रविवार, 29 अगस्त 2021

बलदाऊ राम साहू

परिचय

नाम   -              बलदाऊ राम साहू
पिता का नाम  -  स्व. गोविंद सिंह साहू
माता   -             श्रीमती दुर्गा साहू
जन्म तिथि    -      21.02.1958
शिक्षा -      एम. ए. (संस्कृत हिंदी), एम.एड्
पद   सचिव (सेवानिवृत्त) छत्तीसगढ़ राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग, रायपुर
प्रकाशित पुस्तकें  - छत्तीसगढ़ की लोक कथाएँ, भाषा के नए आयाम (हिंदी शिक्षण), आशा के दीप (हिंदी बाल कविता),  सुरुज नवा उगइया हे , बगरे हे अंजोर  मया  के  (छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल संग्रह)आवौ भैया पेड़ लगावौ, बिन बरसे झन जाबे बादर जल बीच मछरी मरे पियास, जुरमिल के पेड़ लगावन, पर्यावरण ल सुग्घर बनावट (छत्तीसगढ़ी बालगीत) नया सवेरा,  नाचो ता-ता थैया, नाव चली हैया हैया  पंछी गाएँ आसमान में ( हिंदी बाल गीत)  चिंकी के सपना (छत्तीसगढ़ी बाल कहानी) उड़ान  (हिंदी बाल कहानी) एवं  छत्तीसगढ़ के  महापुरुषों आधारित पर आठ  चित्रकथाएँ,  मोटरा संग मया नंदागे (छत्तीसगढ़ी लेख एवं निबंध),  ददरिया में लोकतत्व-एक दृष्टि,  छत्तीसगढ़ी लोक गीतों का सामाजिक संदर्भ, छत्तीसगढ़ के भूले- बिसरे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी   (संपादन व लेखन),
आॅनलाइन प्रकाशन-गीत खुशी के पंछी गाना  (बालगीत)
प्रकाशनाधीन पुस्तकें -  डरे हुए हैं पेड़ (हिन्दी गीत) /नवगीत),  पहाती के सुकुवा (छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल संग्रह)  उड़ान (हिंदी बाल कहानी) 
स्वतंत्र लेखन   -      हिंदी व छत्तीसगढ़ी भाषा में, गीत, ग़ज़ल, कहानी, निबंध, आलेख व्यंग्य एवं बाल-साहित्य विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित।
विशिष्ट कार्य लोक-साहित्य एवं लोक भाषा, लोक-संस्कृति छत्तीसगढ़ 14 लोक भाषाओं का डाक्यूमेंटेशन, सहयोग भाषा संस्थान, वडोदरा,
विशिष्ट उपलब्धि   -      1.     लंबे समय तक शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करते हुए  एक शिक्षक प्रशिक्षक व शिक्षाविद् के रूप में पहचान।
2.     छत्तीसगढ़ के लिए स्कूली पाठ्यक्रम निर्माण में सहभागिता, कक्षा 1 से 9 तक की पाठ्यपुस्तकों का लेखन व समन्वय।
3.  नव साक्षरों के लिए  ‘हमारा अधिकार‘ पुस्तक  का  लेखन।
सम्मान -      1.  उत्कृष्ट शिक्षक प्रशिक्षण सम्मान राज्य शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद्  भोपाल (म.प्र.) 2.साक्षरता सम्मान, जिला साक्षरता समिति, दुर्ग,
3.बिलासा साहित्य सम्मान, बिलासा कला मंच,  बिलासपुर   4. समाज गौरव साहित्य सम्मान, समाज गौरव समिति, रायपुर व जिला बालोद  द्वारा ।
5.यूरोपीय देशों में शिक्षा व्यवस्था के अध्ययन हेतु  नीदरलैंड का शैक्षिक प्रवास। 
6.बाल साहित्य शोध संस्थान बनौली, दरभंगा की ओर से शंभू अगेही बालसाहित्य शिखर सम्मान।
7.युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच नई दिल्ली की ओर से भारतेन्दु हरिश्चंद शिखर सम्मान 8. स्व. पतिराम साव साहित्य सम्मान- दुर्ग जिला साहू  समाज द्वारा।
पत्र व्यवहार का पता - बलदाऊ राम साहू,
गोविन्दाशीष
 वार्ड नं 53, न्यू आदर्श नगर,  होटल साईं राम के पास,  पोटिया चैक,  दुर्ग  (छत्तीसगढ़) 491001 
मोबाइल -   09407650458,
ईमेल - br.ctd1958@gmail.com

 

  

बलदाऊ राम साहू के बालगीत प्रस्तुति : वागर्थ ब्लॉग

अपनों से नाता जोड़ो

अब  शाला  में  नहीं  पढ़ाई 
मुन्नू   खाओ   गप्प  मिठाई।
मुनिया क्यों रहती हो  रूठी
और करती क्यों है  ढिठाई।

कोरोना   आया    महामारी 
क्या  करेगी  जनता बेचारी
छुट रहे  हैं  सब  नाते-रिश्ते 
खत्म  हो  गई,  दुनियादारी।

कहते  हैं  सब  रहो  दूर-दूर
और मुँह पर मास्क लगाओ
सुरक्षित होगा जीवन अपना
कोरोना  को  सदा  डराओ।

इसीलिए  कहता  हूँ मुनिया 
रूठा-राठी  तुम  भी   छोड़ो
जीवन   बहुत  महत्वपूर्ण है 
अपनों से तुम  नाता  जोड़ो।

मुन्नू  रार  मचाये  जब -जब 
आकर हमको तुम बतलाना।
कभी  जिद्द  मत करना तुम 
हँसना  और  खूब  मुस्काना।

-बलदाऊ राम साहू

देखो जी अब सूरज आया 

धूप सुबह  चुपके  से आयी
दादा  आकर  हमें  जगाये
देखो जी अब सूरज आया।

मुर्गों ने भी  अलख  जगाया
चिड़ियों ने जी भरकर गाया
देखो जी अब  सूरज आया।

मुस्काते   पनिहारिन  आई
कुएँ का यह  जगत हर्षाया 
देखो जी अब सूरज आया।

मुन्नू    दौड़े  -  दौड़े  आया
दादा को  उसने  बतलाया
देखो  दादा   लंबी   छाया।
देखो जी अब सूरज आया।

