राजीव कुमार भृगु जी के तीन गीत
प्रस्तुति
वागर्थ ब्लॉग
एक
मेरा गीत मेरी प्रीत
मेरा गीत तुम्हारे स्वर में,
ढल जाए तो गीत कहूॅंगा।
जो बसती है मेरे मन में,
वो मूरत कितनी पावन है।
श्वेत वसन मेघों सी कोमल,
सावन सी रुत मनभावन है।
मेरा प्रणय निवेदन उसको,
भा जाए तो प्रीत कहूॅंगा।
अधरों से अधरों की भाषा,
नयनों से नयनों की ज्योती।
मूक शब्द जो वर्णित करते,
प्रेम ग्रन्थ की भाषा होती।
मेरे मन से तेरे मन तक,
जो पहुॅंचे संगीत कहूॅंगा।
तोड़ सको यदि जग के बंधन,
तब आना तुम मन के द्वारे।
तीव्र वेग में प्रेम नदी के,
बह जाने दो कठिन किनारे।
यदि हाथ ना छोड़ा तुमने,
उसे प्रेम की रीत कहूॅंगा।
इतना भी आसान नहीं है,
प्रेम डगर पर चलते जाना।
सब कुछ सहना, कुछ ना कहना,
बहुत कठिन है, प्रीत निभाना।
दुर्गम पथ है, कठिन लक्ष्य है,
पहुॅंच सके तो जीत कहूॅंगा।
दो
चलो मेला चलें
मेला एक लगा है भारी,
खेल खिलौने न्यारे।
मन को रोक न पाओगे तुम
लगते हैं सब प्यारे।
चलो खरीदें ये लाला है,
इनका पेट बड़ा है।
ये किसान है काॅंधे पर हल,
बैलों बीच खड़ा है।
ये सैनिक, बंदूक हाथ में,
सीमा पार निहारे ।
चलो चलें आगे भी घूमें,
मेला रंग बिरंगा।
वहाॅं खड़े नेता जी देखो,
थामे हाथ तिरंगा।
उनके पीछे खड़ा भिखारी,
दोनों हाथ पसारे।
चलो वहाॅं पर चलें देख लें,
भीड़ लगी है भारी।
अपने तन को बेच रही है
बेटी एक बिचारी।
चढ़ी बाॅंस पर नाच दिखाती
भूखे तन से हारे।
चिमटे वाला इस मेले में,
सबसे दूर खड़ा है।
नहीं बिका है उसका चिमटा,
वह मजबूर बड़ा है।
ऐसे हामिद कहाॅं रहे अब,
किसको आज पुकारे।
सब धर्मों के कैसे कैसे ,
प्यारे ग्रन्थ सजे हैं।
अलग अलग दूकानें इनकी,
न्यारे साज बजे हैं।
भला कौन इनको पढ़कर जो,
अपना भाग्य सॅंवारे।५
तीन
भैंस गई पानी
मेरा गांव लिखेगा भैया,
फिर से नई कहानी।
इस बारी शातिर ललुआ ने,
जीत लई परधानी।
बड़े वोट से जीता भैया,
खुलकर काम करेगा।
प्रतिबंधों की कमर तोड़कर,
ऊंचा नाम करेगा।
प्रतिद्वंद्वी को धूल चटाकर,
याद दिला दी नानी।
नित्य खिलाया हलुआ पूरी,
नित्य खिलाया मुर्गा।
वोट काटने लगा हुआ था,
उसका हरेक गुर्गा।
अबकी बारी खुलकर भैया,
भैंस घुसेगी पानी।
तुम सोते ही रहे, जानकर,
अपना फर्ज न जागे।
पांच बरस तक फिर से भैया,
रोते रहो अभागे।
बार बार तुम ऐसी भैया,
करते हो नादानी।
राजीव कुमार भृगु, उत्तर प्रदेश