~।। वागर्थ ।। ~
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मार्च जैसा दिसम्बर लगा : कवि ब्रजनाथ श्रीवास्तव
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वागर्थ में आज प्रस्तुत हैं बृजनाथ श्रीवास्तव जी के नौ नवगीत ।
बृजनाथ श्रीवास्तव जी के नवगीतों में आम जनमानस के जीवन की कटु अनुभूतियाँ अंकित हैं । इनके गीत विकट शब्द जाल या शब्दों की बाजीगरी से परे यथार्थ के धरातल पर रचे हुए हैं ।
अपने कहन के मिजाज और भावों के स्थाई प्रभाव के स्तर पर बृजनाथ श्रीवास्तव जी ऐसे कवि हैं जो अपनी सरल सहज शैली से पाठकों का ध्यानाकर्षण करते हैं।
इनके नवगीतों में कथ्य समय के यथार्थ की पड़ताल करता सहज व स्पष्ट है। बृजनाथ श्रीवास्तव जी के नवगीत युगीन यथार्थ को व्यक्त करने में समर्थ हैं ।
' नए साल ' नवगीत में उन्होंने अनेक समस्याओं के समाधान की उम्मीद व कामनाएँ की हैं , जर ,जोरू ,जमीन , दफ्तर , खेत ,महँगाई की विषबेल के सूखने व समतापरक समाज की कामना करते हुए कहते हैं .....
समरसता के टूट रहे जो
जुड़ें रेशमी रिश्ते फिर से
साथ उठें.बैठें सब खाए्ँ
शिक्षित हों दूर रहें डर से
भेद भुलाकर
चलें साथ में अगड़े -पिछड़े
सामयिक परिदृश्य में संयुक्त परिवारों की अवधारणा नई पीढ़ी को कम समझ आ रही है या उसके अन्यान्य कारण हैं , जिसके चलते एकल परिवारों का अवतरण हुआ है , बेशक उसमें अनेक विसंगतियाँ व दुरूहता है ,किन्तु चलन एकल परिवार का बढ़ा है । घर के रिश्तों की गर्माहट व अर्थवत्ता उनके एक गीत में बहुत ही खूबसूरती से मुखरित होती है .....
नींव विश्वास की.
यह भवन है उसी पर खड़ा
सब बड़े हैं बड़़े
किंतु घर से न कोई बड़ा
सच कहें
आज रिश्ता यहाँ हर दिगंबर लगा ।
पूँजी का पूँजीपतियों की तरफ ध्रुवीकरण हेतु शापिंग माल्स का प्रचलन व खुदरा व्यापारियों की कष्टप्रद स्थिति व सर्वहारा की पहुँच से दूरी की व्यथा कहता गीत....
यह रही कुबेरों की मंडी
सारे शोषक मंत्र गढ़ें
जो आया वह लुटा यहाँ पर
चाहे कितने ग्रंथ पढ़े
करें नहीं घुसने की हिम्मत
बुधई ,रामचरन ,धनिया
नवगीत के मूल में संवेदना है , नवगीत कार के गीत संवेदना को स्पर्श व चिंतन हेतु विवश करते हैं । बृजनाथ श्रीवास्तव जी के नवगीतों का फलक काफी विस्तृत है, उनकी सजग दृष्टि समाज की समस्त विकृतियों व कारणों पर पड़ी है ।
वागर्थ उन्हें हार्दिक बधाई व शुभकामनाएँ प्रेषित करता है ।
प्रस्तुति
वागर्थ संपादन मण्डल
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(१)
नये साल में
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अच्छा होता
अगर निपटते
जर, जोरू ,जमीन के झगड़े
नये साल में
जाने कब से जमी फाइलें
न्यायालय के तहखानों में
पीढ़ी दर पीढ़ी लड़ते हैं
सब अपनी-अपनी शानों में
जिसका खेत
उसे मिल जाये
मिट जायें अमीन के लफड़े
नये साल में
पड़े न अब तो मँहगाई का
आम आदमी पर फिर डाका
मत भागें विदेश को बच्चे
रहें साथ में काकी काका
नहीं सतायें
अब गरीब को जो हैं तगड़े
नये साल में
समरसता के टूट रहे जो
जुड़ें रेशमी रिश्ते फिर से
साथ उठें बैठें सब खायें