-बलदाऊ राम साहू

शिशु-गीत 

मेरी गुड़िया 

देखो  अम्मा  मेरी   गुड़िया 
अम्मा-अम्मा मुझे  बुलाती।
जब मैं उसको थपकी देती
वह अपनी आँखें मटकाती।

पें-पें  कर  रोती  है  हरदम 
और कभी चुप हो जाती है 
तुमको कहती दादी अम्मा 
लोरी सुनकर सो  जाती है।

अम्मा-अम्मा  मेरी गुड़िया 
को, एक फ्राक बनवा देना
उस पर तुम कुछ नन्हे तारें 
चमकीले  हों, टकवा  देना।

-बलदाऊ राम साहू


बाल कविता 

सूरज आ जाता 

रोज   नया   सूरज  आ  जाता 
आभा नवीन  वह  दिखलाता।

पंछी   आते,    शोर     मचाते 
तरह - तरह   के  गीत  सुनाते।

ठंडी     बहती     है     पुरवाई 
समझो दिन अब निकला भाई।

चलो-चलो अब  उठ भी जाओ
पढ़ना   है  शाला  तुम   जाओ।

-बलदाऊ राम साहू

बाल गीत 

चुन्नु,  मुन्नु,   मुनिया  आओ,
नन्हे  सुंदर  पौध    लगाओ।

पौधे     जब     लहलहाएँगे,
प्यारे   फूल  खिल   जाएँगे।

मँडराएँगे   भौंरे    उन    पर,
तितली भी  आएँगी उड़कर।

फूलों   से   महकेगा  आँगन,
हर्षित होगा सबका तन-मन।

गुड़िया  देखकर  ललचाएगी,
चुपके  से  तोड़  ले  जाएगी।

-बलदाऊ राम साहू

नन्हे राही

पूछ  रहा  था   मुझसे  नानू
चाँद  कहाँ  से  आया  होगा
औ' सितारों को  आसमाँ में 
जाने  कौन  फैलाया  होगा।

रोज   सवेरे   पूरब   में   ही
सूरज  कैसे   आ   जाता  है
और शाम को जाने क्यों वह
पश्चिम  में  ही  सो  जाता है।

जाने   कैसे    सीखा   होगा
कोयल ने  यह  नया  तराना
औ'  पंछी  से  पूछें  तो  हम
कैसे   वे   सीखे   हैं   गाना। 

कैसे   दिशा   बदलती   होगी
शीतल  पवन  और  पुरवाई 
इन  पहेलियों  को  बूझ कर
चतुर   कहाएँ   नन्हे    राही।

-बलदाऊ राम साहू

क्रिसमस का त्यौहार 

रानू,   शानू,    भोलू   आओ
पोनी,  मोनी,  जूली   आओ।
आओ   राजू,  बबलू  आओ 
खुशी-खुशी त्यौहार मनाओ।

क्रिसमस का त्यौहार है प्यारे
जड़े   हुए  हैं   देखो  सितारे
झूम कर  आई है खुशियाली 
लगता   है    जैसे    दीवाली।

माँ - बापू   के   सँग  जाएँगे
कुछ ना  कुछ लेकर आएँगे
दादी - दादा  हमें   प्यार  से
कपड़े  तो  कुछ  दिलवाएँगे।

सांता  क्लाज़  आएंगे भाई 
उपहार   वह  लाएंगे   भाई
बच्चों को वह  प्यार  जताते
इसीलिए तो हर साल  आते।

-बलदाऊ राम साहू

प्यारी नानी 

गुस्सा  छोड़ो  प्यारी नानी
कहो न तुम कथा-कहानी 
मेघ कहाँ  से  लाता होगा
भर-भर कर इतना  पानी।

चंदा  मामा  दूर-दूर  क्यों 
हमदम   हमसे   रहते  हैं
आसमान  से सूरज दादा 
आकर क्यों वह तपते हैं।

हमको तुम बतलाओ नानी
कलियाँ  कैसे  खिल आतीं
और बाग  में  तितली रानी 
आकर क्यों  रस पी जाती।

बोलो - बोलो,  बोलो नानी
सागर जल  क्यों  है  खारा 
औ' बादल भैया जाने क्यों 
दे   जाता   है  पानी  सारा।

-बलदाऊ राम साहू


प्यारे बच्चे हैं 

मन से जो भी सच्चे हैं 
वे सब अच्छे-अच्छे हैं। 

जो हरदम  मुस्काते है
प्यारे - प्यारे  बच्चे  हैं।

दूसरों की  करें भलाई
वे  फूलों  के  गुच्छे  हैं।

मिहनत से आगे आते
वे  ही  बच्चे अच्छे  हैं।

बाधाओं   से   घबराएँ 
समझो वे अधकच्चे  हैं।

झूठ   बोलने   वाले  ही
हरदम   खाते  गच्चे  हैं।

-बलदाऊ राम साहू

ईश्वर दयाल गोस्वामी जी के टीं लोरी गीत प्रस्तुति : वागर्थ ब्लॉग

डॉ अजय जनमेजय के लोरी गीत प्रस्तुति वागर्थ

कुछ लोरी गीत भेज रहा हूँ


           (१)
झल्लर के मल्लर के गीत सुनाऊँगी
मैं अपने लल्ला को  अभी सुलाऊँगी 
धरती    का    राजा  तू
राजा      अम्बर      का 
तू    ही     तो    राजा है
हरे       समुन्दर       का
सूरज  या  चंदा  तब  तुझे बुलाऊँगी  

परियों   की   जुगनू की
नन्हीं      तितली     की
कोयल की बुलबुल की
उड़ती     बदली       की 
सो जा अब कल इनकी कथा सुनाऊँगी 

चन्दा       भी     देखेगा
तुझको     जी    भरकर
परियाँ      भी    नाचेंगी 
तुझको     छू -छू    कर
नहला कर कल को जब तुझे सजाऊँगी 


               (२)
सपन सलोने आते हैं सब 
पंख     तेरे     चढ़     कर
ममता वाली गोद लिए तू
सबसे      है     बढ़    कर

लगती   है   माँ   जैसी तू
निंदिया सबसे   प्यारी तू

अपनी गोदी में ले सबके
कष्टों     को         हरती
दूर थकावट करती, सब में 
मस्ती           है      भरती 

राजा रंक सभी को लगती
प्यारी,   बड़ी    दुलारी  तू 

चाहे कोई   भी मौसम हो
तेरी        बात       अलग
दिन भी माना बहुत ज़रूरी
पर     है     रात     अलग

सपने, चन्दा , परियों वाली
तू   है   सबसे    न्यारी   तू 

        (३)

खिड़की   से   ही   झाँके  क्यूँ 
दूर    है    तू   मुन्ना    से   क्यूँ
आ   जा   निंदिया   आ जा री!

