गुरुवार, 20 मई 2021

माणिक वर्मा जी के समकालीन दस दोहा प्रस्तुति : मनोज जैन

चौथी कड़ी में माणिक वर्मा प्रख्यात व्यंगकार
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समकालीन दोहा की चौथी कड़ी में प्रस्तुत हैं माणिक वर्मा  जी के दस दोहे
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                   माणिक वर्मा एक समय में हिन्दी काव्य मंचों के पर्याय माने जाते रहे हैं। उनके नाम की गूँज न सिर्फ देश में बल्कि विदेशों में भी खूब गूँजी। वाचिक परम्परा के साथ-साथ उन्होंने अपनी गहरी जड़ें साहित्य में भी जमा रखी थीं।स्वभाव से अति विनम्र माणिक वर्मा जी का मूल स्वर व्यवस्था के प्रतिरोध में रहा उनकी रचनाएँ जहाँ काव्य मंचों पर वाह वाही बंटोरती थीं वहीं दूसरी ओर धर्मयुग साप्ताहिक हिंदुस्तान कादम्बिनी जैसे स्तरीय पत्र पत्रिकाओं में भी समान रूप से प्रकाशित होती रहीं है।
               माणिक वर्मा मूलतः गज़लकार थे परन्तु काव्य मंचो पर उन्होंने व्यंग्य को मूल स्वर बनाया और अंत तक साहित्य और मंचों पर अपनी सम्मानीय और सम्मानजनक उपस्थिति दर्ज कराते रहे।
     असंगति को खुलकर उजागर करते उनके प्रस्तुत समकालीन दोहों में कमाल की कोटेविलिटी है। इनका स्वर प्रतिरोधी है।वैसे भी देखा जाय तो अच्छी कविता (दोहा भी कविता का ही एक रूपाकार है।)अन्याय के खिलाफ जोरदार आवाज उठाती है।
             और यह काम प्रस्तुत दोहे करते हैं।
                       आइए पढ़ते हैं
           माणिक वर्मा जी के दस धारदार दोहे

प्रस्तुति टीप
मनोज जैन
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कोयल बोली  कूककर, आओ प्रियवर  काग।
यही समय की माँग है, हम- तुम खेले फाग ।।

कीचड़   उसके  पास  था, मेरे  पास  गुलाल ।
जो भी जिसके पास था उसने दिया उछाल ।।

मछुआरे    के   जाल  में   मछली  पीवे  रेत ।
बगुले    उसको  दे  रहे    लहरों  के  संकेत ।।

जरा   संभल कर दोस्तों मलना मुझे अबीर ।
कई   लोगों  का  माल  है  मेरा एक शरीर ।।

जिन   पेड़ों की  छाँव  से  काला पड़े  गुलाल।
उन   की  जड़ में बावरे   अब तो मट्ठा डाल ।।

तू  राजा  है नाम  का  रानी  के   सब    खेत।
उनको  नखलिस्तान  है  तुमको  केवल रेत।।

क्या   होली   के रंग हैं इस   अभाव के संग।
गोरी भीतर  को छिपे      बाहर झाँके अंग ।।

क्या वसंत की दोस्ती क्या पतझड़ का साथ।
हम   तो मस्त  कबीर  हैं किसके आए  हाथ।।

फागुन    को   लगने  लगे  वैसाखी के  पाँव।
इसीलिए  पहुँचा नहीं अब तक अपने गाँव।।

पानी तक मिलता नहीं कहाँ हुस्न और जाम।
अब लिक्खें रुबाइयाँ  मिया  उमर  खय्याम।।

माणिक वर्मा
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