बुधवार, 10 नवंबर 2021

धूप भरकर मुट्ठियों में’ के सन्दर्भ में बृजेश की बात



‘धूप भरकर मुट्ठियों में’ के सन्दर्भ में बृजेश की बात 
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साहित्यक हिंदी के आलोकित गगन में कवि मनोज जैन ‘मधुर’ जी का नवगीत संग्रह ‘धूप भरकर मुट्ठियों में’ अपनी छटा बिखेरने लगा है, जिसकी एक सद्य प्रकाशित प्रति मुझे हाल ही में प्राप्त हुई थी । मनोज जी के इस नवगीत संग्रह के बारे में साहित्यिक मनीषियों की प्रतिक्रियायें/टिप्पणियाँ/समालोचनाएँ दैनंदिन आ रही हैं, जिन्हें सोशल साइट्स पर प्रतिदिन पढ़ा जा सकता है, मैं भी पढ़ रहा हूँ । यद्यपि मनोज जैन ‘मधुर’ जी से मेरी व्यक्तिगत रूप से मुलाकात अभी तक संभव नहीं हुई है पर उनकी रचनाओं को उनके द्वारा संचालित साहित्यिक फेसबुक समूह ‘वागर्थ’ और नवगीत रचनाओं के लिए प्रतिबद्ध वैश्विक पटल ‘संवेदनात्मक आलोक’ पर पढता रहा हूँ, वह संवेदनात्मक आलोक संचालन समिति के एक प्रतिष्ठित कार्यकारिणी सदस्य भी हैं ।  
इस नवगीत संग्रह ‘धूप भरकर मुट्ठियों में’ का मुद्रण और प्रकाशन निहितार्थ प्रकाशन, साहिबाबाद, गाजियाबाद द्वारा किया गया है, पुस्तक का आकर्षक आवरण चित्र के. रविन्द्र ने बनाया है, कवर पर लिखा गया परिचयात्मक लेख श्री माहेश्वर तिवारी जी की कलम से निकला है । कवि ने पुस्तक को अपने परम पूज्य माता पिता की स्मृति को समर्पित किया है । संग्रह का आरम्भ श्री पंकज परिमल, प्रो. रामेश्वर मिश्र, श्री राजेंद्र गौतम, श्री कैलाशचन्द्र पन्त के साथ साथ कुमार रवीन्द्र जैसे धुरंधर साहित्यिक मनीषियों की पैनी नजर से होता है, संग्रह में संचित नवगीतों के बारे में उक्त सभी विद्वानों ने बड़ी बारीकी से चीर-फाड़ कर अपने अपने विचार रखे हैं । पाठक को रचनाएं पढ़ना आरम्भ करने से ठीक पहले कवि मनोज जी का आत्मकथ्य पढ़ने को मिलता है ।
नवगीतकार मनोज जी ने पहला व दूसरा नवगीत वाणी-वंदना व माँ वाणी को समर्पित किया है, जिसके साथ ही उनकी कलम का जादू पाठक पर चलने लगता है, शब्द अपना घेरा खीचने लगते हैं, जिस प्रकार जादूगर अपने फन से सम्मोहित कर लेता है उसी प्रकार मनोज जी अपने नवगीतों के शब्द जाल से सम्मोहित करने लगते हैं । 
नवगीतकार मनोज जी द्वारा संग्रहित नवगीतों में एक दर्शन, एक अध्यात्म है, जो मानवी सदाशयता, सुमार्ग और लोकपरक हित को प्रमुखता से प्रस्तुत करता है, देखें 
कुछ नहीं दें किन्तु हँसकर/प्यार के दो बोल बोलें...साक्ष्य ईश्वर को बनाएं/और अपना मन टटोलें । 
दृष्टि है इक बाहरी/तो एक अन्दर है/बूँद का मतलब समंदर है.....जीतकर खुद को हमें/बनना सिकंदर है ।
भव-भ्रमण की वेदना से/मुक्ति पाना है....अरिहंत ध्याना है ।

कुछ नवगीत बरबस अपने व्यंग्य और अपने ही प्रकार के भाषाई शब्दों के बिम्बों माध्यम से आकर्षित करते हैं उनके कथ्य, भाषा, शिल्प विन्यास, बिम्ब टटके और लीक से हटकर हैं और उनमें प्रयोग किये गए मुहावरे और लोकोक्तियाँ कथ्य के पकड़ को मजबूत आधार देते हैं ।       
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हम सुआ नहीं हैं पिंजरे के/जो बोलोगे रट जायेंगे.../हम ट्यूब नहीं हैं डनलप के/जो प्रेशर से फट जायेंगे...हम बोल नहीं हैं नेता के/जो वादे से नट जाएँगे ।    
कैसा है भाई/बैठ गया आँगन में कुंडलिया मार/गिरगिट से ले आया रंग सब उधार...वसूलता अढाई । 
चाँद सरीखा में अपने को/घटते देख रहा हूँ ....पूरब को पश्चिम के मंतर, रटते देख रहा हूँ ।

 इच्छाओं और आशाओं को जगाती रचनायें जो आकर्षित करती हैं  

काश! हम होते/ नदी के तीर वाले वट....संतुलन हम साधते, ज्यों साधता है नट ।
आँखों में सजती है मंजिल/पग-पग पर मिल रही दुआ है...रटे रटाये जुमले बोले/मेरा मन वह नहीं सुआ है । 
...जय बोलो एक बार/ मिलकर किसान की...

साहित्य और साहित्यकार के सम्बन्ध में 

नकली कवि कविता पढ़कर जब/कविता-मंच लूटता है ...
चलो कर्म-लिपि से लिखें लेख ऐसे/ जमाना हमारे सदा गीत गाए ...
...तुलसी, सूर, कबीरा, रहिमन/पन्त, निराला अपने नायक/ सब दर्दों के हरकारे थे/हम भी हैं दर्दों के गायक ...
आलोचक बोल...इत उत मत डोल ।

प्रहारक नवगीत

कुछ प्रश्नों को/एक सिरे से/हँसकर टाल गया/मन को साल गया...फिर बहेलिया अच्छे दिन के/दाने डाल गया ।
नाहक किस्मत को क्यों कोसे/रामभरोसे...शासन के टुच्चेपन का/नेता के लुच्चेपन का/ करना मत तू! बिलकुल स्वागत/रामभरोसे ।
मैं पूछूं तू खड़ा नितुत्तर/बोल, कबीरा! बोल....शंख फूंक दे परिवर्तन का/धरती जाये डोल ।

अंतिम नवगीत जैसे पाठक को असमंजस में छोड़ जाता है -
पूछकर तुम क्या करोगे/मित्र! मेरा हाल...बुन रही मकड़ी समय की/वेदना के जाल ।  

जिस प्रकार कवियों ने चाँद के दागों को भी सौन्दर्य का बिम्ब बनाकर प्रयुक्त किया है, मुट्ठी भर धूप मुट्ठियों से निकल गहराते मन को प्रकाशित कर देती हैं, मद्धिम जुगनुओं की रोशनी रात के अँधेरे को चीर मनमोहक दृश्य बना देती है । कवि मनोज जैन ‘मधुर’ जी नवगीत संग्रह ‘धुप भरकर मुट्ठियों में’ लाये हैं, वह उत्कृष्ट रचनाओं से सराबोर है, भविष्य में कवि मनोज जी और भी काव्य संग्रह लायेंगे इसी उम्मीद के साथ उनको हृदय से बधाई एवं शुभकामनाएँ ।
  
बृजेश सिंह 
108-ए, शंकर पुरी 
गाजियाबाद, उ.प्र. 201009