रविवार, 29 अगस्त 2021

डॉ अजय जनमेजय के लोरी गीत प्रस्तुति वागर्थ

कुछ लोरी गीत भेज रहा हूँ


           (१)
झल्लर के मल्लर के गीत सुनाऊँगी
मैं अपने लल्ला को  अभी सुलाऊँगी 
धरती    का    राजा  तू
राजा      अम्बर      का 
तू    ही     तो    राजा है
हरे       समुन्दर       का
सूरज  या  चंदा  तब  तुझे बुलाऊँगी  

परियों   की   जुगनू की
नन्हीं      तितली     की
कोयल की बुलबुल की
उड़ती     बदली       की 
सो जा अब कल इनकी कथा सुनाऊँगी 

चन्दा       भी     देखेगा
तुझको     जी    भरकर
परियाँ      भी    नाचेंगी 
तुझको     छू -छू    कर
नहला कर कल को जब तुझे सजाऊँगी 


               (२)
सपन सलोने आते हैं सब 
पंख     तेरे     चढ़     कर
ममता वाली गोद लिए तू
सबसे      है     बढ़    कर

लगती   है   माँ   जैसी तू
निंदिया सबसे   प्यारी तू

अपनी गोदी में ले सबके
कष्टों     को         हरती
दूर थकावट करती, सब में 
मस्ती           है      भरती 

राजा रंक सभी को लगती
प्यारी,   बड़ी    दुलारी  तू 

चाहे कोई   भी मौसम हो
तेरी        बात       अलग
दिन भी माना बहुत ज़रूरी
पर     है     रात     अलग

सपने, चन्दा , परियों वाली
तू   है   सबसे    न्यारी   तू 

        (३)

खिड़की   से   ही   झाँके  क्यूँ 
दूर    है    तू   मुन्ना    से   क्यूँ
आ   जा   निंदिया   आ जा री!

तारें       देखें         ऊपर     से 
सोएगा        मेरा           मुन्ना 
सपनों      में     सब     आएँगें;
नाचेंगे      ता-धिक्      धिन्ना 
पास   न     मेरे    क्यों    आए
दूर    खड़ी    क्यों     इठलाए

तेरे         लिए       बनाए    हैं 
हलवा     पूरी    खा   जा   री!

सोई    तितली     फूलों    पर
भूल    गई    घर   को    जाना
पेड़    सो    गए     खड़े   खड़े
कह   चिड़िया को कल आना
तू   अब   तक क्यों तुनक रही
दूर    खड़ी   क्यों   ठुनक रही

कहना     मान      हमारा    री
बजा    रही     क्यों   बाजा री
आ    जा   निंदिया  आ जा री 

(४)


ला सुन्दर इक सपना री
मेरी  गुड़िया को
आ जा री आ निंदिया री
मेरी बिटिया को —

दूर चली क्यों आँखों से
पल-पल जाती है
पलकों को  तू मुनिया की 
छल-छल जाती है

समय बहुत बाँटा करती
बाक़ी दुनिया को—-

जल्दी तुझे बहुत रहती
कहाँ  कहाँ  जाती
मेरे घर  तो  अक्सर तू
देर     गए   आती
गई    सुलाने   होगी तू
काली बछिया को —-

हुमक हुमक कर आना तू
पर  धीरे- धीरे 
शीतल पवन भी लाना तू
जा नदिया  तीरे
मिलने तो जाती होगी
तू भी  नदिया को ——-

   (५)
नींद   पलकों   के   आई  किनारे
सो जा  सो  जा तू प्यारे———-

नींद   सबको   सुलाने  थी निकली
जल भरा था अचानक वो फिसली
बड़ी   मुश्किल   से   रस्ता मिला रे 
सो जा  सो जा  तू प्यारे————

साथ    लेकर    सपने    चली  थी
नींद   वैसे    तो   चंगी   भली   थी
स्वप्न    लुटने    का डर था हुआ रे
सो जा सो जा तू प्यारे————

है   अकेली   न   रातों   की   रानी
हर   जगह   नींद   है   जानी मानी
साथ   तारों   का   है  काफिला रे
सो  जा  सोचा तू प्यारे————

     (६)
मीठी    नींद   सुला   दे   निंदिया 
मीठी नींद सुला दे—————

ताऊ   जी   की   छत   के  ऊपर
फैला   आया दाने
ताई    अभी      गई    है    देकर
मुझको  मीठे ताने
दिन   भर   की   इसकी शैतानी
आकर नींद भुला दे ————

लोरी   के   तो   लिए   रोज़ ही 
मेरे पास ठुनकता
मगर    दूध    पीने   से   बचता
रोता और तुनकता 
सोएगा    अब   इसको  झूला 
आकर नींद झुला दे———-
मीठी   नींद सुला दे ————

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