बुधवार, 12 जून 2024

कीर्तिशेष डॉ. ताराप्रकाश जोशी जी के नवगीत_____

कीर्तिशेष डॉ. ताराप्रकाश जोशी जी के 
नवगीत
_____
एक

साँझ हुई चल पंख समेटें
उमर-उड़ान कहाँ थम जाए, 
चल, अछोर छाया में लेटें !

रूप निहारे, रंग निहारे
आकृति - आकृति अंग निहारे,I
जो छवि भाये सो छवि ओझल
दुनिया के सब संग उधारे,

पल दो पल की आँख - मिचौनी
चल अदीठ आभा से भेंटें !

तरुवर से क्या ? कोटर से क्या ?
नदिया से क्या ? पोखर से क्या ?
मैं अपनी हंसिनिया के बिन
मुझको मानसरोवर से क्या ?

यह नभ छोटा जैसे जीवन
चल अशेष के पृष्ठ पलेटें !

कूजन चुप है, कलरव चुप है,
जंगल चुप है, अर्णव चुप है,
केवल सूनापन मुखरित है
यात्राएँ चुप, अनुभव चुप हैं,

सात सुरों का क्या पतियारा
चल, अनादि के तार उमेठें
______________________

दो
सूनापन जाए तो सोऊँ !

यह बैठा है, कैसे बोलूँ
अपना बिस्तर कैसे खोलूँ
यह उलझन जाए तो सोऊँ !

यह जब से आया, गुमसुम है
इसका मौन बड़ा निर्मम है
दुखता दिन जाए तो सोऊँ !

यह मुझसे मिलता - जुलता है
छाया - सा हिलता - डुलता है
अपनापन आए तो सोऊँ !
_______________________

तीन

 कोई और छाँव देखेंगे

कोई और छाँव देखेंगे
लाभों घाटों की नगरी तज
चल दे और गाँव देखेंगे

सुबह सुबह के
सपने लेकर, हाटों हाटों खाए फेरे
ज्यों कोई भोला बंजारा 
पहुँचे कहीं ठगों के डेरे
इस मंडी में ओछे सौदे 
कोई और
भाव देखेंगे

भरी दुपहरी गाँठ गँवाई, 
जिससे पूछा बात बनाई
जैसी किसी गाँव वासी की 
महानगर ने हँसी उड़ाई
ठौर ठिकाने विष के दागे 
कोई और
ठाँव देखेंगे

दिन ढल गया
उठ गया मेला, खाली रहा उम्र का ठेला
ज्यों पुतलीघर के पर्दे पर खेला रह जाए अनखेला
हार गए यह जनम जुए में कोई और
दाँव देखेंगे

किसे बताएँ इतनी पीड़ा, 
किसने मन आँगन में बोई
मोती के व्यापारी को क्या, 
सीप उम्रभर कितना रोई
मन के गोताखोर मिलेंगे कोई और
नाव देखेंगे
_______________________
चार

 तेरे मेरे बीच

तेरे मेरे बीच कहीं है
एक घृणामय भाईचारा
सम्बन्धों के महासमर में
तू भी हारा मैं भी हारा

बँटवारे ने भीतर-भीतर,
ऐसे-ऐसी डाह जगाई
जैसे सरसों के खेतों में,
सत्यानासी उग-उग आई
तेरे मेरे बीच कहीं है
टूटा-अनटूटा पतियारा

अपशब्दों की बंदनवारें,
अपने घर हम कैसे जायें
जैसे साँपों के जंगल में
पंछी कैसे नीड़ बनायें
तेरे मेरे बीच कहीं है
भूला-अनभूला गलियारा

आहत सोये जर्जर जागे
जीवन ऐसी एक व्यथा है
जैसे किसी फटी पोथी में
लिखी हुई प्रतिशोध कथा है
तेरे मेरे बीच कहीं है
झूठा-अनझूठा हरकारा

बचपन की स्नेहिल तस्वीरें
देखें तो आँखें दुखती है
जैसे अधमुरझी कलियों से
ढलती रात ओस झरती है
तेरे मेरे बीच कहीं है
बूझा-अनबूझा उणियारा

जय का तिमिर महोत्सव तेरा
क्षय का अग्नि-पर्व है मेरा
तेरे घर शापों का डेरा
मेरे घर शापों का फेरा
तेरे मेरे बीच अभी है
डूबा-अनडूबा उजियारा ।
_____________________
पांच

 मेरे पाँव तुम्हारी गति हो

मेरे पाँव तुम्हारी गति हो
फिर चाहे जो भी परिणति हो

कोई चलता कोई थमता
दुनिया तो सडकों का मेला
जैसे कोई खेल रहा हो
सीढ़ी और साँप का खेला
मेरे दाँव तुम्हारी मति हो
फिर चाहे जय हो या क्षति हो

