पहली कड़ी
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प्रस्तुत हैं देवेन्द्र शर्मा इन्द्र जी के नये दोहे
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इन दिनों दोहा बड़ी तादाद में लिखा जा रहा है बहुत दिनों से दोहों पर काम करने का मन था संयोग आज बना पहली कड़ी में मेरी पसन्द के दस नये दोहे इन्द्र जी के जोड़ रहा हूँ इन्द्र जी को मैं निराला की परम्परा का अन्तिम स्तम्भ मानता हूँ। इन्द्र की पर केंद्रित एक पुस्तक 'इदम इन्द्राय' के अपने एक आलेख में मैंने उन्हें अपना आदर्श और मंगलाचरण कहा है। विराट व्यक्तित्व और कृतित्व के धनी इन्द्र जी ने पूरे जीवन काल में (जैसा में अब तक उनके शिष्यों से सुनता आया हूँ) तक़रीबन 21000 दोहे लिखे हैं। साथ ही उन्होंने अपने समकालीनों को भी नये दोहे लिखने के लिये प्रेरित भी किया है। उनके सम्पादन में प्रकाशित 'सप्तपदी' शायद 7 भाग ,के सभी अंक आज की युवा पीढ़ी को ,नये दोहे के स्वरूप को आत्मसात करने के लिए, कम से कम एक बार जरूर पढ़ लेना चाहिए ।
समय- समय पर मेरी तरफ से यह श्रंखला जारी रहेगी मेरी योजना में पूरी सौ कड़ियों पर काम करना है। आप भी अपने समकालीन दोहे मेरे इनबॉक्स में प्रस्तुति के लिए भेजें।
इन्द्र जी के प्रस्तुत नये दस दोहे जीवनानुभव और यथार्थबोध के विविध रंगों की अनुपम झाँकी प्रस्तुत करते है।एक छोटी सी टिप्पणी में वे कहते हैं, - "बहुविध स्तरों पर जिये जा रहे जीवन की धड़कनों और वर्त्तमान मानवीय विसंगतियों को नया दोहा अपने सहज बिम्बधर्मी तत्वों के माध्यम से उद्घाटित करता है।"
प्रस्तुति
मनोज जैन
दस नये दोहे
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खोल न अपना दिल यहाँ, मिला न सबसे हाथ।
खंजर लेकर हाथ ये, देने आये साथ।।
उड़ते उड़ते एक दिन ,आ पहुँचा इस ताल।
कल का वह बगुला-भगत अब है राज-मराल।।
मिट्टी के माधव मिले पहने कनक -किरीट।
स्वर्ण कलश पर बैठकर कौवे करते बीट।।
क्या कुछ दिन के बाद यह तुम्हें रहेगा ध्यान।
पहुँचे थे तुम शिखर पर चढ़ कितने सोपान।।
रेखाओं में रंग भर जिसे बनाया मित्र।
चिन्दी चिन्दी कर दिया बच्चों ने वह चित्र।।
हाथ उठाकर कह चुका मैं यह बार अनेक।
तेरे मेरे पथ न थे न हैं न होंगे एक ।।
ये सपनों के पाहुने आये तेरे गेह।
शब्दों के नाखून से छील न इनकी देह।।
बैठे हैं जो तीर पर मत तू उन्हें पुकार।
नौका बन कर धार यह तुझे करेगी पार।।
छोटे से उस नीड़ पर गिरा टूट आकाश।
रहे देखते लोग सब गौरैय्या की लाश।।
जुगनू को कैसे कहें अपने युग का सूर्य।
रहे बजाता वह भले विश्वविजय का तूर्य।।
देवेन्द्र शर्मा इन्द्र
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