सोमवार, 1 मार्च 2021
"धूप भरकर मुठ्ठियों में"का आत्म कथ्य
आत्म कथ्य
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लंबे अंतराल के बाद पुनः अपनी नयी कृति 'धूप भरकर मुठ्ठियों में' आपके हाथों में सौंपने का मन बना पा रहा हूँ। पहली कृति 'एक बूँद हम' के विमोचन से यदि समय की गणना ठीक से कर पा रहा हूँ तो दस वर्षों में कम-से-कम दो पुस्तकें तो आ ही जानी चाहिए थीं, परंतु इसके पीछे कारण यह कि मेरे लेखन की गति अधिक और तीव्र न होकर अति क्षिप्र है। बमुश्किल साल में अधिकतम आठ-दस गीत-नवगीत ही रच सका, इससे अधिक शायद नहीं।
इसके साथ ही कुछ विचारणीय बिंदु और भी हैं, जो मेरे चिंतन में उभरे वह भी विलंब के बड़े कारणों में शामिल हैं।प्रस्तुत कृति की चर्चा सोशल मीडिया पर तकरीबन चार वर्ष पूर्व कर चुका था, परंतु इसी दौरान नौकरी की व्यस्तता और पारिवारिक दायित्वों के निर्वहन के चलते चाहकर भी मैं समय नहीं निकाल पाया।
2017 में मैंने एक भूखंड विट्ठल नगर, लालघाटी में क्रय किया और फिर शुरू हुआ उस पर निवासयोग्य भवन का निर्माण। निर्माण के दौरान होने वाली कठिनाइयों के चलते मेरे जैसे घोर आलसी व्यक्ति ने अपनी ही पुस्तक के निर्माण के सबसे बेहतरीन आइडिया को सबसे पहले ठंडे बस्ते में डालने का निर्णय ले लिया। यद्यपि मैं भोपाल के वरिष्ठ गीतकार आदरणीय मयंक श्रीवास्तव जी की देखरेख में अपनी पाण्डुलिपि पर लगभग पूरा काम कर चुका था, यदा-कदा कानपुर के वरिष्ठ नवगीत समालोचक व नवगीतकार मेरे अत्यंत आत्मीय श्री वीरेंद्र आस्तिक जी, लालगंज के मेरे आत्मीय अग्रज डॉ विनय भदौरिया जी, गाज़ियाबाद के वरेण्य नवगीतकार जगदीश 'पंकज' जी मुझ से मेरे नए संग्रह के बारे में किसी-न-किसी रूप में मेरी आनेवाली पुस्तक का जिक्र करते रहते थे और मैं उन्हें टालने के लिए अच्छा-सा सोचा-समझा कोई-न-कोई नया बहाना गढ़कर संतुष्ट कर दिया करता था।
एक दिन आदरणीय श्री देवेंद्र शर्मा 'इन्द्र' जी ने फोन पर नए घर के निर्माण की प्रगति के बारे में जानना चाहा। उन्होंने प्रश्न किया कि भाई, नए घर का निर्माण कहाँ तक पहुँचा। मैंने सहज भाव से कहा कि दादा, एलिवेशन तैयार हो रहा है। उन्होंने सुनते ही कहा कि अपनी नई पुस्तक के एलिवेशन के बारे में भी सोचो। उनके मीठे वचन सुनते ही मैं थोड़ा-सा गंभीर तो हुआ पर काम को एक तरह से टाल ही दिया। एक दूसरे काम में ऊर्जा लगी होने से मेरा मन इस दिशा में नहीं बढ़ा तो नहीं बढ़ा। मैं जान-बूझकर मुद्रण, प्रकाशन, वितरण और विमोचन जैसी प्रक्रियाओं में थोड़ा-सा भी धन लगाने की मनःस्थिति में नहीं था। