वागर्थ में आप स्नेही बंधुओं का
स्वागत है अभिनंदन है!
प्रस्तुत है प्रसिद्ध रचनाकार आदरणीय भगवती प्रसाद द्विवेदी जी के नवगीत।
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1*
दम-खम
जरा-सा
दम-खम दिखा तो
लाल-पीले हो गये।
कभी
मछुआरे-सा लुक-छिप
जाल फेंका आपने,
कभी
बगुले-चील-सा
मारा झपट्टा आपने
शातिराना
चाल लखकर
नयन गीले हो गये।
आपकी
मरजी के बिन
पत्ता नहीं था डोलता,
रौब, रुतबा
धौंस से
कोई कहाँ मुँह खोलता!
अपुन की
रातें कलूटी
दिन हठीले हो गये।
सोनचिरई
फुदकती देखी
तो थी साजिश रची,
खेल खेले
पंख नोंचे
कहाँ वह साबुत बची!
लहू की
धारा बही
नैना पनीले हो गये।
जब तलक
बौचट थे
चौपट समझकर रौंदा किया,
सख़्त तेवर भाँप
पल-पल
साँस का सौदा किया
चिपक पंजे
गर्दनों से
जब गठीले हो गये।
अभी तो
आगाज है
अंजाम क्या होगा भला,
अपने होने का
हुआ अहसास
तब आई बला
हक़ की खातिर
अड़े तो
दुश्मन कबीले हो गये।
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2*
अकथ कहानी
कैसी
अकथ कहानी कबिरा!
देखे
सेहत के संरक्षक
अनगिन अनुसंधान,
फिर भी
आक्सीजन की खातिर
तड़प रहा इंसान
गंगा में
बहते शव कहते
दुनिया आनी-जानी कबिरा!
दिखें न्याय के
मंदिर अनगिन
छोटे-मझले-सेसर,
फिर भी
नाइंसाफ़ी देखी
कहाँ 'पंच परमेश्वर'!
कमली ओढ़े
धनिया का
थाने में उतरे पानी कबिरा!
ज्ञान छौंकते
बुद्धि बघारें
साँसों के सौदागर,
उत्पीड़न ही
जिनका पेशा
बाँटें ढाई आखर
खाते बस
चक्कर पर चक्कर
सुनकर उल्टी बानी कबिरा!
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3*
देख लेना
तमस मौजूदा
छँटेगा
देख लेना।
रात नागिन-सी
अहर्निश
डस रही है,
मनुजता पर
तंज़ कसती
हँस रही है
सपेरा
फिर भी डटेगा
देख लेना।
आपदा
आई है
ले दुश्वारियाँ ही,
मौत के सौदागरों से
यारियाँ भी
पर न पग
पीछे हटेगा
देख लेना।
कंटकों में बिंध
गुलाबों-से
खिलेंगे,
शम्भु-सा
विषपान करना
सीख लेंगे
विश्व
शिव-सुंदर रटेगा
देख लेना।
कल यहाँ
इंसानियत की
जीत होगी,
दु:ख माँजेगा
हमें
फिर प्रीत होगी
भाव संवेदन
ठटेगा
देख लेना।
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4*
सृजन करेंगे
तुम विध्वंस करो
पर हम तो
सृजन करेंगे।
खोंते में
दुबकी गौरैया
अंडे सेती,
चूजे होंगे
होगी चहक
सितम सह लेती
पंछी के पर
हैं हौसले
उड़ान भरेंगे।
बाधाओं से
लोहा लेकर
जीवन पाते,
हम न मुँह छिपा
कायर जैसे
पीठ दिखाते
जीवट वाले
कभी मौत से
नहीं डरेंगे।
अग्नि-परीक्षा
लेने को ही
आफत आती,
गला-तपा
चमका सोने-सा
खरा बनाती
मनुज -देहरी
संवेदन के
दीप धरेंगे।
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5*
नया तराना
जब से
देना सीखा
सचमुच पाना सीख लिया।
हासिल करने
की खातिर ही
बहा पसीना-ख़ून,
प्यास बूँद की
सागर
हथियाने का रहा जुनून
कर पिपासु को तृप्त
तृप्त
हो जाना सीख लिया।
ख़ूब ऐंठ थी
ख़ूब अकड़
क्या ख़ूब सुभीता था,
भरा-भरा-सा
रहा मगर
अंदर से रीता था
निर्झर-सा
बहने का
नया तराना सीख लिया।
जब तक
और-और पाने की
भूख सताती थी,
तब तक
कुदरत के जादू पर
नज़र न जाती थी
परमानंद मिला
सर्वस्व
लुटाना सीख लिया।
अब पक्षी
तितली-फूलों से
प्राणवायु मिलती,
हर वंचित में
नारायण पा
मन-कलिका खिलती
काँटों में
बिंधकर भी अब
मुस्काना सीख लिया।
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आदरणीय
भगवती प्रसाद द्विवेदी
हिन्दी और भोजपुरी के लब्धप्रतिष्ठ कवि, कथाकार, समालोचक और लोकसाहित्य के अध्येता।हिन्दी और भोजपुरी की 21-21तथा बालसाहित्य की शताधिक पुस्तकें प्रकाशित एवं विभिन्न राज्यों की पाठ्यपुस्तकों में संकलित।नवगीत-संग्रह 'नयी कोंपलों की खातिर' को उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान से 'निराला पुरस्कार' एवं उत्कृष्ट बाल साहित्य सर्जना हेतु 'बालसाहित्य भारती सम्मान प्राप्त।हिन्दी प्रगति समिति,बिहार सरकार के सलाहकार सदस्य रहे द्विवेदी जी का सद्य:प्रकाशित नवगीत-कविता संग्रह 'एक और दिन का इज़ाफ़ा' तथा प्रतिनिधि नवगीत-संग्रह 'रोशनियों के मोती' चर्चा के केंद्र में है।
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