लोरी गीत
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बिटिया !
सो जइए री !
किसने
हरी तेरी निंदिया ?
बाहर सोया,
भीतर सोया ।
चिड़िया सोई,
तीतर सोया ।
ताल,कूप को
सुला-सुला कर
सोई गहरी नदिया ।
चूल्हा सोया,
लकड़ी सोई ।
अंगारों की
आगी सोई ।
सटी हुई
चूल्हे से भूखी
सोई कानी कुतिया ।
गुड्डा सोया,
गुड़िया सोई ।
बँधी सार में
बछिया सोई ।
थके और
सुंदर माथे पर
माँ के,सोई बिंदिया ।
बिटिया !
सो जइए री !
किसने
हरी तेरी निंदिया ?
--- ईश्वर दयाल गोस्वामी
छिरारी (रहली),सागर
मध्यप्रदेश ।
लोरी गीत
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सोईए
गोपाल लाल !
पहर चढ़ी रैना ।
पालने की डोर थकी,
काजरे की कोर थकी ।
थक चुका है
शोर सब,
और थकी चैना ।
थक चुकी खटाई सब,
दूध औ' मलाई सब ।
थक चुकीं
जलेबियाँ भी
और थका छैना ।
सोईए
गोपाल लाल !
पहर चढ़ी रैना ।
-- ईश्वर दयाल गोस्वामी
छिरारी (रहली),सागर
मध्यप्रदेश ।
लोरी गीत
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नींद मेरे लाल की
जो उड़ी,तो क्यों उड़ी ?
थपकियाँ मचल रहीं,
लोरियाँ सिसक रहीं ।
पालना की डोर भी,
हाथ से खिसक रहीं ।
आस में निराश की,
आ कड़ी ये क्यों जुड़ी ?
लाल होके लाल की,
आँख क्यों तनी-तनी ?
नींद और रात की
रार क्यों ठनी-ठनी ?
लाड़ की जुड़ी कड़ी,
लाड़ले से क्यों छुड़ी ?
नींद को बना कजर,
आँख में सजाऊँगी ।
डोर खींच रात की,
पालना झुलाऊँगी ।
प्यार की दशा-दिशा
जो मुड़ी,तो क्यों मुड़ी ?
नींद मेरे लाल की
जो उड़ी,तो क्यों उड़ी ?
--- ईश्वर दयाल गोस्वामी
छिरारी (रहली),सागर
मध्यप्रदेश ।
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