डॉ कैलाश सुमन की कविताएँ
एक
तब बंदर को हुआ जुखाम
हद से ज्यादा खाये आम।
तब बंदर को हुआ जुखाम।।
ठंडा गरम साथ में खाता।
ऊपर से पानी पी जाता।।
खूब नहाता सुबहोशाम।
तब बंदर को हुआ जुखाम।।
छींक छींक कर सर चकराया।
टूटा बदन ताप भी आया।।
नाक हो गई उसकी जाम।
तब बंदर को हुआ जुखाम।।
बंदर ने भालू बुलबाया।
भालू ने काढ़ा पिलबाया।।
मला माथ पर झंडू बाम।
तब छू मंतर हुआ जुखाम।।
दो
कुंभकार की व्यथा कथा
दिनभर माटी में रहता है,
माटी से बतियाता।
कुंदन जैसा तपा तपा कर,
सुंदर कुंभ बनाता।।
कभी बनाता टेसू झेंझी
डबुआ दीप सरैया।
कभी भव्य प्रतिमा देवी की,
राधा संग कन्हैया।।
भिन्न भिन्न आकृतियाँ देता,
सुंदर उन्हें सजाता।
गोल गोल धरती के जैसी,
गुल्लक सुघड़ बनाता।।
भोर भये से सांझ ढले तक,
दिन भर चाक चलाता।
इतनी मेहनत करने पर भी,
पेट नहीं भर पाता।।
विधुत और मोम के दीपक,
छीन रहे हैं रोटी।
थरमाकौल छीनता उसके,
तन पर बची लंगोटी।।
बिचे खेत खलिहान बिच गये,
गदहा और मढैया।
कुंभकार का चैन छिन गया,
दिन में दिखीं तरैया।।
मत भूलो मिट्टी को बच्चों,
इसका त्याग न करना।
मिट्टी से ही जन्म मिला है,
मिट्टी में ही मरना
तीन
जंगल की दीवाली
जंगल के कोने कोने की,
सबने करी सफाई।
सभी जानवर खुश थे सुनकर,
दीपमालिका आई।।
लीप रही बिल्ली जंगल को,
चिड़िया चौक पुराये।
सरपट भाग भागकर हिरनी,
वंदनवार सजाये।।
लाया शहद बहुत सा भालू,
हाथी गन्ने लाया।
बंदर लाया केक शहर से,
सबको खूब खिलाया।।
लक्ष्मी मां की करी आरती,
मोदक भोग लगाये।
दे मैया आशीष, वनों में,
सुख समृद्धि आये।।
खूब चलाई आतिशबाजी,
होता धूम धडाका।
तभी कहीं से सिंह शिशु पर,
आकर गिरा पटाखा।।
पडा़ रंग में भंग जल गया,
शेर शिशु बेचारा।
नहीं समय पर मिली चिकित्सा,
असमय स्वर्ग सिधारा।।
दूर रहो आतिशबाजी से,
नहीं पास में आओ।
सिर्फ फुलझड़ी और चिटपिटी,
जी भर आप चलाओ।।
चार
बिल्ली,
में आऊँ, में आऊँ कहकर,
में आवाज लगाती।
दूध, मलाई, रबडी़, चूहे,
ढूँढ ढूँढ कर खाती।।
दी मेने तालीम शेर को,
सब कुछ उसे पढ़ाया।
किंतु पेड़ पर चढ़ना बच्चों,
कभी नहीं सिखलाया।।
कभी राम का नाम न लेती,
सौ सौ चूहे खाती।
पापों का प्रायश्चित करने,
हज करने को जाती।।
दिखने में बेशक छोटी हूँ,
नही उड़ाना खिल्ली।
लगूँ शेर की माँसी बच्चों,
नाम मेरा है बिल्ली।।
पाँच
पंसारी
एक हरद की गाँठ मिल गई,
धनिया, मिर्च, सुपारी।
इन चीजों को पाकर चूहा,
बन बैठा पंसारी।।
मद में चूर हुआ पाखंडी,
सबको आँख दिखायें।
सिर्फ तनिक सा धन पाकर के,
वो भारी इतरायें।।
चोर घुसे चूहे के घर में,
लूटी हरद सुपारी।
चूहे राजा पंसारी से,
पल में हुये भिखारी।।
अहंकार मत करो कभी भी,
सहज सरल बन जाओ।
मीठी वाणी बोल जगत में,
बच्चों नाम कमाओ।।
छह
सूरज चाचा
उठ भुनसारे सूरज चाचा,
मेरी छत पर आते।
बिना भेद के सब बच्चों को,
जमकर धूप खिलाते।।
में भी उन्हें खिलाने माँ से,
हलवा पूड़ी लाता।
लेकिन उनके मुख तक मेरा,
हाथ पहुँच ना पाता।।
मेरा भाव देखकर चाचा,
मन ही मन मुस्काते।
अगले दिन खाने की कहकर,
बादल में छुप जाते।।
डॉ कैलाश गुप्ता सुमन
मुरैना मध्यप्रदेश
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