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बुधवार, 17 दिसंबर 2025

कृति बच्चे होते फूल से समीक्षक डॉ प्रतिभा मिश्रा


' बच्चे होते फूल से ' श्री मनोज जैन द्वारा लिखित,बाल काव्य-संग्रह है जिसकी रचना का आधार बच्चों, उनके मनोभाव,सरल अनुभूतियों और  जीवन की कोमलता पर आधारित है।यह पुस्तक विशेषतः बाल-मन की सहज अभिव्यक्ति को ध्यान में रख कर लिखी गई है। इसमें छोटे एवं बड़े गीत, कविताएँ और भाव -रूपक शामिल हैं जो बच्चों के दैनिक अनुभव, उनकी कल्पनाशीलता, भावनात्मक कोमलता और सरल भाषा में, जीवन के छोटे-छोटे सत्य को उजागर करती है। एक उदाहरण  द्रष्टव्य है -

सूरज की गर्मी से पता,
जब वर्षा का पानी।
भाप बनूँ फिर उड़ जाता हूँ,
बतलाती है नानी।

फूल-पत्ते, कभी जानवर तो कभी प्रकृति के बहाने बच्चों की मासूमियत,निष्कपटता, अनुभूति, आशा, सपने और सहजता आदि काव्य के सौंदर्य को द्विगुणित कर देती हैं,यथा-

बंदर मामा बैठे -बैठे,
सोच रहे थे पेड़ पर।
घंटे,चतुर, चालाक लोमड़ी,
खड़ी हुई क्यों मेड़ पर?

इन कविताओं में शिक्षा, सामाजिक व्यवहार, संवेदनशीलता तथा प्रेम-मूल्य जैसे तत्त्व सहज रूप से समाहित हैं-

एक रोज़ सारे जंगल में,
धुआँ-धुआँ सा छाया।
शायद आग लगी जंगल में,
यह अनुमान लगाया।

लाल-लाल लपटें आ पहुँची,
तब तोते घबराए।
बूढ़ा तोता एक-एक कर,
सबको धीर बँधाए।

बाल-पाठकों के लिए यह संग्रह प्रेरणादायक और मनोरंजक दोनों है। बाल-साहित्य में इसे बच्चों की भाषा, भावाभिव्यक्ति ,संगीतात्मकता तथा जीवन मूल्यों को समझने की प्रेरणा मिलती है। सरल भाषा होने के कारण कविताएँ बच्चों को जल्दी आकर्षित करती हैं। इसे गीत के रूप में भी अपनाया जा सकता है। इस पुस्तक में रचित रचनाओं में कहीं खेल का उल्लास है, कहीं मासूम प्रश्न तो कहीं अनुशासन और संस्कार की मधुर सीख है- उदाहरणार्थ -

जय हो तुम्हारी भारत,
गुणगान है तुम्हारा।
ऋण चुक नहीं सकेगा,
लें जन्म सौ, दुबारा।

इस प्रकार आदरणीय श्री मनोज जैन जी की यह कृति बाल-साहित्य की अमूल्य धरोहर है।आप सब भी पढ़ें! बहुत आनन्द आएगा।

डॉ० प्रतिभा मिश्र 
प्रवक्ता-हिन्दी 
राजकीय बालिका इंटर कॉलेज जियामऊ लखनऊ।

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