पल-पल दिखते पल-पल ओझल
सारे सफर पडावों के छल
जैसे धूप तले मरुथल में
हर प्यासे के हिस्से मृगजल
मेरे नयन तुम्हारी द्युति हो
फिर कोई आकृति अनुकृति हो

क्या राजाघर क्या जलसाघर
मैं अपनी लागी का चाकर
जैसे भटका हुआ पुजारी
ढूँढ रहा अपना पूजाघर
मेरे प्राण तुम्हारी रति हो
फिर कैसी भी सुरति-निरति हो

ये सन्नाटे ये कोलाहल
कविता जन्मे साँकल-साँकल
जैसे दावानल में हँस दे
कोई पहली-पहली कोंपल
मेरे शब्द तुम्हारी श्रुति हो
यह मेरी अन्तिम प्रतिश्रुति हो

 डॉ० तारा प्रकाश जोशी
_______________________

कीर्तिशेष डा तारा प्रकाश जोशी जी का
जन्म- २५ जनवरी १९३३
शिक्षा-
हिन्दी में स्नातकोत्तर उपाधि (स्वर्ण पदक के साथ) राजस्थान विश्व विद्यालय से डॉ रांगेय राघव के साहित्य में मानववाद विषय पर पीएच. डी.

कार्यक्षेत्र-
लेखन एवं भारतीय प्रशासनिक सेवा में अधिकारी 

प्रकाशित कृतियाँ-
गीत संग्रह- कल्पना के स्वर, शंखों के टुकड़े, समाधि के प्रश्न, जलते अक्षर
उपन्यास- जयनाथ, जल मृगजल
नाटक- द्वापर के आँसू, दूधा, त्रेता का परिताप

पुरस्कार एवं सम्मान-
राजस्थान साहित्य अकादमी का सर्वोच्च ‘साहित्य मनीषी’
 सम्मान
अक्तूबर २०२० में आपका निधन हो गया।

रविवार, 2 जून 2024

21 घण्टे की रोमांचक यात्रा की एक झलक : मनोज जैन

यात्रा संस्मरण
___________



        मनोज जैन

21 घण्टे की रोमांचक यात्रा की एक झलक
________________________

निःसन्देह यात्राएँ हमारे अनुभव संसार में बहुत कुछ नया जोड़ती हैं। कभी-कभी यह नया जोड़ आपको 360 डिग्री के कोंण तक अचानक बदलने के लिए विवश कर देती है। ऐसा ही कुछ देखने और समझने, सुनने और गुनने का अवसर मिला जब हम लोग, अपने शहर के प्रख्यात लेप्रोस्कोपिक सर्जन और बीजेपी चिकित्सा प्रकोष्ठ के प्रदेश संयोजक डॉ.अभिजीत देशमुख जी के साथ, एक छोटी सी यात्रा भोपाल से ग्वालियर जिसकी योजना, विशेषकर मेरी लिए तो  बिल्कुल ही औचक ही थी। 
                 यह यात्रा मेरे घर के ठीक दूसरे छोर यानी कटारा हिल्स से आरम्भ हो चुकी थी। मेरे पास जब कॉल आया तब मैं गहरी नींद में था। मैं मीठे स्वप्न में खोया हुआ था। काल पर दूसरी तरफ हमारे मित्र सुबोध श्रीवास्तव जी थे। मैंने सिर्फ इतना ही सुना, "गेट रेडी विदिन टेन मिनिटस, मैं पहुँच रहा हूँ, सर के साथ ग्वालियर चलना है!" ठीक 6 बजे डॉ.अभिजीत सर की गाड़ी ब्रेक के हल्के इशारे से ठहरती है, और हम लोग सर को जॉइन करते हैं। अभिजीत सर की गाड़ी 2080 ऑडी जिसे हम आपस में रथ कहते हैं। बीजेपी युवा मोर्चा के पदाधिकारी युवा नेता भाई दीपेश यादव जी के आते ही सारथी ने रथ को हवा में ऐसा दौड़ाया की कब ग्वालियर के पास उदय ढाबा आ गया, पता ही नहीं चला।
     अंदर और बाहर के टेम्प्रेचर का अहसास हमें अपनी गाड़ी और ढ़ाबे के AC हाल तक के पहुँच मार्ग मात्र 3 मिनिट के समय ने कराया। ग्वालियर-चम्बल इलाके की तपिश और उठते लू के थपेड़ों ने हमारा भले ही जोरदार स्वागत किया हो, पर ढाबे में उप्लब्ध छाछ के स्पेशल गिलास (जो आकार में नॉर्मल गिलास से स तीनगुने होंगे रहे होंगे) ने हमें अन्दर तक शीतल कर दिया।
      डॉ.अभिजीत जी अपनी टीम का नेतृत्व करते हुये अपने गंतव्य तक ठीक निर्दिष्ट समय सीमा के पहले ही पहुँचे। बीजेपी चिकित्सा प्रकोष्ठ के संयोजक की टीम यहाँ पहुँचते पहुँचते एक बड़े काफ़िले में तब्दील हो गई।


