1.
झरते रहे पिता
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अपने ही खेतों के सौदे
करते रहे पिता
बच्चों की खुशियाँ बन अक्सर
झरते रहे पिता।
गली गुजरते, गाँव भर की
पालागी पर जय हो कहना;
सबकी विजय मनाते हरदम
अपनी हार छुपाये रहना;
सबके गाढ़े दिन के सब दुख
हरते रहे पिता।
शान बचाने की अन्तर्जिद
ऐंठ अकड़ आजाद-सलामत;
बब्बा के उन्नत ललाट को
ऊँचा रखने झेली आफत;
तने रहे संकट में भीतर
मरते रहे पिता।
अक्सर माँ से गुपचुप-गुपचुप
जाने क्या बतियाते;
गाँव गिरानी के दिन भोगे
पिता चिलम चटकाते;
पुरखों का सम्मान बचाने
डरते रहे पिता।
बस्ता कापी पेन किताबें
झक्क-साफ स्कूली कपड़े;
टीनोपाल चमक के ऊपर
सेलो पानी बाॅटल पकड़े;
बिना खाद-पानी मरुथल में
फरते रहे पिता।
2.
बैठे रहे पिता
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परदनिया पहने
बैठक में
बैठे रहे पिता।
ऊँची काया चौड़ा माथा
लम्बी दाढ़ी वाले;
सारा गाँव पुकारे बाबा
जय हो जय हो वाले;
खेती-बाड़ी सब ठेंगे से
जो करले हलवाह;
आफत पर आफत आये पर
कभी न निकले आह;
बैठक में
दरबार सजे
या लेटे रहे पिता।
रिश्तेदारों का रुपया भी
अक्सर रौब दिखाये;
कभी न दी तरजीह मस्तमन
साधूभोज कराये;
झक्क सफेदी वाले कपड़े
रामानंदी डाँटी;
जीवन भर ज़मीन जर बेची
कुछ खर्ची कुछ बाँटी;
बात-बात में
अम्मा जी से
रूठे रहे पिता।
राजा अवस्थी, कटनी
मध्यप्रदेश