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि गीत की पुस्तकों के खरीदने-बेचने को लेकर कोई कितने ही दावे क्यों न करे, पर वास्तविकता तो यह है कि गीत की पुस्तकें आज भी स्वयं के खर्च पर छपवानी पड़ती हैं। इन्हें न तो कोई ख़रीदता है और न ही कोई बेचता है। यह हम सभी का साझा अनुभव है। विलम्ब के कारणों में यह उदासीन भाव भी एक कारण रहा फिर भी सोशल मीडिया पर मिले अनंत पाठकों का प्रेम प्रकाशन के सकारात्मक पक्षों पर विचार करने के लिए विवश करता रहा। इसी दौरान 'किस्सा कोताह' के संपादक ए. असफल जी अपनी पत्रिका में मेरे गीत प्रकाशित करना चाहते थे। उन दिनों 'किस्सा कोताह' के लिए नवगीतों का चयन और उन पर टिप्पणी पंकज परिमल जी कर रहे थे। पंकज जी की मेरे गीतों पर की गई विस्तृत टिप्पणी में कुछ तीखे आलोचनात्मक बिंदु भी थे, जिस कारण असफल जी ने पत्रिका में मेरे नवगीत तो छापे पर टिप्पणी ड्रॉप कर दी।
बावजूद इस घटना के, मैं परिमल जी की विद्वत्ता से पहले से ही प्रभावित था, तभी मैंने उनसे भूमिका का निवेदन किया जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार लिया। जब मेरी प्रतीक्षा पुस्तक को लेकर बढ़ने लगी तभी पंकज जी का स्वास्थ्य बिगड़ गया और फिर पुस्तक का विचार लगभग टल-सा गया और मैंने एक प्रकार से उम्मीद ही छोड़ दी।या यों समझिए कि यह पुस्तक फिर से ठंडे बस्ते में चली गई।
कहते हैं कि हर काम अपने नियत समय पर ही होता है, जिसकी हमें जानकारी भी नहीं होती। शायद तब योग न बना होगा पर अब सब कुछ ठीक है। पंकज जी ने अपने डाँवाडोल स्वास्थ्य के बावज़ूद अतिशय स्नेह और मनोयोग से भूमिका से लेकर प्रकाशन के पूरे दायित्व को बखूबी निभाया। यह सब उनका मेरे प्रति अहैतुक अनुराग ही है। मैं पंकज जी का और निहितार्थ प्रकाशन का आभार व्यक्त करता हूँ। साथ ही, ख्यात गीतकार आदरणीय माहेश्वर तिवारी जी और मध्य प्रदेश राष्ट्रभाषा प्रचार समिति,भोपाल के मंत्री आदरणीय श्री कैलाशचन्द्र पंत जी के प्रति अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ कि उन्होंने मेरी पाण्डुलिपि पर अपना अमूल्य अभिमत देकर मुझे कृतार्थ किया। मैं आभार व्यक्त करता हूँ प्रख्यात नवगीतकार और प्रमुख नवगीत-आलोचक राजेंद्र गौतम जी और निराला सृजन पीठ के पूर्व निदेशक पूज्य रामेश्वर मिश्र 'पंकज' जी का, जिन्होंने पुस्तक पर अपनी सम्मतियाँ देकर मुझे कृतार्थ किया। मेरे एक छोटे-से निवेदन पर कुँवर रविन्द्र जी ने आकर्षक कवर पेज बनाया, एतदर्थ मैं उनके प्रति पूरे आदर से आभार व्यक्त करता हूँ।
विनम्र कृतज्ञता प्रकट करता हूँ अपने परिजनों के प्रति, जिनके हिस्से का महत्त्वपूर्ण समय चुराकर मैं इस कृति को मूर्तरूप दे पाया। गीतों के संबंध में मैं स्वयं कुछ कहने की स्थिति में नहीं हूँ। मुझे इन पर आपकी प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा रहेगी।
ज़रूरी आभार उन सभी संपादकों के प्रति, जिन्होंने समय-समय पर मेरी रचनाओं को पत्रिकाओं में स्थान दिया। साथ ही उन सभी समीक्षकों का हार्दिक आभार, जिन्होंने मेरी पहली कृति 'एक बूँद हम' को अपना भरपूर आशीर्वाद दिया।
सादर
मनोज जैन 'मधुर'
106, विट्ठल नगर,
गुफामन्दिर रोड, भोपाल 462030
मोबाइल : 9301337806
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