शिक्षित हों दूर रहें डर से
भेद भुलाकर
चलें साथ में अगड़े-पिछड़े
नये साल में
(२)
मार्च जैसा दिसम्बर लगा
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सच कहें
घर हमेशा मुझे एक मंदिर लगा
भोर से शाम तक
आरती के यहाँ गान हैं
त्याग मृदु प्यार के
मूर्तिवत बंधु प्रतिमान हैं
सच कहें
शीश पर हाथ माँ का शुभंकर लगा
आँगने द्वार तक
खुशबुओं के यहाँ सिलसिले
लोग घर के
जहाँ भी मिले हँस गले से मिले
सच कहें
प्यार में मार्च जैसा दिसम्बर लगा
नींव विश्वास की
यह भवन है उसी पर खड़ा
सब बड़े हैं बड़े
किंतु घर से न कोई बड़ा
सच कहें
आज रिश्ता यहाँ हर दिगम्बर लगा
(३)
हाँफते दिन भर
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कई युग से
लकीरें हाथ की हम
बाँचते दिन भर
महल में नाचतीं परियाँ
पहनकर मणिजड़े गहने
विलासी मधुक्षणों के सुख
वहीं आकर लगे रहने
इधर हम
रोज पन्ने भाग्य के हैं
जाँचते दिन भर
सुगंधित भोग की थालें
वहाँ दिन भर महकती हैं
हमारे पेट में अनुदिन
जठर बनकर दहकती हैं
इधर हम
एक रोटी के लिये ही
नाचते दिन भर
इधर तो प्यास के मारे
हमारे हैं गले सूखे
सुबह से शाम तक हम तो
रहे गिरते रहे टूटे
लिए हम
अनबुझी चाहें डगर में
हाँफते दिन भर
(४)
राजा से पूछ रहे
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क्यों लूटी सुबहों से
कौवों की काँव
राजा से पूछ रहे बेचारे गाँव
हरे-भरे खेतों की
सोनमयी वे फसलें
महक भरी अमराई
गौवों की वे नसलें
कहाँ गये अनुभव वट
पीपल की छाँव
राजा से पूछ रहे बेचारे गाँव
तट रोकर पूछें क्यों
हमसे जल दूर हुए
कैद हैं मछलियाँ क्यों
क्यों नट मशहूर हुए
कहाँ गईं पतवारें
घाट नदी नाव
राजा से पूछ रहे बेचारे गाँव
क्यों ऐसे दिन आये
हवा हुई जहरीली
घाटी के कण-कण की
प्यास दिखी रेतीली
जहाँ-जहाँ आँख गड़ी
वहीं हुआ घाव
राजा से पूछ रहे बेचारे गाँव
(५)
वालमार्ट
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वालमार्ट ने
पाँव पसारे
मरा मुहल्ले का बनिया
यह रही कुबेरों की मंडी
सारे शोषक मंत्र गढ़ें
जो आया वह लुटा यहाँ पर
चाहे कितने ग्रंथ पढ़ें
करें नहीं
घुसने की हिम्मत
बुधई , रामचरन ,धनिया
साजिश ,साजिश
साजिश लेकर
आये नये नवेले दिन
भूल गये सब
आपसदारी
कितने लिये झमेले दिन
क्रच में बच्चे
पलते देखे
सूनी अम्मा की कनिया
वालमार्ट, बिग-बाजारों ने
कैसे-कैसे व्यूह रचे
सेठों की तो पौ बारह है
सीधे-सादे लोग फँसे
और करें क्या
केवल कहते
यह तो भाई है दुनिया
(६)
छँटनी
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खिसक गये दिन
रोटी वाले पिछले पखवारे से
पेट काट जब जिया पिता ने
राम भजन पढ़ पाया
पढ़ लिख करके लगी नौकरी
पैसा घर में आया
आता घर अब
घुप्प अँधेरे जाता भिनसारे से
बड़ी लगन से काम सँभाले
खुश है सारा दफ्तर
पीठ ठोंकते , हाथ फेरते
आकर मालिक अक्सर
लड़ा बहुत दिन
अँधियारे से और उजारे से
आज कम्पनी ने छँटनी की
कुछ लोग हुए बाहर
राम भजन का भाग्य निगोड़ा
बैठा तनकर सिर पर
पिता चल बसे
अम्मा बेसुध अब दिन बंजारे से
(७)
बादल सिरजो
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ओ विज्ञानी !