तारें       देखें         ऊपर     से 
सोएगा        मेरा           मुन्ना 
सपनों      में     सब     आएँगें;
नाचेंगे      ता-धिक्      धिन्ना 
पास   न     मेरे    क्यों    आए
दूर    खड़ी    क्यों     इठलाए

तेरे         लिए       बनाए    हैं 
हलवा     पूरी    खा   जा   री!

सोई    तितली     फूलों    पर
भूल    गई    घर   को    जाना
पेड़    सो    गए     खड़े   खड़े
कह   चिड़िया को कल आना
तू   अब   तक क्यों तुनक रही
दूर    खड़ी   क्यों   ठुनक रही

कहना     मान      हमारा    री
बजा    रही     क्यों   बाजा री
आ    जा   निंदिया  आ जा री 

(४)


ला सुन्दर इक सपना री
मेरी  गुड़िया को
आ जा री आ निंदिया री
मेरी बिटिया को —

दूर चली क्यों आँखों से
पल-पल जाती है
पलकों को  तू मुनिया की 
छल-छल जाती है

समय बहुत बाँटा करती
बाक़ी दुनिया को—-

जल्दी तुझे बहुत रहती
कहाँ  कहाँ  जाती
मेरे घर  तो  अक्सर तू
देर     गए   आती
गई    सुलाने   होगी तू
काली बछिया को —-

हुमक हुमक कर आना तू
पर  धीरे- धीरे 
शीतल पवन भी लाना तू
जा नदिया  तीरे
मिलने तो जाती होगी
तू भी  नदिया को ——-

   (५)
नींद   पलकों   के   आई  किनारे
सो जा  सो  जा तू प्यारे———-

नींद   सबको   सुलाने  थी निकली
जल भरा था अचानक वो फिसली
बड़ी   मुश्किल   से   रस्ता मिला रे 
सो जा  सो जा  तू प्यारे————

साथ    लेकर    सपने    चली  थी
नींद   वैसे    तो   चंगी   भली   थी
स्वप्न    लुटने    का डर था हुआ रे
सो जा सो जा तू प्यारे————

है   अकेली   न   रातों   की   रानी
हर   जगह   नींद   है   जानी मानी
साथ   तारों   का   है  काफिला रे
सो  जा  सोचा तू प्यारे————

     (६)
मीठी    नींद   सुला   दे   निंदिया 
मीठी नींद सुला दे—————

ताऊ   जी   की   छत   के  ऊपर
फैला   आया दाने
ताई    अभी      गई    है    देकर
मुझको  मीठे ताने
दिन   भर   की   इसकी शैतानी
आकर नींद भुला दे ————

लोरी   के   तो   लिए   रोज़ ही 
मेरे पास ठुनकता
मगर    दूध    पीने   से   बचता
रोता और तुनकता 
सोएगा    अब   इसको  झूला 
आकर नींद झुला दे———-
मीठी   नींद सुला दे ————

ईश्वर दयाल गोस्वामी जी के टीं लोरी गीत प्रस्तुति : वागर्थ ब्लॉग




लोरी गीत 
------------

बिटिया !
सो जइए री !
किसने 
हरी तेरी निंदिया ?

बाहर सोया,
भीतर सोया ।
चिड़िया सोई,
तीतर सोया ।
ताल,कूप को 
सुला-सुला कर
सोई गहरी नदिया ।

चूल्हा सोया,
लकड़ी सोई ।
अंगारों की
आगी सोई ।
सटी हुई
चूल्हे से भूखी
सोई कानी कुतिया ।

गुड्डा सोया,
गुड़िया सोई ।
बँधी सार में
बछिया सोई ।
थके और
सुंदर माथे पर
माँ के,सोई बिंदिया ।

बिटिया ! 
सो जइए री ! 
किसने 
हरी तेरी निंदिया ?

                --- ईश्वर दयाल गोस्वामी
                    छिरारी (रहली),सागर
                    मध्यप्रदेश ।
लोरी गीत 
------------

सोईए 
गोपाल लाल !
पहर चढ़ी रैना ।

पालने की डोर थकी,
काजरे की कोर थकी ।
थक चुका है
शोर सब, 
और थकी चैना ।

थक चुकी खटाई सब,
दूध औ' मलाई सब ।
थक चुकीं
जलेबियाँ भी
और थका छैना ।

सोईए
गोपाल लाल !
पहर चढ़ी रैना ।

               -- ईश्वर दयाल गोस्वामी
                  छिरारी (रहली),सागर
                  मध्यप्रदेश ।
लोरी गीत 
-------------

नींद  मेरे  लाल  की 
जो उड़ी,तो क्यों उड़ी ?

थपकियाँ  मचल रहीं,
लोरियाँ  सिसक  रहीं ।
पालना  की  डोर  भी,
हाथ से  खिसक  रहीं ।

आस  में  निराश  की,
आ कड़ी ये क्यों जुड़ी ?

लाल होके लाल की,
आँख क्यों तनी-तनी ?
नींद  और  रात की
रार  क्यों  ठनी-ठनी ?

लाड़  की जुड़ी कड़ी,
लाड़ले से क्यों छुड़ी ?

नींद को बना कजर,
आँख  में  सजाऊँगी ।
डोर खींच रात की,
पालना   झुलाऊँगी ।

प्यार की दशा-दिशा
जो मुड़ी,तो क्यों मुड़ी ?