          ग्वालियर, महल पहुँच कर, सर ने अपनी टीम के साथ माधवी राजे सिंधिया जी को श्रद्धांजलि अर्पित की और उनके यशश्वी पुत्र श्रीमंत ज्योतिरादित्य सिंधिया जी से भेंट की। डॉ.देशमुख जी के शिड्यूड पहले से ही तय थे प्री प्लान शैडयूल्ड के अनुसार सर के साथ उनकी पूरी टीम के लंच का जिम्मा भोपाल शहर के चर्चित डेंटल सर्जन डॉ रोहित श्रीवास्तव जी, जो स्वयं बीजेपी चिकित्सा प्रकोष्ठ से जुड़े हैं; ने सम्हाल रखा था। ग्वालियर रेलवे स्टेशन के कैंटीन की यह ट्रीट सचमुच हम सभी के लिए बहुत यादगार और खास थी। लंच के बाद डॉ अभिजीत जी के स्वागत सम्मान के पलों के फोटो सदैव इस यात्रा से जुड़ी यादें ताज़ा करते रहेंगे।

        एक बात मैंने जो डॉ.अभिजीत जी के व्यक्तिव में नोटिस की वह यह है की डॉ देशमुख जी, यात्रा के हर पल का डूबकर आनन्द लेते हैं। इस दौरान उन्होंने सारे जरूरी कॉल अटेंड किये, फॉलोअप लिए पेशेंट्स से या उनकें परिजनो के जो काल थे उन्हें बहुत धैर्य से जरूरी समझाइशें दी।
           यात्रा का दूसरा चरण ग्वालियर से गंतव्य स्थल भोपाल की ओर आरंभ हो चुका था और हम लोग डॉ. साहब के साथ दतिया स्थित पीताम्बरा पीठ के दर्शनार्थ माँ बगुलामुखी के दर्शनार्थ मन्दिर परिसर में आ चुके थे। स्थानीय दो पुजारियों के निर्देशन में हम सभी ने माई के दर्शन और माई से जुड़े रोचक तथ्यों को बहुत मनोयोग से जाना। 
             भीषण गर्मी और दतिया के झुलसा देने वाले टेम्प्रेचर के बाबजूद मन्दिर परिसर में हमें अतीव शान्ति का अनुभव हुआ और यह हम सभी की अनुभूति का विषय लम्बे समय तक बना रहा। यहाँ हमारी भेंट दतिया के वरिष्ठ कवि शैलेन्द्र बुधौलिया जी से हुई जो मेरे एक काल पर टेम्प्रेचर को धता दिखाते हुए मन्दिर परिसर में आ पहुँचे। यद्धपि यह सौजन्य भेंट बहुत कम समय की थी पर कुछ लोगों का प्रभाव उनके स्वभाव के चलते ऐसा पड़ता है जिसे कभी भुलाया ही नही जा सकता। हम सभी वापसी के मूड में थे और वाया शिवपुरी-गुना हमें भोपाल आना था। पर क्या पता बुधौलिया जी के दिमाग में कौन सी ग़ज़ल या गीत की पंक्ति चल रही थी कि अचानक उन्होंने बिना माँगे एक सलाह हवा में उछाल दी।


          बुधौलिया जी बोले आप लोग दिनारा वाले पुल से होकर वाया पिछोर होते हुये भोपाल जाइए। एकदम चकाचक रोड और समय भी बचेगा सो अलग। फिर क्या था डॉ.अभिजीत देशमुख जी का रथ उसी रोड पर मुड़ गया। मुड़ तो गया पर यह दिशा गलत थी फिर भी हम सबने इस यात्रा का पूरा आनन्द लिया। मैं अपने गाँव बामौर कला से गुजरा यहीं पर मेरे अपने बाल सखा हाईकोर्ट के एडवोकेट संजीव पांडेय के होटल "जैनपथ" पर छोटा सा स्टे और लाइट खिचड़ी लेकर हम वाया चन्देरी होते हुए डॉक्टर साहब के रथ के सारथी भाई दलभान यादव उर्फ छोटू के गाँव जहाँ छोटू भाई ने डॉक्टर साहब के स्वागत और सम्मान के प्रबंध में अपने दोस्तों को लगा रखा था दरअसल हुआ यह कि छोटू के  मित्र ने अम्मा ढाबा एंड फैमली रेस्टोरेंट के नाम से नया ढ़ाबा खोला है जिसका उद्घाटन वे डॉ देशमुख जी के करकमलों और उनकी टीम के सानिध्य में कराना चाहते थे और उन्हें यह अवसर उन्हें सहज मिल गया था। 

