सोमवार, 31 अक्तूबर 2022

"पोटली भर आस" पर समीक्षक गोविन्द सेन जी के विचार प्रस्तुति : वागर्थ ब्लॉग

समीक्षा 

पोटली भर आस की प्यास को पुख्ता बनाते नवगीत

 गोविन्द सेन


फैलने भी दीजिए अब 
एक टुकड़ा धूप का l 
उक्त पंक्ति में धूप के एक टुकड़े के फैलने की कामना की गई है l धूप तिमिर का संहार करती है l धूप में ही आशा का संचार होता है l जो तिमिर के साथ हैं उनका पतन तय है-‘जो तिमिर के साथ हैं / उनका पतन है / तय समझ l’ नवगीत रागात्मकता के साथ समकालीन विसंगतियों, विडम्बनाओं और विद्रूपताओं की छांदिक, तरल और लयात्मक अभिव्यक्ति है l नवगीत में नए बिम्बों, प्रतीकों, नवीन उपमानों और भावों की तीव्रता का आग्रह होता है l 
‘पोटली भर आस’ बहुमुखी प्रतिभा के धनी आशीष दशोत्तर का नवगीत संग्रह है l आशीष व्यंग्य, कहानी, कविता, ग़ज़ल, साक्षात्कार आदि गद्य-पद्य की कई विधाओं में साधिकार लिखते रहे हैं l अपनी गजलों और गीतों का सस्वर पाठ भी प्रभावी ढंग से करते  हैं l 
नवगीत संग्रह के शीर्षक ‘पोटली भर आस’ से ही ध्वनित होता है कि इन नवगीतों का स्वर आशावादी और रचनात्मक है l आशीष नवगीत के सभी आग्रहों का बखूबी निर्वाह करते हैं l इनमें जीवन की कटु स्थितियों के साथ-साथ प्रणय की रेशमी अभिव्यक्तियाँ भी हैं l आशीष यथास्थान समाज और राजनीति की गिरावट, चौतरफा व्याप्त दोगलेपन पर बेबाकी से निशाना साधते हैं l 
आज राजनीति में जितनी गिरावट और धोखाधड़ी है, उतनी कहीं नहीं है l आजादी के सत्तर साल के बाद भी जनता का जीवन नरक बना हुआ है l  रोजी-रोटी का सवाल मुँह बाए खड़ा है l राजनीति का अपराधीकरण बढ़ता ही जा रहा है l नफरत के विषैले बीज बोए जा रहे हैं l दावे और वादे बड़े-बड़े किन्तु नीयत खोटी l क़ातिलों पर कानून की रक्षा का दायित्व है l  आशीष यथास्थान पाखंडों का पर्दाफाश करते हैं l कुछ सुन्दर अभिव्यक्तियाँ देखिए –
‘दावे बड़े-बड़े, दलीलें छोटी सी/ नीयत रहती उसकी खोटी-खोटी सी/ कानूनों की रक्षा करता/ कातिल है l’
‘बरगलाने का तो है उसमें हुनर, खोट का खाता खुला रखा मगर / कह रहा स्वयं को / खुद खरा l’
‘असतो मा सद्गमय लिखा दरवाजे पर / और झूठ का तुमने तो सत्कार किया l’
आम आदमी को कुछ प्रलोभन देकर समझा दिया जाता है l वह झूठ को सच समझने के लिए विवश है l उसके पास महज विश्वास है l उसे हर बार ठगा और बरगलाया जाता है l हर बार उसे उजली भोर का प्रलोभन दिया जाता है, लेकिन उजली भोर आज तक नहीं आयी है -
‘कुछ प्रलोभन दे के समझाया गया, मुस्कुराता फोटो खिंचवाया गया l उसको भी इस बात का / अहसास है l’ 
‘रात से लड़ती रही परछाइयाँ / भर न पाई किन्तु अंधी खाइयाँ / भोर उजली आजतक आयी नहीं l’  
चारों तरफ नफ़रत फैलायी जा रही है l बड़ों की छाया छोटों पर पड़ना लाज़िमी है l अब बचपन भी मासूम और निष्कलुष नहीं रह गया है-
‘चाँद-तारे अब बचपनों को लुभाते हैं नहीं / माँ की लोरी में भी चंदा अब आते नहीं / अब खिलौना तक हुआ है / तीर या बन्दूक का l’
लोगों को अलग-अलग करने की कोशिशें की गईं l अच्छी बात है कि नफरत की आंधी के बावजूद जग में प्यार नहीं घटा है l लोग अलग-अलग न हो सके – 
‘कितनी ही सीमाएँ बांधी / खूब चली नफरत की आंधी / प्यार नहीं घट पाया जग में / हो न पाए मगर/ अलग हम l’ 
इन नवगीतों में जन-जन का दर्द, व्यथा, छोटे-छोटे सुख-दुख, अभाव, आहें, नसीहतें, प्रेरणाएँ, प्रार्थनाएँ, आह्वान, जिजीविषा और निवेदन हैं l ये नवगीत जन-जीवन के विविध रंगों में आपादमस्तक रँगे हुए हैं l  
आशीष नए युग से अनजान भोली प्रिया को आगाह करते हैं –‘इस नए युग के नए अंदाज से अनजान हो, तुम सयाने दौर को समझी नहीं, नादान हो l तुम बहुत भोली समझोगी / नहीं बिलकुल प्रिया l’ 
आशीष के पास नवगीत के लिए उपयुक्त शब्दों की टकसाल है l वे किसी शब्द से परहेज नहीं करते हैं l शब्द भले ही उर्दू या अंग्रेजी का हो, उसे आवश्यकता के अनुरूप नवगीतों की प्रांजल हिंदी में टांक लेते हैं l एक नवगीत ‘अधूरा सा कुछ’ में आशीष ने ‘वन क्लिक’ ‘आप्शन’ और ‘स्क्रीन’ जैसे अंग्रेजी शब्दों को भी कुशलता से पिरो लिया है l इस तरह नवगीतों के लिए वे एक नया मुहावरा गढ़ते हैं l नए प्रतिमान स्थापित करते हैं l घिसे हुए प्रतिमानों को विदा करते हैं l 
‘इंक प्रकाशन’ से प्रकाशित इस किताब का सादा स्वरूप लुभाता है । आशीष को गीत से आशीष मिला है l उनके लिए किसी छंद का बनना तावीज मिलने की तरह है – 
‘शब्दों के धागों में अर्थों के मोती, होते-होते एक पूर्ण पंक्ति होती / छंद बना कोई / जैसे तावीज मिला l’
मुझे पूरा विश्वास है ‘पोटली भर आस’ पाठकों को एक नई उजास और आस्वाद से भर देगी l  इस पोटली को जरूर खोलें, यह आपको निराश नहीं करेगी l 
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 *किताब :* पोटली भर आस (नवगीत संग्रह)
नवगीतकार : आशीष दशोत्तर 
प्रकाशक : इंक पब्लिकेशन, प्रयागराज 
मूल्य : 200 रुपए
पृष्ठ : 120 
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 समीक्षक : गोविन्द सेन 
193 राधारमण कॉलोनी, मनावर-454446, ( धार ) म.प्र.
मोब. 9893010439