नींद  मेरे  लाल  की 
जो उड़ी,तो क्यों उड़ी ?

                  --- ईश्वर दयाल गोस्वामी 
                      छिरारी (रहली),सागर
                      मध्यप्रदेश ।

शुक्रवार, 27 अगस्त 2021

कवि उदय अनुज के बाल गीत प्रस्तुति : ब्लॉग वागर्थ

चींटी की शादी
___________

चींटी  की  शादी  में आये, 
उसके चींटा मामा। 
बड़े अखाड़ेबाज लड़इया, 
पहलवान ज्यों गामा। 

बड़ी-बड़ी  मूँछें थीं उनकी, 
सुगठित  भरी भुजाएँ। 
सारे   पाहुन   उनसे  डरते, 
निकट न कोई  जाएँ। 

चींटी  के  चाचा  थे  दुबले, 
ज्यों-त्यों चलती गाड़ी। 
पहलवान मामा जब छींकें, 
ढीली   होती   नाड़ी। 

जितने लड्डू बनते घर में, 
मामा आधे  खाते। 
फिर भी वे मैदान न  छोडें, 
पाहुन  भूखे   जाते। 

लड्डू  खाकर गामा मामा, 
घर में खूब डकारें। 
सारे  पाहुन  थर-थर  काँपें, 
हिलती थीं दीवारें। 

टैंट किराये  का  बुलवाया,
मंडप खूब सजाया। 
चींटी रानी को  सजा-धजा, 
दूल्हे  संग  बिठाया। 

तभी  जोर से  छींकें  मामा, 
टेंट  ढह  गया  सारा। 
टाँगें    टूटीं   दूल्हा   पहुँचा, 
अस्पताल    बेचारा। 
             
गिलहरी
_______

बिजली  जैसी  चपल  सलोनी।
लगे  रुई   की   कोमल   पोनी।

दौड़   लगाये   डाली  -  डाली।
रुके   अचानक  ठोंके    ताली।

 खड़ी  हुई  पिछले   पैरों   पर।
 दाना  खाये  कुतर-कुतर  कर।

 तेज - तेज  यह  पूँछ  हिलाये।
 नन्हीं    मूँछें    भी   दिखलाये। 

 सेतु  -  बंध   में    ढोई    रेती। 
 प्रभू   राम  की   बनी   चहेती। 

 बिठा  गोद  में  जब  पुचकारी। 
 तीन   धारियाँ    पीठ   सँवारी। 
 
  दिखे  गाँव  में  कह लो शहरी। 
  अजी  जानिए  नाम  गिलहरी। 
                     
हाथी का रूमाल
_____________
अपने हाथी दादा इक दिन , 
पहुँचे दरजी पास।
दो मीटर में ड्रेस बना लें , 
यही लिये मन आस।

दरजी ने जब बात सुनी तो , 
बोला  दादा  जान। 
छोटी आँखों से कपड़े की,
कर लो कुछ पहचान।

नापो इसको देखो यह है , 
केवल दो ही हाथ।
ऐसे में कैसे सिल सकता, 
शर्ट-सूट इक  साथ।

हँसी खूब आई दरजी को, 
हँसा  हुआ बेहाल। 
बोला दादा इसे बना लो , 
नाक पोंछ  रूमाल। 
                
चाँद पर
______


गया चाँद पर सबसे पहले,
मानव का उड़न-खटोला।
चाँद हुआ तब हक्का-बक्का,
हाथ जोड़कर वह बोला। 

ऊबड़ - खाबड़ मेरा चेहरा, 
दुनिया को दिखलाओगे। 
अरे नील औ' एल्ड्रिन मेरा, 
तुम तो मान घटाओगे। 

धरती पर जब वापस पहुँचो, 
सही हाल मत बतलाना। 
जितना सुंदर लगूँ धरा से, 
फोटो वैसी दिखलाना। 

वर्ना युगों पुराना नाता, 
मिट्टी में मिल जायेगा। 
मेरे प्यारे गीत धरा पर, 
कभी न कोई गायेगा। 

मामा नहीं कहाऊँगा मैं, 
नहीं काव्य में आऊँगा। 
इतनी दूर अकेला मैं तो, 
घुट-घुट कर मर जाऊँगा। 
              
चुहिया का झगड़ा
______________
(निमाड़ जनपद की लोककथा पर आधारित काव्य-कथा)

चूहा - चुहिया दोनों  मिल , 
इक  बर्तन में  सोये।
दिन  भर  के थे थके  हुए, 
गहरी निंदिया खोये।

पलक झपकते दोनों को, 
नींद लगी  थी   भारी।
और   नींद  में  चूहे  ने  ,  
लात भूल   से   मारी।

बहुत  खपा  थीं चुहियाजी, 
सुबह  देर तक सोई।
और  रात  की  बात  लिये , 
बार  - बार थी  रोई।

बहुत मिन्नतें कीं लेकिन , 
नहीं   तनिक मुस्काई।
बात  लात  की फिर  उसने, 
रह- रह कर दुहराई।

वही  बहाना  ले  चुहिया , 
पड़ती उस  पर  भारी। 
"अरे समझते क्या मुझको! 
मुझे लात क्यों मारी।" 

नहीं  रहूँगी  अब  इस  घर , 
कोरट में  जाऊँगी। 
तुमसे   लूँगी   मैं   तलाक ,  
तभी चैन   पाऊँगी। 

बात  सुनी  जब  कोरट की  ,  
तो चूहा  घबराया। 
कान  पकड़  माफी  माँगी ,  
रगड़ी  नाक मनाया। 

काम  घरेलू  सब  निबटा , 
चूहा  कुछ  सुस्ताया।
बहुत लगन से फिर अच्छा ,
भोजन गया  बनाया।

फिर  दौड़ा  उसे  मनाने ,  
वह झट से  उठ आई। 
बोली   प्यारे   राजाजी   !   
बीती  बात   भुलाई।

आप लगाओ अब खाना , 
साथ   बैठकर  खायें। 
और आज है फिर संडे , 
मिलकर   मौज  मनायें। 
                   
वर चाहिए
________
गुड्डे  वालों  सुनो  सुनो  जी!
बात  पते की  जरा गुनो जी!

