मंगलवार, 3 अगस्त 2021

प्रभु त्रिवेदी जी के दोहे प्रस्तुति ब्लॉग वागर्थ

_______समकालीन दोहा
             तीसरा पड़ाव
             दूसरी किस्त
             बत्तीसवीं कड़ी
             दोहाकार कवि प्रभु त्रिवेदी 
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             21,अगस्त 1955 में जन्में प्रभु त्रिवेदी जी सिद्धहस्त दोहा सर्जक हैं। उन्होंने विविध विषयों में बाक़ायदा सीरीज में दोहे लिखे और उठाये गए विषयों के साथ पूरा न्याय किया। 
             प्रभु त्रिवेदी जी के दोहों में परिवेश,परम्परा और आध्यात्मिक नवीनता देखने को मिलती है। कथ्य और शिल्प की दृष्टि से आपके दोहे निर्दोष होते हैं। प्रस्तुत दोहों में विविध स्तरों पर समकालिक बोध सहज ही आभाषित होता है।
             दोहों की इस सीरीज के लिए सामग्री उपलब्ध कराने के हेतु समूह वागर्थ कवि का आभार व्यक्त करता है।
         प्रस्तुति
 ©वागर्थ ब्लॉग
 ©वागार्थ समूह 

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सूचना
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 स्वास्थ्यगत कारणों से हम कुछ दिनों के लिए इस सीरीज को यहीं विराम दे रहे हैं।
जिन मित्रों ने इस सीरीज के लिए हमें सामग्री भेजी है उस पर काम लौटकर सम्पन्न करेंगे।
मिलते हैं एक अंतराल के बाद
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              प्रस्तुत हैं कवि प्रभु त्रिवेदी जी के दोहे
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1
चूल्हा-लकड़ी-रोटियाँ, धुआँ-भोंगली आग
माँ ने आँखें झोंककर, बाँट दिया अनुराग
2
एक ओर गूगल जले, एक ओर लोबान
एक बह्म को बाँटता, ऐ! मूरख नादान
3
उलटे पासे पड़ गए, कल तक थे अनुकूल
कितनी पीड़ा दे गई, ‘दशरथ’ की इक भूल
4
सच्चा सौदा है वही, जो दे ख़ुशी अपार
यूँ तो झूठों के सदा, फलते दिखे विचार
5
धन की सत्ता मोह ले, करवा दे दुष्कर्म
होने में निर्वस्त्र अब,कहाँ  आ  रही शर्म
6
पहने मंगल-सूत्र को, बचा रखे वह लाज
विधवा की निर्लज्जता, कहता लोक-समाज
7
झूठ कभी छुपता नहीं, दिल में रहता साँच
अगर छुपाया झूठ को, चटकेगा फिर काँच
8
जीते जी पूछा नहीं, कभी न झाँका द्वार
मरते ही कहने लगे, हम भी हैं हक़दार
9
आँखें रोतीं बाप की, जीवन में दो बार
बेटा जब मुँह मोड़ता, बेटी छोड़े द्वार
10
माना आँखें थीं नहीं, हृदय कहाँ था पास
एक पिता की धृष्टता, बदल गई इतिहास
11
कुछ दुख किस्मत ने दिये, कुछ मिल गये उधार
सुख बस चर्चा में रहा, जीवन भर निस्सार
12
मिलते हैं प्रारब्ध से, पैसा-पत्नी-पूत
व्यर्थ सभी अभ्यर्थना, पूजन-पाठ-भभूत
13
पद-पैसे के मोह ने, ऐसा फेंका जाल
धूनीवाले संत भी, फिसल गए तत्काल
14
उभय पक्ष की मित्रता, मिले सभी को नेक
चाहे हों दस-बीस पर, ख़ास मित्र हो एक
15
मीठे जल को पी रहा, रत्नाकर यह जान
खारेपन का हो कभी, नदियों से अवसान
16
दादा का बरगद मरा, पापाजी का नीम
नई सड़क से हो गई, पीढ़ी तीन यतीम
17
राम नहीं, पर राम-सम,गढ़ना अगर चरित्र |
फिर कोई वशिष्ठ बने, या फिर विश्वामित्र ||
18
तत्त्व-ज्ञान से हैं भरे,गीता-वेद-पुराण |
माटी में भी फूँककर , पैदा कर दे प्राण ||
19
जहाँ उच्च थी भावना , -ज्ञान रहा आदर्श |
वहाँ अर्थ से जुड़ गया,शिक्षण और विमर्श ||
20
शर्मिंदा तब हो गए, गुरुओं के सद्कार्य |
गए कोरवों के यहाँ , जब से द्रोणाचार्य ||
21
वृद्ध शब्द को भूलिये , रखिये याद वरिष्ठ |
ये अनुभव सम्पन्नता,यों ही नहीं प्रतिष्ठ ||
22
दुश्मन जैसे लग रहे , मौसम के बदलाव |
शहर संक्रमण से भरा, गाँव भूख के घाव ||
23
नई पीढ़ियाँ सीख लें, झुकने के निहितार्थ |
झुकने से मिलते यहाँ, भैया सकल पदार्थ ||
24
दमक-दमककर दामिनी,हृदय करे भयभीत |
धरा-गगन की शुष्कता, सचमुच शब्दातीत ||
25
अश्रु सूख कर आँख में , -भोग रहे वैधव्य |
व्यर्थ-व्यर्थ लगने लगा,गाड़ी-कोठी-द्रव्य ||
26
लहर-लहर में गरल है, भूल-भूल अमरत्व |
काल खड़ा निर्लज्ज अब, भुला रहा देवत्व ||
27
रक्तवाहिनी में पिता, दौड़ रहे दिन- रात |
जीवित लगते है सदा, छायाप्रति अज्ञात ||
28
मोबाइल में हैं फँसे , --कोठी और कुटीर |
उसमें ही भगवान हैं, आओ भक्त कबीर ||
29
कुरता-धोती-चप्पलें,चश्मा-क़लम-दवात |
पिता छोड़कर चल दिए , यादों की बारात ||
30
रद्दी में 'बच्चन' पड़े,सिसके स्वयं 'प्रसाद' |
'महाप्राण ' के छंद का, ठेले पर अनुवाद ||
31
फटे पृष्ठ मस्तक धरे, पहले किया प्रणाम |
क्षमा याचना की बहुत, मुँख बोला हे राम ||
32
सदी छीनने को खड़ी, पुस्तक का उपहार |
जिन्हें सहेजा प्यार से, हमने सौ-सौ बार || 