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गोविन्द सेन  
जन्म: 15 अगस्त,1959
शिक्षा: एम.ए.(हिंदी, अंग्रेजी)
प्रकाशन: प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित।
कृतियाँ:          
1. चुप्पियाँ चुभती हैं (ग़ज़ल संग्रह) 1988  
2. अकड़ूभुट्टा (निमाड़ी हाइकु संग्रह) 2002  
3. नकटी नाक (निमाड़ी हाइकु संग्रह) 2010 
4. नवसाक्षरों के लिए 5 पुस्तिकाएँ-तम्बाकू बाई नशापुर में, बूझो तो जाने, निमाड़ी लोककथाएँ, आधी तेरी आधी मेरी, बहू की सीख 
5. बिना पते का प्रशंसा पत्र (व्यंग्य संग्रह) 2012  
6.  खोलो मन के द्वार (दोहा संग्रह) 2014  
7. सफ़ेद कीड़े (कहानी संग्रह) 2017
8.  दसवी के भोंगाबाबा(कहानी संग्रह) 2019  
9. देखा सा मंज़र (ग़ज़ल संग्रह) 2022
पुरस्कार : ‘स्वदेश’ कहानी प्रतियोगिता-1992 में कहानी ‘बरकत’ को प्रथम पुरस्कार 
सम्मान: आंचलिक साहित्यकार सम्मान-2005-06, झलक निगम साहित्य सम्मान-2012, शब्द प्रवाह सम्मान-2013, गणगौर सम्मान-2014, संत कालूजी महाराज सम्मान-2016, शांति-गया स्मृति साहित्य सम्मान-2019 
संपर्कः  193 राधारमण कॉलोनी, मनावर, जिला-धार (म.प्र.) पिन-454446 
ईमेल: govindsen2011@gmail.com
मोबाः   09893010439

 नवगीतकार - आशीष दशोत्तर
12/2, कोमल नगर
रतलाम
मोबाइल -9827084966

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