मेरे  घर   है  प्यारी  गुड़िया।
है शक्कर की मीठी पुड़िया।

वो दिन भर बन-ठन रहती है।
फिर खुद को हेमा  कहती है।

वो  नये  चलन  की  छोरी  है।
वो   गोरी   दूध   कटोरी    है। 

भले  ही  गाँव  में   रहती  है। 
पर साथ समय के  बहती  है। 

पढ़ी - लिखी  वह ग्रेजुएट  है।
फैशन  में   भी  अपटुडेट  है। 

उसका  कोई   नहीं  तोड़   है। 
फटी जीन्स तो आठ जोड़  है। 

वो  मोबाइल   की   मारी   है। 
वो  सारे   घर  पर   भारी   है। 

फेसबुक  औ'  वाट्सअप   में। 
व्यस्त रहे दिन भर गपशप  में। 

काम   बताएँ   झल्लाती    है। 
आँख बड़ी कर  दिखलाती है। 

हमें   चाहिए   प्यारा    दूल्हा। 
कभी   नहीं  फुँकवाए  चूल्हा। 

जा  सकती है शापिंग   करने। 
कभी  न   जाए  पानी   भरने। 

पढ़ा-लिखा वर समझदार  हो। 
काना  हो  पर   मालदार   हो।
                

बैठी आज मुँडेरे चिड़िया
__________________

नयी सुबह का गीत सुनाने,
बैठी आज मुँडेरे चिड़िया।
नन्हे मुन्नों तुम्हें जगाने, 
बैठी आज मुँडेरे चिड़िया। 

अभी-अभी तो सुबह हुई है,
भूख लगी पर जोरों की है, 
आँगन में कुछ दाना पाने,
बैठी आज मुँडेरे चिड़िया। 

रट्टा खूब लगाते हो तुम,
भूल मगर फिर जाते हो तुम, 
फिर से भूला पाठ सिखाने, 
बैठी आज मुँडेरे चिड़िया। 

पापाजी ने डाँटा है या,
मम्मी ने चपत लगाई है, 
रूठे बेटों तुम्हें मनाने,
बैठी आज मुँडेरे चिड़िया।

धूप - छाँह के मेले में जब, 
बूँदें झरतीं प्यारी-प्यारी। 
अपने बच्चों संग नहाने, 
बैठी आज मुँडेरे चिड़िया।
                      
दिन और रात
___________

दिन खराब औ' रात भली जी!
दिन खराब औ' रात भली।

दिन लाता है जलता सूरज,
रात चाँद ले आती है।
मुस्काती तारों की टोली, 
नभ में मन को भाती है।
आसमान में तारे चमकें,
खिलती दिल की कली-कली। 
दिन खराब औ' रात भली जी!
दिन खराब औ' रात भली। 

दिन ज़्यादा कुछ देता है कब,
यह तो दे बस उजियारा। 
संग ज्योत के रात हमें दे, 
मोती-सा ओस पिटारा। 
इसीलिए दिन को हम बच्चे,
बात सुनाएँ जली-जली। 
दिन खराब औ' रात भली जी!
दिन खराब औ' रात भली। 

दिन तो होता पत्थर दिल है, 
हमसे बस काम कराए। 
कोमल दिल की होती रजनी,
थपकी दे हमें सुलाए। 
कैसी गहरी आये निंदिया,
जब हौले से पवन चली। 
दिन खराब औ' रात भली जी! 
दिन खराब औ' रात भली। 

दिन को याद करो बस गिनती,
नहीं करो तो मार पड़े। 
मम्मी कान पकड़ कर कहती,
नहीं निरर्थक रहो खड़े। 
दादी कहती रात कहानी,
राणा की तलवार चली।
दिन खराब औ' रात भली जी!
दिन खराब औ' रात भली। 

साथी दिन में करें परेशाँ,
             हमें चैन कब मिलता है। 
होमवर्क की मारामारी,
       हृदय-कमल कब खिलता है। 
और रात जब आती सजकर,
            चुप हो जाती गली-गली। 
दिन खराब औ' रात भली जी!
          दिन खराब औ' रात भली। 
                   
रेल चली जी!
__________

खेलम   खेला   रेल   चली   जी!
लो  बच्चों  की  रेल   चली   जी!

आगे  -  आगे     बढ़ती    जाती।                               कभी   नहीं   पीछे    मुड़  पाती।

पर्वत    घाटी     नदिया    नाला।
इंजन    कब   है   रुकने   वाला।

सरपट   है    वह   दौड़ा   जाता।
कभी-कभी  थकता  रुक  जाता।

चुन्नू    इंजन    खींच  न    पाता। 
मुन्नू    इंजन     जोर      लगाता। 

सीटी     देता     और   उछलता। 
दौड़े - दौड़े     कहीं    फिसलता। 

पैसेंजर      घायल     हो    जाते।                              लम्बू       खम्बू     भागे     आते।

झूठे     घायल     खूब   कराहते।                                पानी   -  पानी      हैं    चिल्लाते। 

पिल्लूजी   डाॅक्टर    बन   जाते। 
नकली     टीका     खूब   लगाते। 

देख   सभी  यह  खुश  हो  जाते। 
फिर   से   मिलकर  रेल   बनाते।

खिलती दिल की कली-कली जी।
खेलम    खेला    रेल   चली  जी। 
              
वर्षा का काला बादल
________________

दूर देश सेआता है, 
वर्षा का काला बादल।
आकर शोर मचाता है, 
 वर्षा का काला बादल।

सूखी नदियाँ रीती झीलें, 
खाली ताल तलैया, 
पानी से भर जाता है, 
वर्षा का काला बादल। 

रिमझिम-रिमझिम खूब बरसता,   
यह सावन का संगी, 
वन में मोर नचाता है, 
वर्षा का काला बादल। 

हम खुश होते और नहाते, 
अपने घर के आँगन, 
मम्मी से  पिटवाता है, 
वर्षा का काला बादल। 

