उसे आलिंगन करते। शहर की शायद ही ऐसी कोई लोकेशन हो जहाँ इस प्रकृति प्रेमी मानुष ने अपना वीडियो शूट ना किया हो।

         घुम्मकड़ी प्रकृति के हमारे मित्र के अनेक आसन एक विशेष स्टोन स्लैब (पत्थर की एक सिला ) पर देखकर आप दंग रह जाएंगे। कभी यह नदी के किनारे खड़े दिखाई देते हैं तो कभी नदी के बीचों बीच लहरों से अटखेलियाँ करते हुए इन्हें देखा जा सकता है। कभी पहाड़ पर तो कभी झरने के समीप कुल मिलाकर समूची प्रकृति के प्रेमीमन को देखकर आपका मन भी प्रसन्नता से भर जाता है।

            आइए हम भी सुबोधानन्द जी के मिशन से प्रेरणा लें और अपने स्वास्थ्य के प्रति सजग रहें। सुबोध जी  केवल सपने ही नही देखने बल्कि उन्हें पूरा करने में भी यक़ीन करते हैं! वे शायराना अंदाज़ में कुछ यूं बयान करते हैं।
"सपने मेरे बड़े हैं 
जो मुझे 
सोने नहीं देते।"
               चलते चलते अपने स्वभिमानी मित्र की एक बात और साझा करने का मन है। सुबोध जी कहते हैं;- माँगने से जो मिले वह पानी जैसा, जो स्वतः मिले वह अमृत तुल्य और जिसे छीनना पड़े उस चाह की प्रकृति रक्त के समान !
                    मैं इस तथ्य का प्रत्यक्षदर्शी हूँ मित्रों पर अपना सब कुछ लुटाने वाले हमारे इस मित्र को ईश्वर की असीम अनुकम्पा से अब तक जो मिला वह अमृत-तुल्य ही है। 
                    अपने इस मिशन के समापन पर मिशन की सफलता का श्रेय वह अपनी पत्नी श्रीमती तनु श्रीवास्तव जी के आत्मीय सहयोग को देना नही भूलते! जिनसे सुबोध जी हर दिन कुछ न कुछ सीखने की कोशिश करते हैं।
      इस अवसर पर वह वीडियो शूट और उनके साथ पैदल सैर करने वाले साथी अखिलेश जी और सूरज सिंह जी का भी शुक्रिया अदा करते हैं।

 एक शख्स और है जो सुबोध जी के जीवन में खासी जगह रखता है,जिसे वह दिल से चाहते हैं और उस पर अपना स्नेह अनुजवत लुटाते है वह कोई और नही वह हैं डॉक्टर देशमुख जी के रथ ( ऑडी AUDI ) के सारथी भाई दलभान सिंह यादव ऐसा कोई चैप्टर नहीं जिसमें दलभान शामिल ना हो!
            खैर, यह तो मिशन का एक पड़ाव भर है आगे-आगे देखते हैं होता है क्या!
            एक निजी प्रश्न पूछने पर सुबोधानन्द जी की आँखें अपनी माँ को याद करते हुए छलक पड़ीं अपनी सफलता का सारा श्रेय अम्मा और बाबू जी को देते हैं।
      महानगर में रहते हुए भी सुबोध जी का मन शहरी चमकदमक से कोसों दूर है। उन्होंने अपनी जड़ों से नाता नहीं तोड़ा। वह आज भी हर-तीज त्योहार पर अम्मा और बाबू जी का आशीर्वाद लेने अलीगंज जाते हैं।
       हम लोगों ने अपने निजी अनुभवों से, अपनी समानांतर चलने वाली ज़िंदगी को बड़े निकट से जाना है। हम दोनों ही क्रम संख्या में चौथे नम्बर के भाइयों में गिने जाते हैं।
            सुबोध जी भले ही स्वयं को सफल व्यापारी कहते रहें पर उनकी संवेदनाएँ उन्हें कभी भी व्यापारी नहीं बनने देंगी।
     हाँ! सुबोध श्रीवास्तव एक अच्छे और सच्चे इन्सान जरूर हैं। यही भाव उन्हें और आगे ले जाएगा!
सादर



लेखक
परिचय

मनोज जैन मधुर
_____________


जन्म २५ दिसंबर १९७५ को शिवपुरी मध्य प्रदेश में।
शिक्षा- अँग्रेजी साहित्य में स्नातकोत्तर
प्रकाशित कृतियाँ-
(1) 'एक बूँद हम' 2011 नवगीत संग्रह
(2) 'धूप भरकर मुठ्ठियों में' 2021 नवगीत संग्रह
पत्र-पत्रिकाओं आकाशवाणी व दूरदर्शन पर रचनाएँ प्रकाशित प्रसारित। निर्मल शुक्ल द्वारा संपादित "नवगीत नई दस्तकें" तथा वीरेन्द्र आस्तिक द्वारा संपादित "धार पर हम (दो)" में सहित लगभग सभी शोध संकलनों नवगीत संकलित
पुरस्कार सम्मान-
मध्यप्रदेश के महामहिम राज्यपाल द्वारा सार्वजनिक नागरिक सम्मान 2009 म.प्र.लेखक संघ का रामपूजन मिलक नवोदित गीतकार सम्मान 'प्रथम' 2010 अ.भा.भाषा साहित्य सम्मेलन का सहित्यप्रेमी सम्मान-2010, साहित्य सागर का राष्ट्रीय नटवर गीतकार सम्मान- 2011
राष्ट्रधर्म पत्रिका लखनऊ का राष्ट्रधर्म गौरव सम्मान 2013
अभिनव कला परिषद का अभिनव शब्द शिल्पी सम्मान -2017
संप्रति-
सीगल लैब इंडिया प्रा. लि. में एरिया सेल्स मैनेजर
सोशल मीडिया पर चर्चित
समूह वागर्थ के प्रमुख संचालक
@ मनोज जैन "मधुर"
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