बुधवार, 13 अगस्त 2025

कृति चर्चा में आज "बच्चे होते फूल से" समीक्षक आ.गोकुल सोनी जी


बच्चे होते फूल से (बालगीत संग्रह)
गीतकार~ श्री मनोज जैन मधुर
प्रकाशक~ विचार प्रकाशन ग्वालियर
पृष्ठ संख्या~ 104
मूल्य~ ₹.200/~

भारत में बाल साहित्य का इतिहास सब देशों से अधिक पुराना है। लगभग 338 ईसा पूर्व आचार्य विष्णु गुप्त ने बाल कहानियों के माध्यम से एक राजा के चार बिगड़ैल, गैर जिम्मेदार और लापरवाह राजकुमारों को जिम्मेदार और भविष्य के लिए अच्छे शासकों के रूप में ढाला। उनके द्वारा लिखे गए पंचतंत्र और हितोपदेश आज भी बाल साहित्य की सर्वश्रेष्ठ कृतियां मानी जाती हैं जिनपर कई सीरियल और फिल्में भी बन चुके हैं। 
     अन्य देशों की बात की जाए तो ऐसे देश जहां बच्चों को बहुत प्यार किया जाता है और बाल साहित्य बहुत जिम्मेदारी से लिखा जाता है तथा लोग लिखना और पढ़ना पसंद करते हैं, उनमें प्रमुखत: यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त राज्य अमेरिका, स्कैंडिनेविया, चीन, स्पेन, और जर्मनी के अलावा, रूस, इटली, पोलैंड, दक्षिण अफ्रीका, फिनलैंड, ब्राजील, बेल्जियम, जापान, कनाडा और दक्षिण कोरिया जैसे देशों का भी नाम लिया जा सकता है। इन देशों में भी बाल साहित्य लोकप्रिय है।
    यूनाइटेड किंगडम में 19वीं सदी में लुईस कैरोल की 'ऐलिस इन वंडरलैंड' और 20वीं सदी में कला और शिल्प आंदोलन के साथ बच्चों की किताबों का एक नया युग शुरू हुआ जबकि स्वीडन, डेनमार्क में अठारहवीं सदी से ही बाल साहित्य प्रकाशित होने लगा था। जे के रोलिंग द्वारा बच्चों के लिए लिखी गई हैरी पॉटर सीरीज ने तो बिक्री के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। इससे बल साहित्य की लोकप्रियता का आकलन सहज ही हो जाता है।
     भारत में बड़े बड़े साहित्यकारों ने भी बाल साहित्य को अनिवार्य मानते हुए अपनी कलम चलाई। मृदुला गर्ग, हरिकृष्ण देवसरे, रामवृक्ष बेनीपुरी, जैनेन्द्र यहां तक कि प्रेमचंद ने भी बच्चों को गुल्ली डंडा कहानी लिखकर बाल साहित्य के महत्व को स्वीकार किया।
     दरअसल बाल साहित्य बच्चों के मन मस्तिष्क में नैतिक सिद्धानों यथा सत्य संभाषण, बड़ों के प्रति आदर, दया, करुणा, ममत्व जैसे सिद्धांतों के बीजारोपण करने का सबसे सशक्त माध्यम है साथ ही यह सात्विक मनोरंजन भी है। 
      गीत विधा और बाल मनोविज्ञान जब एक साथ मिलते हैं तो बहुत सुंदर गेय बाल गीतों का सृजन होता है जो बच्चों की जुबान पर आसानी से चढ़ जाते हैं और जब इतने सुंदर गीत पढ़ने में आते हैं तो बच्चे क्या, बड़े भी अपने आप को गुनगुनाने से नहीं रोक पाते। देश के सुप्रसिद्ध गीतकार मनोज जैन मधुर ऐसे ही प्यारे गीतों का गुलदस्ता "बच्चे होते फूल से" के नाम से लेकर आए हैं जिसमें 43 बाल कविता पुष्प हैं जिनके विभिन्न रंग बड़े सलोने और मोहक हैं। 
     पहेलियां सदैव सभी को लुभाती हैं, खास तौर पर बच्चों को तो बहुत ही प्रिय होती हैं। पहेलियों से पुस्तक का आरंभ बताता है कि मनोज जी बाल मनोविज्ञान के अच्छे ज्ञाता हैं। इन पांच पहेलियों का उद्देश्य क्रमशः भारत, भोपाल, इंद्रधनुष, तिरंगा, और नदी की विशेषताओं से बच्चों का परिचय कराना है। शीर्षक गीत बच्चे होते फूल से भी सुंदर कविता है।

