रविवार, 9 मई 2021

अनामिका सिंह जी के नवगीतों पर राजा अवस्थी जी का एक लेख प्रस्तुति : वागर्थ समूह

वागर्थ प्रस्तुत करता है युवा कवयित्री अनामिका सिंह  जी के रचना संसार पर सुप्रसिद्ध नवगीतकार  / समालोचक राजा अवस्थी जी का एक विशेष आलेख 
   सम्पादक मण्डल राजा अवस्थी जी का दिल से आभार व्यक्त करता है।

     प्रस्तुति
     वागर्थ
सम्पादक मण्डल
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सरोकारों के प्रति प्रतिबद्ध रचनाकार : अनामिका सिंह
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                          हमारे समय में जो काव्य-रूप अधिक प्रचलित है और साहित्य-सत्ता के प्रतिष्ठानों में चाहे वह चर्चा के केंद्र में न हो, तो भी कविता के केंद्र में अवश्य है, वह काव्य-रूप है - 'नवगीत कविता' ।नवगीत कविता के क्षेत्र में अनामिका सिंह का नाम अपरिचित नहीं है। वागर्थ पर प्रस्तुतियों के दौरान उनकी टिप्पणियाँ हमें उनकी कविता की समझ और उनके सरोकारों से भी परिचित कराती रही हैं। 
                        अनामिका सिंह के नवगीत पढ़ते हुए इस बात की आश्वस्ति होती है, कि वह यह अच्छी तरह जानती-मानती और समझती हैं, कि "नवगीत एक अबाध लययुक्त ऐसी छंदाश्रयी कविता है, जिसमें व्यापक लोकसम्पृक्ति, लय, संवेदना, सामाजिक सरोकार, मानवीय सरोकार, टटकी भाषा, बिम्ब धर्मिता, अर्थगर्भी व्यंजना, जीवन-स्थिति व समकालीन युगबोध की अभिव्यक्ति हो।" 
                      अनामिका सिंह की नवगीत कविताओं का मूल स्वर उनके सामाजिक सरोकारों का स्वर है। ये सामाजिक सरोकार ही उन्हें उनके मानवीय सरोकारों से आबद्ध किए रहते हैं। उन्हें यह अच्छी तरह ज्ञात है कि आजादी के इतने वर्षों बाद भी एक बड़े वर्ग में भूख और गरीबी बढ़ती ही जा रही है। वे निरन्तर किसी न किसी तरह शोषण के शिकार रहे हैं और अभी भी हैं। प्रक्रिया और रूप चाहे बदलता रहा हो किन्तु उनका शोषण अब भी हो रहा है। प्रेमचंद ने जिस किसान, मजदूर की दुर्दशा का चित्र खींचा था, वह चित्र यथार्थ में आज और भी विकराल हो चुका है। अनामिका सिंह अपने नवगीत में उन्हीं गरीबों, किसानों, मजदूरों की पीड़ा और दुर्दशा को अपने नवगीत का कथ्य बनाती हैं। उनकी कविता को हम कई-कई आयामों में विस्तारित होते देखते हैं। एक आयाम में तो राजनैतिक और व्यवस्थागत खामियों के शिकार गरीब-मजदूर हैं, जो निम्नतर स्तर की जिंदगी जीने को विवश है। उन्हें न भरपेट खाना मिलता है और न तन ढकने को कपड़ा। उनकी उम्मीद के खेत में हमेशा ही सुगंधित और उपयोगी खश की जगह खरपतवार उग आती है और खेत उसी से भर जाता है। वे न केवल  स्थिति को यथार्थ में दिखाती हैं, बल्कि बिना किसी लाग-लपेट के प्रश्न करती हैं - 
दीवाली रोशन करने हित /गढ़ते दीप अनूप 
किन्तु उन्हीं का जीवन देखो /पीड़ा का स्तूप 
बदहाली के पोषक चुप क्यों /प्रश्न यही गंभीर। 

