अपने समय के प्रमुख बाल साहित्यकार आदरणीय प्रभु दयाल श्रीवास्तव जी ने बच्चों के लिए मेरे द्वारा लिखी गई मेरी पहली कृति बच्चे होते फूल से की सविस्तार समीक्षा की है जिसे मैं जस की तस अपने पाठकों तक पहुँचा रहा हूँ।
आभार व्यक्त करता हूँ प्रभु दयाल श्रीवास्तव जी का जिन्होंने अपने व्यस्ततम समय में से अनमोल पलों को चुराकर सँग्रह पढा और पढ़कर मुझे आशीर्वाद भी दिया।
आप भी पढ़कर देखिएगा।
सादर
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बच्चे होते फूल से
नवगीत और गीतों में महारत हासिल श्री मनोज जैन मधुर जी ने “बच्चे होते फूल से” शीर्षक से लिखा बाल गीतों का संग्रह मुझे प्रेषित किया है, दो शब्द लिखने के लिए। विचार प्रकाशन ग्वालियर से प्रकाशित यह संग्रह ४३ बाल कविताओं से सजा हुआ सुन्दर सा गुलदस्ता है। शुभ कामना सन्देश में साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ विकास दवे ने लिखा है कि लेखन जब बाल मन के स्तर पर जाकर लिखा जाता है तो बच्चे उसका स्वागत करते हैं।
बाल कल्याण एवं साहित्य शोध केंद्र भोपाल के निदेशक श्री महेश सक्सेना ने लिखा है ”बाल कविता, लोरी, प्रभाती पहेली बोधकथा की इंद्रा धनुषी छटा का संग्रह “बच्चे होते फूल से” बहुत विनम्र निश्छल, आत्मीय, कर्मठ स्वभाव के श्री मनोज जैन मधुर का व्यक्तित्व मनोज सा ही आकर्षक है और स्वभाव भी उनके उपनाम मधुर जैसा ही है।
मेरा मत है कि अच्छा बाल साहित्य लिखने के लिए लेखक का मन बच्चों जैसा भोला भाला होना चाहिए। भोले मन की कलम से निसृत भोली कवितायेँ/बाल गीत निश्चित बच्चों के मन में उतरकर उन कविताओं और गीतों का दीवाना बना देंती हैं। डॉ परशुराम शुक्ल,घनश्याम मैथिल के अतिरिक्त अन्य पाँच मनीषियों ने भी संग्रह पर अपना मंतव्य व्यक्त किया है।
मनोज जी के साथ विशेष बात यह है कि वे एक सिद्ध हस्त गीतकार हैं और बाल कवितायेँ /बाल गीत मनोज जी की की कलम से झरें तो फिर क्या बात है। मनोरंजन, मौज मस्ती, हो हल्ला धूम-धडाका और बच्चों की बेताज बादशाही अहसास जिसने अपनी बाल कविताओं में शामिल कर लिया समझो वह सफल बाल साहित्य कार हो गया। रचना पढ़ते ही बच्चे का चेहरा खिल उठे ओंठों पर मुस्कान खेलने लगे और वह कविता गीत अथवा कहानी बार- बार पढने को उत्सुक होने लगे तो फिर क्या कहने। मनोज जी इस पर खरे उतरते दिखाई देते हैं। यह कहीं से भी नहीं लगता कि यह संग्रह उनका पहला बाल कविताओं/गीतों का संग्रह है। छंद लय प्रतिबिम्ब सबमें पूरी पक्की रचनाएँ, बचपन में बार-बार लौटते हुए हर रचना को रचा गया होगा ऐसा प्रतीत होता है। बच्चों के निश्छल स्वभाव और उनकी भोली भाव भंगिमा पर ये पंक्तियाँ कितनी सटीक लगती हैं “आँख दिखाओ मुरझा जाते,प्यार करो खिल जाते हैं। मन के सारे भेद भुलाकर,आपस में मिल जाते हैं। मन होता है इनका कोमल,इन्हें न डांटो भूल से। बच्चे होते फूल से। तन मन से कोमल बच्चे फूल सरीखे ही तो होते हैं। यह गीत अपने शीर्षक होने को लेकर कितना प्रसन्न होगा यह तो शीर्षक ही जानता होगा। पंछियों को पानी पिलाना,चिड़ियों चीटियों को दाना/आटा डालना हमारे संस्कार हैं और यह बात “सबके मंगल से जीवन में” बड़े सरल सहज ढंग से कही गई है यथा – रोज सकोरों में भरता है ,खट्टर उठकर पानी। और बाँध रखा गट्ठर में अपने ,पूरा एक खजाना ,चींटी को आटा थोडा सा ,है चिड़ियों को दाना |
पुस्तक पढ़ते हुए मातादीन कविता से दो चार हुआ ,एक से लेकर दस तक की गिनती बड़े मनोरंजक ढंग से परोसी गई है। नर्सरी- प्रवेशिका के बच्चे इसे पढकर मजे से गाने लग जाएँगे, गिनती भी याद हो जाएगी।”