बच्चे होते फूल से 
आंख दिखाओ मुरझा जाते 
प्यार करो खिल जाते हैं 
मन के सारे भेद बुलाकर 
आपस में मिल जाते हैं 
मन होता है इनका कोमल 
इन्हें न डांटो भूल से बच्चे होते फूल से

मातादीन कविता दस तक गिनती सिखाती मनोरंजक कविता है जो

एक गांव में घर दो तीन
आकर ठहरे मातादीन
इनने पाले घोड़े चार
घूम लिया पूरा संसार

से आरंभ होकर मनोरंजक तरीके से दस तक पहुंचती है। इसी तरह जादूगर कविता भी चार का पहाड़ा खेल खेल में याद करा देती है। गिलहरी भी बहुत प्यारी कविता है। कविता "दिल्ली पुस्तक मेला" लाक्षणिक शैली में लिखी अदभुत कविता है जिसका प्रत्यक्ष उद्देश्य बच्चों को जानवरों के नामों और गुणों से परिचित कराना है परंतु बड़ी उम्र के साहित्यकार पाठकों को दिल्ली पुस्तक मेले की विषमताओं से परिचित कराना है। गजब का व्यंग्य है यह। लोरी आदि काल से नन्हें बच्चों को सुलाने के लिए माताएं गाती रही हैं। लोरी में अद्भुत मिठास और गेयता होती है। आजकल लोरियां बहुत कम लिखी जा रही हैं, परंतु  मनोज जी ने पांच लोरी गीत लिखकर इस बाल गीत को संपूर्णता प्रदान करने का प्रयास किया है। 

चंदा मामा आ जाना 
परियों को संग में लाना 
तब मुन्ना सो जाएगा 
सपनों में खो जाएगा 
आ जाना भाई आ जाना 
चंदा मामा आ जाना

     वह बाल कविता संग्रह ही क्या जिसमें चूहे बिल्ली पर कविता न हो। प्रत्येक परिवार के सदस्यों की तरह ही होते हैं ये। बच्चों के आमोद प्रमोद के केंद्र।
"चूहों के सरदार ने"  कविता इनपर बहुत मनोरम कविता है।

घर पर मीटिंग रखी अचानक 
चूहों के सरदार ने
सुनो साथियों क्या तुमने भी 
खबर पढ़ी अखबार में 
चाहे हज से लौटे बिल्ली 
या फिर तीरथ धाम से 
कितनी बार नमाज़ पढ़े या 
जुड़ी रहे वह राम से 
माना कंठी माला इसमें 
अभी गले में डाली है 
सुनो गौर से इसकी फितरत 
नहीं बदलने वाली है

कविताओं का सलौनापन देखिए कि कहीं भालू जी पॉली क्लीनिक चला रहे हैं, तो कहीं नौ सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को जा रही है। कहीं जिराफ अपना परिचय खुद दे रहा है, तो कहीं ठंड से थरथर कांपता बंदर स्वेटर बनवाने के लिए भेड़ से ऊन मांग रहा है। चिड़ियाघर के तो ठाठ ही निराले हैं जहां
 
ताड़ासन में खड़ा हुआ है था 
मोटा काला हाथी 
अलग अलग आसन में बैठे 
देख हजारों साथी 
एक टांग पर खड़े हुए थे 
बकुल बने थे योगी 
भगवा पहने शेर महाशय 
बने हुए थे योगी 
प्राणायाम किया बकरी ने 
सबके मन को भाए
गोरिल्ला ने लटक डाल पर 
करतब नए दिखाए 

इस बाल कविता संग्रह में मात्र जानवरों पर ही कविताएं नहीं हैं वरन बच्चों को आत्मीय रिश्तों का महत्व समझाती कविताएं हैं। पापा, दादा, मम्मी, बुआ, नाना आदि के प्रति बच्चों के स्नेह की अभिव्यक्ति हैं ये कविताएं। बोध कथाएं, ईश वंदना, हमारा देश, मोबाइल, पानी अनमोल, होली जैसे कई विषयों को समेटने से संग्रह बहुउद्देशीय बन गया है और ऐसी जानकारियां देता चलता है जो बच्चों के व्यक्तित्व के समग्र विकास हेतु परमावश्यक होती हैं।  
     संग्रह बहुत सुंदर, पठनीय और बच्चों को बेहद पसंद आनेवाला है परंतु पॉलि क्लिनिक, परिश्रावक, अशेष, सर्वस्व, स्वमेव, अखिलविश्व, आराधक, आलोचक जैसे कठिन शब्द छोटे बच्चों की पुस्तकों में लिखने से बचा जा सके तो अच्छा है। 
सुंदर बाल कविता संग्रह हेतु मनोज भाई को हार्दिक बधाई। 

गोकुल सोनी
(कवि, कथाकार, व्यंग्यकार)
भोपाल मो. 7000855409

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