इनके कई नवगीत जहाँ अभिधात्मक हैं, वहाँ भी अभिधा का सृजन करता चित्र एक प्रतीक के रूप में भी अर्थ व्यञ्जित करता है और यहीं आकर कविता की अर्थगर्भिता बढ़ जाती है। यद्यपि कथ्य के दबाव और अपनी प्रतिबद्धता के दबाव में अनामिका कविता के लालित्य से भी कई जगह समझौता कर लेती हैं, किन्तु जो कहना चाहती हैं, वह कहकर ही मानती हैं। 

                       अनामिका सिंह के नवगीतों में जो दूसरा आयाम हम पाते हैं, वहाँ वे समाज में स्त्री की दशा को अपने नवगीतों के केंद्र में लाती हैं । यहाँ वह उसकी दशा का ही नहीं बल्कि इस दशा के कारणों को भी अनावृत करती हैं। स्त्री को सचेत भी करती हैं, कि  लोग तुम्हारी  प्रगति से खुश नहीं हैं। वे तुम्हें कई तरह से हतोत्साहित भी करेंगे। तुझ पर कीचड़ उछालेंगे, किंतु तुम्हें इनसे बचकर रहना है और आगे बढ़ना है। वह लिखती है-

                सांसे कितनी ली हैं कैसे /बही निकालेंगे 
                चाल चलन की पोथी-पत्री /सभी खँगालेंगे 
                संघर्षों से हुई प्रगति पर उछल न जाये कीच 
                चिरैया बचकर रहना ।

                            कविता के तीसरे आयाम में हम पाते हैं कि वे व्यवस्था को सीधे इंगित करते हुए अपना प्रतिरोध व्यक्त करती हैं। यहाँ उनके स्वर में व्यंग्य है, लताड़ है और एक चुनौती भी है। एक आक्रोश है। उनके विरोध का स्वर बहुत साहस भरा है। वे अपने नवगीतों में अपने समय का यथार्थ चित्र अंकित करती हैं। वह लिखती हैं - 

    "लानत रख लो जन गण मन की /राजा निकले पाथर तुम 
      संसाधन की डोर डाढ़ में /बैठे रहे दबाकर तुम 
      बेशर्मी भी शर्मसार है/ कितने हुए अमानव हो 
      चोला ओढ़े हो मानुस का /लेकिन घातक दानव हो 
      अफरोगे कब बोलो आखिर /कितने मुण्ड चबाकर तुम               आत्ममुग्धता की मूरत हो /बैठे साँस ठगाकर तुम "
                            अनामिका सिंह अपनी बात को प्रभावी ढंग से कहने के लिए चाक्षुस-अचाक्षुस सभी तरह के बिम्बों का प्रयोग करती हैं।वे अपने एक नवगीत में मात्र दश शब्दों में सिमटी पंक्ति में घ्राण बिम्ब, दृश्य बिम्ब और ध्वनि बिम्ब का प्रयोग करती हैं। देखें - 
                श्वास-श्वास संदिल हुई
                 आँखें हुईं गुलाब 
                   किसकी सुन पदचाप। 
          
