प्रादर्श नवगीत सीरीज में आज : अनामिका सिंह का एक नवगीत
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प्रस्तुत नवगीत में हर उस स्त्री का स्वर मुखर हुआ है जिस पर हजार बंदिशें घर के बाहर और घर के अन्दर लगाई जाती हैं। समाज भी बे सिर पैर की तोहमतें लगाने से बाज नहीं आता है। ऐसे में अपने अस्तित्व को बचाने और लोगों के मुँह बन्द रखने के लिए एकमात्र जिजीविषा ही काम आती है।
कवयित्री ने देशज शब्दों के प्रयोग की बहुलता से जो नवगीत रचा वह स्तुत्य है और स्त्रीविमर्श पर खुलकर बात करता है। इस सुन्दर नवगीत के लिए कवियत्री को बहुत बधाइयाँ।
विशेष
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हमारी समय सारिणी के अनुसार वागर्थ में नवगीत पर केंद्रीय पोस्ट के पहले से ही दो दिन निर्धारित हैं। शेष दिनों में हमारी प्रादर्श नवगीत और लोरी गीतों नवगीतों की सीरीज जारी रहेगी, बशर्ते हमें स्तरीय रचनाएँ मिलती रहें! वागर्थ अपने पाठकों से इस सीरीज के लिए भी सिंगल स्तरीय नवगीत आमन्त्रित करता है।
प्रस्तुति
वागर्थ
अनुसंधान चरित पर तेरे
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अनुसंधान चरित पर तेरे
होंगे विकट गहन ,
सधी चाल से तय राहों पर
चलता जा रे मन ।
तुझे बहा ले जाने लहरें ,
आएँगी वाचाल ।
चाहेंगे बदचलनी अंधड़ ,
उखड़े संयम पाल ।
अवरोधों के विशद अँधेरे
होंगे और सघन ।
गतिविधियों पर लोग रखेंगे.,
टेढ़ी तिरछी आँख ।
नहीं हटेंगे पीछे यदि ,जो
पड़े काटने पाँख ।
नहीं चौंकना संभव है वे
निकलें अगर स्वजन ।
सदियों से माना बेहद है ,
ऊबड़ - खाबड़ राह ।
रही मुखरता की प्रतिद्वन्दी ,
दस्तारों की डाह ।
घुटने टेकेगा दृढ़ता पर ,
सम्मुख मान दमन ।