बंद करो ये तोप मिसाइल
बादल सिरजो
तुम्हें पता है धरती माँ की
कोख हुई कितनी ही खाली
फेंक-फेंक कर परा बैंगनी
बजा रहा सूरज भी ताली
ओ विज्ञानी !
नये शोध संधान करो अब
बादल सिरजो
धरती के तन फटी दरारें
हिमनद कई विलीन हो गये
साँसें मंद हुईं नदियों की
तट बंजर श्रीहीन हो गये
ओ विज्ञानी !
खग मृग मीन पियासी संस्सृति
बादल सिरजो
मंगल और चाँद पर जाकर
माना शातिर लोग बसेंगे
किंतु हमारे धरती वासी
बिन पानी किस तरह जियेंगे
ओ विज्ञानी !
सागर जल पर यंत्र लगाकर
बादल सिरजो
(८)
कैसी है बंधु ! यह सदी
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हाट हुए रिश्ते सब
नेह कागदी
कैसी है बंधु ! यह सदी
मंगल पर बसने को
लोग हैं खड़े
छीन रहे घर ,साँसें
लोग जो बड़े
भूखे इन पेटों पर
चढ़ गई बदी
कैसी है बंधु ! यह सदी
महापुरुष पेड़ों की
छाँव है कटी
पौध नई बोनसाई
बाग में डटी
उजड़ गया महुवा वन
सूखती नदी
कैसी है बंधु ! यह सदी
हवा हुई जहरीली
प्राण भी डरे
पंछी के स्वर्णमयी
पंख भी झरे
आग हुए दिन वाली
आज त्रासदी
कैसी है बंधु ! यह सदी
(९)
सुनो साधुजन
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सुनो साधुजन
सूखी नदियाँ फिर लहरायें
कुछ जतन करें
बड़ा दु:ख है
हम सबको भी
पशुओं और परिंदों को भी
मंदिर दुखी
मँजीरे दुख में
दुखी पेंड़ दुख संतों को भी
सुनो साधुजन
हिम पिघले, जल घन बरसायें
कुछ जतन करें
नेह भरे पुल को हम सिरजें
इधर उधर सब आयें जायें
बंजर रिश्तों की यह खेती
नदी जोग से फिर लहराये
सुनो साधुजन
योगक्षेम के दिन हरियायें
कुछ जतन करें
~ बृजनाथ श्रीवास्तव
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परिचय
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बृजनाथ श्रीवास्तव
जन्म एवं स्थान : 15 अप्रैल 1953
जन्म स्थल : ग्राम- भैनगाँव,जनपद- हरदोई (उ.प्र.)
शिक्षा : एम.ए.(भूगोल)
सात नवगीत संग्रह प्रकाशित
अनेक पत्र पत्रिकाओं सहित समवेत समवेत संकलनों में नवगीत / प्रकाशित
उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान , लखनऊ द्वारा ‘ निराला सम्मान-2017 ‘ से सम्मानित एवं पुरस्कृत एवं अन्य विभिन्न साहित्यिक , सामाजिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित
भारतीय रिजर्व बैंक के प्रबन्धक पद से सेवानिवृत्त
सम्प्रति : पठन,पाठन, लेखन एवं पर्यटन
सम्पर्क : 21 चाणक्यपुरी,
ई-श्याम नगर,न्यू.पी.ए.सी.लाइंस , कानपुर- 208015
Email: sribnath@gmail.com
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