स्वयम् घूमता यहाँ-वहाँ पर,   
मास्टरजी से कहकर, 
शालाएँ खुलवाता है,
वर्षा का काला बादल। 

सब है अच्छा पर है इसकी, 
यह इक आदत गंदी, 
कीचड़ खूब मचाता है, 
वर्षा का काला बादल। 
                     
अभिजित का सपना
_______________

रात दिवाली अभिजित ने,
देखा मीठा सपना।
मीठा-मीठा खूब हुआ, 
मिट्टी का घर अपना।

रबड़ी से पुती हुई थीं, 
घर की सब दीवारें।
टँगी जलेबी दरवाजे,  
पेठा लगती  कारें।

रसगुल्लों इमरतियों से, 
सजी फूल की क्यारी।
गेंदा पौधे पर लटकी, 
मावाबाटी प्यारी।

पानी के मटके में थी ,  
मीठी दूध मलाई।
नल की टोंटी खोली तो, 
खीर वहाँ बरसाई।

घर पिछवाड़े घेवर-से, 
दिखते गोबर-कंडे। 
बालूशाही-सी मुरगी,  
दे लड्डू-से अंडे। 

पापाजी कोने में ज्यों,
मालपुए मुस्काते। 
गुड़ की भेली-सी मम्मी , 
चूहे उनको खाते। 

बहन संजना कलाकंद, 
कनु मिश्री की डल्ली। 
क्रीम रोल से कोने में, 
लगते डंडा-गिल्ली। 

चाचा दिखते बर्फी-से, 
चाची बेसन-चकती। 
वीर हुआ गुलाब जामुन, 
चींटी उसको तकती। 

कविता की डायरियाँ थीं ,  
जैसे पूरण-पोली। 
"अभिजित ने खा ली"-दादी,
 दादाजी से बोली। 




उदय सिंह अनुज

परिचय ~
कुँअर उदयसिंह अनुज
जन्म तिथि - १५ जुलाई १९५०
शिक्षा - हिन्दी साहित्य में एम. ए., विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन (मप्र) 

जन्म स्थान /स्थाई पता--
ठिकाना पोस्ट - धरगाँव (मंड़लेश्वर) 
जिला - खरगोन (मध्यप्रदेश) 
पिन. 451-221 

प्रकाशित पुस्तकें-
1- लुच्चो छे यो जमानों दाजी! 
निमाड़ी लोकभाषा ग़ज़ल संग्रह - 2007 में प्रकाशित 
2- अभिजित का सपना - बाल साहित्य हिन्दी कविताएँ - 2011 में प्रकाशित 
3- यह मुक़ाम कुछ और - - दोहा संग्रह (600 दोहे) - 2 017 मे प्रकाशित 

पत्रिकाओं में प्रकाशन-- हंस, समकालीन भारतीय साहित्य, पाखी, हरिगंधा, अभिनव प्रयास, समावर्तन, अक्षर पर्व, हिन्दी विवेक, सरस्वती सुमन, अनन्तिम, शेषामृत, शब्द प्रवाह, अर्बाबे क़लम, शिखर वार्ता, मेकलसुता, यशधारा पत्रिकाओं में दोहे व गीत प्रकाशित। 
समाचार पत्र--नईदुनिया, नवभारत टाइम्स, दैनिक ट्रिब्यून, में रचनाएँ प्रकाशित। 
सम्मान-- सौमित्र सम्मान इंदौर 2004,
वयम सम्मान खरगोन 2007,
कस्तूरीदेवी लोकभाषा सम्मान भोपाल - 2012
गणगौर सम्मान खंडवा - 2012
लोक सृजन सम्मान मंड़लेश्वर - 2014
लोक साहित्य सम्मान खरगोन - 2015 
सम्प्रति - सहकारी कृषि और ग्रामीण विकास बैंक मर्यादित खरगोन से 2008 में वरिष्ठ शाखा प्रबंधक पद से सेवा निवृत्त 
मोबाइल - 96694-07634 
  Email - uday.anuj2012@gmail.com
                   

बुधवार, 25 अगस्त 2021

कवि परिचय में अनामिका सिंह : प्रस्तुति वागर्थ ब्लॉग




परिचय 

---------

नाम- अनामिका सिंह 
शिक्षा - परास्नातक (विज्ञान )
संप्रति -शिक्षा विभाग उत्तर प्रदेश में कार्यरत
अनेक प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में नवगीत प्रकाशित 
प्रकाशित कृति: "न बहुरे लोक के दिन" नवगीत संग्रह
2021
सम्पादन ' आलाप ' नवगीत संकलन
सम्पादन ' सुरसरि के स्वर ' ( साझा छंद संकलन ) शीघ्र प्रकाश्य 
उपसंपादन त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिका 'अंतर्नाद '
पता 
--------
अनामिका सिंह
स्टेशन रोड गणेश नगर , शिकोहाबाद- जिला फिरोजाबाद

मंगलवार, 24 अगस्त 2021

बाल गीत मेरार रज़ा प्रस्तुति वागर्थ ब्लॉग

कविता- सुनो पेड़ जी

खड़े-खड़े हरदम रहते हो,
कुछ ना कहते, चुप रहते हो!
नीम, आम, जामुन, बहेड़ जी,
सुनो पेड़ जी, सुनो पेड़ जी!

कभी बैठकर हमसे बोलो,
दही-जलेबी खा ख़ुश हो लो!
ललचाए से खड़े भेड़ जी,
सुनो पेड़ जी, सुनो पेड़ जी!

मिट्टी से तुम जल लेते हो,
मीठे-मीठे फल देते हो!
खाएँ बच्चे औ' अधेड़ जी,
सुनो पेड़ जी, सुनो पेड़ जी!

करो सुखी जीवन की राहें, 
जो भी तुम्हें काटना चाहें; 
हम उनको देंगे खदेड़ जी,
सुनो पेड़ जी, सुनो पेड़ जी!



कविता- बीज की चाह

दाना हूँ मैं नन्हा-मुन्ना,
मिट्टी में हूँ गड़ा-गड़ा!
कैसी होगी दुनिया बाहर,
सोच रहा हूँ पड़ा-पड़ा!

