बुधवार, 21 अप्रैल 2021

ज़हीर कुरैशी जी के तीन नवगीत प्रस्तुति समूह वागर्थ

विनम्र श्रद्धांजलि
____________

प्रख्यात हिन्दी गजलकार ज़हीर कुरैशी जी का जाना मेरे लिए व्यक्तिगत क्षति है , कारण वह हमारे गाँव के पास के थे और वैसी ही आत्मीयता अपनापन मुझे अंत तक देते रहे , जैसा कि हम सब जानते हैं कि जहीर कुरैशी जी ने अपने साहित्यिक कैरियर का आगाज नवगीतों से किया था और उनकी इस प्रतिभा के चलते डॉ शंभुनाथ सिंह जी ने उन्हें नवगीत दशक -3 और अर्धशती में शामिल किया था , परन्तु नवगीत विधा की सीमाओं को देखते हुए जल्दी ही उनका नवगीत से मोहभंग हो गया तदुपरान्त उन्होंने हिन्दी गजल का दामन थाम लिया । हिन्दी गजल पर ज़हीर कुरैशी जी के शोधपरक और उल्लेखनीय कार्य ने उन्हें अंतराष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी गजल का आइकॉन बना दिया। उन्होंने नवगीत,  दोहे , संस्मरण , कहानियां भी जमकर लिखे । हिन्दी की तमाम स्तरीय पत्रिकाओं में उन्हें भरपूर स्पेस मिला।
जैसा की समूह वागर्थ की अपनी अभिनव कार्यशैली यही रही है कि वह अपने प्रिय और आत्मीय रचनाकार को उनके कृतित्व पर चर्चा करके उन्हें अश्रुपूरित श्रद्धांजलि अर्पित करता आया है। 
आइए पढ़ते हैं 
ज़हीर कुरैशी जी के तीन नवगीत
साथ ही उन्हें विनम्र अश्रुपूरित श्रद्धांजलि
_______________________________

प्रस्तुति
वागर्थ
सम्पादक मण्डल

1
गलत पते का खत
______________
गलत पते का खत 
बंजारों से चले 
पीठ पर लादे अपना घर 

मीलों लंबा सफर 
योजनों लंबा जीवन है,
लेकिन, उसके साथ 
भ्रमित पंछी जैसा मन है 
गलत पते के खत- से
भटक रहे हैं इधर-उधर 

दूर तलक फैले मरुथल में
है असीम मृग -छल 
इसको पागल मृग क्या समझे 
क्या छल है क्या जल 
जहां प्यास है
 वहां समझ पर पड़ते हैं पत्थर 

जागी आंखों के सपनों से 
बचते रहे नयन
सोयी आंखों के सपनों में 
रमा हुआ है मन

पलकों को भाता है
तकिया नींद,नरम,बिस्तर

2

असली चेहरा याद नहीं
__________________

भीतर से तो हम श्मशान हैं
बाहर मेले हैं।

कपड़े पहने हुए
स्वयं को नंगे लगते हैं
दान दे रहे हैं
फिर भी भिखमंगे लगते हैं
ककड़ी के धोखे में
बिकते हुए करेले हैं

इतने चेहरे बदले 
असली चेहरा याद नहीं
जहां न हो अभिनय हो
ऐसा कोई संवाद नहीं 
हम द्वंदों के रंगमंच के 
पात्र अकेले हैं 

दलदल से बाहर आने की 
कोई राह नहीं 
इतने पाप हुए 
अब पापों की परवाह नहीं
हम आत्मा की नजरों में 
मिट्टी के ढेले हैं 

3

आत्म-परिचय का गीत

हम स्वयं से भी 
अपरिचित हो गए हैं 

रास्ते हैं 
और उनकी दूरियां हैं 
दूरियों की भी 
अलग मजबूरियां हैं 
हम भटकते रास्तों में 
खो गए हैं

वासनाएं
जिन्दगी से भी बड़ी हैं
प्यास बन कर 
उम्र की छत पर खड़ी हैं
तृप्ति के पथ पर 
मरुस्थल हो गए हैं

पांव पीछे 
लौट जाना चाहते हैं
लौटकर
धूनी रमाना चाहते हैं 
विगत पथ पर 
लोग कांटे बो गए हैं

जहीर कुरैशी
__________

परिचय
ज़हीर कुरैशी
जन्मतिथि-  05 अगस्त,1950
हिन्दी गजल पर उल्लेखनीय काम 
जन्मस्थान -चंदेरी( जिला अशोकनगर, म०प्र०)
निधन - 20 अप्रैल 2021