प्रभु त्रिवेदी
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परिचय
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प्रभु त्रिवेदी
पिता- स्व. पंडित श्रीकृष्ण त्रिवेदी
माता- श्रीमती गोपीदेवी त्रिवेदी
जन्म- 21 अगस्त 1955, भोपाल 
शिक्षा-दीक्षा- रानापुर जिला झाबुआ (म.प्र.)
शिक्षा- तीन विषयों में स्नातकोत्तर, विद्यावाचस्पति, शोधरत।
लेखन विधाएँ- कविता, गीत, दोहे, लघुकथा, कहानी, समीक्षा व चिंतनपरक आलेख। लोकप्रियता दोहों के माध्यम से। ‘दोहा उद्भव-विकास और आज’ प्रकाशनाधीन।
प्रकाशन- चारों दोहा संग्रह पुरस्कृत
1 - झुकता है आकाश (2009), 2 - धरती के उपहार (2011),
3 - शब्द-शब्द में चित्र (2013), 4 - आँखों के अनुबंध (2013),
5 - ई-बुक - माँ की शीतल छाँव (2020), 6 - ई-बुक - पिता प्राण परिवार के (2020)
7 - ई-बुक - प्रिये! तुम्हारा प्यार (2020)   
राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं यथा- कादम्बिनी, नवनीत, हंस, पाखी, मधुमती, हरिगंधा, अक्षरा, सरस्वती सुमन, वीणा, ज्ञानोदय आदि में विगत तीन दशकों से असंख्य रचनाओं का प्रकाशन। म.प्र.लेखक संघ, भोपाल, हिंदी परिवार, इंदौर, श्री मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति, इंदौर आदि साहित्यिक व सांस्कृतिक संस्थाओं से सम्बद्धता। आकाशवाणी व दूरदर्शन से समय-समय पर प्रसारण।
सम्मान/पुरस्कार
अर्चना सम्मान (2006) महू, कादम्बरी सम्मान (2010) जबलपुर, कृति कुसुम सम्मान (2013) इंदौर, साहित्य गौरव सम्मान (2014) बल्लारी-कर्नाटक, काव्यश्री पुरस्कार (2014) नर्मदापुरम् होशंगाबाद, अर्चना सम्मान (2014) महू, काव्यकलाधर सम्मान (2016) साहित्य मंडल, श्रीनाथद्वारा, शब्दशिल्पी सम्मान (2016) अभिनव कला परिषद्, भोपाल, हिंदी भाषा भूषण सम्मान (2016) साहित्य-कला एवं संस्कृति संस्थान, श्रीनाथद्वारा, कादम्बरी सम्मान (2017) कादम्बरी साहित्यिक संस्था, जबलपुर, पुष्कर जोशी स्मृति सम्मान (2017) म.प्र लेखक संघ, भोपाल।
विशेष - ज्योतिष पर विशेष कार्य। सैकड़ों आलेख व समीक्षाएँ प्रकाशित।
सम्प्रति- भारत सरकार के सार्वजनिक उपक्रम ‘युनाइटेड इंडिया इंशुरेंस कं. लि. में वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी पद से (2004) स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति। प्राध्यापक व प्राचार्य भी रहे। तद्नन्तर स्वतंत्र साहित्य सृजन।
सम्पर्क - ‘प्रणम्य’, 111, राम रहीम काॅलोनी, राऊ, जिला इंदौर (म.प्र.) 453-331
इमेल- prabhutrivedi21@gmail.com
चलित भाष- 9425076996 , 9755586272

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