मीठा-मीठा पानी पीकर, 
अंकुर मैं बन जाऊँ! 
बढ़िया खाद मिले तो खाकर,
खिल-खिलकर मुस्काऊँ!

बाहर आकर धीरे-धीरे,
बड़ा पेड़ बन जाऊँ!
नीले-नीले अंबर नीचे,
हवा संग लहराऊँ!

नन्हीं चिड़िया मेरे ऊपर,
अपना नीड़ बनाए!
सुंदर मीठे गीत सुनाकर,
मेरा मन बहलाए!

तपती गर्मी से थककर जब,
राहगीर भी आए!
शीतल-शीतल छाया पाकर,
खुश तुरंत हो जाए!

तेज हवा के झोंके खाकर,
मीठे फल बरसाऊँ!
मेरे पास चले जब आओ,
तुमको ख़ूब खिलाऊँ!


बालगीत- बुढ़िया के बाल

खा लो, खा लो, जी भर खा लो,
मिठाई बेमिसाल।

घूम-घूम घिरनी से निकली,
मुँह में जाते ही मैं पिघली।
देखो, तो स्पंज लगूँ मैं,
रंग गुलाबी-लाल।

गली-मुहल्ले में जब जाऊँ,
सब बच्चों को मैं ललचाऊँ।
हल्की हूँ मैं रुई सरीखी,
रेशा-रेशा जाल।

मज़ेदार हूँ मैं खाने में,
चीनी मेरे हर दाने में।
हवा-मिठाई कह लो मुझको,
या बुढ़िया के बाल। 



कविता- जूँ

इल्लम-बिल्लम, झिल्लम झूँ,
काली-काली जूँ! जूँ! जूँ! 

बालों में की घुस-पैठी,
खून चूसकर है बैठी !

मुनिया का सिर खुजलाया,
उसको तो ग़ुस्सा आया!

जल्दी से कंघी लाई,
फिर जूँ की शामत आई!



कविता- सो गया घोड़ा खड़े-खड़े

नीचे सड़क, ऊपर पहाड़ी,
सड़क पर चली घोड़ा गाड़ी!

आगे गाड़ी, पीछे गाड़ी,
जाम हुआ अगाड़ी-पिछाड़ी!

पीं पो, पीं पो, चिल्लम चो,
धक्का-मुक्की, पिल्लम पो!

क्या हुआ भाई अरे, अरे,
सो गया घोड़ा खड़े-खड़े!



पहेली कविता- उजाला लाऊँ

सूरज चाचू सो जाएँ जब,
चुपके-चुपके आऊँ!
काले-काले गाँव-शहर में,
ख़ूब उजाला लाऊँ!

नीलगगन के चंदा-तारे,
नहीं दिया, ना बाती!
दही-बड़े, ना आइसक्रीम,
बिजली मुझको भाती!

बाबा एडीसन लाए थे, 
मुझको इस संसार में!
मेरा नाम बताकर झटपट,
रहो सदा उजियार में! 



कविता- पेड़ बहुत उपकारी

हरे-हरे पत्तों वाला मैं,
पेड़ बहुत उपकारी!
हरी-भरी धरती है मुझसे,
मैं कितना हितकारी!

फूल-पत्तियों और फलों से,
है गुणकारी काया!
थककर राहगीर जब आते,
पाते ठंडी छाया!

पाकर खूब हवाएं ताज़ी,
चलती जीवन-धारा!
हमें काट क्यों लाते अपने,
जीवन में अंधियारा!



बालगीत- अटकूं-मटकूं

अटकूं-मटकूं,
छत से लटकूं।

हौले-हौले
घर में आऊँ।
लारों से मैं
जाल बनाऊँ।
उन जालों पर
दौड़ूं, झटकूं।

मक्खी-मच्छर,
कीट फसाऊँ।
बहुत मजे से
उनको खाऊँ।
बच ना पाए
जिसको पटकूं।

सुलझे धागे
को उलझाऊँ।
बच्चों मकड़ी
मैं कहलाऊँ।
देख छिपकली
पास न फटकूं।

बालगीत-  आओ बतियाओ मम्मी

करो नहीं जी कुट्टी हमसे,
आओ बतियाओ मम्मी!

की गलती जो मैने उसकी,
सजा नहीं ये दो ना!
लगती बातें भली आपकी,
गुमशुम चुप बैठो ना!
मुझे बिठा गोदी में अपनी,
मुझको समझाओ मम्मी!

जानबूझ ना करना चाहूं,
गलती हो जाती है!
आप बताओ भला किसी को,
गलतियां सुहाती है?
माना हुई तकलीफ आपको,
अभी मुस्कुराओ मम्मी!

अरे आप हो प्यारी मम्मी,
मैं हूं बिटिया रानी!
वादा है जी नहीं करूंगी,
अब कोई शैतानी!
मीठा-मीठा गीत सुनाओ,
रस बरसाओ मम्मी!



बालगीत- दूँगा दाना-पानी

मेरा प्यारा गाँव छोड़कर,
कहाँ उड़ चली हो गोरैया!

दरवाजे पर देखो सूना,
खड़ा नीम का पेड़!
है आवाज़ लगाती तुमको,
वो छत की मुंडेर!
भूल गईं क्या गाँव सलोना,
यहीं पली थीं तुम गोरैया?

बना नीम पर एक घोसला,
करना यहीं बसेरा!
गूँजे मीठा कलरव फिर से,
जीवन डाले डेरा!
साथ चिरौटे को भी लाना,
भला एक भोली गोरैया!

जो आओगी आँगन मेरे,
दूँगा दाना-पानी!
रातों को मेरी दादी से,
सुनना रोज़ कहानी!
फुदक-फुदक आँगन में खाना,
भात, बाजरा, फल गोरैया! 



कविता- लगती साँप-सपोली

दौड़ूँ सर-सर पटरी-पटरी,
धूल उड़ाती आऊँ!
भीड़-भड़क्का, धक्कम- धक्का,
ख़ूब सवारी लाऊँ!

दिल्ली, पटना और आगरा, 
सारे शहर घुमाऊँ!
एक शहर से शहर दूसरे,
चक्कर रोज़ लगाऊँ!