    स्वागत और सम्मान के भावुक कर देने वाले पल दुर्लभ थे। सचमुच यह आत्मीयता मोहने वाली थी। यह सब डॉ.अभिजीत जी के दिल जीत लेने वाले व्यवहार का सुफल था जिसका सुख हम लोग भी संग साथ भोग रहे थे। ग्राम खोरीबाड़ी, जिला अशोकनगर यह छोटू उर्फ दलभान भाई का पैतृक गाँव है।
छोटे से गाँव में यहाँ के लोगों की, खासतौर से छोटू के दोस्तों को एकजुटता और परसपरआत्मीयता देखते बनती हैं।
हम सब दलभान के घर पहुँचे। माता जी के दर्शन किये उनकी खैर खबर ली।
डॉक्टर साहब को भेंट में मिले, मक्खन की मोहक सुगंध ने सचमोच हम सभी का मन मोह लिया।
    

       यात्रा के दौरान मैने अपनी जिज्ञासा के बशात डॉ देशमुख जी से एक प्रश्न पूछा। मेरा प्रश्न था, डॉक्टर साहब! सब लोग आपकी सफलता को देखते हैं पर मैं इस सफलता के पीछे के संघर्ष के बारे में जानना चाहूँगा। इस प्रश्न पर डॉक्टर अभिजीत देशमुख जी ने ठहरकर और सविस्तार बात की। उन्होंने अपने संघर्ष के दिनों को फ़्लैश बैक में जाकर याद किया। डॉक्टर साहब को दो संस्कृतियों में पलने बढ़ने फलने और फूलने का अवसर मिला है। वे मध्यप्रदेश के मालवा और महाराष्ट्र के कल्चर से जुड़े हैं। डॉक्टर साहब मध्य प्रदेश के प्रमुख चारों शहरों में पढ़े हैं। उन्होने अपने नाना जी, जो अपने समय के चर्चित सांसद रहे हैं, के जीवन में आये उतार चढ़ाव से बहुत कुछ सीखा है। कठोर परिश्रम और ईमानदारी का संस्कार नाना जी ग्रहण करते हैं तो वही शख़्त अनुसाशन की सीख का श्रेय अपने पिता जी को देते हैं। डॉ.अभिजीत देशमुख जी अपने क्षेत्र में एक सफल व्यक्तित्व का नाम है। फिर चाहे क्षेत्र चिकित्सा का हो या राजनीति का पूरे मनोयोग से वे अपने समय का सदुपयोग करते हैं। 


जनसम्पर्क उनकी ख़ूबी है। उन्हें लोगों से मिलना जुलना  अच्छा लगता है। ट्विटर का नया रूप एक्स हैंडलर, फेसबुक , व्हाट्सएप्प या फिर इंस्टा सोशल मीडिया के लगभग सभी प्लेटफार्म पर अभिजीत सर की उपस्थिति आपको खुल कर दिखाई देती है। इस यात्रा में मुझे एक बात का उत्तर बिना पूछे ही मिल गया जब डॉक्टर साहब ने चलती हुई गाड़ी से रेयर क्लिक कैप्चर करते दिखाई दिए।


        एक दृश्य जो उन्होंने कैप्चर किया वह सचमुच रेयर था जिस पर मेरा ध्यान गया। तीन पहिया वाले  खुले ऑटो में तरबूजों के ऊपर 47 डिग्री सेल्सियस टेम्प्रेचर में गहरी नींद में सोते दो बच्चों का एक बेहतरीन क्लिक !

        एक सफल व्यक्ति के साथ की गई 21 घण्टे की छोटी सी यात्रा हमारे अनुभव संसार में बहुत कुछ जोड़ सकती है। रात को 3 बजे हम लोग भोपाल सकुशल पहुँचे। इस औचक यात्रा का श्रेय मित्र सुबोध श्रीवास्तव जी को ही जाता है जिन्होंने मुझे एक सफल व्यक्तित्व को निकट से जानने और समझने का मौका दिया। बेजेपी युवा मोर्चा के पदाधिकारी दीपेश यादव जी से यह पहला परिचय था उनकी वैचारिकी और निष्ठा को देख कर यह मैं कह सकता हूँ की उनका आनेवाला राजनैतिक भविष्य उज्जल है।
                      इस छोटी सी यात्रा का निष्कर्ष यही है की लोगों से मिलते जुलते रहें और अपने अनुभव संसार को समृद्ध करते रहें।
                  मनोज जैन

 मनोज जैन