गिनती गीत” भी इसी तरह की कविता है। ”जादूगर” कविता में तो चार का पहाडा ही बच्चों को रटा दिया है| उनके के हाथ में किताब आये तो चार का पहाड़ा एक ही बैठक में याद कर डालें। गिनो कहीं से पूरी होती,थी बत्तीस गिलहरी। घोड़े थे छतीस तुर्क के जिनकी पूंछ सुनहरी |चार का पहाडा, अट्ठे- बत्तीस नामें- छत्तीस को बड़े मनोरंजक तरीके से बच्चों के सामने कवि ने रख दिया है। “दिल्ली पुस्तक मेला” आज के चाटुकार साहित्यकारों का मनो चित्रण है असली नकली पर कवि का तंज “हंस चुगेगा दाना चुनका कौआ मोती खायेगा” मन में गूँजने लगा। पशु पक्षियों का मानवीकरण करके बहुत ही अनोखे और व्यंगात्मक ढंग से पुस्तक मेले का आज के सन्दर्भ में चित्रण किया गया है, बहुत ही मजेदार है। डेढ़ दिमाग लगाकर बोली,किसको दिल्ली जाना। मिसफिट कोयल इस महफ़िल में,फिट है कौआ काना। हंसराज जी यहीं रहेंगे,भले गिद्ध को ले लो। आलोचक तुम बैठे-बैठे,पुस्तक-पुस्तक खेलो।पुस्तक मेलों में चापलूस नकली लेखकों का बाज़ार ही तो लगता है। लेखक की चिंता वाजिब है। पाँच छोटे-छोटे सुंदर से लोरी गीत भी हैं। ये गीत थोड़े बड़े होते तो अच्छा रहता। आजकल लोरी विधा आँखों से ओझल हो रही है। आज की दादी नानियाँ भी लोरियों से अनजान होती जा रहीं हैं। मोबाईल नामक झुनझुना लोरियों का स्थान ले रहा है |रचनाकारों को लोरियों पर काम करना होगा और शिशुओं -बच्चों की माताओं, दादियों, नानियों तक ये कैसे पहुंचे इस पर भी विचार करना होगा।
“पलकों पर बैठाओ पापा“ बच्चों द्वारा बड़ों के लिए सीख है। बच्चे अक्सर अपने दादा दादी के लाडले होते हैं। कहते हैं न कि बच्चे मूलधन होते हैं और पोते पोतियाँ ब्याज।और मूलधन से ब्याज को अधिक प्यारा कहा जाता है। लेकिन आज की भाग दौड़ भरी जिन्दगी और नैतिक पतन की ओर जाते समाज में माता पिता अब उनके बच्चों को बोझ लगने लगे हैं और इसकी परिणिति वृद्धाश्रम होने लगी है।
बच्चा पापा से कह रहा है-दादू हैं पर्याय ख़ुशी के ,दादी अपनी रानी है। हम बच्चों को उनसे मिलती, हरदम सीख सयानी है। हैं अपने भगवान् उन्हें तुम,पलकों पर बैठाओ पापा।आखिर दादा दादी भगवान ही तो होते हैं और भगवानों की अवहेलना ! “एक बोध कथा का भावानुवाद”संकल्प से सिद्धि का दस्तावेज है। झुकती है संकल्प शक्ति के,सम्मुख दुनिया सारी। वह होते आदर्श जिन्होंने, हिम्मत कभी न हारी।कविता में तोतों के माध्यम से रचनाकार ने सीख दी है। दृढ़ इच्छा शक्ति हो,परिश्रम किया जाये तो सफलता मिलती ही है। मित्रता में परस्पर व्यवहार ही काम आता है। स्वार्थी होती मित्रता फिर मित्रता नहीं रहती। “जाओ स्वेटर लेकर आओ” कविता भी ऐसी ही है। बन्दर ऊन मांगने भेड़ के यहाँ जाता है लेकिन भेड़ का जबाब -बन्दर भाई भूल गये क्या, दया न हमसे मांगों। मांगे जामुन तब तुम बोले,चलो यहाँ से भागो।एक तरफा दोस्ती का अंजाम ये ही होता है। ”मेट्रो पकड़ी चिड़िया घर की”,”विटामिन डी” भी मनोरंजक कवितायेँ हैं। ”बूझ रहा हूँ एक पहेली में” हाथी के डील-डौल, रंग रूप, स्वभाव इत्यादि बताते हुए अंत में एक खाली स्थान छोडकर पहेली का रूप बना दिया है, ठीक है बच्चे मनोरंजन और ज्ञानार्जन भी हो जायेगा। ”प्यारे बच्चो जागो” में समय का महत्व बताया गया है यथा - भाग रहा समय निरंतर इसकी गति से भागो। मुर्गा बांग लगाकर कहता,उठकर आलस त्यागो। सरल शब्दों में लिखा गया अच्छा बाल गीत। ”यह डलिया है उड़ने वाली” भी एक मजेदार बाल गीत है। दूर गगन की सैर कराती,दुनिया भर से जुड़ने वाली। यह डलिया है उड़ने वाली। बच्चों को खूब मजा आएगा इसे पढकर। एक बाल गीत “बैठें उड़न खटोले में” भी मन भावन गीत है। बच्चों को पसंद आएगा मनोरजन तो है ही एक सीख भी छुपी है।” हँसी ठिठोली में जो सुख है,क्या है वह अनबोले में”
सरल शब्दों में बड़ी बात। आज ऐसी रचनाओं की ही आवश्यकता है। “दाने लाल अनार के”अनार के रूप रंग, गुण और उसके उपयोग पर रचा गया सुंदर सा बाल गीत है। बच्चों को बहुत पसंद आएगा। ऐसे बाल गीत बच्चों तक स्कूली पाठ्यक्रम के माध्यम तक पहुंचें तो अच्छा हो। “बाकी सभी रचनाएँ मजेदार बच्चों के मन के अनुरूप हैं मजेदार है और मनोरंजक हैं।
कई जगह वर्तनी की त्रुटियाँ हैं,अगले संस्करण में सुधार जा सकता है। बहुत बड़े बाल गीत या बड़ी कवितायेँ बच्चों के लिए बोझिल होने लगते हैं लेकिन ये रचनाएँ मनोरंजक हैं तो निश्चित ही बच्चों को पसंद आएँगी। मनोज जैन मधुर जी को बधाई |
प्रभुदयाल श्रीवास्तव
१२ शिवम् सुन्दरम नगर छिंदवाडा
07 july 2025
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