दिखे जहाँ पर स्टेशन कोई,
वहीं ज़रा रुक जाऊँ!
चलने के पहले तेज़ी से,
दो सीटियाँ बजाऊँ!

बहुत दूर से देखो तो मैं,
लगती साँप-सपोली!
मुसाफ़िरों को लादे ख़ुद पर,
दौड़ूँ लेकर खोली! 



उत्तर दे दो 

पतली-दुबली काया मेरी,
लंबी, लाल, लचीली!
बहुत रसीली मैं रहती हूँ,
हरदम रहती गीली!

कैंची-सी चलती हूँ हरपल,
रहती नहीं हठीली!
दूध-मलाई मुझे लुभाए,
चाटूँ चार पतीली! 

खुश हो जाएँ लोग सभी,
जब बोलूँ बात चुटीली!
लेकिन बिगड़ी अगर कहीं तो,
बन जाऊँ जहरीली! 

कच्ची अगर मिले इमली तो,
होती बहुत पनीली!
दातों के पिंजरे में छुपकर,
रहती हूँ शर्मीली!

प्यारी-प्यारी गुड़िया रानी,
बनो नहीं नखरीली!
झट से इसका उत्तर दे दो, 
बोली बोल सुरीली!



चाँद मियां

बैठे हो कि खड़े हो,
या खाट पर पड़े हो!
झूल रहे झूला या
कहीं लटके पड़े हो!

ताड़ पर या झाड़ पर
कहाँ अटके पड़े हो!
घर के अंदर अपने
कितने बल्ब जड़े हो?

तारों के आंगन में
आकर भटके हो?
सच में चाँद मियां तुम
सबसे हटके हो!



बालगीत- नाच दिखाने आऊँ

रंग-बिरंगे पंख सुनहरे,
सबके मन को भाऊँ!

काले-काले बादल नभ में,
घुमड़-घुमड़ कर आए!
सन सन चले हवा सुहानी,
भौंरा गीत सुनाए!
तभी पंख फैलाए अपने,
नाच दिखाने आऊँ!

इंद्रधनुष से रंग चमकते,
सुंदर मेरे पँख!
लगता उनपर बने हुए हों,
नन्हे-नन्हे शंख!
अपने ऊपर ताज सजाकर,
राजा मै बन जाऊँ!




जीवन परिचय
मेराज रज़ा
पिता- मो. सिराज उद्दीन
माता- खैरूल निशा
जन्म स्थान- ग्राम- बाजिदपुर, थाना- विद्यापतिनगर, जिला- समस्तीपुर, राज्य- बिहार-848503
जन्मतिथि- 06.03.1988
शिक्षा- एम० ए० (राजनीतिशास्त्र), डी.एल.एड.
प्रकाशित पुस्तक- मेरे मन का फूल
प्राप्त पुरस्कार- 
हिन्दी बाल साहित्य शोध संस्थान, दरभंगा द्वारा आचार्य रामलोचन शरन शिखर बाल साहित्य सम्मान 2020।
संप्रति- शिक्षक
प्रकाशन- नंदन, चकमक, बालवाटिका, पाठक मंच बुलेटिन, अभिनव बालमन, उजाला, बच्चों का देश, साहित्य समीर दस्तक, संगिनी, बाल भास्कर,  बाल साहित्य की धरती, बाल किलकारी,  दी अंडरलाइन, बाल प्रभा, चिरैया बाल पत्रिका, प्रेरणा-अंशु, खुशबू मेरे देश की, संभावना सुरभि, हमारा बाल प्रभात, पंजाब केसरी, प्रभात खबर सुरभि, डेली हिंदी मिलाप हैदराबाद, पायस, पत्रिका समाचार भोपाल, पत्रिका समाचार पत्र जबलपुर, दैनिक वर्तमान अंकुर, हम हिन्दुस्तानी(USA), जय-विजय मासिक पत्रिका आदि पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित।
संपर्क सूत्र- 9113731588
ईमेल- merajraza.bazidpur@gmail.com
--
सादर
मेराज रज़ा
ग्राम+पोस्ट- बाजिदपुर,
थाना- विद्यापतिनगर,
जिला- समस्तीपुर,
बिहार-848503
मोबाइल-9113731588




जीवन परिचय मेराज रज़ा प्रस्तुति वागर्थ ब्लॉग




जीवन परिचय
मेराज रज़ा
पिता- मो. सिराज उद्दीन
माता- खैरूल निशा
जन्म स्थान- ग्राम- बाजिदपुर, थाना- विद्यापतिनगर, जिला- समस्तीपुर, राज्य- बिहार-848503
जन्मतिथि- 06.03.1988
शिक्षा- एम० ए० (राजनीतिशास्त्र), डी.एल.एड.
प्रकाशित पुस्तक- मेरे मन का फूल
प्राप्त पुरस्कार- 
हिन्दी बाल साहित्य शोध संस्थान, दरभंगा द्वारा आचार्य रामलोचन शरन शिखर बाल साहित्य सम्मान 2020।
संप्रति- शिक्षक
प्रकाशन- नंदन, चकमक, बालवाटिका, पाठक मंच बुलेटिन, अभिनव बालमन, उजाला, बच्चों का देश, साहित्य समीर दस्तक, संगिनी, बाल भास्कर,  बाल साहित्य की धरती, बाल किलकारी,  दी अंडरलाइन, बाल प्रभा, चिरैया बाल पत्रिका, प्रेरणा-अंशु, खुशबू मेरे देश की, संभावना सुरभि, हमारा बाल प्रभात, पंजाब केसरी, प्रभात खबर सुरभि, डेली हिंदी मिलाप हैदराबाद, पायस, पत्रिका समाचार भोपाल, पत्रिका समाचार पत्र जबलपुर, दैनिक वर्तमान अंकुर, हम हिन्दुस्तानी(USA), जय-विजय मासिक पत्रिका आदि पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित।
संपर्क सूत्र- 9113731588
ईमेल- merajraza.bazidpur@gmail.com
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ग्राम+पोस्ट- बाजिदपुर,
थाना- विद्यापतिनगर,
जिला- समस्तीपुर,
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