             वे अपने बिम्बों के साथ प्रायः व्यञ्जनाधर्मी प्रतीकों को लेकर आती हैं, ऐसे प्रतीकों में हम उनके भीतर छुपी संभावनाओं के भी चित्र देख सकते  हैं। जिंदा मुर्दे, उम्मीदों के पांव भारी होना, आजादी का प्रौढ़ होना, मुंडेर से कागा उड़ाना, मुखौटे लगाकर भेड़ियों का घूमना, छल के हारिल, चिरैया बचकर रहना , न बहुरे लोक के दिन, चाल-चलन की पोथी-पत्री, ककहरे झूठ के, चेतना के पाँव, जैसे शब्द समूहों को वे जैसे संदर्भों में प्रयोग करती हैं, उससे उनके नवगीतों में एक व्यापकता और पैनापन आ गया है।  कविता में जिन तत्वों के कारण एक प्रभावी कहन और लोक सम्पृक्ति आती है, उनमें मुहावरों के प्रयोग और देशज शब्दों की बड़ी एक भूमिका होती है। इन्होंने भी देशज शब्दों और मुहावरों के प्रयोग से अपने नवगीतों की भंगिमा को प्रभावपूर्ण बनाया है। निश्चित ही हम समय के साथ उनमें छंद, शिल्प, भाषा और भंगिमा के और प्रभावी प्रयोग देख पाएँगे।उन्हें तत्सम शब्दों के साथ देशज शब्दों को बरतने का कौशल भी वे लेकर आएँगी, यद्यपि अभी भी अपने नवगीतों में देशज शब्दों के अच्छे प्रयोग किए हैं। बाट जुहारे गैल, ओसारे, खपरैल, करिहाँव, गाँव-गिराँव जैसे न जाने कितने ऐसे शब्द हैं, जिनसे उनके नवगीतों में सहजता और सरलता की व्याप्ति बढ़ी है, बल्कि जब वे अप्रचलित शब्दों का प्रयोग करती हैं, तो वह सहजता कहीं - कहीं नहीं आ पाती, किन्तु अर्थ, गति, लय आदि की जरूरत के कारण रचनाकार को ऐसे प्रयोग भी करने पड़ जाते हैं ।कथ्य को प्रभावी सम्प्रेष्य बनाने के साथ कथ्य के साथ पूरा न्याय करने के दबाव में नवगीत कवियों ने शिल्पगत प्रयोग भी खूब किये हैं। ये प्रयोग ही नवगीत की संजीवनी हैं। इन्हीं के बल पर नवगीत  हर तरह के कथ्य को गीत बनाने की चुनौती में खरा उतरता है। किन्तु शिल्पगत प्रयोग सजगता की भी माँग करते हैं। नवगीत कविता में शब्दों के बीच कारक चिह्न की अनुपस्थिति कोई बड़ा दोष नहीं, किन्तु उसका लोप हुआ है, ऐसा लगना नहीं चाहिए। यही रचनाकर का कौशल है। 
                                अनामिका सिंह में हमें आधुनिकता बोध के साथ बात कहने का मौलिक ढंग भी दिखाई देता है। जब वह "अनुभव के आकाश बिठाए /हमने कोने में।" कहती हैं तो यहीं उनकी वह मौलिकता भी दिखाई पड़ती है, जिसका अनुसंधान प्रायः हर रचनाकार करता है या करना चाहता है। हम कह सकते हैं कि अनामिका सिंह जन सरोकार के प्रति प्रतिबद्ध नवगीत कवयित्री के रूप में और-और निखरने को तैयार हैं। 
सादर 
राजा अवस्थी, कटनी

लेखक परिचय
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नाम - राजा अवस्थी
जन्म - 4 अप्रैल 1966
शिक्षा - परास्नातक (हिन्दी साहित्य), शिक्षा स्नातक
व्यवसाय - मध्यप्रदेश स्कूल शिक्षा विभाग में शिक्षक /प्रधानाध्यापक /जिला स्रोत व्यक्ति हिन्दी
लेखन - नवगीत एवं अन्य काव्य विधाओं में 
प्रकाशन - 'जिस जगह यह नाव है' नवगीत संग्रह का अनुभव प्रकाशन, गाजियाबाद से प्रकाशन सन् 2006 एवं 
लगभग सभी महत्वपूर्ण समवेत नवगीत संकलनों में सहभागिता 
सन् 1986 से पत्र - पत्रिकाओं में कविताओं एवं आलेखों का प्रकाशन 
आकाशवाणी एवं दूरदर्शन भोपाल के साथ स्थानीय चैनलों पर कविताओं का प्रसारण 
सम्मान - कादम्बरी साहित्य परिषद जबलपुर का अखिल भारतीय नवगीत सम्मान - निमेष सम्मान 2006(नवगीत संग्रह जिस जगह यह नाव है 'के लिये), और भी कई संस्थाओं द्वारा सम्मान किन्तु विशेष उल्लेखनीय नहीं। 
विशेष - यूट्यूब पर 'नवगीत धारा' श्रृंखला अंतर्गत नवगीत पर चर्चा 
सम्पर्क - 
गाटरघाट रोड, आजाद चौक, कटनी 
483501, मध्यप्रदेश 
मोबा 9131675401 
Email - raja.awasthi52@gmail.com

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